1922 में आज ही के दिन यूएसएसआर की स्थापना हुई थी. करीब 7 दशकों तक एक बेहद शक्तिशाली कम्युनिस्ट राष्ट्र के रूप सोवियत संघ का अस्तित्व रहा.
विज्ञापन
रूस की क्रांति के बाद वहां यूएसएसआर यानि 'यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स' की स्थापना हुई थी. इसमें रूसी संघ, बेलारूस. यूक्रेन और ट्रांसकॉकेशियन फेडरेशन के सदस्य देश शामिल थे. 1936 में ही ट्रांसकॉकेशियन फेडरेशन के देश जॉर्जिया, अजरबाइजान और अर्मीनिया रिपब्लिक में विभाजित हो गए. सोवियत यूनियन के नाम से प्रसिद्ध नया कम्युनिस्ट देश यूएसएसआर, रूसी साम्राज्य का भविष्य था. सोवियत यूनियन दुनिया भर में मार्क्स के साम्यवादी सिद्धांतों पर आधारित पहला राष्ट्र था.
1917 में रूसी क्रांति के दौरान और उसके तुरंत बाद करीब 3 साल तक चले रूसी गृह युद्ध में व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व वाली बोल्शेविक पार्टी ने सोवियत सेनाओं पर नियंत्रण रखा. सोवियत सेना वर्कर्स एंड सोल्जर्स कमेटी का एक ऐसा गठजोड़ थी जिसका मकसद पूर्व रूसी साम्राज्य में एक सोशलिस्ट राज्य की स्थापना करना था. यूएसएसआर में सरकार का पूरा नियंत्रण कम्युनिस्ट पार्टी और उसके पोलितब्यूरो के हाथों में था. पोलितब्यूरो के अध्यक्ष का पद सबसे शक्तिशाली पद था जो शासन का कार्यभार संभालता था. सभी सोवियत उद्योग धंधों की मिल्कियत और प्रबंधन भी राज्य के हाथों में ही था. कृषि भूमि का बंटवारा राज्य द्वारा संचालित कलेक्टिव फार्म्स के रूप में हुआ था.
1922 में स्थापना के कुछ दशक बाद रूसी आधिपत्य वाला सोवियत यूनियन दुनिया की सबसे शक्तिशाली सत्ता बन कर उभरा. इसमें - रूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, बेलोरूसिया, उज्बेकिस्तान, अर्मेनिया, अजरबाइजान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, मॉल्डोवा, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान, लात्विया, लिथुएनिया और एस्तोनिया - ये 15 देश शामिल हुए. 1991 में क्म्युनिस्ट सरकार के पतन के साथ ही सोवियत यूनियन भी खत्म हुआ.
गिरते रूबल से बिगड़ती तैयारियां
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में रूबल की कीमत गिरने से रूसी परेशान हैं. कुछ लोग जल्दी से महंगी चीजें खरीद लेना चाहते हैं क्योंकि आगे दाम और बढ़ने का अंदेशा है. वहीं कुछ लोग चुका ना पाने के डर से कर्ज लेने से कतरा रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/Zmeyev
जुलाई 2014 में जब रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध लगने शुरु हुए तब रूसी लोगों का मानना था कि वे आराम से इसका सामना कर पाएंगे. केवल 6 महीने बाद यह मानने वाले बहुत कम रह गए हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में भारी कमी के कारण रूसी मुद्रा रूबल के कमजोर पड़ने पर उस विश्वास की जगह अनिश्चितताओं ने ले ली है.
तस्वीर: picture-alliance/ITAR-TASS
रूस ने 1990 के दशक में भी बड़ा आर्थिक संकट झेला था. महंगाई ने आसमान छुआ था और बैंक तबाह हो गए थे. मगर तब रूस में विश्व बाजार का मामूली कर्ज था. आज स्थिति बदल चुकी है और रूस के सिर भारी कर्ज है, भले ही वह पश्चिमी देशों जितना न हो. इस बार आर्थिक संकट से निकल पाना उतना आसान नहीं होगा.
तस्वीर: Getty Images/K. Kudryavtsev
केंद्रीय बैंक के आंकड़े दिखाते हैं कि 2012 में रूस के नाम 238 अरब डॉलर का कर्ज था. कारें या घर खरीदने के लिए कर्ज लेना आम बात थी. अब कर्ज लेने पर ब्याज की राशि इतनी बढ़ गई है कि उसे चुका पाना कईयों के लिए बहुत मुश्किल साबित होगा. इसी कारण रूस में ऐसे नए बैंक कर्जों में कमी आई है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
रूस के आम लोगों में नौकरियां छिन जाने और वर्कफोर्स में प्रवेश लेने वाले नए लोगों में बेरोजगार रह जाने की चिंता है. 38 साल की मरीना कहती हैं, "शुक्र है मैं एक हेयरड्रेसर का काम करती हूं. हर हाल में लोगों को अपने बाल तो कटवाने ही पड़ेंगे, लेकिन कई और लोगों की नौकरी चली जाएगी."
तस्वीर: Fotolia/Kzenon
दूसरी ओर ऐसे भी कुछ लोग हैं जो काफी जल्दी में नई कारें और फ्रिज जैसी दूसरी मंहगी चीजें खरीद रहे हैं. उन्हें लगता है कि नए साल में इन चीजों की कीमतें बहुत बढ़ जाएंगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कुछ हफ्तों पहले तक रेडियो और समाचारपत्रों में संदेश आ रहा था कि रूस को घुटने टेकने पर मजबूर करने के लिए पश्चिमी देश और सऊदी अरब मिलकर षड़यंत्र रच रहे हैं. विदेशी भाषा के शिक्षक रिटायर्ड प्रोफेसर निकोलाई कहते हैं, "यह सब पुतिन सरकार की गलती है. ये सब लोग भ्रष्ट हैं और देश का नुकसान कर रहे हैं." फिर भी ताजा आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि देश में राष्ट्रपति पुतिन को 87.5 फीसदी लोगों का समर्थन हासिल है.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A. Druzhinin
दूसरी ओर ऐसे भी कुछ लोग हैं जो काफी जल्दी में नई कारें और फ्रिज जैसी दूसरी मंहगी चीजें खरीद रहे हैं. उन्हें लगता है कि नए साल में इन चीजों की कीमतें बहुत बढ़ जाएंगी.