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इस्राएल-जॉर्डन समझौताः पानी के बदले बिजली

तानिया क्रेमर (येरूशलम)
२१ जनवरी २०२२

पश्चिम एशिया जलवायु संकट की कड़ी मार झेल रहा है. ऐसे में इलाके के देशों के बीच सहयोग अनिवार्य हो चला है. क्या इस्राएल और जॉर्डन के बीच हुआ अक्षय ऊर्जा और पानी की अदलाबदली का समझौता इस दिशा में पहला कदम माना जा सकता है?

Konflikt I Israel und Jordanien I Solar Power Farm  Shadmot Mehola
तस्वीर: Menahem Kahana/AFP/Getty Images

जलवायु समझौते के तहत जॉर्डन, इस्राएल को सौर ऊर्जा देने की तैयारी कर रहा है और बदले में उसे इस्राएल से पानी मिलेगा. ये रजामंदी दोनों देशों के बीच एक जलवायु सहयोग सौदे का आधार है. दोनों देशों ने 1994 में शांति समझौता कर लिया था. इस साहसिक सौदे के तहत, पानी की कमी से जूझता जॉर्डन करीब 600 मेगावॉट सौर ऊर्जा, इस्राएल को निर्यात करेगा और इस्राएल उसे बदले में 20 करोड़ घन मीटर विलवणीकृत पानी मुहैया कराएगा.

इस आशय के प्रस्ताव पर हुए दस्तखत के दौरान प्रकाशित हुई मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक संयुक्त अरब अमीरात की एक कंपनी जॉर्डन में एक सौर फार्म बनाएगी, जिसमें इस्राएल को जोड़ने वाली ट्रांसमिशन लाइन भी होगी. यह काम 2026 तक पूरा होगा. इस बीच इस्राएल ने अपने भूमध्यसागरीय तट पर पानी के विलवणीकरण के पांच प्लांट चालू कर दिए हैं. दो और संयंत्र बनाने की योजना है.

एक इस्राएली-जॉर्डन-फलिस्तीनी पर्यावरण एनजीओ- ईकोपीस मिडल ईस्ट के सह-संस्थापक और इस्राएली निदेशक गिडोन ब्रोमबर्ग कहते हैं, "दोनों देशों के लिए ये फायदे का सौदा है और जलवायु सुरक्षा पर लीक से हटकर बन रहे सोच का एक आदर्श नमूना भी.”

सहयोग के लिए आवश्यक जमीन तैयार करने और जलवायु परिवर्तन पर ज्यादा क्षेत्र केंद्रित नजरिया देने के लिए इस संगठन को श्रेय जाता है. दिसंबर 2020 में ईकोपीस ने "ग्रीन ब्लू डील फॉर द मिडल ईस्ट” नाम से एक विस्तृत योजना प्रकाशित की थी जिसमें सीमा पार जलवायु सुरक्षा की वकालत की गई है और जॉर्डन, इस्राएल और फलिस्तीनी भूभाग पर जोर दिया गया है.

जॉर्डन का रेगिस्तान और सूख रहा हैतस्वीर: Jürgen Schwenkenbecher/picture alliance

ईकोपीस के जॉर्डन में निदेशक याना अबु तालेब ने एक बयान में कहा, "यह समझौता हमारे क्षेत्र में देशों के बीच स्वस्थ अंतर्निर्भरता का एक नया मॉडल बना रहा है.” नफ्थाली बेनेट की अगुआई में नयी इस्राएली सरकार ने जॉर्डन के साथ रिश्तों की बेहतरी को अपनी प्राथमिकता बनाया है. इससे पहले इस्राएल ने संयुक्त अरब अमीरात और दूसरे अरब देशों के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में अब्राहम संधि पर हस्ताक्षर भी किए थे.

सौर ऊर्जा के रूप में राजनीतिक लाभ?

लाल सागर के एक छोटे से फैलाव से लगे जॉर्डन के पास लंबी तटीय रेखा नहीं हैं जिस पर वो खारे पानी को साफ करने वाले बहुत सारे प्लांट लगा सके. हुकूमत इसीलिए लंबे समय से पानी की खरीद के लिए इस्राएल पर निर्भर रहती आई है. तालेब इस नये समझौते को राजनीतिक हिसाब-किताब बराबर करने के एक नये अवसर के रूप में देखते हैं क्योंकि जॉर्डन के पास अब इस्राएल को वापस बेचने के लिए एक बेशकीमती चीज है और इसके चलते उसे इस्राएल पर एक राजनीतिक बढ़त भी हासिल हुई है.

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क्योंकि इस्राएल ने 2030 तक अपनी 30 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन नवीनीकृत स्रोतों से करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और उसके पास बड़े स्तर के सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए पर्याप्त जगह भी नहीं है जबकि जॉर्डन के पास विशाल कड़क धूप वाली रेगिस्तानी जमीन है जो विशालकाय सौर ऊर्जा उपकरण लगाने के लिए बिल्कुल उपयुक्त है.

तालेब ने डीडबल्यू को बताया, "जॉर्डन अक्षय ऊर्जा का इलाकाई अड्डा बन सकता है. वह पूरे इलाके को अक्षय ऊर्जा बेच सकता है ना कि सिर्फ इस्राएल को. और कल्पना कीजिए- हमें तमाम जलवायु सुरक्षा हासिल हो रही है, तमाम आर्थिक फायदे भी देश को मिल रहे हैं.” 

जलवायु परिवर्तन से जूझता इलाका

इस्राएल पहले ही जलवायु परिवर्तन को राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला बता चुका है. ब्रोमबर्ग के मुताबिक ये चिंता निश्चित रूप से इस समझ से बनी होगी कि खतरा पूरे इलाके को है. ब्रोमबर्ग कहते हैं, "इस्राएल खुद को एक अंतरराष्ट्रीय भूमिका में देखना चाहता है, जलवायु मुद्दों पर और, विश्व नेता के तौर पर. उसे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को दिखाना भी है सो उन संकल्पों और प्रतिबद्धताओं का निर्वहन भी करना होगा.”

जॉर्डन के रेगिस्तान में एक सोलर पावर स्टेशनतस्वीर: Laure Van Ruymbeke/AP/picture alliance

जलवायु परिवर्तन का गंभीर असर पहले ही इस्राएल और जॉर्डन के इर्दगिर्द समूचे मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) इलाके पर पड़ चुका है. तेल अवीव यूनिवर्सिटी में पर्यावरणीय अध्ययन के पोर्टर स्कूल के प्रमुख कोलिन प्राइस कहते हैं, "यह इलाका बाकी दुनिया की अपेक्षा तेजी से गरम हो रहा है. पिछले दो दशकों के दरमियान हमने देखा है कि समूचे भूमध्यसागर की तपिश में तेजी आई है और इस्राएल में भी. लिहाजा हमारी गर्मियां तो और गरम और लंबी होने लगी हैं.”

इस्राएल के मौसम विभाग के पेश किए हुए "एक गंभीर परिदृश्य” में इस सदी के अंत तक औसत तापमान में चार डिग्री सेल्सियस (7.2 डिग्री फारेनहाइट) की बढोतरी का आकलन किया गया है. उधर प्राइस के मुताबिक वृहद् भूमध्यसागरीय क्षेत्र में सदी के अंत तक बारिश में 20 फीसदी की गिरावट आ सकती है. वह कहते हैं, "यही तो हम कई देशों में देख रहे हैं- ग्रीस, इटली और स्पेन में. और इसकी वजह से जंगलों में आग की ज्यादा गंभीर घटनाएं होने लगी हैं.”

संयमित आशावाद की जरूरत

जॉर्डन भी हाल के वर्षों में ताजा पानी की आपूर्ति में भारी किल्लत से जूझ रहा है. राजधानी अम्मान में नागरिक अपनी छतों पर लगे टैंकों तक पानी पहुंचाने के आदी हो चुके हैं. याना अबु तालेब कहते हैं, "पूरा इलाका स्वाभाविक रूप से पानी की कमी का शिकार है. हमार पास बहुत सीमित सतही और भूजल संसाधन हैं और पानी की उपलब्धतता के मामले में इलाके के दूसरे देशों के बीच जॉर्डन सबसे गरीब देश है.”

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लेकिन भारी कमी के और भी कारण हैं जैसे कि खराब जल-प्रबंधन और बढ़ती आबादी. पड़ोस के संघर्षरत देशों से हाल के वर्षों में करीब आठ लाख शरणार्थी जॉर्डन आ चुके हैं. देश के प्राकृतिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है. पिछली गर्मियों में इस्राएल अपने पड़ोसी जॉर्डन को पानी की सालाना सप्लाई दोगुना कर पांच करोड़ घन मीटर सालाना करने पर सहमत हो गया था. और ये स्वागत-योग्य है. लेकिन नये समझौते के तहत उस मात्रा का चार गुना ही जॉर्डन में जा सकता है.  

इस बीच रॉयटर्स समाचार एजेंसी की रिपोर्टों में बताया गया कि योजनागत प्रोजेक्ट को लेकर अम्मान में विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे क्योंकि एक तबका इस्राएल के साथ रिश्तों के "सामान्यीकरण” को नकारात्मक ढंग से ले रहा था. ऐसी रिपोर्टों के बावजूद ब्रोमबर्ग कहते हैं कि वो समझौते को लेकर सकारात्मक हैं- खासकर उसके कई हिस्से निजी सेक्टर के जिम्मे हैं और दान के पैसों पर निर्भर नहीं हैं.  

ब्रोमबर्ग कहते है कि "दोनों पक्ष एक ही पायदान पर खड़े हैं, क्योंकि दोनों को एक-दूसरे से कुछ खरीदना भी है और कुछ बेचना भी है.” उनके मुताबिक पर्यावरणीय और राजनीतिक संदर्भों के लिहाज से भी "एहतियाती आशावाद के लिए अच्छी वजह है.”

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