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समाज

इन ढोंगियों ने आध्यात्म का भी बलात्कार किया है

ओंकार सिंह जनौटी
२५ अप्रैल २०१८

कृष्ण, बुद्ध, नानक और कबीर की धरती पर आसाराम और रामरहीम जैसे पाखंडी इतने बड़े कैसे हो गए. भारतीय समाज को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए.

Asaram
तस्वीर: IANS

राम रहीम, आसाराम या जाकिर नाईक ये उन दर्जनों ढोंगियों में शामिल हैं जिन्होंने निराश समाज को गुमराह कर अंधभक्ति का साम्राज्य खड़ा किया है. टेलिविजन पर ये माया, मोह, अंहकार, लालच और वासना को गलियाते दिखते हैं. जब कुछ समझ में नहीं आता तो चुप होकर मौन का आनंद लेने की बात करते हैं. सामने बैठे लोग अपने भीतर के कोलाहल को इनकी वाणी से शांत करते हैं. फिर घर जाते हैं और अगले दिन से वही हाल, वही ढाक के तीन पात.

पलायन कर शहरों में बस चुके लोग शहरी भाग दौड़ और झंझावात से परेशान हैं तो गांव के लोग "हम यहीं फंस रह गए" की चिंता में घुले जाते हैं. हर किसी के घर में कुछ दिकक्तें हैं और घर के बाहर भी दुश्वारियों का पहाड़ है. ट्रैफिक जाम, बीमारी, खस्ताहाल अस्पताल, बच्चों की चिंता और समाज का भय, हर वक्त हर किसी को इनसे जूझना पड़ता है.

रही सही कसर अखबारों और न्यूज चैनलों ने पूरी कर दी है. उन्हें पढ़ो या देखो तो ऐसा लगने लगता है जैसे पूरा समाज ही बर्बाद हो चुका है. कहीं कुछ अच्छा हो ही नहीं रहा है. दोपहिया चलाएंगे तो घरवालों को चिंता होगी कि कहीं कोई कुचल न दे. कार स्टार्ट करने से पहले ही रास्ते में जाम, लड़ाई झगड़े या लूट पाट जैसी चिंताएं स्टार्ट हो जाएंगी. सोशल मीडिया देखेंगे तो लगेगा कि देश को हिंदू मुसलमान के अलावा कुछ नहीं सूझ रहा. "परिवर्तन सृष्टि का नियम है" सैकड़ों साल ये सुनते आए समाज को आज भी बदलाव को आत्मसात करने पर लकवा सा मार जाता है. और यहीं से ढोंगी बाबाओं का मायाजाल शुरू होता है.

इन सब मानसिक भंवरों के बीच टीवी या इंटरनेट पर कोई सुनाई पड़ेगा जो कहेगा कि, कुछ देर शांत बैठिए. अपने भीतर समा जाइए. याद कीजिए कि सब कुछ क्षणिक है. जीवन क्षणभंगुर है. और कहीं न कहीं ऐसे संदेश एक ठंडक का अहसास कराते हैं और धीरे धीरे आध्यात्म की ओर झुकाव बढ़ने लगता है. सब कुछ तुरंत पाने वाली सोच परम आध्यात्मिक चेतना भी मैगी की तरह दो मिनट में पाना चाहती है और बस यहीं से गुरुघंटालों का मायाजाल शुरू होता है.

इसीलिए बीच बीच में खुद से यह सवाल करना जरूरी है कि क्या फलां शख्स की हर बात सही है? खुद को गुरु बताने वालों की कथनी और करनी में कितना फर्क है? दूसरों को माया मोह का लेक्चर देने वाला खुद कहां खड़ा है.

अगर यह सवाल नहीं करेंगे तो एक नहीं एक लाख आसाराम या राम रहीम पैदा होंगे. वे अपने अनुयायियों की मजबूरियों का फायदा उठाएंगे, उनके बच्चों का यौन शोषण करेंगे, खुद ऐशोआराम की जिंदगी बिताएंगे. और वो असली साधु संतों के प्रति भी समाज के मन में नफरत ही भरेंगे.

 

 

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