बाहर से देखने पर अरब देश और इस्राएल एक दूसरे के दुश्मन नजर आते हैं. लेकिन भीतर खाने बहुत कुछ पक रहा है. इस्राएल के कैबिनेट मंत्री ने खुद इस बात को स्वीकार किया है.
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इस्राएली सशस्त्र सेना के प्रमुख और ऊर्जा मंत्री युवाल श्टाइनित्ज ने पहली बार सऊदी अरब की एक न्यूज बेवसाइट को इंटरव्यू दिया. इंटरव्यू में श्टाइनित्ज ने कहा, "कई अरब और मुस्लिम देशों के साथ हमारे रिश्ते हैं, कुछ गोपनीय हैं."
इस्राएली मंत्री के मुताबिक इस्राएल के साथ रिश्ते को छुपाए रखने की ख्वाहिश मुस्लिम देशों ने की है, "आम तौर पर जो रिश्ते को गोपनीय बनाए रखना चाहते हैं, वो दूसरी तरफ हैं. हम संपर्क विकसित करने के दौरान उनकी इच्छाओं का सम्मान करते हैं, फिर वो सऊदी अरब हो या या फिर कोई अन्य अरब या मुस्लिम देश."
सऊदी अरब और इस्राएल के बीच कभी कूटनीतिक रिश्ते नहीं रहे. लेकिन ईरान दोनों का साझा दुश्मन है. दोनों देश मध्य पूर्व में ईरान के बढ़ते प्रभाव को रोकना चाहते हैं.
सऊदी अरब से शीत युद्ध जीतता ईरान
ईरान और सऊदी अरब एक दूसरे को फूटी आंख नहीं देखना चाहते. दोनों के बीच शीत युद्ध छिड़ा रहता है. लेकिन फिलहाल इसमें ईरान को जीत मिलती दिख रही है. रियाद नर्वस हो रहा है.
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भीतरी माहौल
ईरान में अंदरूनी माहौल शांतिपूर्ण हैं. ईरान विरोधी डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी की लोकप्रियता भी अपने देश में बढ़ी है. पश्चिम के साथ परमाणु करार करने के बाद ईरान के लिए कूटनीति के दरवाजे खुल चुके हैं. यह बात सऊदी अरब को परेशान कर रही है.
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आर्थिक विकास
आर्थिक प्रतिबंधों में ढील मिलने के बाद से ईरान की अर्थव्यवस्था लगातार बेहतर हो रही है. आईएमएफ के मुताबिक ईरान की जीडीपी 23.3 अरब डॉलर से बढ़कर 426.7 अरब डॉलर की हो चुकी है. चीन के भारी निवेश के बाद अब रूस भी ईरान से 30 अरब डॉलर का समझौता करने जा रहा है.
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यूरोप का साथ
ईरान की कूटनीति अब यूरोप में भी असर कर रही है. ट्रंप ईरान के साथ परमाणु करार को रद्द करने की बात कह चुके हैं लेकिन यूरोप अब भी करार का समर्थन कर रहा है. अमेरिका के कड़े रुख के चलते रूस और चीन ने ईरान को खासी तवज्जो दे रहे हैं.
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तुर्की के साथ गठजोड़
कुर्द लोग, तुर्की और ईरान के साझा दुश्मन है. इराक और सीरिया से कुर्द गुटों को खड़ेदने के लिए दोनों देश हाथ मिला रहे हैं. सऊदी अरब और कतर के मतभेदों का फायदा भी ईरान को मिल रहा है. ईरान और तुर्की, कतर को मदद का भरोसा दे रहे हैं.
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इराक भी पाले में
कभी इराक और ईरान एक दूसरे को बिल्कुल नापसंद करते थे. लेकिन आज हालात बदल चुके हैं. इराकी कुर्दों ने देश के उत्तरी इलाके में आजादी की घोषणा कर दी है. कुर्दों को रोकने के लिए इराक पूरी तरह तेहरान पर निर्भर नजर आता है. ईरान के शिया उग्रवादी कुर्दों के खिलाफ इराकी फौज की मदद कर रहे हैं. अमेरिका ने इराक से उग्रवादियों को खदेड़ने को कहा, बगदाद ने इस मांग को ठुकरा दिया.
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हिज्बुल्लाह कनेक्शन
लेबनान में भी तेहरान का प्रभाव बढ़ा है. बेरुत की मौजूदा सत्ता उग्रवादी संगठन हिज्बुल्लाह के सामने कमजोर है. हिज्बुल्लाह को ईरान संरक्षण देता है.
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यमन में सऊदी अरब पर शिकंजा
हूसी उग्रवादी यमन में सरकार के विरुद्ध लड़ रहे हैं. हूसी समुदाय को ईरान का समर्थन है, वहीं सरकार को सऊदी अरब का. तमाम कोशिशों के बावजूद सऊदी अरब का सैन्य अभियान शिया हूसी उग्रवादियों पर काबू नहीं कर पाया है. आम लोगों पर हमले की घटनाओं के चलते उल्टा सऊदी अरब के सैन्य अभियान की बीच बीच में निंदा होती रहती है.
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असद की सत्ता
रूसी और ईरानी सेना के सहारे सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद मजबूत होते जा रहे हैं. इस्लामिक स्टेट के पैर उड़खते जा रहे है. जिन जिन इलाकों से आईएस भाग रहा है, वहां असद की सेना पैर जमा रही है. अब तो यूरोप भी मान रहा है कि सीरिया का गृह युद्ध असद की सत्ता को खत्म नहीं कर सकता.
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सऊदी प्रिंस का असर
सऊदी अरब के नए क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अपने देश के भीतर ही राजनीतिक उथल पुथल मचा रहे हैं. वे कई वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों पर मुकदमे दर्ज करवा चुके हैं. विश्लेषक कह रहे हैं कि सऊदी अरब के राजा विरोधियों को किनारे लगा रहे हैं. इस भीतरी द्वंद्व का फायदा भी तेहरान को मिलेगा.
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इस इंटरव्यू से साफ हो रहा है कि अरब देशों की राजनीति में भीतर ही भीतर बहुत कुछ पक रहा है. लेबनान में सक्रिय उग्रवादी गुट हिज्बुल्लाह का आरोप है कि सऊदी अरब इस्राएल को हिज्बुल्लाह पर निशाना साधने के लिए भड़का रहा है. इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू भी बिना नाम लिए कई बार कह चुके हैं कि वे मध्यमार्गी अरब देशों से रिश्ते मजबूत करना चाहते हैं. हाल ही में नेतन्याहू ने इस्राएली संसद में कहा, "कट्टरपंथी इस्लाम के खिलाफ अरब दुनिया के मध्यमार्गी खेमे के साथ हम कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं. मुझे लगता है कि बढ़ती नजदीकी और बढ़ता परामर्श सुरक्षा और शांति के लिए जरूरी है."
ईरान और सऊदी अरब के बीच इस वक्त तनाव चरम पर है. लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी पद छोड़ने का एलान कर चुके हैं. माना जाता है कि सऊदी अरब हरीरी का समर्थन करता है. पद छोड़ने का एलान करने के बाद हरीरी रियाद गए और फिर हरीरी के गायब होने की खबर आई. बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच हरीरी पेरिस में सामने आए.
इस घटना के बाद जर्मनी ने सऊदी अरब को कड़ी झिड़की लगाई. जर्मनी ने कहा कि सऊदी अरब इलाके की शांति से न खेले. जर्मनी के रुख से नाराज हो कर सऊदी अरब ने बर्लिन से अपने राजदूत को वापस बुला लिया.
लेबनान की सरकार शिया उग्रवादी संगठन हिज्बुल्लाह के सामने कमजोर साबित हो रही है. हिज्बुल्लाह को ईरान का समर्थन है. हिज्बुल्लाह और इस्राएल के बीच पुरानी दुश्मनी है. दोनों 2006 में युद्ध भी लड़ चुके हैं. हिज्बुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह के मुताबिक सऊदी अरब इस्राएल को लेबनान पर हमला करने के लिए उकसा रहा है.
(क्या है इस्राएल)
क्या है इस्राएल
मुस्लिम देश इस्राएल को मध्यपूर्व में विवादों का केंद्र कहते हैं. एक तरफ उसके आलोचक हैं तो दूसरी तरफ उसके मित्र. लेकिन इस रस्साकसी से इतर बहुत कम लोग जानते हैं कि इस्राएल आखिर कैसा है.
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राष्ट्र भाषा
आधुनिक हिब्रू के अलावा अरबी इस्राएल की मुख्य भाषा है. ये दोनों 1948 में बने इस्राएल की आधिकारिक भाषाएं हैं. आधुनिक हिब्रू 19वीं सदी के अंत में बनी. पुरातन हिब्रू से निकली आधुनिक हिब्रू भाषा अंग्रेजी, स्लाविक, अरबी और जर्मन से भी प्रभावित है.
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छोटा सा देश
1949 के आर्मिस्टिक समझौते के मुताबिक संप्रभु इस्राएल का क्षेत्रफल सिर्फ 20,770 वर्ग किलोमीटर है. इस समझौते पर मिस्र, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया ने दस्तखत किए थे. लेकिन फिलहाल पूर्वी येरुशलम से लेकर पश्चिमी तट तक इस्राएल के नियंत्रण में 27,799 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है. इस्राएल के उत्तर से दक्षिण की दूरी 470 किमी है. देश का सबसे चौड़ा भूभाग 135 किलोमीटर का है.
अनिवार्य सैन्य सेवा
इस्राएल दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां नागरिकों और स्थायी रूप से रहने वाली महिला व पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है. 18 साल की उम्र के हर इस्राएली को योग्य होने पर तीन साल सैन्य सेवा करनी पड़ती है. महिलाओं को दो साल सेना में रहना पड़ता है.
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फलीस्तीन के समर्थक
नेतुरेई कार्टा का मतलब है कि "सिटी गार्ड्स." यह 1939 में बना एक यहूदी संगठन है. यह इस्राएल की स्थापना का विरोध करता है. इस संगठन का कहना है कि एक "यहूदी मसीहा" के धरती पर आने तक यहूदियों को अपना देश नहीं बनाना चाहिए. इस संगठन को फलीस्तीनियों का समर्थक माना जाता है.
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राष्ट्रपति पद ठुकराया
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनस्टाइन भले ही पूजा नहीं करते थे, लेकिन जर्मनी में यहूदियों के जनसंहार के दौरान उनका यहूदी धर्म की तरफ झुकाव हो गया. उन्होंने यहूदी आंदोलन के लिए धन जुटाने के लिए ही अमेरिका की पहली यात्रा की. बुढ़ापे में उन्हें इस्राएल का राष्ट्रपति बनने का न्योता दिया गया, आइनस्टाइन ने इसे ठुकरा दिया.
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ईश्वर को चिट्ठियां
हर साल येरुशलम के डाक घर को 1,000 से ज्यादा ऐसे खत मिलते हैं, जो भगवान को लिखे जाते हैं. ये चिट्ठियां कई भाषाओं में लिखी होती हैं और विदेशों से भी आती हैं. ज्यादातर खत रूसी और जर्मन में होते हैं.
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येरुशलम की पीड़ा
इतिहास के मुताबिक येरुशलम शहर दो बार पूरी तरह खाक हुआ, 23 बार उस पर कब्जा हुआ, 52 बार हमले हुए और 44 बार शहर पर किसी और का शासन हुआ. गिहोन झरने के पास शहर का सबसे पुराना इलाका है, कहा जाता है कि इसे 4500-3500 ईसा पूर्व बनाया गया. इसे मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों का पवित्र शहर कहा जाता है.
तस्वीर: DW/S. Legesse
पैसेंजर फ्लाइट का रिकॉर्ड
24 मई 1991 को इस्राएली एयरलाइन कंपनी एल अल का बोइंग 747 विमान 1,088 यात्रियों को लेकर इस्राएल पहुंचा. किसी जहाज में यह यात्रियों की रिकॉर्ड संख्या है. इथियोपिया के ऑपरेशन सोलोमन के तहत यहूदियों को अदिस अबाबा से सुरक्षित निकालकर इस्राएल लाया गया.
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खास है मुद्रा
इस्राएली मुद्रा शेकेल दुनिया की उन चुनिंदा मुद्राओं में से है जिनमें दृष्टिहीनों के लिए खास अक्षर हैं. दृष्टिहीनों की मदद करने वाली मुद्राएं कनाडा, मेक्सिको, भारत और रूस में भी हैं.