भारत की जनता ने तीन साल तक सत्ता से दूर रखने के बाद कांग्रेस पार्टी की सबसे शक्तिशाली नेता इंदिरा गांधी को वापस चुना. गांधी ने देश में इमरजेंसी लागू करने की भारी कीमत 1977 में अपनी चुनावी हार से चुकाई थी. 1980 के चुनावों में उन्होंने संसद के निचले सदन लोकसभा में कुल 525 सीटों में से 351 जीतीं. इसी के साथ उनकी दो विरोधी पार्टियों जनता दल और लोक दल को करारी हार का मुंह देखना पड़ा. ये दोनों ही पार्टियां संसद में आधिकारिक विपक्षी दल बनने के लिए जरूरी न्यूनतम 54 सीटें भी नहीं जीत सकीं. इन चुनावों में इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी भी विजयी रहे. संजय को ही देश में इमरजेंसी के दौरान कई तरह की ज्यादतियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
इंदिरा गांधी 1977 तक भारत की प्रधानमंत्री के रूप में 11 सालों कर शासन कर चुकी थीं. 1980 के चुनाव में इंदिरा ने अपने "गरीबी हटाओ" के नारे और देश में कानून-व्यवस्था बहाल करने के वादे के साथ सत्ता में फिर वापसी की. 62 साल की उम्र में लड़े इन चुनावों में उन्होंने खुद 384 लोकसभा क्षेत्रों का दौरा किया और भारी जन समर्थन हासिल किया. भारी बहुमत से चुन कर आने के बावजूद भारत में 19 महीनों तक लागू किए आपातकाल के साये ने पूरी तरह उनका पीछा नहीं छोड़ा. इस दौरान देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थगित कर दिया गया था और ज्यादातर राजनीतिक विरोधियों को उन्होंने जेल में डाल दिया था. इसके अलावा इस दौरान चलाए गए अनिवार्य नसबंदी कार्यक्रम के लिए भी उनकी खूब आलोचना हुई.
इससे पहले 1978 में जब वे एक उपचुनाव में अपनी सीट जीत कर संसद में आईं तो उन्हें आपातकाल के दौरान ज्यादतियों के आरोप में संसद से निष्कासित कर दिया गया. भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में यह अपनी तरह की एकमात्र घटना है जब किसी पूर्व प्रधानमंत्री को संसद से निकाला गया हो. 1984 में उन्होंने पंजाब के स्वर्ण मंदिर में छिपे सिख उग्रवादियों को निकालने के लिए सैनिक कार्यवाई के आदेश दे दिए. इसके दो ही महीने बाद इंदिरा गांधी के इस कदम से नाखुश एक सिख बॉडीगार्ड ने उनकी हत्या कर दी.
एक नजर आजादी से अब तक भारत के प्रधानमंत्रियों और उनके कार्यकाल पर.
तस्वीर: Reutersभारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू धर्मनिरपेक्ष नेता थे. उनके कार्यकाल में समाजवादी नीतियों पर जोर रहा. विज्ञान, शिक्षा और समाज सुधारों की शुरुआत हुई. हालांकि नेहरू के कार्यकाल में देश ने अकाल भी देखे. आलोचक कहते हैं कि नेहरू ने देश से ज्यादा विदेशों पर ध्यान दिया और प्राथमिक शिक्षा पर भी कम ध्यान दिया.
तस्वीर: Keystone/Getty Imagesदूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की छवि बेहद मेहनती और जमीन से जुड़े नेता की रही. चुपचाप ईमानदारी से अपना काम करने वाले शास्त्री देश को अकाल से निकालने से सफल रहे. कृषि में क्रांति करने वाले इस नेता ने ही "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया.
तस्वीर: Getty Imagesलाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. कांग्रेस पार्टी टूट गई, लेकिन बांग्लादेश युद्ध के दौरान उनकी छवि लौह महिला की बनी. आपातकाल लगाने और पार्टी लोकतंत्र को खत्म करने के लिए इंदिरा गांधी की आलोचना होती है. उन्हीं के कार्यकाल में खालिस्तान आंदोलन भी शुरू हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/KPAइंदिरा गांधी की सरकार में वित्त मंत्री रहे मोरारजी देसाई आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनावों में इंदिरा की हार के बाद पीएम बने. लेकिन उनकी जनता पार्टी सरकार दो ही साल चली. चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने और फिर इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaइंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने. 40 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले राजीव ने संचार, शिक्षा और लाइसेंस राज में बड़े सुधार किये. शाहबानो केस, बोफोर्स घोटाले, भोपाल गैस कांड और काले धन के मामले उन्हीं के कार्यकाल में सामने आए.
तस्वीर: AP1989 के चुनावों में कांग्रेस की हार से जनता पार्टी की गठबंधन सरकार बनी. वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने. उन्हीं के कार्यकाल में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू हुई. 1990 में वीपी सिंह की सरकार गिरी और चंद्र शेखर की अगुवाई में सरकार बनी. ये भी 1991 में गिर गई.
तस्वीर: AFP/Getty Imagesराजीव गांधी की हत्या के बाद जून 1991 में कांग्रेस के नरसिंह राव देश के पहले दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री बने. वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की मदद से उन्होंने उदारीकरण के रास्ते खोले. उन्हीं के कार्यकाल में हिंदू कट्टरपंथियों ने बाबरी मस्जिद तोड़ी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo1996 के चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिली. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली अल्पमत सरकार सिर्फ 13 दिन चल सकी. इसके बाद जनता दल यूनाइटेड ने एचडी देवगौड़ा (बाएं से तीसरे) के नेतृत्व में सरकार बनाई. भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझती ये सरकार साल भर में धराशायी हो गई.
तस्वीर: Sajjad HussainAFP/Getty Imagesपढ़े लिखे, सौम्य और विनम्र छवि के इंद्र कुमार गुजराल 1997 में प्रधानमंत्री बने. उनकी गठबंधन सरकार बहुत कुछ नहीं कर पाई, ज्यादातर वक्त सरकार बचाने की जोड़ तोड़ ही होती रही.
तस्वीर: AFP/Getty Images1998 में हुए चुनावों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी की गठबंधन सरकार बनी. पर सरकार 13 महीने ही चली. फिर चुनाव हुए और वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी. इस दौरान आर्थिक विकास तेज हुआ. पाकिस्तान के साथ संबंध बेहतर हुए. लेकिन कारगिल युद्ध ने संबंधों में दरार डाल दी. वाजपेयी के कार्यकाल में कंधार विमान अपहरण कांड भी हुआ.
तस्वीर: APएनडीए का "इंडिया शाइनिंग" नारा नाकाम रहा. 2004 में केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए गठबंधन सरकार बनी. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया जाना आश्चर्यजनक था. सूचना अधिकार, शिक्षा अधिकार, मनरेगा जैसे बड़े फैसले सरकार ने लिए. लेकिन दूसरी पारी में सरकार भ्रष्टाचार के लिए बदनाम हुई. देश ने कई बड़े घोटाले देखे.
तस्वीर: UNIमई 2014 को जबरदस्त बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी भारत के 14वें प्रधानमंत्री बने. तीन बार गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके मोदी विकास, सुशासन और सबको साथ लेने का नारा देकर बहुमत में आए. विरोधी उन पर गुजरात दंगों में ठोस कदम न उठाने का आरोप लगाते हैं.
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