अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने 1963 में आज के दिन पश्चिम बर्लिन में ऐतिहासिक भाषण दिया था. इस भाषण में उन्होंने कहा था ‘इष बिन आइन बर्लिनर’. इसे याद किए जाने के दो कारण हैं.
विज्ञापन
पहला कारण तो यह कि "मैं बर्लिन वाला हूं", ऐसा कह कर वे दीवारों में घिरे पश्चिम बर्लिन के लोगों के साथ एकजुटता दिखाना चाहते थे और बताना चाहते थे कि वे अपने को अकेला महसूस न करें. दूसरे यह कि जर्मन भाषा में बर्लिनर एक तरह के ब्रेड का नाम है. इस कारण यह बात मजाक बन गई.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और सोवियत यूनियन के कब्जे में था. 1963 में अपने इस भाषण से अमेरिका ने स्पष्ट रूप से यह संदेश सामने रखा था कि वह लोकतांत्रिक बर्लिन के साथ है. सोवियत संघ के प्रभाव वाले पूर्वी जर्मनी की कम्युनिस्ट पार्टी ने 1961 में पूर्वी जर्मनी से बर्लिन की ओर लोगों के पलायन को रोकने के लिए बर्लिन की दीवार खड़ी कर दी. हालांकि उन्होंने इसका कारण यह बताया था कि वे पश्चिमी जर्मनी से हो रही जासूसी से बचने के लिए ऐसा कर रहे हैं, लेकिन असल कारण काफी स्पष्ट था.
अमेरिका पर इस बात का भी दबाव था कि वह बर्लिन दीवार को बनने से रोकने में कोई भूमिका नहीं निभा पाया. इस समय आधिकारिक तौर पर बर्लिन चारों विजयी ताकतों के प्रभाव में था. केनेडी के इस भाषण ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पूर्वी बर्लिन जर्मनी के दूसरे पूर्वी हिस्सों की तरह सोवियत संघ के अधिकार में है और अमेरिका का समर्थन पश्चिमी बर्लिन को है.
ढह गई जुदा करने वाली दीवार
यह जर्मन इतिहास को बदलने वाली घड़ी थी. जीडीआर के नेता गुंटर शाबोव्स्की यात्रा संबंधी नए नियमों की घोषणा करने आए थे. लेकिन उनके मुंह से निकले संदेश ने इतिहास की सूरत बदल दी और ढह गई बर्लिन की दीवार.
तस्वीर: ullstein bild-Succo
बॉर्डर खुलने के 48 घंटे के अंदर ही इस जगह को लेकर लोगों का खौफ खत्म हो चुका था. बर्लिन वाले इस दीवार के सामने और ऊपर चढ़ कर नाचे जिसने इतने सालों तक शहर को बांट कर रखा. पूर्व और पश्चिम जर्मनी एक हो चुके थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
2 मई 1989 को हंगरी के सैनिकों ने हंगरी और ऑस्ट्रिया को अलग करने वाली बाड़ के हिस्से हटाने शुरू किए. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के बीच खड़ी हुई लोहे की दीवार में पहली बार छेद यहीं हुए थे.
तस्वीर: AP
7 मई 1989 को पूर्व जर्मनी के लोगों ने संसदीय चुनाव में हिस्सा लिया. परिणाम क्या होंगे लोग जानते थे, क्योंकि एक बार फिर चुनावों में धांधली हुई. सत्ताधारियों का दावा था कि 98 फीसदी वोट उन्हें मिले. यहां से विरोध की शुरुआत हुई और अगले दिन लाइपत्सिष की सड़कों पर प्रदर्शनकारी उतर चुके थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Roland Holschneider
1989 की जुलाई में वारसा संधि वार्ता हुई. सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाएल गोर्बाचेव ने ब्रेजनेव की नीति खारिज कर दी. इससे सोवियत संघ के समाजवादी पड़ोसी के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के अधिकार खत्म हो गए. इसके बाद से उनके पड़ोसी देशों को अपनी राष्ट्रीय समस्याओं का हल खुद निकालना था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पश्चिम जर्मनी के दूतावास 1989 में छुट्टियां बिताने का अहम स्थान बन गए. इमारतें पूर्वी जर्मनी के लोगों से भरी हुई थीं. एक स्थिति तो ऐसी आ गई कि प्राग के पैलेस लोबकोवित्स में पांच हजार लोग ठहरे हुए थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
30 सितंबर 1989 को पश्चिम जर्मनी के विदेश मंत्री हंस डीटरिष गेंशर ने जीडीआर के हजारों नागरिकों से कहा कि वे बेझिझक पश्चिम जर्मनी जा सकते हैं. यह एक बेहद भावनात्मक पल था.
तस्वीर: ullstein bild-AP
नवंबर तक प्रदर्शन पूर्व जर्मनी की राजधानी तक पहुंच चुके थे. सैकड़ों हजार लोग अपनी ही सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों पर उतर आए थे. उनका स्लोगन था 'नो वॉयलेंस'. जीडीआर के 40 साल के इतिहास में यह सबसे बड़ा प्रदर्शन माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पश्चिम बर्लिन के आलेक्जांडर प्लात्स पर जारी प्रदर्शन टीवी पर लाइव दिखाए जा रहे थे. विपक्ष ने अपनी मांगे रखीं. यात्रा करने की आजादी, प्रेस की स्वतंत्रता, और सदन की स्वतंत्रता अहम मांगें थीं. मांग यह भी की गई कि स्टाजियों के अपराधों को माफ न किया जाए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Martti Kainulainen
कुछ शब्दों ने इतिहास बदल कर रख दिया. कमजोर तैयारी के साथ आए जीडीआर अधिकारी गुंटर शाबोव्स्की संदेश देने में लड़खड़ा गए और पूर्व जर्मनी के नागरिकों के लिए सीमा पार जाने के नए अस्थायी नियमों की घोषणा कर दी. साफ कहने पर जब जोर दिया गया तो वे कह गए कि बॉर्डर अभी से खुल गई है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
9 नवंबर 1989 की रात जो हुआ वह ऐतिहासिक थी. 48 घंटों के अंदर हजारों पूर्व जर्मनी वासी बर्लिन दीवार तक पहुंच गए. चेकप्वाइंट चार्ली जश्न का मंजर बन गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बर्लिन की दीवार गिरने के चार दिन बाद पूर्व और पश्चिम जर्मनी के टीवी दर्शक देख रहे थे कि अब तक हावी शासक कैसे कठपुतली से लग रहे थे. स्टाजी प्रमुख एरिष मील्के पश्चिम जर्मनी की संसद में गिड़गिड़ा रहे थे.