1988 में आज ही के दिन अहिंसावादी नेता आंग सान सू ची मोर्चा लेकर रंगून पहुंचीं. पांच लाख लोगों के सामने वहां से दिए अपने पहले सार्वजनिक भाषण में सू ची ने जनता को लोकतांत्रिक आंदोलन में कूद पड़ने का सशक्त संदेश दिया.
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तब बर्मा कहे जाने वाले म्यांमार में आंदोलन की शुरुआत इसी विद्रोह के साथ मानी जाती है. इस आंदोलन के पीछे कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि सैन्य शासन के खिलाफ आक्रोश था. 26 अगस्त के दिन लोगों का जत्था रंगून की तरफ बढ़ रहा था. सेना की तमाम चेतावनियों के बावजूद लोग बर्मा की राजधानी में मिलिट्री जुंता के खिलाफ अपना विरोध जताने के लिए बड़ी बड़ी रैलियां निकालना चाहते थे. शासन की ओर से उन्हें रास्ते में ही रोक लिया गया. सेना की एक टुकड़ी ने भीड़ पर बंदूकें तान रखी थीं. लेकिन सू ची ने वहां दिए अपने पहले सार्वजनिक भाषण में बर्मा के लिए राष्ट्रीय आजादी की दूसरी लड़ाई का आह्वान कर डाला. इस घटना के साथ ही देश और विदेश में वह सैनिक शासन के विरोध का प्रतीक मानी जाने लगीं. देश में लोकतंत्र बहाल करने की उनकी कोशिशों को रोकने के लिए जुंता ने उन्हें 15 सालों तक नजरबंद रखा.
सू ची के पिता को लोग आधुनिक बर्मा का राष्ट्रपिता मानते हैं. देश को ब्रिटिश शासन से आजाद कराने वाले राष्ट्रीय हीरो आंग सान की बेटी ने भी अपने पिता के आदर्शों को आगे बढ़ाते हुए देश सेवा का धर्म निभाया. 15 सालों के बाद 2010 में बर्मा की असैनिक सरकार ने सू ची को नजरबंदी से रिहा करने का निर्णय लिया. लोकतंत्र के लिए सू ची की लड़ाई शुरु से ही सत्य और अहिंसा पर आधारित रही. दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गांधी की ही तरह वह भी उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गईं. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची को मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए 2014 के विली ब्रांट पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है.
गांधी से महात्मा तक
इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई करने वाले मोहनदास करमचंद गांधी के जीवन के वो पड़ाव जिन्होंने उन्हें महात्मा बना दिया.
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घर से शुरू हुआ आंदोलन
अपने सबसे छोटे बेटे देवदास के साथ बापू. यह तस्वीर 1931 में लंदन में ली गई. महात्मा गांधी ने अपने परिवार पर वही अनुशासन लागू किया जो बाकी दुनिया से चाहा.
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...जब लौटे भारत
यह तस्वीर 1915 में ली गई जब मोहनदास करमचंद गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे. भारत आने के बाद उन्हें रवींद्र नाथ टैगोर ने पहली बार महात्मा कह कर पुकारा. इसके बाद ही उन्हें महात्मा गांधी के नाम से जाना जाने लगा.
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खिंचे चले आते थे लोग
1944 में ब्रिटिश अधिकारियों से बातचीत करने जब बापू मुंबई आए तो रेलवे स्टेशन पर उनका जोरदार स्वागत हुआ. हजारों लोग सिर्फ उनकी एक झलक पाने के लिए मीलों पैदल चलकर आए थे.
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मन में जन जन
मैं जितनी बार चरखे से सूत निकालता हूं उतनी ही बार भारत के गरीबों का विचार करता हूं: गांधी
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झुकने को तैयार
आजादी से पहले भारत में सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ गया. जगह जगह हिंदू मुस्लिम दंगे होने लगे. इन परिस्थितियों में 1944 में गांधी जी मुस्लिम लीग के प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना के पास गए. जिन्ना ने बेहद आदर के साथ गांधी की एक एक बात सुनी.
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किया, फिर कहा
"सत्य से ऊपर कोई भगवान नहीं है. ताकत शारीरिक क्षमता से नहीं आती है. ताकत अदम्य इच्छाशक्ति से आती है." गांधी ने जो कहा, उसे पहले कर के दिखाया. फिल्म 'गांधी' में बेन किंग्सले.
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सीमाओं से परे
''यदि भारत ने हिंसा को अपना धर्म स्वीकार कर लिया और यदि उस समय मैं जीवित रहा, तो मैं भारत में नहीं रहना चाहूंगा. तब वह मेरे मन में गर्व की भावना उत्पन्न नहीं करेगा.'' इतनी बड़ी बात कहने वाला आदमी ही जाति, धर्म और देश की सीमाओं से परे जन जन के मन पर राज कर सकता है. जोहानिसबर्ग में बापू की मूर्ति.
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अब कहां हैं गांधी?
''संस्था जितनी बड़ी होगी, उसके दुरुपयोग की संभावनाएं भी उतनी ही बड़ी होंगी. लोकतंत्र एक बड़ी संस्था है, इसलिए उसका दुरुपयोग भी बहुत हो सकता है.लेकिन उसका इलाज लोकतंत्र से बचना नहीं, बल्कि दुरुपयोग की संभावना को कम से कम करना है.'' आज गांधी कहां हैं?
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भविष्य देखने वाला
''विदेशी भाषा के माध्यम ने बच्चों के दिमाग को शिथिल कर दिया है, उनके स्नायुओं पर अनावश्यक जोर डाला है, उन्हें रट्टू और नकलची बना दिया है तथा मौलिक कार्यों और विचारों के लिए सर्वथा अयोग्य बना दिया है. इसकी वजह से वे अपनी शिक्षा का सार अपने परिवार के लोगों तथा आम जनता तक पहुंचाने में असमर्थ हो गए हैं.''
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बापू के कुछ दुख
भारत पाकिस्तान विभाजन के वक्त हुए दंगों से गांधी जी इतने दुखी हुए कि वह आमरण अनशन पर बैठ गए. छह दिन बाद 18 जनवरी 1948 को जब हिंदू, मुस्लिम और सिख नेताओं ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह शांति बहाल कराएंगे तो बापू के पेट में अन्न का दाना गया.
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किसने कितना समझा
30 जनवरी 1948, हिंदू कट्टरपंथियों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी. कट्टरपंथी गांधी जी के धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांत के विरोधी थे. दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले साबरमती के संत को अपने ही देश के कुछ लोग नहीं समझ पाए.
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गांधी की आजादी
''सच्चा स्वराज्य थोड़े लोगों के द्वारा सत्ता प्राप्त कर लेने से नहीं बल्कि जब सत्ता का दुरुपयोग होता हो तब सब लोगों के द्वारा उसका प्रतिकार करने की क्षमता प्राप्त करके हासिल किया जा सकता है.आजादी नीचे से शुरू होनी चाहिए.''
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बापू होते तो...
गांधी जी की हत्या के आरोपियों पर चले मुकदमे की सुनवाई लाल किले में हुई. नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा हुई. गोपाल गोडसे को उम्रकैद हुई. कुछ आलोचक कहते हैं कि हत्यारों को फांसी देने का फैसला करते ही भारत ने बापू के अहिंसा के विचारों को तिलाजंलि दे दी.
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एक सवाल
महात्मा गांधी अब विचारों, तस्वीरों और मूर्तियों में हैं. दुनिया के 20 से ज्यादा देशों के किसी एक प्रमुख शहर में गांधी जी की प्रतिमा दिखाई पड़ती है. लेकिन भारत में गांधी कहां बचे हैं? आप पूछते हैं खुद से यह सवाल?