कृष्ण, बुद्ध, नानक और कबीर की धरती पर आसाराम और रामरहीम जैसे पाखंडी इतने बड़े कैसे हो गए. भारतीय समाज को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए.
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राम रहीम, आसाराम या जाकिर नाईक ये उन दर्जनों ढोंगियों में शामिल हैं जिन्होंने निराश समाज को गुमराह कर अंधभक्ति का साम्राज्य खड़ा किया है. टेलिविजन पर ये माया, मोह, अंहकार, लालच और वासना को गलियाते दिखते हैं. जब कुछ समझ में नहीं आता तो चुप होकर मौन का आनंद लेने की बात करते हैं. सामने बैठे लोग अपने भीतर के कोलाहल को इनकी वाणी से शांत करते हैं. फिर घर जाते हैं और अगले दिन से वही हाल, वही ढाक के तीन पात.
पलायन कर शहरों में बस चुके लोग शहरी भाग दौड़ और झंझावात से परेशान हैं तो गांव के लोग "हम यहीं फंस रह गए" की चिंता में घुले जाते हैं. हर किसी के घर में कुछ दिकक्तें हैं और घर के बाहर भी दुश्वारियों का पहाड़ है. ट्रैफिक जाम, बीमारी, खस्ताहाल अस्पताल, बच्चों की चिंता और समाज का भय, हर वक्त हर किसी को इनसे जूझना पड़ता है.
रही सही कसर अखबारों और न्यूज चैनलों ने पूरी कर दी है. उन्हें पढ़ो या देखो तो ऐसा लगने लगता है जैसे पूरा समाज ही बर्बाद हो चुका है. कहीं कुछ अच्छा हो ही नहीं रहा है. दोपहिया चलाएंगे तो घरवालों को चिंता होगी कि कहीं कोई कुचल न दे. कार स्टार्ट करने से पहले ही रास्ते में जाम, लड़ाई झगड़े या लूट पाट जैसी चिंताएं स्टार्ट हो जाएंगी. सोशल मीडिया देखेंगे तो लगेगा कि देश को हिंदू मुसलमान के अलावा कुछ नहीं सूझ रहा. "परिवर्तन सृष्टि का नियम है" सैकड़ों साल ये सुनते आए समाज को आज भी बदलाव को आत्मसात करने पर लकवा सा मार जाता है. और यहीं से ढोंगी बाबाओं का मायाजाल शुरू होता है.
इन सब मानसिक भंवरों के बीच टीवी या इंटरनेट पर कोई सुनाई पड़ेगा जो कहेगा कि, कुछ देर शांत बैठिए. अपने भीतर समा जाइए. याद कीजिए कि सब कुछ क्षणिक है. जीवन क्षणभंगुर है. और कहीं न कहीं ऐसे संदेश एक ठंडक का अहसास कराते हैं और धीरे धीरे आध्यात्म की ओर झुकाव बढ़ने लगता है. सब कुछ तुरंत पाने वाली सोच परम आध्यात्मिक चेतना भी मैगी की तरह दो मिनट में पाना चाहती है और बस यहीं से गुरुघंटालों का मायाजाल शुरू होता है.
इसीलिए बीच बीच में खुद से यह सवाल करना जरूरी है कि क्या फलां शख्स की हर बात सही है? खुद को गुरु बताने वालों की कथनी और करनी में कितना फर्क है? दूसरों को माया मोह का लेक्चर देने वाला खुद कहां खड़ा है.
अगर यह सवाल नहीं करेंगे तो एक नहीं एक लाख आसाराम या राम रहीम पैदा होंगे. वे अपने अनुयायियों की मजबूरियों का फायदा उठाएंगे, उनके बच्चों का यौन शोषण करेंगे, खुद ऐशोआराम की जिंदगी बिताएंगे. और वो असली साधु संतों के प्रति भी समाज के मन में नफरत ही भरेंगे.
धर्मग्रंथों में पर्यावरण संरक्षण
चाहे हिंदू हों, ईसाई, मुसलमान या फिर बौद्ध. सभी पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जूझ रहे हैं. सभी के धर्मग्रंथों में पर्यावरण संरक्षण की बात कही गई है.
तस्वीर: Axel Warnstedt
जीवन चक्र
हिंदू दर्शन के मुताबिक ब्रह्मांड की रचना करने वाला कोई व्यक्ति या एक कहानी नहीं है. इसके अनुसार जन्म और मृत्यु के चक्र में सभी गुंथे हुए हैं. चाहे आत्मा हो, शरीर, दृश्य या अदृश्य सबका इस चक्र में महत्व है.
तस्वीर: public domain
संतुलन जरूरी
जीवन का प्राकृतिक चक्र बना रहना चाहिए, जो भी कुछ ले रहा है, उसे लौटाना जरूरी है. भगवद् गीता में कर्मयोग के तीसरे अध्याय का 12वां श्लोक कहता है, 'ईश्वर त्याग (यज्ञ) से प्रसन्न हो लोगों की इच्छाएं पूरी करते हैं. जो लोग इनका उपयोग तो करते हैं लेकिन लौटाते कुछ नहीं, वह चोर हैं.'
तस्वीर: Axel Warnstedt
प्रकृति के साथ
बौद्ध धर्म में भी माना जाता है कि प्रकृति और इंसान एक दूसरे पर निर्भर हैं. जिसे भी ज्ञानबोध या मुक्ति चाहिए उसे महसूस करना होगा कि उसमें और दूसरे प्राणियों में कोई फर्क नहीं है. जन्म और मृत्यु का चक्र तभी तोड़ा जा सकता है जब ज्ञान प्राप्त कर साधक निर्वाण की स्थिति में पहुंच जाए.
तस्वीर: Jody McIntryre / CC-BY-SA-2.0
सब जुड़ा है
पाली त्रिपिटक में कहा गया है कि प्रकृति में पाई जाने वाली सभी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हैं. अगर यह है तो वह भी होगा. इसके साथ वह भी आएगा. अगर ये नहीं होगा तो वह भी नहीं. इसके खत्म होने के साथ उसका भी अंत होगा.
तस्वीर: Mixtribe-Photo / CC BY 2.0
ईश्वर की रचना संभालो
आदम और हव्वा स्वर्ग के बगीचे, ईडेन गार्डन में ईसाई और यहूदी दोनों का मानना है कि भगवान ने अपनी रचना को बचाने का काम इंसान को दिया है. जेनेसिस में कहा गया है, ईश्वर ने पुरुष को ईडेन में काम करने और देखभाल करने के लिए रख दिया.
तस्वीर: Jonathan Linczak / CC BY-NC-SA 2.0
मशहूर पंक्तियां
ईश्वर ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, 'सफल रहो और अपनी संख्या बढ़ाओ. धरती को भर दो, उसे अपने कब्जे में ले लो. सागर की मछली, हवा में उड़ती चिड़िया और वहां पाए जाने वाले हर प्राणी को अपने अधीन कर लो.' जेनेसिस.
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मुख्य विचार समान
मूसा की पहली किताब में सृष्टि की रचना की कहानी है. इसे तोराह कहते हैं. ईसाई और यहूदी धर्मग्रंथों में मुख्य विचार एक जैसे ही हैं.
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बेस्टसेलर
रचना की कहानी बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट का केंद्रीय हिस्सा है. जिसमें यहूदी बाइबिल के हिस्से हैं. बाइबिल दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने और छपने वाली किताब है.
तस्वीर: Axel Warnstedt
इस्लाम में
अपने मानने वालों से इस्लाम भी अल्लाह की रचना को बचाने को कहता है. मनुष्य को अल्लाह की रचना का इस्तेमाल करना चाहिए लेकिन सावधानी से. कुरान का सूरा ए रहमान कहता है कि किस तरह खुदा ने सूरज, चांद और आसमान की गति निर्धारित की है. उसी ने पेड़ पौधे बनाए हैं. उसने ही संतुलन तय किया.
तस्वीर: sektordua / CC BY 2.0
जागरूकता
कुरान धर्मावलंबियों को विस्तार से और ठोस निर्देश देती है. कुरान में कई जगह पर प्रकृति से व्यक्ति के संबंध को बताया गया है.