1957 में इसी दिन इंसान ने अंतरिक्ष में पहली छलांग लगाई. सोवियत संघ ने मानव इतिहास का पहला उपग्रह स्पुतनिक सफलता से अंतरिक्ष में पहुंचाया था.
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83.5 किलोग्राम भारी स्पुतनिक इंसान की बनाई ऐसी पहली चीज है जो पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर भेजी गई. सोवियत संघ के वैज्ञानिकों ने इस उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के बाद कहा कि स्पुतनिक धरती से 900 किलोमीटर ऊपर है. पृथ्वी की परिक्रमा के दौरान स्पुतनिक की गति 29,000 किलोमीटर प्रतिघंटा थी. पहला मानव निर्मित उपग्रह 96 मिनट में धरती का एक चक्कर पूरा कर रहा था.
धातु की गेंद की तरह बनाए स्पुतनिक में चार एंटीने थे. प्रक्षेपण के वक्त वैज्ञानिकों को उम्मीद नहीं थी कि स्पुतनिक अंतरिक्ष से रेडियो सिग्नल भेजेगा. वैज्ञानिकों को लगा कि धरती के वायुमंडल से बाहर निकलते वक्त घर्षण की वजह से धातु का खोल गल जाएगा. हालांकि ऐसा हुआ भी, लेकिन इसके बावजूद स्पुतनिक वहां से रेडियो सिग्नल भेजने में कामयाब रहा.
ब्लैक होल की दुनिया
ब्लैक होल यानि कृष्ण विवर के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है. घनघोर अंधेरे और उच्च द्रव्यमान वाले इन ब्लैक होल्स की तस्वीरें इस गैलेरी में.
तस्वीर: NASA
बहुत कुछ पर कुछ नहीं
ब्लैक होल वास्तव में कोई छेद नहीं है, यह तो मरे हुए तारों के अवशेष हैं. करोड़ों, अरबों सालों के गुजरने के बाद किसी तारे की जिंदगी खत्म होती है और ब्लैक होल का जन्म होता है.
तस्वीर: cc-by-sa 2.0/Ute Kraus
विशाल धमाका
यह तेज और चमकते सूरज या किसी दूसरे तारे के जीवन का आखिरी पल होता है और तब इसे सुपरनोवा कहा जाता है. तारे में हुआ विशाल धमाका उसे तबाह कर देता है और उसके पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाते हैं. इन पलों की चमक किसी गैलेक्सी जैसी होती है.
तस्वीर: NASA
सिमटा तारा
मरने वाले तारे में इतना आकर्षण होता है कि उसका सारा पदार्थ आपस में बहुत गहनता से सिमट जाता है और एक छोटे काले बॉल की आकृति ले लेता है. इसके बाद इसका कोई आयतन नहीं होता लेकिन घनत्व अनंत रहता है. यह घनत्व इतना ज्यादा है कि इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. सिर्फ सापेक्षता के सिद्धांत से ही इसकी व्याख्या हो सकती है.
तस्वीर: NASA and M. Weiss (Chandra X -ray Center)
ब्लैक होल का जन्म
यह ब्लैक होल इसके बाद ग्रह, चांद, सूरज समेत सभी अंतरिक्षीय पिंडों को अपनी ओर खींचता है. जितने ज्यादा पदार्थ इसके अंदर आते हैं इसका आकर्षण बढ़ता जाता है. यहां तक कि यह प्रकाश को भी सोख लेता है.
सभी तारे मरने के बाद ब्लैक होल नहीं बनते. पृथ्वी जितने छोटे तारे तो बस सफेद छोटे छोटे कण बन कर ही रह जाते हैं. इस मिल्की वे में दिख रहे बड़े तारे न्यूट्रॉन तारे हैं जो बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाले पिंड हैं.
तस्वीर: NASA and H. Richer (University of British Columbia)
विशालकाय दुनिया
अंतरिक्ष विज्ञानी ब्लैक होल को उनके आकार के आधार पर अलग करते हैं. छोटे ब्लैक होल स्टेलर ब्लैक होल कहे जाते हैं जबकि बड़े वालों को सुपरमैसिव ब्लैक होल कहा जाता है. इनका भार इतना ज्यादा होता है कि एक एक ब्लैक होल लाखों करोड़ों सूरज के बराबर हो जाए.
तस्वीर: NASA/CXC/MIT/F.K. Baganoff et al
छिपे रहते हैं
ब्लैक होल देखे नहीं जा सकते, इनका कोई आयतन नही होता और यह कोई पिंड नहीं होते. इनकी सिर्फ कल्पना की जाती है कि अंतरिक्ष में कोई जगह कैसी है. रहस्यमय ब्लैक होल को सिर्फ उसके आस पास चक्कर लगाते भंवर जैसी चीजों से पहचाना जाता है.
1972 में एक्स रे बाइनरी स्टार सिग्नस एक्स-1 के हिस्से के रूप मे सामने आया ब्लैक होल सबसे पहला था जिसकी पुष्टि हुई. शुरुआत में तो रिसर्चर इस पर एकमत ही नहीं थे कि यह कोई ब्लैक होल है या फिर बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाला कोई न्यूट्रॉन स्टार.
तस्वीर: NASA/CXC
पुष्ट हुई धारणा
सिग्नस एक्स-1 के बी स्टार की ब्लैक होल के रूप में पहचान हुई. पहले तो इसका द्रव्यमान न्यूट्रॉन स्टार के द्रव्यमान से ज्यादा निकला. दूसरे अंतरिक्ष में अचानक कोई चीज गायब हो जाती. यहां भौतिकी के रोजमर्रा के सिद्धांत लागू नहीं होते.
तस्वीर: NASA/CXC/M.Weiss
सबसे बड़ा ब्लैक होल
यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला के वैज्ञानिको ने हाल ही में अब तक का सबसे विशाल ब्लैक होल ढूंढ निकाला है. यह अपने मेजबान गैलेक्सी एडीसी 1277 का 14 फीसदी द्रव्यमान अपने अंदर लेता है.
तस्वीर: ESO/L. Calçada
अनसुलझे रहस्य
ब्लैक होल के पार देखना कभी खत्म नहीं होता. ये अंतरिक्ष विज्ञानियों को हमेशा नई पहेलियां देते रहते हैं.
तस्वीर: NASA/CXC/SAO/A.Prestwich et al
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हालांकि इंसानी इतिहास का ये पहला उपग्रह अंतरिक्ष में 22 दिन ही सिग्नल भेज पाया. बैटरी खत्म होने की वजह से 26 अक्टूबर 1957 को स्पुतनिक खामोश हो गया.
आम तौर पर सैटेलाइटों की औसत उम्र पांच से 20 साल के बीच होती है. 2008 तक पूर्वी सोवियत संघ और रूस की करीब 1,400 सैटेलाइटें अंतरिक्ष में है. अमेरिका की करीबन एक हजार, जापान की 100 से ज्यादा, चीन की करीब 80, फ्रांस की 40 और भारत 30 से ज्यादा सैटेलाइटें भी धरती की परिक्रमा कर रही हैं. भारत ने अपनी पहली सैटेलाइट अप्रैल 1971 में छोड़ी. इसका नाम आर्यभट्ट था.
आज करीब 3,000 इंसानी उपग्रह अंतरिक्ष में रहकर धरती का चक्कर काट रहे हैं. इन्हीं की मदद से आज मोबाइल कम्युनिकेशन, टीवी प्रसारण, इंटरनेट, हवाई और समुद्री परिवहन और आपदा प्रबंधन हो रहा है. स्पुतनिक के जरिए इंसान ने वो तकनीक हासिल कर ली, जिसके बिना आज की 21वीं सदी की कल्पना मुश्किल है.
अंतरिक्ष से वापसी
अंतरिक्ष यात्री अलेक्सांडर गैर्स्ट अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन आईएसएस से लौट आए हैं. आईएसएस पर रहने के दौरान गैर्स्ट ने कई तरह के प्रयोग किए. देखें तस्वीरों में...
तस्वीर: Reuters/Shamil Zhumatov
धरती पर पहुंचे
जर्मनी के अलेक्जांडर गैर्स्ट, रूस के माक्सिम सुरायेव और रीड वाइसमान अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन से धरती पर लौट आए हैं. इस दौरान आईएसएस पर कई तरह के प्रयोग किए गए.
तस्वीर: Reuters/Shamil Zhumatov
ऊपर से दुनिया की पढ़ाई
ज्वालामुखी विशेषज्ञ और भूगर्भ भौतिकशास्त्री के तौर पर गैर्स्ट धरती को अंदर से तो बहुत अच्छी तरह जानते हैं. 28 मई से वह इसे ऊपर से भी देख रहे हैं. 400 किलोमीटर की ऊंचाई से वह नियमित रूप से फोटो लेते हैं, जैसे यहां उत्तरी अटलांटिक महासागर के ऊपर फैले बादल.
तस्वीर: ESA/NASA
कसरत भी चाहिए
अंतरिक्ष यान के सभी लोगों के लिए कसरत अनिवार्य है, क्योंकि पैरों और जांघों की मांसपेशियों में भारहीनता का असर अच्छा नहीं होता. हालांकि इस कसरत के जरिए गैर्स्ट के शरीर पर कई सेहत से जुड़े प्रयोग भी किए जा रहे हैं.
तस्वीर: ESA/NASA
छह महीने में 106 प्रयोग
अंतरिक्ष में जीने के कई रहस्य अभी भी बरकरार हैं. गैर्स्ट की कोशिश है उन पर से पर्दा उठाना. इसलिए उन्हें छह महीने के दौरान 106 प्रयोग करने की जिम्मेदारी दी गई है. इनमें से 25 जर्मन उद्योग के साथ मिल कर किए जाएंगे. इसमें कोलोन का खेल महाविद्यालय और बर्लिन का चेरिटे शामिल हैं.
तस्वीर: ESA/NASA
कैसे कैसे शोध
अंतरिक्ष की यात्रा के दौरान अलेक्सांडर के खून के नमूने नियमित रूप से इकट्ठे किए जाते हैं. ये नमूने एक अंतरिक्ष यान से धरती पर भेजे जाते हैं और इनका परीक्षण किया जाता है.
तस्वीर: ESA/NASA
अंतरिक्ष में वर्ल्ड चैंपियन
आईएसएस पर इतने व्यस्त टाइम टेबल के बावजूद अलेक्सांडर गैर्स्ट ने फुटबॉल वर्ल्ड चैंपियनशिप का फाइनल मिस नहीं किया. बाकायदा जर्मन टीशर्ट के साथ उन्होंने अंतरिक्ष में जीत की खुशी मनाई और तुरंत तस्वीर ऑनलाइन शेयर कर दी.
तस्वीर: ESA/NASA
अभियान
इस तरह की तस्वीरों के जरिए गैर्स्ट बताना चाहते हैं कि उन्हें आईएसएस से क्या क्या दिखाई देता है. वह धरती की खूबसूरती और उस पर जारी समस्याओं के बारे में लोगों को जागरूक और संवेदनशील बनाना चाहते हैं.
तस्वीर: ESA/NASA
अंतरिक्ष से लाइव
अपना संदेश पहुंचाने के लिए गैर्स्ट हर दिन थोड़ा समय निकाल कर वीडियो के जरिए धरती के लोगों से रूबरू होते हैं. पिछले महीने उन्होंने सैटेलाइट के जरिए सीधे दो स्कूलों के बच्चों से बात की. इसके अलावा वह नियमित तौर पर आईएसएस पर जीवन के बारे में वीडियो शेयर करते हैं.
तस्वीर: ESA/NASA
सबका अपना काम
वैज्ञानिक प्रयोगों के अलावा आईएसएस की मरम्मत का काम भी यात्रियों के ही हाथ में होता है. सबका काम निर्धारित है. गैर्स्ट जल शुद्धिकरण प्रणाली और कसरत उपकरणों के लिए जिम्मेदार हैं. हर शनिवार को आईएसएस की सफाई की जाती है.
तस्वीर: ESA/NASA
सुंदर धरती
अंतरिक्ष से हमारी पृथ्वी कितनी सुंदर दिखाई देती है ये अक्सर गैर्स्ट ट्विटर पर शेयर करते हैं. तस्वीर में देखा जा सकता है आसमान से सहारा का रेगिस्तान.