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इतिहास में आज: 9 अक्टूबर

समरा फातिमा८ अक्टूबर २०१३

साल 2012 में आज ही के दिन तालिबान की गोली ने मलाला के सिर को तो भेद दिया था. मगर कोई उसके हौसले पस्त नहीं कर पाया.

तस्वीर: picture alliance / dpa

लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रचार में अहम भूमिका रखने के कारण तालिबान ने मलाला को 9 अक्टूबर 2012 को अपनी गोली का निशाना बनाया जब वह स्कूल से घर जा रही थी. 16 साल की बच्ची पर बंदूकधारियों की गोलियों की बौछार ने पूरी दुनिया को हिला दिया. इस हादसे के बाद कुछ दिनों तक पाकिस्तान में इलाज के बाद मलाला को ब्रिटेन भेज दिया गया, जहां बर्मिंघम के क्वीन एलिजाबेथ अस्पताल में उसका इलाज हुआ. मलाला इस समय अपने परिवार के साथ बर्मिंघम में ही रह रही है.

पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया में मलाला पर हमले की निंदा हुई. पाकिस्तान की औरतों ने उसके लिए सार्वजनिक तौर पर दुआएं मांगीं और तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन किया. कराची और दूसरे शहरों में बच्चियों ने सड़कों पर निकल कर मलाला का समर्थन किया और तालिबान के खिलाफ नारे लगाए.

मलाला युसुफजई को यूरोपीय संघ के प्रतिष्ठित सखारोव मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके पहले 2011 में उसे पाकिस्तान के अहम शांति पुरस्कार से नवाजा गया था. इसके अलावा इस हादसे से पहले उसके एक ब्लॉग ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उसकी पहचान बना दी थी. वह अपने पिता के स्कूल में पढ़ने जाती थी, जिसे 2009 में तालिबान के उपद्रव की वजह से कुछ दिनों के लिए बंद करना पड़ा. बाद में उसने पढ़ाई जारी रखी और तालिबान की धमकियों के बाद भी वह स्कूल जाती रही.

इस बीच मलाला की ब्रिटिश पत्रकार क्रिस्टीना लैम्ब के साथ मिल कर लिखी आत्मकथा 'आई एम मलालाः हू स्टुड अप फॉर एजुकेशन एंड वाज शॉट बाइ द तालिबान' भी बाजार में आ गई है. इसमें उसने तालिबान के खिलाफ अपनी लड़ाई, स्वात घाटी में पढ़ाई के लिए अपने संघर्ष, खौफ के साए में वहां बीता उसका बचपन, उस पर हुए हमले और बर्मिंघम के साथ बढ़ रही अपनी दोस्ती का जिक्र किया है.

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