इराक का नाम आते ही आज भी सबसे पहले दिमाग में सद्दाम हुसैन का नाम आता है. तानाशाह सद्दाम के पतन को 15 साल हो गए हैं, लेकिन देश आज भी वहीं खड़ा है. तबाह और बर्बाद. हाल में वहां नई सरकार बनी है पर चुनौतियां वही पुरानी हैं.
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संसदीय चुनावों के पांच महीने बाद इराक को नई सरकार नसीब हुई है, जिसमें प्रधानमंत्री पद अब्दुल महदी ने संभाला है. महदी शिया समुदाय के हैं और इससे पहले इराक के पूर्व उपराष्ट्रपति और तेल मंत्री रह चुके हैं.
2003 में सद्दाम हुसैन की सत्ता खत्म होने के बाद इराक में हुए सत्ता साझेदारी समझौते के तहत प्रधानमंत्री पद पर हमेशा बहुसंख्यक शिया समुदाय का व्यक्ति ही होगा जबकि संसद का स्पीकर सुन्नी होगा. इस डील के मुताबिक इराक के राष्ट्रपति पद पर कुर्द समुदाय का हक है.
महदी एक आजाद उम्मीदवार हैं, लेकिन उन्हें चुनावों में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाले दो प्रतिद्वंद्वी धड़ों का समर्थन प्राप्त है. जाहिर है महदी को इन दोनों ही धड़ों के हितों का ख्याल रखना होगा. लेकिन वह कुर्दों और सुन्नी अरबों की मांगों को भी अनदेखा नहीं कर सकते. इसलिए महदी के लिए प्रधानमंत्री पद काटों के ताज से कम नहीं है.
बहरहाल, महदी के लिए सबसे पहली चुनौती तो सरकार के गठन की है, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रपति बरहाम सालेह से एक नवंबर तक का समय मिला है. दिलचस्प बात यह है कि वह अपना मंत्रिमंडल इस तरह तैयार करना चाहते हैं जैसे कोई कंपनी में स्टाफ की भर्ती करता है.
इसके लिए उन्होंने एक वेबसाइट बनाई और ऐसे लोगों से मंत्री पदों के लिए आवेदन करने को कहा है जो अपने आपको काबिल समझते हों. जाहिर है उन्हें नियुक्ति की कड़ी प्रक्रिया से गुजरना होगा.
कैबिनेट गठन के बाद कहीं बड़ी चुनौती महदी का इंतजार कर रही है. चार साल की भीषण लड़ाई के बाद इराक ने इस्लामिक स्टेट को लगभग खत्म कर दिया है. लेकिन इस दौरान देश के कई बड़े शहर मलबे के ढेर में तब्दील हो चुके हैं.
तबाही का यह आलम है कि इस्लामिक स्टेट के आखिरी ठिकाने रहे मोसूल शहर में दजला नदी के पश्चिमी किनारे पर चार किलोमीटर लंबी और डेढ़ किलोमीटर चौड़ी पट्टी में शायद ही कोई ऐसा घर मकान हो जो सलामत है. तीस लाख से ज्यादा लोग बेघर हैं. अर्थव्यवस्था ठप है और देश को फिर से खड़ा करने के लिए अमीर और ताकतवर देशों की तरफ ताकने के अलावा कोई चारा नहीं है.
मोसुल अब शहर नहीं, सिर्फ मलबे का ढेर है
इराकी शहर मोसुल को आईएस से छुड़ाने के लिए भीषण लड़ाई हुई. इसी का नतीजा है कि शहर के पुराने हिस्से में प्रति एकड़ तीन हजार टन से भी ज्यादा का मलबा पड़ा है, जिसे हटाना और शहर को फिर से खड़ा करना एक बड़ी चुनौती है.
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मलबे का ढेर
इराक का मोसुल शहर इस्लामिक स्टेट के आतंक से तो आजाद हो गया है. लेकिन अब हर तरफ वहां मलबे के ढेर नजर आते हैं. जहां कभी घर, मकान और दुकान होते थे, वहां आज सिर्फ मलबा दिखता है.
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तबाही ही तबाही
शहर का जो इलाका इस्लामिक स्टेट का अंतिम ठिकाना था, वहां दजला नदी के पश्चिमी किनारे पर 4 किलोमीटर लंबी और डेढ़ किलोमीटर चौड़ी पट्टी में शायद ही कोई ऐसी जगह हो जहां मलबे का ढेर नहीं है.
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जंग की त्रासदी
मोसुल में दजला नदी पर बने पांचों पुलों को हवाई हमलों में बहुत नुकसान हुआ है. शहर का ऐसा कोई कोना नहीं है जो तीन साल तक यहां लड़ी गई जंग की त्रासदी से अछूता हो.
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जीत की कीमत
अमेरिकी गठबंधन और इराकी बलों ने आईएस को हरा दिया. लेकिन इस जीत के लिए जो कीमत चुकानी पड़ी है, उसका हिसाब लगाना मुश्किल है. इराकी सरकार को देश भर में पुनर्निर्माण को लिए 100 अरब डॉलर चाहिए.
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कहां से आएगा पैसा
अब तक कोई इराक की मदद के लिए सामने नहीं आया है. अमेरिका ने साफ कह दिया है कि वह पुनर्निर्माण के लिए कोई पैसा नहीं देगा. ऐसे में इराक को सऊदी अरब, खाड़ी देशों और ईरान से भी मदद की उम्मीद है.
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धन की किल्लत
संयुक्त राष्ट्र लगभग दो दर्जन शहरों और कस्बों में बुनियादी ढांचे की मरम्मत कर रहा है, लेकिन उसे धन की किल्लत से जूझना पड़ रहा है. ऐसे में, लोग अपनी निजी बचत से घरों को दोबारा बनाने और बसाने की कोशिश कर रहे हैं.
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बड़ा काम
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि मोसुल में 40 हजार घरों को मरम्मत या फिर दोबारा बनाने की जरूरत है. छह लाख लोग अपने घरों को लौट नहीं पा रहे हैं. वे शिविरों में रह रहे हैं. मोसुल की आबादी कभी 20 लाख हुआ करती थी.
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बाधाएं
भ्रष्टाचार और शिया-सुन्नी तनाव देश के पुनर्निर्माण में बड़ी अड़चन हैं. जिस इलाके में सबसे ज्यादा तबाही हुई है, वह ज्यादातर सुन्नियों का इलाका है जबकि इराकी सरकार में शियाओं का दबदबा है.
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चरमपंथ पनपने का खतरा
ऐसे में, इस बात का भी डर है कि अगर सुन्नी आबादी को लगा कि उनकी अनदेखी की जा रही है तो इससे उनमें असंतोष पैदा होगा जिससे बाद में चरमपंथियों की नई पीढ़ी तैयार हो सकती है.
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हजारों जानें गईं
मोसुल पर 2014 में आईएस ने नियंत्रण किया था. लेकिन महीनों चली भीषण लड़ाई के बाद जुलाई 2017 में इसे मुक्त घोषित किया गया. मोसुल को दोबारा हासिल करने की इस लड़ाई में हजारों आम लोग मारे गए.
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दूसरे शहर भी तबाह हुए
तबाही के ऐसे मंजर दूसरे इराकी शहरों में भी नजर आते हैं. अनबार प्रांत की राजधानी रमादी को 2015 में आईएस से मुक्त करा लिया गया लेकिन शहर का 70 फीसदी हिस्सा अब भी तबाह और बर्बाद पड़ा हुआ है.
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किसने दी मदद
पुनर्निर्माण का ज्यादातर काम संयुक्त राष्ट्र की विकास एजेंसी यूएनडीपी की देखरेख में हो रहा है. लेकिन फंडिंग एक बड़ी समस्या है. अब तक अमेरिका ने जहां इसके लिए 11.5 करोड़ डॉलर दिए हैं वहीं जर्मनी ने 6.4 करोड़ डॉलर मुहैया कराए हैं.
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"यह हमारा काम नहीं है"
इराक को उम्मीद थी कि आईएस को हरा देने के बाद अमेरिका की तरफ से और पैसा आएगा लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने साफ कर दिया है, कि "देश को खड़ा करना" उनका काम नहीं है. मतलब इराक को इस चुनौती से अकेले ही निपटना है.
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इराक मध्य पूर्व के उन देशों में से एक है जिन्होंने पिछले 50 साल के दौरान सबसे ज्यादा उथल पुथल देखी. शिया बहुल देश इराक में सुन्नी तानाशाह सद्दाम हुसैन ने 1979 में सत्ता संभाली थी और डंडे के जोर पर लगभग 25 साल तक एकछत्र राज किया. 1980 से लेकर 1988 तक सद्दाम ने ईरान से जंग लड़ी. इसके दो साल बाद इराक ने कुवैत पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया. यहीं से दूसरा खाड़ी युद्ध शुरू हुआ जिसमें इराक के सामने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सऊदी अरब जैसे ताकतवर देश थे.
सात महीने बाद यह लड़ाई तो खत्म हो गई, लेकिन अमेरिका और सद्दाम की रंजिश बनी रही. इराक पर 2003 में अमेरिका का हमला शायद इसी रंजिश का नतीजा था, क्योंकि जिन व्यापक विनाश के हथियारों को आधार बना कर हमला किया गया, वे तो आज तक नहीं मिले हैं.
इराक में सद्दाम की सत्ता को खत्म हुए डेढ़ दशक बीत गया है. लेकिन इन पंद्रह सालों में इराक को चैन की सांस नसीब नहीं हुई. आतंक के साए लगातार उस पर मंडराते रहे. कभी अल कायदा के रूप में तो कभी इस्लामिक स्टेट के रूप में. और इसकी कीमत चुकानी पड़ी इराक की जनता को. इराकी लोगों ने कभी अमेरिकी लड़ाकू विमानों से गिरने वाले बमों और मिसाइलों को झेला तो कभी वे इस्लामिक स्टेट के गुलाम बने.
खत्म हो गयी है इस्लामिक स्टेट की खिलाफत
मानवता के खिलाफ संगीन अपराधों के लिए जिम्मेदार इस्लामिक स्टेट की कथित खिलाफत ढह गयी है. कई मोर्चों पर लगातार मिली शिकस्त के रक्का से भी उसके लड़ाकों के पांव उखड़ गये हैं. इस्लामिक स्टेट पर चारों तरफ से मार पड़ी है.
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खत्म हुई खिलाफत
इराक में अल कायदा के अवशेषों से बन कर उभरे इस्लामिक स्टेट का 2014 की शुरुआत में फलूजा और रामादी के इलाकों में उभार हुआ. इसके बाद इस्लामिक स्टेट ने सीरियाई विद्रोहियों को भगाकर रक्का पर भी कब्जा कर लिया. जून 2014 में इराक के दूसरे सबसे बड़ा शहर मोसुल भी इस्लामिक स्टेट के चंगुल में था. यहीं से इस्लामिक स्टेट के नेता अबू बकर अल बगदादी ने खिलाफत का एलान किया.
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खिलाफत का खौफ
इस्लामिक स्टेट ने न्याय, समानता और इस्लामी धार्मिक मान्यताओँ के आधार पर एक आदर्श राज्य की बात की लेकिन अपने कुछ ही दिनों के शासन में इसने अपने ही लोगों भयभीत कर दिया. इराक के यजीदी समुदाय की हत्या, महिलाओं और लड़कियों को सेक्स गुलाम बनाने के लिए अपहरण, पश्चिमी पत्रकारों और सहायताकर्मियों की गला रेतकर हत्या और मध्यपूर्व की बेहद शानदार स्मारकों को मिटाने का कलंक इस्लामिक स्टेट पर है.
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विदेशी लड़ाके
इस्लामिक स्टेट ने अपनी फौज में शामिल करने के लिए दुनिया भर से मुसलमानों को बुलाया इनमें यूरोपीय और दूसरे देशों के युवा थे जिन्होंने इस्लामिक स्टेट को अपना आदर्श मान लिया. इसकी सोच ने मुख्यधारा के सु्न्नी मुसलमानों को इससे अलग कर दिया. सुन्नी मुसलमान इस्लामिक स्टेट के इस्लाम की विचारधारा को नहीं पचा पाये. खास इलाके में बनी खिलाफत पर चारों तरफ से हमला हुआ और बहुत जल्द इसके दुश्मन संगठित हो गये.
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हर तरफ से हमला
अमेरिका ने अपना अभियान 2014 में इराक से शुरू किया और एक महीने बाद सीरिया में. अमेरिका ने इराक में शिया लड़ाकों से गठजोड़ किया और इराकी कुर्द लड़ाकों से. सीरिया में स्थानीय कुर्द लड़ाकों और सीरियाई लोकतांत्रिक बल यानी एसडीएफ को साथ मिलाया. अमेरिकी हवाई हमलों के साये में इन सेनाओं ने इस्लामिक स्टेट को उसके गढ़ से एक एक कर उखाड़ना शुरू किया. बड़ा झटका इस साल जुलाई में लगा जब मोसूल को छुड़ा लिया गया.
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सीरिया में सफाया
सीरिया में इस्लामिक स्टेट के सफाये का दावा किया जा रहा है.वहां आईएस पर दोहरी मार पड़ी है. एक तरफ अमेरिका और उसकी समर्थित सेनाएं हैं तो दूसरी तरफ सीरियाई शासक बशर अल असद जिन्होंने अपने रूसी सहयोगियों के साथ मिल कर बेहद आक्रामक रुख अपनाया है. आईएस लड़ाके इधर उधर छिपते फिर रहे हैं और आम लोगों के साथ वहां से निकल रहे हैं. फुरात नदी घाटी में मायादीन के पास उनका आखिरी पड़ाव होने की बात पता चली है.
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इराक में अब बस अंबार
अक्टूबर के शुरुआत में इस्लामिक स्टेट के हाथ से इराक का हविजा शहर भी जाता रहा और उनके पास उत्तरी इराक में कोई शहर नहीं है. इराक की सेना अब इस्लामिक स्टेट के आखिरी ठिकाने अंबार पर हमले की तैयारी में जुटी है. इस रेगिस्तानी इलाके का फैलाव पूरे सीरियाई सीमा के साथ है. सीरियाई इलाके में मौजूद बोउकमाल पर जरूर इस्लामिक स्टेट कायम है साथ ही पूर्व की तरफ कुछ छिटपुट इलाकों में उसके लड़ाके अब भी डटे हुए हैं.
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भारी कीमत
इस्लामिक स्टेट की भारी कीमत सीरिया और इराक ने चुकाई है. एक तरफ धूल धूसरित हुई इमारतें, बस्तियां, सड़कें दिखती हैं तो दूसरी तरफ सामूहिक कब्रें, शरणार्थी, शव, यातना से जिंदा लाश बन चुके लोग. रमादी, मोसुल, रक्का जिधर नजर दौड़ाइये यही मंजर दिखाई देता है. तीन साल के शासन में इस्लामिक स्टेट की खिलाफत ने हजारों लोगों को मारा है, लाखों लोगों को बेघर किया और अनगिनत मासूम बच्चों में जेहादी विचार भर दिया.
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राजनीतिक असर
इस्लामिक स्टेट के उदय और पतन ने सीरिया और इराक में जातीय हिंसा की लकीरों को और गहरा कर दिया है. कुर्द सरकार उखड़ गयी है इसके साथ ही ईरान और तुर्की में भी कुर्द अलगाववादियों के खिलाफ जंग तेज हो गयी. तेल से लबालब किरकुक कुर्दों के कब्जे में था लेकिन अब इराक ने उसे छुड़ा लिया है. इसके साथ कुर्द राष्ट्र का सपना तो मटियामेट हो गया है और शिया, सुन्नी, कुर्द और दूसरे गुटों के बीच जंग तेज होगी.
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कौन जीता कौन हारा
एक तरफ सीरिया में असद की सरकार विद्रोहियों को निशाना बना रही हैं तो दूसरी तरफ इराक कुर्दों के सपने कुचल रहा है. इस इलाके में अपनी चौधराहट कायम करने की तमन्ना रूस और अमेरिका में भी है. सीरिया के पड़ोसी देशों को भी इस जंग में आहुति देनी पड़ी है उधर ईरान और सऊदी अरब भी अपनी भूमिका तलाश रहे हैं. इस्लामिक स्टेट की खिलाफत ध्वस्त हो गयी है लेकिन इस जंग में कौन हारा या कौन जीता यह बताना मुश्किल है.
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अनिश्चित भविष्य
इस्लामिक स्टेट से अपने इलाकों को छुड़ाने के बाद भी सारी सेनायें निरंतर सजग और सक्रिय हैं. वास्तव में अब उनके सामने ज्यादा बड़ी चुनौती है. बड़ी संख्या में इस्लामिक स्टेट के लड़ाके आम आबादी के साथ मिल गये हैं और हमला करने की ताक में हैं. आईएस के सहयोगी मिस्र और लीबिया में भी हमले कर रहे हैं, ऐसे में जाहिर है कि हिंसा और अनिश्चितता का वातावरण अभी लंबे समय बना रहेगा.
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चूंकि इस्लामिक स्टेट एक सुन्नी चरमपंथी गुट है, तो बीते चार साल के दौरान उसके खिलाफ लड़ाई में सबसे ज्यादा तबाही भी सुन्नी इलाकों ने ही झेली. शिया बहुल इराक में सुन्नी अकसर अपनी अनदेखी और भेदभाव का आरोप लगाते हैं. अल कायदा और इस्लामिक स्टेट के उभार को भी कई बार इसी असंतोष से जोड़ कर देखा जाता है. अब इराक ने अल कायदा और इस्लामिक स्टेट की तो लगभग कमर तोड़ दी है, लेकिन सुन्नियों की जायज मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो उनका असंतोष फिर किसी और रूप में फूटेगा.
अब्दुल महदी सुन्नियों के प्रति सहानुभूति जताते रहे हैं. उनके असंतोष की वजहों को भी वह जानते हैं. इसलिए शिया सुन्नी आधार पर बंटे इराक में महदी प्रधानमंत्री के रूप में दोनों समुदायों को साथ लाने में मददगार हो सकते हैं. लेकिन यह मुश्किल डगर है क्योंकि उनका प्रधानमंत्री पद दो शिया धड़ों के समर्थन पर टिका है.
बेशक उनके कंधों पर इराकी जनता की उम्मीदों का बोझ है. लेकिन सियासत की तल्ख हकीकतें अकसर ऐसी उम्मीदों पर भारी पड़ती हैं. शिया, सुन्नी और कुर्द जैसे खांचों में बंटे इराक की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह इन समुदायों के टकराव को अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि इनकी विविधता को अपनी ताकत बनाए. आने वाले सालों में इराक किस तरफ जाएगा, इसकी पहली झलक महदी के कैबिनेट से मिलेगी.
कब कहां हारा इस्लामिक स्टेट
इस्लामिक स्टेट ने इराक और सीरिया के एक बड़े हिस्से पर 2014 में कब्जा कर लिया. इस्लामिक स्टेट की स्वघोषित खिलाफत मिट चुकी है और उसने अपनी राजधानी रक्का को भी खो दिया है.देखिये इस्लामिक स्टेट के हाथ से कब क्या निकला.
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कोबानी
उत्तरी सीरिया में कुर्दों का यह शहर इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई की पहचान बन कर उभरा. अमेरिका समर्थित कुर्द लड़ाकों ने चार महीने से ज्यादा की जंग के बाद जनवरी 2015 में कोबानी को आजाद कराया.
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पलमीरा
प्राचीन रेगिस्तानी शहर पलमीरा को इस्लामिक स्टेट ने मई 2015 में अपने कब्जे में ले लिया और यहां के रोमन दौर की ऐतिहासिक विरासतों को मिटाने लगे. रूसी लड़ाकू विमानों के साये में सीरिया की सरकारी सेना ने उन्हें मार्च 2016 में यहां से निकाल दिया हालांकि वो एक बार फिर यहां आ जमे और फिर मार्च 2017 में उन्हें यहां से पूरी तरह बेदखल कर दिया गया.
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दाबिक
तुर्की के जंगी जहाजों और टैंकों की मदद से सीरियाई विद्रोहियों ने अक्टूबर 2016 में दाबिक पर कब्जा कर लिया. अगस्त 2014 से इस्लामिक स्टेट के शासन में रहा यह शहर अहम था इसी नाम से इस्लामिक स्टेट अपनी पत्रिका भी निकालता था. यही वो शहर है जहां रोमन दौर में ईसाई और मुस्लिम सेनाओं की जंग हुई थी.
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रक्का
अमेरिका समर्थित कुर्द और अरब लड़ाकों ने नवंबर 2016 में रक्का को छुड़ाने के लिए जंग छेड़ा. रक्का की जंग में कई महीनों तक खूनी खेल चलता रहा, यह शहर अमेरिकी जेट विमानों और गठबंधन सेना के गोला बारूद से ध्वस्त होता रहा. आखिरकार 17 अक्टूबर 2017 को अमेरिका समर्थित सेना ने एलान किया कि उसने रक्का पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया है.
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दीयर एजोर
2017 में सितंबर की शुरुआत में रूस समर्थित सीरियाई सेना ने इस पूर्वी शहर के सरकारी इलाके पर कायम आईएस के कब्जे को ध्वस्त कर दिया. इसके बाद जिहादियों को यहां के बाकी इलाकों से भी खदेड़ा जाने लगा. असद की फौज ने इसके साथ ही इराकी सीमा की तरफ फुरात नदी घाटी की तरफ बढ़ना भी शुरू कर दिया. 14 अक्टूबर को मायादीन पर भी कब्जा कर लिया गया.
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हमा और होम्स
रूसी जंगी जहाजों के साये में सरकारी सेना ने इस्लामिक स्टेट को उसके आखिरी ठिकाने हमा प्रांत से अक्टूबर के शुरुआत में ही निकाल चुकी थी. हालांकि इस्लामिक स्टेट अब भी पड़ोसी राज्य होम्स के कुछ इलाकों में जटा हुआ है. यहां से इस्लामिक स्टेट अब भी हमलों को अंजाम दे रहा है.
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तिकरित
बगदाद के उत्तर में मौजूद तिरकित पूर्व शासक सद्दाम हुसैन का गृहनगर है. इस्लामिक स्टेट ने जून 2014 में इस पर कब्जा कर लिया. 2015 में इराकी सेना, पुलिस और शिया बहुल अर्धसैनिक बलों ने इसे इस्लामिक स्टेट के कब्जे से छुड़ा लिया.
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सिंजर
अमेरिकी हवाई हमलों के साथ आगे बढ़ते इराकी कुर्दों ने नवंबर 2015 में उत्तर पश्चिमी शहर पर कब्जा कर लिया. एक साल पहले इस्लामिक स्टेट ने इस शहर पर कब्जा करने के साथ ही हजारों यजीदी कुर्द औरतों का यहां से अपहरण कर उन्हें सेक्स गुलाम बनाया था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Janssen
रामादी/फलुजा
इराक के सबसे बड़े राज्य अंबार की राजधानी रामादी को फरवरी 2016 में पूरी तरह से छुड़ा लेने का दावा किया गया. इसके पड़ोसी फलुजा को इस्लामिक स्टेट ने सबसे पहले अपने कब्जे में लिया था. फलुजा जून 2016 में इस्लामिक स्टेट के चंगुल से आजाद हुआ.
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कायराह
गठबंधन सेना के हवाई हमलों के साये में इराकी सेना ने अगस्त 2016 में कायराह को इस्लामिक स्टेट के कब्जे से मुक्त कराया. इसके साथ ही इराकी सेना को मोसुल पर हमला करने के लिए जगह मिल गयी. इराक का दूसरा सबसे बड़ा शहर मोसूल यहां से महज 60 किलोमीटर दूर है.
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ताल अफार
उत्तरी इराक के शहरी इलाकों में इस्लामिक स्टेट का आखिरी शहर ताल अफार ही था जिसे 31 अगस्त को आजाद कराया गया.
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मोसुल
इराकी प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी ने इसी साल 9 जुलाई को मोसुल पर जीत की घोषणा की. मोसुल को पाने के लिए चली नौ महीने की लड़ाई को एक वरिष्ठ अमेरिकी कमांडर ने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद किसी शहरी इलाके की सबसे बड़ी लड़ाई कहा.
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हविजा
इराकी सेना ने अर्धसैनिक बलों की मदद से दो हफ्ते की लड़ाई के बाद इस साल 5 अक्टूबर को इस इलाके से इस्लामिक स्टेट को बाहर निकाल दिया.
तस्वीर: Reuters
फुरात घाटी
इराकी सेना ने फुरात घाटी को भी इस्लामिक स्टेट से मुक्त कराने के लिए दबाव बढ़ा दिया है, इस घाटी की सीमाएं सीरिया से भी लगती हैं और अमेरिका ने इसे इस्लामिक स्टेट के खिलाफ अंतिम बड़ी लड़ाई कहा है. आना पर दोबारा कब्जा करने के बाद माना जा रहा है कि इस्लामिक स्टेट के करीब 2000 लड़ाके रावा और अल कायम शहरों में घिरे हुए हैं.