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इराक को कौन बचाएगा?

२५ अक्टूबर २०११

संयुक्त राष्ट्र ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी की घोषणा के बाद इराकियों से मिल जुलकर काम करने की अपील की है तो इराकी संसद अध्यक्ष ओसामा नुजैफी ने चेतावनी दी है कि पड़ोसी देश स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश कर सकते हैं.

तस्वीर: AP

कई महीनों तक बगदाद के साथ बातचीत के बाद आखिरकार शुक्रवार को राष्ट्रपति ओबामा ने अमेरिकी सेना को इराक से वापस बुलाने की घोषणा की. ओबामा ने कहा, "हमारे बाकी सभी सैनिक इस साल के अंत तक घर लौट जाएंगे. करीब नौ साल बाद इराक में अमेरिका का युद्ध खत्म होने जा रहा है." ओबामा की इस घोषणा से इराक ने चैन की सांस ली है. बगदाद में एक पूर्व अधिकारी आदेल अल रुबाई ने कहा, "उन्होंने यहां कब्जा किया हुआ है, उनका जाना ही होगा. ठीक है, उन्होंने इराक को आजादी दिलवाई, लेकिन वे आठ साल से भी ज्यादा से यहां कब्जा जमाए बैठे हैं, अब बहुत हो गया."

60 साल के अल रुबाई का मत इराक के बाकी के लोगों से अलग नहीं है. एक समय वहां एक लाख सत्तर हजार अमेरिकी सैनिक तैनात थे. आज केवल चालीस हजार ही बचे हैं. इराक में चल रही अमेरिका की लड़ाई में इराक को तो नुकसान पहुंचा ही, साथ ही अमेरिका ने भी अपने कई सैनिक खो दिए. अमेरिका इराक से सैनिकों को वापस बुलाने की इराक की मांग को नजरअंदाज करता आया है. अब जब राष्ट्रपति ओबामा ने उन्हें बुलाने का एलान किया है तो वह चाहते हैं कि सैनिकों से किसी तरह की जवाबदेही ना की जाए.

मिली जुली प्रतिक्रिया

ऐसे में अमेरिका को ले कर मिली जुली प्रतिक्रिया भी सामने आ रही है. जलील सालेह इराक में अध्यापक हैं. उनके अनुसार इसके दो पहलू हैं, "यह अच्छी बात है कि हम पर कब्जा करने वाले अब जा रहे हैं, उन्होंने हमारा सब कुछ लूट लिया, हमारे विद्वानों को मार डाला, कई प्रोफेसर और जानकारों को विदेश भागने पर मजबूर कर दिया. लेकिन दूसरी तरफ देखा जाए तो उन्होंने ने ही हमें गद्दाफी, सालेह और असद जैसे तानाशाहों से मुक्ति भी दिलाई है."

तस्वीर: dapd

शुरुआती बातचीत के अनुसार करीब तीन से पांच हजार अमेरिकी सैनिकों को इराक में रह कर वहां की सेना को स्वतंत्र रूप से काम करने का प्रशिक्षण देना था. इराक सरकार भी इस से सहमत दिखी, लेकिन अमेरिकी सैनिकों और खुफिया एजेंसियों के गलत बर्ताव के चलते सेना को वहां से निकालने का फैसला लेना पड़ा. इससे इराक की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. इराक में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष दूत मार्टिन कोब्लर ने कहा, "राष्ट्रपति ओबामा द्वारा सैनिकों को पूरी तरह हटाने की घोषणा के बाद हम बहुत मुश्किल समय, इराक के इतिहास के महत्वपूर्ण दौर में हैं."

क्लिंटन की चेतावनी

जलील सालेह भी इस से इत्तिफाक रखते हैं, "मेरे ख्याल से इस समय उनका जाना ठीक नहीं है. इराक की तकनीक और सैन्य तंत्र अभी कमजोर हैं. हमारे पास ना तो युद्ध विमान हैं और ना ही पनडुब्बियां, बस कुछ साधारण हथियार हैं. जब सेनाएं यहां से चली जाएंगी, तो दूसरे देश इसका फायदा उठा सकते हैं. वे हमारा धन भी लूट सकते हैं और हम पर कब्जा भी कर सकते हैं." अमेरिका भी यह बात समझता है. इसीलिए रविवार को सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलरी क्लिंटन ने चेतावनी देते हुए कहा, "किसी को भी, और खास तौर से ईरान को, इराक में हमारे इस कदम का गलत मतलब नहीं निकालना चाहिए. ईरान बहुत बड़ी गलती करेगा अगर वह इस पूरे इलाके पर ध्यान नहीं देगा. क्योंकि इस इलाके में और कई देशों में हमारी मौजूदगी अभी भी बनी हुई है."

इराक में सुरक्षा को लेकर चिंता की स्थिति बनी हुई है. इराक सैन्य प्रमुख के अनुसार 2020 तक अमेरिकी सेना का इराक में रहना जरूरी था.प्रधानमंत्री मालिकी की सरकार पिछले डेढ़ साल में देश के हालात नहीं बदल सकी है. आज भी वहां हर महीने करीब ढाई सौ इराकियों की हमलों में जान जाती है. ऐसे में कहा जा सकता है कि अमेरिका इराक को मुश्किलों के बीच छोड़ कर जा रहा है.

लेकिन सेना ना सही सीआईए और कई अन्य निजी खुफिया एजेंसियां इराक में मौजूद रहेंगी. इराक के जानकार बैरूत यूनिवर्सिटी के हिलाल खशन का कहना है कि अमेरिका की मौजूदगी हमेशा ही वहां बनी रहेगी, "वह इसका कोई ना कोई रास्ता ढूंढ ही लेंगे. इराक के लिए अमेरिका का पूरी तरह वहां से चले जाना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. वॉशिंगटन ने जो खर्च किया है वह उसे व्यर्थ नहीं जाने देगा. इसलिए वे इराक में बने रहेंगे, कुछ वैसे ही जैसे यूरोप में."

इराक के लिए यह मुश्किल समय है. एक तरफ अमेरिकी सेना के जाने की खुशी है तो दूसरी ओर ईरान जैसे देशों के कारण चिंता भी. ऐसे में इराकी सेना के सादोन दलाल का सवाल काफी जरूरी लगता है, "मैं चाहता हूं कि वे जल्द से जल्द यहां से चले जाएं, लेकिन फिर इराक को कौन बचाएगा?"

रिपोर्ट: उलरिष लाइडहोल्ट, अमन/ ईशा भाटिया

संपादन: आभा एम

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