लेखिका अरुंधति रॉय मानती हैं कि मोदी सरकार योजनाबद्ध तरीके से अपने विरोधियों, विचारकों और अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है. उन्हें लगता है कि ये सिलसिला अगले साल आम चुनावों तक जारी रहेगा.
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माओवादियों के साथ कथित संबंधों के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियों ने देश में आक्रोश बढ़ाया है. आप सरकार के इस कदम को कैसे देखती हैं?
झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में हजारों लोग जेल में बंद हैं. ये ऐसे लोग हैं जिनके नाम नहीं है, जिनके पास वकील नहीं हैं और ये लोग कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं कर सकते. पहले आदिवासी समुदायों पर माओवादी होने का ठप्पा लगा, अब दलितों के साथ ऐसा किया जा रहा है. अब कोई भी व्यक्ति जो आदिवासियों या दलितों के लिए खड़ा हो जाए माओवादी की श्रेणी में आ जाता है. हम संविधान के खिलाफ होते कृत्यों को देख रहे हैं, यह बहुत ही खतरनाक है.
कुछ विश्लेषक और राजनीतिक कार्यकर्ता कहते हैं कि सरकार का रुख 1975 में पू्र्व प्रधानंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के दौर की याद दिलाता है. क्या आप इस बात से सहमत हैं.
मुझे लगता है कि यह दौर 1975 में लगाई गई इमरजेंसी के मुकाबले कई गुना अधिक खतरनाक है. उस वक्त इमरजेंसी की घोषणा संविधान को ढंग से लागू करने के लिए की गई थी, हालांकि वह मानवाधिकारों का हनन ही था. लेकिन यह सरकार संविधान की भावना में बदलाव कर भारत को एक "हिंदू राष्ट्र" घोषित करने पर उतारु है. वह भी उच्च जातियों वाला हिंदू राष्ट्र, और अगर यहां अल्पसंख्यक और कोई भी अन्य असहमत हो तो उसे अपराधी करार दिया जा सकता है. मुझे लगता है कि यह पूरा सर्कस अगले साल होने वाले आम चुनाव तक तो चलता रहेगा, आप गिरफ्तारी, हत्याएं, मारपीट, दंगे आदि सुनते रहेंगे.
सामाजिक कार्यकर्ताओं की हाल में हुई हत्याओं की बात आती है तो कुछ विशेषज्ञ इन घटनाओं में कुछ समानताएं भी व्यक्त करते हैं. आपके विचार से इन व्यवस्थित हमलों के पीछे किसका हाथ हो सकता है.
कर्नाटक पुलिस ने पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामले में कुछ गिरफ्तारियां की थीं. इन गिरफ्तारियों ने कुछ धुर हिंदुवादी संगठनों मसलन सनातन संस्थान के कार्यों को उजागर किया. जहां से एक आंतकी संगठन, हिट लिस्ट, सेफ हाउस, हथियार, लोगों को जहर देकर मारना जैसी योजनाओं से लेकर बम से उड़ाने जैसी बातें निकल कर सामने आईं. लेकिन मैं यह भी महसूस करती हूं कि प्रशासन हर चीज को आसानी से बिगाड़ना जानता है. मुझे लगता है कि ये गिरफ्तारियां, असली खतरे से ध्यान भटकाने की ही एक कोशिश है.
क्या इन कामों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी लोकप्रियता गवां रहे हैं.
कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली यूपीए सरकार हो या वर्तमान की भाजपा सरकार, दोनों के लिए ही आदिवासियों पर किए गए हमलों को छिपाने के लिए ऐसी गिरफ्तारियां जरूरी रही हैं. भाजपा के मामले में दलितों पर उनका हमला मतलब नक्सलियों और माओवादियों पर हमला. क्योंकि मुस्लिम समुदाय इन राजनीतिक पार्टियों के लिए वैसा वोट-बैंक नहीं रहा तो अब ध्यान आदिवासी और दलित वोट बैंक पर जा रहा है. बीजेपी सरकार ऐसी गिरफ्तारियां कर दलित तबके को दबाने और उन्हें अपमानित करने का मौका नहीं छोड़ रही. तो वहीं ऐसा भी दिखा रही है कि वह दलित मुद्दों पर संवेदनशील है.
हजारों लोग देश की जेलों में बंद है, कमजोर और गरीब लोग अपने घर, जमीन और इज्जत की लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे कई सौ लोगों को राजद्रोह जैसे गंभीर आरोप लगाकर बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया है.
हम ऐसे शासन के खिलाफ हैं जिसकी अपनी पुलिस उसे फासीवादी कह रही है. आज भारत में, अल्पसंख्यक होना एक गुनाह है. गरीब होना एक अपराध है. अगर आप गरीबों की मदद करते हैं तो मतलब है कि आप सरकार को हटाने का प्लॉट तैयार कर रहे हैं. देश के कमजोर तबके को अब चुप कर दिया गया है. अब भगवान ही देश को बचाने में मदद करेगा.
अरुंधति रॉय अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त लेखिका हैं.
इंटरव्यू: मुरली कृष्णन
भारत के प्रधानमंत्री
एक नजर आजादी से अब तक भारत के प्रधानमंत्रियों और उनके कार्यकाल पर.
तस्वीर: Reuters
जवाहरलाल नेहरू
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू धर्मनिरपेक्ष नेता थे. उनके कार्यकाल में समाजवादी नीतियों पर जोर रहा. विज्ञान, शिक्षा और समाज सुधारों की शुरुआत हुई. हालांकि नेहरू के कार्यकाल में देश ने अकाल भी देखे. आलोचक कहते हैं कि नेहरू ने देश से ज्यादा विदेशों पर ध्यान दिया और प्राथमिक शिक्षा पर भी कम ध्यान दिया.
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लाल बहादुर शास्त्री
दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की छवि बेहद मेहनती और जमीन से जुड़े नेता की रही. चुपचाप ईमानदारी से अपना काम करने वाले शास्त्री देश को अकाल से निकालने से सफल रहे. कृषि में क्रांति करने वाले इस नेता ने ही "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया.
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इंदिरा गांधी
लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. कांग्रेस पार्टी टूट गई, लेकिन बांग्लादेश युद्ध के दौरान उनकी छवि लौह महिला की बनी. आपातकाल लगाने और पार्टी लोकतंत्र को खत्म करने के लिए इंदिरा गांधी की आलोचना होती है. उन्हीं के कार्यकाल में खालिस्तान आंदोलन भी शुरू हुआ.
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मोरारजी देसाई
इंदिरा गांधी की सरकार में वित्त मंत्री रहे मोरारजी देसाई आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनावों में इंदिरा की हार के बाद पीएम बने. लेकिन उनकी जनता पार्टी सरकार दो ही साल चली. चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने और फिर इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं.
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राजीव गांधी
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने. 40 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले राजीव ने संचार, शिक्षा और लाइसेंस राज में बड़े सुधार किये. शाहबानो केस, बोफोर्स घोटाले, भोपाल गैस कांड और काले धन के मामले उन्हीं के कार्यकाल में सामने आए.
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विश्वनाथ प्रताप सिंह
1989 के चुनावों में कांग्रेस की हार से जनता पार्टी की गठबंधन सरकार बनी. वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने. उन्हीं के कार्यकाल में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू हुई. 1990 में वीपी सिंह की सरकार गिरी और चंद्र शेखर की अगुवाई में सरकार बनी. ये भी 1991 में गिर गई.
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पीवी नरसिंह राव
राजीव गांधी की हत्या के बाद जून 1991 में कांग्रेस के नरसिंह राव देश के पहले दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री बने. वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की मदद से उन्होंने उदारीकरण के रास्ते खोले. उन्हीं के कार्यकाल में हिंदू कट्टरपंथियों ने बाबरी मस्जिद तोड़ी.
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एचडी देवगौड़ा
1996 के चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिली. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली अल्पमत सरकार सिर्फ 13 दिन चल सकी. इसके बाद जनता दल यूनाइटेड ने एचडी देवगौड़ा (बाएं से तीसरे) के नेतृत्व में सरकार बनाई. भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझती ये सरकार साल भर में धराशायी हो गई.
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आईके गुजराल
पढ़े लिखे, सौम्य और विनम्र छवि के इंद्र कुमार गुजराल 1997 में प्रधानमंत्री बने. उनकी गठबंधन सरकार बहुत कुछ नहीं कर पाई, ज्यादातर वक्त सरकार बचाने की जोड़ तोड़ ही होती रही.
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अटल बिहारी वाजपेयी
1998 में हुए चुनावों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी की गठबंधन सरकार बनी. पर सरकार 13 महीने ही चली. फिर चुनाव हुए और वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी. इस दौरान आर्थिक विकास तेज हुआ. पाकिस्तान के साथ संबंध बेहतर हुए. लेकिन कारगिल युद्ध ने संबंधों में दरार डाल दी. वाजपेयी के कार्यकाल में कंधार विमान अपहरण कांड भी हुआ.
तस्वीर: AP
मनमोहन सिंह
एनडीए का "इंडिया शाइनिंग" नारा नाकाम रहा. 2004 में केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए गठबंधन सरकार बनी. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया जाना आश्चर्यजनक था. सूचना अधिकार, शिक्षा अधिकार, मनरेगा जैसे बड़े फैसले सरकार ने लिए. लेकिन दूसरी पारी में सरकार भ्रष्टाचार के लिए बदनाम हुई. देश ने कई बड़े घोटाले देखे.
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नरेंद्र मोदी
मई 2014 को जबरदस्त बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी भारत के 14वें प्रधानमंत्री बने. तीन बार गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके मोदी विकास, सुशासन और सबको साथ लेने का नारा देकर बहुमत में आए. विरोधी उन पर गुजरात दंगों में ठोस कदम न उठाने का आरोप लगाते हैं.