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इमरजेंसी से भी खराब दौर चल रहा है: अरुंधति

४ सितम्बर २०१८

लेखिका अरुंधति रॉय मानती हैं कि मोदी सरकार योजनाबद्ध तरीके से अपने विरोधियों, विचारकों और अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है. उन्हें लगता है कि ये सिलसिला अगले साल आम चुनावों तक जारी रहेगा.

Arundhati Roy
तस्वीर: picture-alliance/ANSA/G. Onorati

माओवादियों के साथ कथित संबंधों के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियों ने देश में आक्रोश बढ़ाया है. आप सरकार के इस कदम को कैसे देखती हैं?

झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में हजारों लोग जेल में बंद हैं. ये ऐसे लोग हैं जिनके नाम नहीं है, जिनके पास वकील नहीं हैं और ये लोग कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं कर सकते. पहले आदिवासी समुदायों पर माओवादी होने का ठप्पा लगा, अब दलितों के साथ ऐसा किया जा रहा है. अब कोई भी व्यक्ति जो आदिवासियों या दलितों के लिए खड़ा हो जाए माओवादी की श्रेणी में आ जाता है. हम संविधान के खिलाफ होते कृत्यों को देख रहे हैं, यह बहुत ही खतरनाक है.

कुछ विश्लेषक और राजनीतिक कार्यकर्ता कहते हैं कि सरकार का रुख 1975 में पू्र्व प्रधानंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के दौर की याद दिलाता है. क्या आप इस बात से सहमत हैं.

मुझे लगता है कि यह दौर 1975 में लगाई गई इमरजेंसी के मुकाबले कई गुना अधिक खतरनाक है. उस वक्त इमरजेंसी की घोषणा संविधान को ढंग से लागू करने के लिए की गई थी, हालांकि वह मानवाधिकारों का हनन ही था. लेकिन यह सरकार संविधान की भावना में बदलाव कर भारत को एक "हिंदू राष्ट्र" घोषित करने पर उतारु है. वह भी उच्च जातियों वाला हिंदू राष्ट्र, और अगर यहां अल्पसंख्यक और कोई भी अन्य असहमत हो तो उसे अपराधी करार दिया जा सकता है. मुझे लगता है कि यह पूरा सर्कस अगले साल होने वाले आम चुनाव तक तो चलता रहेगा, आप गिरफ्तारी, हत्याएं, मारपीट, दंगे आदि सुनते रहेंगे. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीतस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh

सामाजिक कार्यकर्ताओं की हाल में हुई हत्याओं की बात आती है तो कुछ विशेषज्ञ इन घटनाओं में कुछ समानताएं भी व्यक्त करते हैं. आपके विचार से इन व्यवस्थित हमलों के पीछे किसका हाथ हो सकता है.

कर्नाटक पुलिस ने पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामले में कुछ गिरफ्तारियां की थीं. इन गिरफ्तारियों ने कुछ धुर हिंदुवादी संगठनों मसलन सनातन संस्थान के कार्यों को उजागर किया. जहां से एक आंतकी संगठन, हिट लिस्ट, सेफ हाउस, हथियार, लोगों को जहर देकर मारना जैसी योजनाओं से लेकर बम से उड़ाने जैसी बातें निकल कर सामने आईं. लेकिन मैं यह भी महसूस करती हूं कि प्रशासन हर चीज को आसानी से बिगाड़ना जानता है. मुझे लगता है कि ये गिरफ्तारियां, असली खतरे से ध्यान भटकाने की ही एक कोशिश है.

क्या इन कामों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी लोकप्रियता गवां रहे हैं.  

कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली यूपीए सरकार हो या वर्तमान की भाजपा सरकार, दोनों के लिए ही आदिवासियों पर किए गए हमलों को छिपाने के लिए ऐसी गिरफ्तारियां जरूरी रही हैं. भाजपा के मामले में दलितों पर उनका हमला मतलब नक्सलियों और माओवादियों पर हमला. क्योंकि मुस्लिम समुदाय इन राजनीतिक पार्टियों के लिए वैसा वोट-बैंक नहीं रहा तो अब ध्यान आदिवासी और दलित वोट बैंक पर जा रहा है. बीजेपी सरकार ऐसी गिरफ्तारियां कर दलित तबके को दबाने और उन्हें अपमानित करने का मौका नहीं छोड़ रही. तो वहीं ऐसा भी दिखा रही है कि वह दलित मुद्दों पर संवेदनशील है.

हजारों लोग देश की जेलों में बंद है, कमजोर और गरीब लोग अपने घर, जमीन और इज्जत की लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे कई सौ लोगों को राजद्रोह जैसे गंभीर आरोप लगाकर बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया है.

हम ऐसे शासन के खिलाफ हैं जिसकी अपनी पुलिस उसे फासीवादी कह रही है. आज भारत में, अल्पसंख्यक होना एक गुनाह है. गरीब होना एक अपराध है. अगर आप गरीबों की मदद करते हैं तो मतलब है कि आप सरकार को हटाने का प्लॉट तैयार कर रहे हैं. देश के कमजोर तबके को अब चुप कर दिया गया है. अब भगवान ही देश को बचाने में मदद करेगा.

अरुंधति रॉय अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त लेखिका हैं.

इंटरव्यू: मुरली कृष्णन

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