रासायनिक हथियार रोधी संस्था ओपीसीडब्ल्यू ने कहा है कि 4 अप्रैल को सीरिया के इदलिब में हुए हमले में सारीन या वैसा ही कोई प्रतिबंधित जहरीला पदार्थ इस्तेमाल हुआ. इस हमले में दर्जनों बच्चों समेत 90 लोगों की जान चली गयी थी.
विज्ञापन
ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपन्स (OPCW) की जांच की रिपोर्ट इसके पहले तुर्क और ब्रिटिश प्रयोगशालाओं से मिले नतीजों की ही तरह रायासनिक हमले की पुष्टि करती है. संस्था के महासचिव अहमत उजुमकु ने कहा कि विश्लेषण के नतीजों से "पता चलता है कि सारीन या सारीन जैसा ही कोई पदार्थ इस्तेमाल किया गया."
इनकी जांच का आधार हमले के पीड़ितों की ऑटोप्सी के दौरान इकट्ठा किये गये बायो-मेडिकल सैंपल थे. इन सैंपलों का विश्लेषण OPCW से जुड़ी दो अलग अलग प्रयोगशालाओं में कराया गया. इसके नतीजों के बारे में बयान जारी करते हुए इस संस्था ने कहा, "बायो-मेडिकल सैंपल ऐसे सात लोगों से इकट्ठे किये गये, जो अस्पतालों में अपना इलाज करवा रहे थे."
उधर इस्राएल ने आरोप लगाया है कि सीरिया के पास अब भी तीन टन के आसपास रासायनिक हथियार हैं. इस्राएल के रक्षा अधिकारियों ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के हथियारों की शक्ति का खुफिया मूल्यांकन कर यह जानकारी दी. इस्राएली सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनकी खुफिया जांच से पता चला है कि सीरियाई सेना के कमांडरों ने ही ऐसे हमले का आदेश दिया था और इसकी जानकारी असद को भी थी. इस बात की पुष्टि दो अन्य इस्राएली अधिकारियों ने भी की. लेकिन सभी ने इस्राएली सेना के नियमों के अनुसार अपनी पहचान को गोपनीय रखते हुए मीडिया को यह जानकारी दी.
इस्राएल के साथ साथ अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के ज्यादातर सदस्य जहरीले गैस हमले के लिए असद की सेनाओं को ही दोषी मानते हैं. लेकिन असद ने हमले के पीछे अपना हाथ होने से इंकार किया है और इसे विरोधियों की उन्हें बदनाम करने की कोशिश बताया है. असद के प्रमुख सहयोगी देश रूस का कहना है कि सीरियाई सरकारी सेना के हवाई हमले का निशाना विद्रोहियों की रासायनिक हथियारों की फैक्ट्री थी, जिसके कारण यह दुर्घटना घटी.
आरपी/एमजे (रॉयटर्स, एपी)
सीरिया में कौन किससे लड़ रहा है?
2011 में जब मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के एक बड़े हिस्से में बदलाव की हवा चली, तभी से सीरिया गृहयुद्ध से जूझ रहा है. सीरिया का संकट अब इतना उलझ गया है, कि भूलभुलैया जैसा नजर आता है. आइए इसे समझें.
असद के वफादार
2011 के बाद सीरिया की सेना ने बड़ी फूट का सामना किया है. उसी से टूटकर बागियों की फ्री सीरियन आर्मी बनी है. वहीं सीरिया की सेना को नेशनल डिफेंस फोर्स जैसे बहुत सारे असद समर्थक मिलिशिया गुटों का समर्थन प्राप्त है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/V. Sharifulin
उदार बागी
फ्री सीरियन आर्मी असद के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शनों से जन्मी. अन्य जिहादी गुटों के साथ मिल कर वह राष्ट्रपति असद को सीरिया की सत्ता से बाहर करना चाहती है. इसे तुर्की और अमेरिका का भी कुछ समर्थन मिला, लेकिन बार बार पराजय से इसका मनोबल टूटा है. इसके बहुत से सदस्य आतकंवादी गुटों में चले गए.
तस्वीर: Reuters
आतंक का नया चेहरा
क्षेत्र में जारी अफरातफरी का फायदा उठा कर आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने 2014 में सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया. बर्बरता के लिए बदनाम यह संगठन अपनी खुद की "खिलाफत" कायम करना चाहता है. काले झंडे के तले वह खूब कत्लेआम और लोगों को प्रताड़ित करता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दूसरे खिलाड़ी
आईएस के अलावा और कई जिहादी गुट भी सीरिया में लड़ रहे हैं. इनमें अल कायदा से जुड़े अल नुसरा फ्रंट का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. अल नुसरा आईएस के साथ साथ असद और उदारवादी बागियों से भी लड़ रहा है. जनवरी 2017 में उसने कई जिहादी गुटों को मिलाकर तहरीर अल शाम के नाम से गुट बनाया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Nusra Front on Twitter
रूस का साथ
रूस सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का करीबी मित्र बन कर उभरा है. रूस आधिकारिक तौर पर सितंबर 2015 में सीरिया की लड़ाई में शामिल हुआ. इससे पहले वह सीरिया को हथियार सप्लाई कर रहा था. रूस को कई बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना झेलनी पड़ी है क्योंकि उसके हवाई हमलों में आम लोग भी मारे गए हैं.
राष्ट्रपति असद का विरोध और रणनीतिक रूप से उदारवादी बागियों का समर्थन करने के बावजूद अमेरिका और नाटो देशों ने सीरिया के संघर्ष में अपने सैनिक जमीन पर नहीं उतारे. हालांकि 2014 के आखिर में अमेरिका के नेतृत्व में जर्मनी समेत 60 देशों के गठबंधन ने आईएस और अन्य आतकंवादी गुटों के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू किए.
तस्वीर: AFP/Getty Images/John Macdougall
देर आए, पर क्या दुरुस्त आए?
अप्रैल 2017 में सीरिया के शहर खान शेखहुन में संदिग्ध रासायनिक हमले में 50 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद अमेरिका ने सीरिया के हवाई ठिकाने पर मिसाइलें दागीं. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप सीरियाई सरकार के खिलाफ सीधे कार्रवाई करने के विरोधी रहे हैं. लेकिन रासायनिक हमले के बाद उनका रुख पलट गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Images/US Navy/F. Williams
सीमा पर सुरक्षा
सीरिया के पड़ोसी देश भी इस संकट में कूद गए क्योंकि वे अपनी सीमाओं पर सुरक्षा चाहते हैं. अमेरिकी गठबंधन में शामिल तुर्की असद का विरोधी है और उदार विद्रोहियों को समर्थन देता रहा है. हालांकि कुर्द लड़ाकों को अमेरिका का समर्थन तुर्की को फूटी आंख नहीं भाता है. कुछ कुर्द तो तुर्की में अपने लिए अलग इलाका मांगते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/S. Suna
लड़ाई के भीतर लड़ाई
सीरिया के उत्तर में सीरियाई कुर्दों और इस्लामी कट्टरपंथियों के बीच लड़ाई एक अलग ही संघर्ष बन गया है. तुर्की, सीरिया और इराक में रहने वाले कुर्द लोग अपने लिए अलग देश या फिर इन देशों में स्वायत्त इलाका चाहते हैं. तुर्की कुर्द लड़ाकों को आतंकवादी कहता है. कुर्द पेशमर्गा लड़ाके अमेरिकी गठबंधन की मदद कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AA/A. Deeb
परोक्ष युद्ध
सीरिया के संकट में ईरान के शामिल हो जाने से पता चलता है कि यह दो धड़ों के लिए ताकत का अखाड़ा बन गया है. इसमें एक तरफ ईरान और रूस हैं तो दूसरी तरफ सऊदी अरब, तुर्की और अमेरिका. ईरान सीरिया के जरिए क्षेत्र में ताकत का संतुलन बनाना चाहता है. ईरान सीरिया के राष्ट्रपति असद को हर तरह की मदद दे रहा है.
तस्वीर: Atta Kenare/AFP/Getty Images
हल बहुत दूर
सीरिया में जारी लड़ाई को छह साल पूरे हो गए हैं लेकिन हल नजर नहीं आता. अलग अलग समूहों और गुटों का देश पर नियंत्रण है. सीरिया के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में कई बार वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कुछ हासिल नहीं हुआ है. आए दिन सीरिया के मोर्चों से तबाही और त्रासदियों के मंजर सामने आते हैं.