जब तक इमरान खान पीएम नहीं बने थे तो लगता था कि जैसे उन्होंने पाकिस्तान को क्रिकेट में विश्व चैंपियन बनाया, कुछ वैसा ही चमत्कार सियासत में कर वह देश के हालात बदल देंगे. लेकिन अभी तो कप्तान एक एक रन के लिए जूझ रहे हैं.
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जिस पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के लिए इमरान खान 22 साल से जद्दोजहद कर रहे थे, उसकी सत्ता असल में काटों के ताज से कम नहीं. बरसों से इमरान ने लोगों को अपनी तरफ खींचने के लिए 'नए पाकिस्तान' के नारे का इस्तेमाल किया. लेकिन अब चुनौती 'नए पाकिस्तान' को साकार करने की है. वह भी तब जब देश का खजाना खाली पड़ा है और कर्ज में डूबे देश को चलाने के लिए और कर्ज लिए बिना बात नहीं बनेगी.
हालत यह है पाकिस्तान से दुनिया को होने वाला निर्यात लगातार घट रहा है जबकि आयात लगातार बढ़ रहा है. इसकी वजह से पाकिस्तान का विदेश मुद्रा भंडार तेजी से सिमट रहा है. देश के विदेशी मुद्रा भंडार में मई 2017 में 16.4 अरब अमेरिकी डॉलर थे जिसमें अब घट कर सिर्फ 9 अरब डॉलर बचे हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के बढ़ते दाम भी पाकिस्तान के लिए चिंता का कारण है क्योंकि अपनी जरूरत का 80 तेल उसे बाहर से ही खरीदना पड़ता है.
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक देश के ऊपर इस समय तीस हजार अरब रुपये का कर्ज है जिस पर लगने वाले हर दिन का ब्याज ही लगभग छह अरब रुपये है. देश की मुद्रा गंभीर दबाव का शिकार है. भारत में जहां सरकार डॉलर के मुकाबले रुपये के 72 के पार चले जाने पर चौतरफा आलोचनाओं से घिरी है, वहीं पाकिस्तान में अमेरिकी डॉलर 123 रुपये के बराबर है.
इमरान खान को कितना जानते हैं आप?
पाकिस्तान में बदहाल अर्थव्यवस्था और कुशासन का आरोप झेल रहे प्रधानमंत्री इमरान खान की मुश्किलें लगातार बढ़ रहीं हैं. क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान का अब तक का सफर बेहद दिलचस्प है, चलिए जानते हैं.
तस्वीर: Saiyna Bashir/REUTERS
पूरा नाम?
क्या आप इमरान खान का पूरा नाम जानते हैं? उनका पूरा नाम है अहमद खान नियाजी इमरान, लेकिन बतौर क्रिकेटर और राजनेता वह दुनिया के लिए हमेशा इमरान खान रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
करियर की शुरुआत
इमरान खान के क्रिकेट करियर की शुरुआत 16 साल की उम्र में हुई, जब उन्होंने 1968 में लाहौर की तरफ से सरगोधा के खिलाफ पहला फर्स्ट क्लास क्रिकेट मैच खेला.
तस्वीर: picture-alliance/Dinodia Photo Library
पढ़ाई से पहले क्रिकेट
1970 में वह पाकिस्तान की राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बन गए. यानी उनकी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई थी और उनके अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर का आगाज हो चुका था.
तस्वीर: Getty Images
इंग्लिश क्रिकेट में धाक
बाद में वह पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए. वहां भी उनके खेल के चर्चे होने लगे. वह 1974 में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी इलेवन के कप्तान बने. उन्होंने काउंटी क्रिकेट भी खेला.
तस्वीर: picture-alliance/Dinodia Photo Library
पाकिस्तान की कप्तानी
इमरान खान 1982 में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान बने. बतौर कप्तान उन्होंने 48 टेस्ट मैच खेले जिनमें से पाकिस्तान ने 14 जीते, आठ हारे और बाकी ड्रॉ रहे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Dupont
वनडे करियर
इमरान ने 139 एकदिवसीय मैचों में पाकिस्तानी टीम का नेतृत्व किया. इनमें से 77 जीते, 57 हारे और एक मैच का कोई नतीजा नहीं निकला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
वर्ल्ड चैंपियन
पाकिस्तान ने अब तक सिर्फ एक बार क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीता है और 1992 में यह कारनामा इमरान खान की कप्तानी में हुआ था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Holland
सबसे सफल कप्तान
इमरान पाकिस्तान के लिए सबसे सफल कप्तान साबित हुए, जिनकी तुलना अकसर भारत के पूर्व कप्तान कपिल देव से हुई है. दोनों ऑलराउंडरों के रिकॉर्ड भी प्रभावशाली रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B.K. Bangash
सियासत में कदम
इमरान खान ने 1996 में पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ पार्टी बना कर सियासत में कदम रखा. 2013 के आम चुनाव में उनकी पार्टी दूसरे स्थान पर रही और 2018 में पहले पर.
तस्वीर: Aamir QureshiAFP/Getty Images
निजी जीवन
इमरान खान अपनी निजी जिंदगी को लेकर भी सुर्खियों में रहते हैं. 65 साल की उम्र में उन्होंने तीसरी शादी की. इससे पहले सेलेब्रिटी जमैमा और टीवी एंकर रेहाम खान उनकी पत्नी रह चुकी हैं.
तस्वीर: PIT
गंभीर आरोप
रेहाम खान ने अपनी किताब में इमरान पर गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि किसी महिला को इमरान की पार्टी में तभी बड़ा पद मिलता है जब वह इमरान के साथ हमबिस्तर हो.
तस्वीर: Facebook/Imran Khan Official
पाकिस्तान के ट्रंप
कई लोग इमरान खान पर पॉपुलिस्ट होने का आरोप लगाते हैं. चरमपंथियों के प्रति उनकी नरम सोच पर कई लोग सवाल उठाते हैं. कई कट्टरपंथियों से उनके करीबी रिश्ते रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B.K. Bangash
अमेरिका के आलोचक
प्रधानमंत्री बनने से पहले इमरान खान आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी जंग और उसमें पाकिस्तान की भागीदारी पर सवाल उठाते रहे हैं. वे इसे पाकिस्तान की कई मुसीबतों की जड़ मानते थे. लेकिन पीएम बनने के बाद उन्हें पता चला कि अमेरिका से रिश्ते कितने जरूरी हैं.
तस्वीर: YouTube/PTI Scotland
भ्रष्टाचार के खिलाफ
इमरान खान हमेशा से पाकिस्तान में भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाते रहे थे. पूर्व पीएम नवाज शरीफ खास तौर से उनके निशाने पर रहे. लेकिन आज वो खुद बदहाल अर्थव्यवस्था और कुशासन का आरोप झेल रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Mughal
लोकप्रियता
इमरान खान युवाओं में बेहद लोकप्रिय रहे हैं. नया पाकिस्तान बनाने का उनका नारा युवाओं की जुबान पर रहा. 2012 में वह एशिया पर्सन ऑफ द ईयर चुने गए. लेकिन अब उनकी छवि बदल रही है. उन पर अपने चुनावी वादों को पूरा ना करने के आरोप लग रहे हैं.
तस्वीर: AP
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पाकिस्तानी रुपये के मूल्य में आ रही गिरावट के कारण महंगाई आसमान छू रही है. अमीर और गरीब के बीच अंतर लगातार बढ़ रहा है. युवाओं के पास रोजगार के मौके नहीं हैं. ऐसे में, नई सरकार से राहत की आस लगाने वाली जनता को मायूसी के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा.
पाकिस्तान के सामने मदद के लिए फिर से आईएमएफ का दरवाजा खटखटाने का विकल्प है. लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान इमरान खान ने ईमानदारी और खुद्दारी का इतना जिक्र किया है कि आईएमएफ से 12 अरब डॉलर कर्जा लेना उनकी राजनीतिक छवि के साथ फिलहाल फिट नहीं बैठता. ऊपर से अमेरिका ने सख्त चेतावनी दे डाली है कि इस पैसे का इस्तेमाल चीन का कर्ज चुकाने के लिए नहीं किया जा सकता.
जाहिर है नई सरकार इन हालात के लिए पुरानी सरकार को जिम्मेदार बताएगी. लेकिन हालात बदलने की जिम्मेदारी हमेशा उस पर आती है जो सत्ता में है. इंस्टेंट नूडल के इस जमाने में इंतजार कोई नहीं करना चाहता. सबको बदलाव तुरत फुरत ही चाहिए. इमरान खान को इस बात का अहसास है कि उनसे कितनी उम्मीदें हैं. इसलिए उन्होंने कुछ लोकलुभावन कदम भी उठाए हैं.
कब कब बजी इमरान के घर शहनाई
क्रिकेट और सियासत के अलावा इमरान खान अपनी निजी जिंदगी को लेकर भी खूब सुर्खियों में रहते हैं. जानिए उन्हें करीब से..
तस्वीर: Reuters/M. Raza
पहली शादी
पाकिस्तान को 1992 में क्रिकेट का वर्ल्ड कप जिताने वाले इमरान खान ने 16 मई 1995 को पेरिस में ब्रिटिश पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता जमीमा गोल्डस्मिथ से शादी की. शादी के बाद जमीमा ने इस्लाम कबूल कर लिया और अपना नाम भी जमीमा खान कर लिया.
तस्वीर: picture-alliance/AP
ढल नहीं पाईं जमीमा
दोनों के दो बेटे हैं सुलेमान इस्सा और कासिम. लेकिन फिर इमरान और जमीमा के बीच सब कुछ ठीक न होने की अफवाहें उड़ने लगीं. आखिरकार 22 जून 2004 को दोनों का तलाक हो गया. नौ साल चली यह शादी टूट गई क्योंकि "जमीमा खुद को पाकिस्तान में रहने के लिए नहीं ढल पाईं."
तस्वीर: picture-alliance/AP
फिर बने दूल्हा
जमीमा से तलाक के 11 साल बाद इमरान खान की जिंदगी में रेहाम खान आईं. बीबीसी में कभी मौसम की रिपोर्ट पढ़ने वाली रेहाम और इमरान खान की शादी 6 जनवरी 2015 को इस्लामाबाद में हुई. रेहाम की भी यह दूसरी शादी थी. पहले पति से उनके तीन बच्चे हैं, जो तलाक के बाद से उन्हीं के साथ रहते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali
दस महीने की शादी
इरान खान की दूसरी शादी एक साल भी नहीं चल सकी. शादी के 10 महीने बाद उनका तलाक हो गया. रेहाम इमरान खान के साथ कई रैलियों में जाती थीं. आलोचकों ने इल्जाम लगाया कि वह अपने पति की शोहरत का फायदा उठाकर अपने आपको चमकाना चाहती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B.K. Bangash
फिर उड़ी अफवाह
दूसरे तलाक के कुछ महीने बाद फिर अफवाहें उड़ने लगीं कि इमरान खान ने अपनी आध्यात्मिक सलाहकार बुशरा मानिका से शादी कर ली है. शुरू में न सिर्फ इमरान खान ने बल्कि उनकी पार्टी ने भी ऐसे खबरों को खारिज किया, बल्कि उन्होंने ऐसी खबरें चलाने वाले चैनलों के खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई.
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ये जो चिल्मन है..
और आखिरकार अफवाहें सच साबित हुईं. 18 फरवरी 2018 को पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ ने इमरान और बुशरा मानिका की शादी की पुष्टि कर दी. साथ ही उन्हें इस बात के लिए आलोचना भी झेलनी पड़ी कि शादी की फोटो में बुशरा का मुंह पूरी तरह ढंका है.
तस्वीर: PIT
चुनाव से पहले शादी
पाकिस्तान में होने वाले आम चुनावों से चंद महीनों पहले इमरान खान ने अपनी शादी का एलान किया है. बुशरा ने अपने पहले पति को तलाक देकर इमरान से शादी की है. यह साफ नहीं है कि इस तलाक की वजह इमरान खान ही है या नहीं.
तस्वीर: Reuters/M. Raza
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मसलन उन्होंने आधिकारिक प्रधानमंत्री आवास में नहीं रहने का फैसला किया है ताकि उस पर होने वाले भारी भरकम खर्च में कटौती की जा सके. उन्होंने प्रधानमंत्री के काफिले में शामिल महंगी गाड़ियों को नीलाम किया है. बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की घी और दूध की जरूरतों को पूरा करने के लिए पीएम हाउस में रखी गई आठ भैसों को भी बेचा जा रहा है. लेकिन सवाल यह है कि क्या इन पॉपुलिस्ट कदमों से आईसीयू में पड़ी देश की अर्थव्यवस्था को कोई राहत दी सकती है?
ज्यादा दिन की बात नहीं जब अकसर कहा जाता था कि चीन-पाकिस्तान कोरिडोर प्रोजेक्ट देश की तकदीर बदल देगा. चीन पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है ताकि वह सड़क और समुद्र मार्ग के जरिए सीधे मध्य पूर्व तक पहुंच सके. मध्य पूर्व के बाजारों में चीनी सामान की पहुंच को आसान बनाने वाली यह परियोजना चीन के लिए बहुत अहम है. पाकिस्तान को भी इससे फायदा होने की बात कही जा रही थी. लेकिन अब इस पर भी सवाल उठने लगे हैं. अरबों डॉलर के चीनी निवेश का मतलब दरअसल यह है कि कर्ज में डूबे देश पर और कर्ज चढ़ रहा था.
नई सरकार में वाणिज्य मंत्री अब्दुल रजाक दाउद का ख्याल है कि जब तक पाकिस्तान-चीन कोरिडोर परियोजना की पूरी तरह समीक्षा ना हो जाए, इसे रोक दिया जाए. दाउद का कहना है कि भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में रहे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार ने बहुत सारी परियोजनाओं में चीन को 'कुछ ज्यादा ही रियायत' दे दी थी. सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान इस स्थिति में है कि वह चीन को भी नाराज कर ले. अमेरिका से तो उसका पहले ही छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है.
पाकिस्तान बनने से अब तक की पूरी कहानी
पाकिस्तान का 70 साल का इतिहास उथल पुथल से भरा है. एक ऐसा देश जो ना सिर्फ पाकिस्तानी सेना के हाथों की कठपुतली रहा है, बल्कि राजनेताओं के सियासी दाव पेंच भी उसका इम्तिहान लेते रहे हैं. जानिए पाकिस्तान में कब क्या हुआ..
तस्वीर: Reuters/M. Raza
1947
अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना देश के गवर्नर जनरल बने जबकि लियाकत अली खान को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. लेकिन इसके एक साल बाद ही जिन्नाह का निधन हो गया जो टीबी की बीमारी से पीड़ित थे.
तस्वीर: AP
1951
प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की रावलपिंडी में हत्या कर दी गई. कंपनी बाग में वह एक सभा में मौजूद थे कि उन पर दो गोलियां दागी गईं. पुलिस ने मौके पर ही हमलावर को ढेर कर दिया. लियाकत अली को झटपट अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. उनके बाद बंगाली मूल के ख्वाजा नजीमुद्दीन पाकिस्तान के दूसरे प्रधानमंत्री बने.
तस्वीर: OFF/AFP/Getty Images
1958
पाकिस्तान को 1956 में पहला संविधान मिला. लेकिन सियासी खींचतान के बीच 1958 में पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति इसकंदर मिर्जा ने संविधान को निलंबित कर मार्शल लॉ लगा दिया. फिर कुछ दिनों बाद ही सेना प्रमुख जनरल अयूब खान ने मिर्जा को हटाया और खुद देश के राष्ट्रपति बन बैठे. पाकिस्तान में पहली बार सत्ता सेना के हाथ में आई.
तस्वीर: imago stock&people
1965
पाकिस्तान में अमेरिका जैसी राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू करने वाले अयूब खान ने 1965 में चुनाव कराने का फैसला किया. वह खुद पाकिस्तान मुस्लिम लीग के उम्मीदवार बने जबकि उनके सामने विपक्ष ने जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना को उतारा. फातिमा जिन्ना को भरपूर वोट मिले लेकिन अयूब खान इलेक्ट्रोल कॉलेज के जरिए चुनाव जीत गए.
तस्वीर: imago stock&people
1969
फातिमा जिन्ना के खिलाफ विवादास्पद जीत और भारत के साथ 1965 में हुई जंग के नतीजों से अयूब खान की छवि को बहुत नुकसान हुआ. जबरदस्त विरोध प्रदर्शनों के बीच उन्होंने राष्ट्रपति पद छोड़ दिया और सत्ता अपने आर्मी चीफ जनरल याहया खान को सौंप दी. देश में फिर मार्शल लॉ लगा और सभी असेंबलियां भंग कर दी गईं.
तस्वीर: imago/ZUMA/Keystone
1970
पाकिस्तान में आम चुनाव कराए गए. पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के नेता शेख मुजीबउर रहमान की पार्टी आवामी लीग को जीत मिली. नेशनल असेंबली की कुल 300 सीटों में से आवामी लीग को 160 सीटें मिली. 81 सीटों के साथ जुल्फिकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी दूसरे नंबर पर रही. लेकिन आवामी लीग की जीत को स्वीकार नहीं किया गया.
तस्वीर: Journey/M. Alam
1971
चुनाव नतीजों को लेकर छिड़े विवाद ने एक युद्ध की जमीन तैयार की. इसमें भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की मदद की और 1971 में बांग्लादेश के नाम से भारतीय उपमहाद्वीप में एक नए देश का उदय हुआ. बुनियादी तौर पर भारत का विभाजन धर्म के नाम पर हुआ. लेकिन एक धर्म होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान एक साथ नहीं रह पाए.
तस्वीर: Journey/R. Talukder
1972
पाकिस्तान की टूट के लिए याहया खान के शासन को जिम्मेदार माना गया, जिसके कारण उनका सत्ता में रहना मुश्किल होने लगा. ऐसे में, उन्होंने देश की सत्ता जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंप दी. देश में लगे मार्शल लॉ को हटाया गया और जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने. 1972 में ही भुट्टो ने पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम शुरू किया.
तस्वीर: STF/AFP/GettyImages
1973
पाकिस्तान में फिर एक नया संविधान लागू हुआ जिसके तहत पाकिस्तान को एक संसदीय लोकतंत्र बनाया गया, जिसमें प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख हो. इस तरह भुट्टो राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री पद पर आ गए. भुट्टो ने 1976 में जनरल जिया उल हक को अपना चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया, जो आगे चल कर उनके लिए मुसीबत बन गए.
तस्वीर: imago/ZUMA/Keystone
1977
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए. भुट्टो की पार्टी को जबरदस्त जीत मिली. लेकिन विपक्ष ने चुनावों में धांधली के आरोप लगाए और देश में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया. मौके का फायदा उठाते हुए जिया उल हक ने भुट्टो का तख्तापलट किया और संविधान को निलंबित कर देश में फिर से मार्शल लॉ लगा दिया.
तस्वीर: Getty Images/Keystone/Hulton Archive
1978
जिया उल हक ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. उन्होंने सेना प्रमुख का पद भी अपने ही पास रखा. भुट्टो को जिया की "हत्या के साजिश" के आरोप में दोषी करार देकर फांसी पर चढ़ा दिया गया. इसी साल जिया उल हक देश के इस्लामीकरण की अपनी नीति के तहत विवादित हूदूद ऑर्डिनेंस लाए, जिसमें कुरान के मुताबिक सजाएं देने का प्रावधान किया गया.
तस्वीर: imago/ZUMA/Keystone
1985
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए, लेकिन पार्टी के आधार पर नहीं. मार्शल लॉ हटाया गया और नई नेशनल असेंबली ने बीते आठ साल के जिया के कामों पर मुहर लगाई और उन्हें राष्ट्रपति चुना गया. मोहम्मद खान जुनेजो प्रधानमंत्री बनाए गए. इससे पहले 1984 में जिया उल हक ने अपनी इस्लामीकरण की नीति पर एक जनमत संग्रह भी कराया जिसमें 95 समर्थन का दावा किया गया.
तस्वीर: Getty Images/Keystone/Hulton Archive
1988
बढ़ते मतभेदों के बीच जिया उल हक ने संसद को भंग कर दिया और जुनेजो की सरकार को भी बर्खास्त कर दिया. 90 दिनों के भीतर उन्होंने देश में नए आम चुनाव कराने का वादा किया. लेकिन 17 अगस्त 1988 को वह अपने 31 अन्य साथियों के साथ एक विमान हादसे में मारे गए. 1978 से लेकर 1988 तक जिया उल हक ने पाकिस्तान पर एक छत्र राज किया.
तस्वीर: PHILIPPE BOUCHON/AFP/Getty Images
1990
भ्रष्टाचार के आरोपों में बेनजीर को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी. राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने संसद को भंग कर भुट्टो सरकार को बर्खास्त कर दिया. चुनाव हुए और जिया के दौर में सियासत का ककहरा सीखने वाले नवाज शरीफ देश के प्रधानमंत्री चुने गए. इसके साल भर बाद पाकिस्तान की संसद ने शरिया बिल को मंजूर किया और इस्लामिक कानून पाकिस्तान की न्याय प्रणाली का हिस्सा बने.
तस्वीर: imago/UPI Photo
1993
राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने नवाज शरीफ सरकार को भी भ्रष्टाचार और नकारेपन के आरोपों में चलता कर दिया. इसी साल खुद उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया. देश में फिर चुनाव हुए जिनमें जीत दर्ज कर बेनजीर भुट्टो दूसरी बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के एक सदस्य फारूक लेघारी को देश का राष्ट्रपति चुना गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/L. Frazza
1996
राष्ट्रपति लेघारी ने नेशनल असेंबली को भंग कर बेनजीर सरकार को बर्खास्त कर दिया जो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी थी. इस तरह, दस साल के भीतर देश चौथी बार आम चुनाव की दहलीज पर खड़ा था. 1997 के चुनाव में नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) को जबरदस्त जीत मिली और वह दूसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1998
पाकिस्तान ने बलूचिस्तान प्रांत के चघाई की पहाड़ियों में परमाणु परीक्षण किया. इससे चंद दिन पहले भारत ने पोखरण 2 परमाणु परीक्षण किया था. परमाणु परीक्षण के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. लेकिन इससे भारतीय उपमहाद्वीप में परमाणु हथियारों की होड़ को रोका नहीं जा सका.
तस्वीर: picture alliance / dpa
1999
कारगिल युद्ध के बाद नवाज शरीफ सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ की जगह ख्वाजा जियाउद्दीन अब्बासी को सेना प्रमुख बनाना चाहते थे. लेकिन जैसे ही इसका पता मुशर्रफ को लगा तो उन्होंने नवाज शरीफ का ही तख्तापलट कर दिया और उन्हें नजरबंद कर लिया. इस तरह पाकिस्तान की बागडोर चौथी बार एक सैन्य शासक के हाथ में आई.
तस्वीर: SAEED KHAN/AFP/Getty Images
2000
सुप्रीम कोर्ट ने मुशर्रफ के तख्तापलट को उचित ठहराया और तीन साल के लिए उन्हें सारे अधिकार दे दिए. इसी साल नवाज शरीफ और उनका परिवार निर्वासन में सऊदी अरब चले गए. 2001 में मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए और सेना प्रमुख का पद भी उन्होंने अपने पास ही रखा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Qureshi
2002
पाकिस्तान में फिर से आम चुनाव हुए और ज्यादातर सीटें पीएमएल (क्यू) ने जीती. इस पार्टी को मुशर्रफ ने ही बनाया था जिसमें उनके वफादारों को अहम पद मिले. जफरउल्लाह खान जमाली (फोटो में सबसे दाएं) पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए. लेकिन वह दो साल ही पद पर रह पाए. 2004 में उनकी जगह शौकत अजीज को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया.
तस्वीर: AP
2007
राष्ट्रपति मुशर्रफ ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी को बर्खास्त कर दिया जिसके बाद देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. आखिरकार चौधरी को बहाल किया गया लेकिन मुशर्रफ ने देश में इमरजेंसी लगा दी. इस बीच पाकिस्तानी संसद ने पहली बार अपना पांच साल का निर्धारित कार्यकाल पूरा कर लिया.
तस्वीर: AP
2007
आम चुनावों में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की नेता बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान लौटीं. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे वापस लिए गए. लेकिन रावलपिंडी में एक चुनावी रैली के दौरान उनकी हत्या कर दी गई. उनकी हत्या उसी कंपनी बाग में हुई जहां पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को कत्ल किया गया था.
तस्वीर: Getty Images
2008
बेनजीर की मौत के बाद चुनावों में पीपीपी को सहानुभूति लहर का फायदा हुआ और नेशनल असेंबली की ज्यादातर सीटें उसके खाते में आईं. यूसुफ रजा गिलानी देश के प्रधानमंत्री बने जबकि बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी ने राष्ट्रपति का पद संभाला. आरोपों और विवादों के बीच पीपीपी की सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
तस्वीर: Getty Images
2013
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए और पीएमएल (एन) सत्ता में आई. नवाज शरीफ तीसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. क्रिकेट से राजनेता बने इमरान की पार्टी 2013 के चुनाव में तीसरी सबसे बड़ी ताकत बन कर उभरी. 17 प्रतिशत वोटों के साथ उसने राष्ट्रीय संसद की 35 सीटें जीतीं और खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत में उसकी सरकार बनी.
तस्वीर: AFP/Getty Images
2017
भ्रष्टाचार के आरोपों में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें किसी सार्वजनिक पद पर रहने और चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दे दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री पद अपने विश्वासपात्र शाहिद खाकान अब्बासी को सौंपा. नवाज शरीफ अपने खिलाफ मुदकमों को राजनीति से प्रेरित बताते हैं. पाकिस्तानी सेना से टकराव के कारण भी वह चर्चा में आए.
तस्वीर: Reuters/F. Mahmood
2018
पाकिस्तान में फिर चुनाव हुए. सेना पर आरोप लगे कि वह किसी भी तरह से नवाज शरीफ और उनकी पार्टी को सत्ता से बाहर रखना चाहती थी. चुनाव मैदान में इमरान खान को सेना का समर्थन मिला. चुनाव प्रक्रिया में धांधली के आरोप भी लगे. फिलहाल इमरान पाकिस्तान के पीएम हैं. लेकिन पाकिस्तान बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा है. कर्ज से लेकर फंड की कमी तक की चुनौतियां इमरान के सामने हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics/D. Farmer
2019
इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. इमरान खान ने अपने चुनाव प्रचार में पाकिस्तान को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की बात की थी. इमरान खान की तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान अभी आर्थिक संकट से निकल नहीं पाया है. भारत के साथ चल रहे तनाव से पाकिस्तान को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.
अपने बयान पर विवाद होता देख वाणिज्य मंत्री ने बाद में सफाई दी कि उनके बयान को संदर्भ से हटाकर पेश किया गया है. लेकिन सत्ता संभालते ही इमरान खान ने भी संकेत दिया था कि वे चीन को कोरिडोर परियोजना पर 'फ्री हैंड' नहीं देंगे. वैसे विदेश नीति के मोर्च पर पाकिस्तान किधर जाएगा, इसमें सरकार से ज्यादा भूमिका अकसर पाकिस्तान की ताकतवर सेना की होती है. इमरान खान की असल चुनौती तो देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की है.
पाकिस्तान में लंबे समय से सियासत में दो परिवारों का कब्जा रहा है. लेकिन इस बार देश की सत्ता ना भुट्टो परिवार के हाथ में है और ना ही शरीफ परिवार के हाथ में. दोनों परिवारों और उनकी पार्टियों को आजमा चुकी जनता ने इमरान खान को देश की बागडोर सौंपी है. इसलिए अगर इमरान भी हालात को बदलने में नाकाम रहे तो लोकतंत्र में जनता का भरोसा कमजोर होगा. ऐसे में, सेना की तरफ देखने के अलावा लोगों के पास क्या विकल्प होगा? इमरान खान के कंधों पर देश को संकट से निकालने के साथ साथ लोकतंत्र में लोगों का भरोसा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी है.