चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर अमेरिका के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने का दबाव डाला जा रहा है. चीनी सेना के एक धड़े को लगता है कि दक्षिण चीन सागर विवाद में अब दुश्मनों की नाक तोड़ने का समय आ गया है.
विज्ञापन
दक्षिण चीन सागर विवाद में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला चीन के खिलाफ आया. द हेग की अदालत के इंटरनेशनल ट्राइब्यूनल ने 12 जुलाई को फिलीपींस के दावे को सही करार देते हुए चीन से कहा कि दक्षिण चीन सागर और उसके द्वीपों पर सिर्फ बीजिंग का ही हक नहीं है. चीन अपने तट से बेहद दूर दूसरे देशों के करीब बसे द्वीपों पर अपना दावा करता रहा है. ट्राइब्यूनल ने नौ लाइनें खींचते हुए अलग अलग देशों के सागर में इकोनॉमिक टेरेटोरियल जोन तय कर दिये. चीन फैसले को खारिज कर चुका है. फैसले के बाद से ही चीन में राष्ट्रवाद की भावना उफान मार रही है. सरकारी मीडिया में कड़े भाषा में संपादकीय लिखे जा रहे हैं.
बीते सालों में चीन ने दक्षिण चीन सागर में दूसरे देशों के मछुआरों की नावों को धमकाकर कर वापस भी भेजा. कुछ विवादित द्वीपों पर तो उसने सेना भी तैनात कर दी. विवाद बढ़ने के बाद जब अमेरिकी नौसेना के जंगी जहाजों ने वहां चक्कर लगाए तो बीजिंग का रुख कुछ नरम पड़ा. वॉशिंगटन का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय कानून मुफ्त सागर में आवाजाही की आजादी देता है जबकि बीजिंग, दक्षिण चीन सागर को मुक्त सागर के बजाए अपना इलाका कहता है.
(उपग्रह चित्र देखकर अनुमान लगाया जा रहा है कि दक्षिण चीन सागर की विवादित जल सीमा में उभरते जमीन के टुकड़े चीन के सैनिक ठिकाने हो सकते हैं. हैरान करने वाली तस्वीरें.)
विवादित पानी में पांव फैलाता चीन
हाल ही में सामने आए उपग्रह चित्र देखकर अनुमान लगाया जा रहा है कि दक्षिण चीन सागर की विवादित जल सीमा में उभरते जमीन के टुकड़े चीन के सैनिक ठिकाने हो सकते हैं. हैरान करने वाली तस्वीरें.
तस्वीर: CSIS Asia Maritime Transparency Initiative/DigitalGlobe
फायरी क्रॉस रीफ पर चीन ने निर्माण कार्य जारी रखा हुआ है. 28 जून 2015 की यह तस्वीर दिखाती है कि यहां करीब 3,000 मीटर लंबी हवाई पट्टी लगभग बन कर तैयार हो चुकी है. फोटो में दो हैलीपैड, संचार एंटीना और रडार जैसी संरचना भी दिखती है.
तस्वीर: Asia Maritime Transparency Iniative
समुद्र के विवादित हिस्से के स्प्रैटली द्वीप के पश्चिम में स्थित फायरी क्रॉस रीफ पर निर्माण कार्य अगस्त 2014 में शुरु हुआ. ड्रेजर उपकरणों की मदद से रीफ पर करीब 3,000 मीटर लंबी और 200 से 300 मीटर चौड़ी सतह तैयार कर ली गई है.
तस्वीर: Reuters//U.S. Navy
नवंबर 2014 की इस तस्वीर में रीफ पर चल रहे निर्माण कार्य को साफ साफ देखा जा सकता है. कथित तौर पर रीफ पर कुछ मिलिट्री टैंक और बैरक पहुंचाए जा चुके हैं.
तस्वीर: CSIS, IHS Jane's
साउथ जॉनसन रीफ ऐसी पहली रीफ थी जिस पर निर्माण कार्य सबसे पहले पूरा हुआ. हाल की ही यह तस्वीर दिखाती है कि उत्तरी छोर पर एक रडार का काम लगभग पूरा हो गया है. एशिया मेरीटाइम ट्रांसपेरेंसी इनिशिएटिव (एएमटीआई) के अनुसार अब यहां एक विशाल, बहुमंजिले सैनिक सुविधा केंद्र का निर्माण चल रहा है.
तस्वीर: Asia Maritime Transparency Iniative
ऊर्जा के समृद्ध साधनों से भरे इन क्षेत्रों पर चीन अपना आधिपत्य जताता आया है. यहां नौवहन मार्ग से करीब 5 ट्रिलियन डॉलर का कारोबार होता है. अमेरिका इस निर्माण को ग्रेट वॉल ऑफ सैंड कह चुका है तो चीन समुद्री संसाधनों पर अपना ऐतिहासिक अधिकार मानता है.
तस्वीर: DW
फिलिपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान ने भी इन हिस्सों पर अपने अपने दावे पेश किए हैं. इसके कारण कई बार जमीनी सीमा पर कई विवाद उभरे. 2014 में हनोई और चीन के बीच इस हिस्से में तेल के विशाल भंडार पर हक के मामले ने काफी तूल पकड़ा था.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
अमेरिका को चिंता इस इलाके में चीन की बढ़ती सैनिक शक्ति की है. पूरे प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में इससे अमेरिकी नौसैनिक और आर्थिक शक्ति के कम होने का अंदेशा है. वॉशिंगटन बार बार चीन से कहता आया है कि वह इन विवादित क्षेत्रों में अपना आधिपत्य स्थापित करने वाले प्रोजेक्ट बंद करे, जिन्हें चीन ठुकराता आया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Abbugao
फिलिपींस ने यूएन में इस बाबत 2014 में एक आधिकारिक शिकायत भी दर्ज कराई है. शिकायत में "मनीला और चीन के इस तरह के प्रयासों से पूरे साउथ चाइना सी में जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को अभूतपूर्व नुकसान पहुंचाने" की बात कही गई. यह भी दावा है कि यहां कोरल रीफ के विनाश के कारण सालाना करीब 10 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान भी हो रहा है.
तस्वीर: CC2.0/TheAnimalDay
8 तस्वीरें1 | 8
अमेरिकी नौसेना के दखल के बाद बीजिंग लगातार चेतावनी देता रहा है. लेकिन अब चीनी सेना के एक हिस्से को लग रहा है कि कड़े कदम उठाने चाहिए. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने चीनी सेना के चार बड़े अधिकारियों से बातचीत के बाद यह रिपोर्ट दी है. सेना से जुड़े एक सूत्र ने कहा, "द पीपल्स लिबरेशन आर्मी तैयार है. हमें जाना चाहिए और 1979 में वियतनाम युद्ध के दौरान जिस तरह डेंग शियाओपिंग ने उनकी नाक तोड़ी थी वैसा ही जबाव देना चाहिए."
सेना से जुड़े एक और अधिकारी ने कहा, "अमेरिका वही करेगा जो वह करना चाहता है. हम वह करेंगे तो हमें करना है. पूरी सेना सख्त हुई है." सेना के कई अधिकारी अमेरिका और इलाके में उसके सहयोगियों को हथियारों से सीमित जबाव देने का दबाव डाल रहे हैं. सेना, सरकार से दक्षिण चीन सागर में एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन बनाने को भी कह रही है. ऐसा हुआ तो वहां से गुजरने वाले यात्री विमानों को भी चीन प्रशासन से अनुमति लेनी होगी. लेकिन द हेग के फैसले के बाद चीन ने अगर ऐसा किया तो विवाद का गंभीर होना तय है.
वहीं, राष्ट्रपति शी जिनपिंग फिलहाल अर्थव्यवस्था पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. 2008 की विश्वव्यापी मंदी के बाद से ही चीन का आर्थिक विकास धीमा पड़ा है. राष्ट्रपति का कहना है कि बाहरी माहौल बेहतर होगा तो इकोनॉमी पटरी पर लौट आएगी. चीन में सितंबर में जी20 देशों की शिखर सम्मेलन भी है. माना जा रहा है कि उस दौरान भी दक्षिण चीन सागर को मुद्दा गर्माएगा.
बिना सेना वाले देश
सेना सुरक्षा के लिए होती है. बहुत से देश अपनी सैनिक ताकत का प्रदर्शन करने में गर्व महसूस करते हैं लेकिन कुछ देशों के पास कोई सेना नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Z. Kurtsikidze
कोस्टा रिका
मध्य अमेरिकी देश कोस्टा रिका में सेना नहीं है. 1948 में राष्ट्रपति चुनावों में धांधली के खिलाफ हुए जनविद्रोह के साथ विद्रोहियों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और नया संविधान बनाया. नए संविधान में सेना को समाप्त कर दिया गया. 1953 से देश में 14 राष्ट्रपति चुनाव हो चुके हैं और सभी शांतिपूर्ण रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
लिष्टेनश्टाइन
केंद्रीय यूरोप के इस छोटे से देश ने 1868 में अपनी सेना को भंग कर दिया. कारण आर्थिक थे. सेना बहुत महंगी हो गई थी. युद्ध के समय सेना बनाने की संभावना रही, लेकिन युद्ध कभी आया नहीं. लिष्टेनश्टाइन काले धन को लेकर चर्चा में रहता है. इस देश का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद कतर के बाद दूसरे नंबर पर है.
तस्वीर: Fotolia/S.A.N.
समोआ
समोआ 1962 में न्यूजीलैंड की गुलामी से आजाद हुआ था. स्वतंत्रता के बाद से ही उसके पास कोई सेना नहीं है. 1962 की एक मैत्री संधि के अनुसार न्यूजीलैंड ने जरूरत पड़ने पर उसकी सुरक्षा का आश्वासन दिया है. पश्चिमी समोआ द्वीप समूह से बना देश पोलेनेशिया का हिस्सा है. भारत प्रशांत के द्वीप राज्यों के साथ निकट सहयोग करता है.
तस्वीर: picture-alliance/DUMONT Bildarchiv
अंडोरा
यूरोप में स्थित यह देश 1278 में बना. अंडोरा के पास अपनी सेना नहीं है लेकिन स्पेन और फ्रांस ने उसे जरूरत पड़ने पर सुरक्षा देने की गारंटी ली है. 468 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला अंडोरा अपने स्की रिजॉर्ट और ड्यूटी-फ्री दुकानों के लिए जाना जाता है. इसे टैक्स बचाने वालों का स्वर्ग भी माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/Thomas Muncke
तुवालू
2014 में बने भारत प्रशांत द्वीप सहयोग संगठन में समोआ और तुवालू भी हैं. 2015 में जयपुर में संगठन के 14 सदस्य देशों का सम्मेलन हुआ. तुवालू का क्षेत्रफल सिर्फ 26 वर्ग किलोमीटर है और वहां की आबादी 10,000 है. यह राष्ट्रकुल का सदस्य है और यहां संसदीय राजतंत्र है.
तस्वीर: AP
वैटिकन
इटली की राजधानी रोम में स्थित यह दुनिया का सबसे छोटा देश है. इस देश का क्षेत्रफल सिर्फ 0.44 वर्ग किलोमीटर है और आबादी है 840. इस तरह से सबसे कम आबादी वाला देश भी. यह कैथोलिक गिरजे का मुख्यालय है जहां गिरजे के प्रमुख पोप और चर्च के दूसरे अधिकारी रहते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Arco/Schoening
ग्रेनेडा
एक बड़े द्वीप और छह छोटे छोटे द्वीपों से बने ग्रेनेडा का क्षेत्रफल 344 वर्ग किलोमीटर है और उसकी आबादी 105,000 है. ग्रेनेडा कैरिबिक और अटलांटिक के बीच स्थित है और इसे मसालों के लिए भी जाना जाता है. 1983 में सैनिक विद्रोह और अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद से यहां नियमित सेना नहीं.
तस्वीर: shaggyshoo/nd
नाउरू
प्रशांत महासागर में स्थित द्वीप राष्ट्र 21.10 वर्ग किलोमीटर बडा़ है. इसकी आबादी करीब 10,000 है. नाउरू माइक्रोनेशिया के द्वीपों का हिस्सा है. ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए एक समझौते के तहत नाउरू की सुरक्षा की जिम्मेदारी ऑस्ट्रेलिया ने ली है.