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इस्राएल फलीस्तीन से सीधी बातचीत को तैयार, पर बिना शर्त

३ अक्टूबर २०११

इस्राएल फलीस्तीन के साथ शांतिवार्ता फौरन शुरू करने को राजी हो गया है. वह अंतरराष्ट्रीय चौकड़ी के प्रस्ताव के आधार पर बातचीत को तैयार है. लेकिन उसने किसी तरह की शर्त मानने से इनकार कर दिया है. यानी वही ढाक के तीन पात.

नेतान्याहु और बानतस्वीर: dapd

इस्राएल और फलीस्तीन बातचीत की मेज से इसलिए उठे थे क्योंकि इस्राएल पश्चिमी तट पर बस्तियां बसाने का काम रोकने को तैयार नहीं है. फलीस्तीन की शर्त है कि पहले बस्तियां बसनी बंद हों, तभी बातचीत हो सकती है. इसलिए इस्राएल के नए प्रस्ताव को भी उसने खारिज कर दिया है.

इस्राएल है तैयार लेकिन...

इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतान्याहु के दफ्तर से जारी एक बयान में कहा गया है कि देश अंतरराष्ट्रीय चौकड़ी की सीधी बातचीत के प्रस्ताव का स्वागत करता है. यूरोपीय संघ, रूस, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र मिलकर मध्य पूर्व संकट में मध्यस्थता कर रहे हैं. इस्राएल उनके नए प्रस्ताव पर बातचीत को तैयार हुआ है. नेतान्याहु के दफ्तर की तरफ से जारी बयान में कहा गया, "हमारी कुछ चिंताएं हैं लेकिन उन्हें सही वक्त पर उठाया जाएगा. इस्राएल फलीस्तीन से भी ऐसे ही कदम की अपील करते हैं कि वह बिना देर किए सीधी बातचीत के लिए आगे आए."

कब होगी फिर मुलाकात?तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस्राएल के इस कदम पर फलीस्तीन ने बिना देर किए अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर दी. उसने कहा कि इस्राएल ने अपनी अपील में न तो बस्तियों का निर्माण बंद करने की बात की और न ही ऐसा कहा कि वह 1967 के छह दिन के युद्ध से पहले की सीमाओं को आधार बनाकर बातचीत को तैयार है.

फलीस्तीन के वार्ताकार साएब एराकात ने कहा कि नेतान्याहु के दफ्तर का बयान अंतरराष्ट्रीय समुदाय को धोखा देने की कवायद भर है. उन्होंने कहा, "अगर वह अंतरराष्ट्रीय चौकड़ी के बयान को स्वीकार करते हैं तो उन्हें फौरन बंस्तियों का निर्माण बंद करने का एलान करना चाहिए. और सैद्धांतिक तौर पर 1967 की सीमाएं स्वीकार करनी चाहिए क्योंकि चौकड़ी के बयान में इसकी साफ साफ मांग की गई है."

क्या कहती है चौकड़ी

अंतरराष्ट्रीय चौकड़ी का प्रस्ताव बीते 23 सितंबर का आया था. यह बहुत ही ढीलाढाला सा बयान था जिसमें साफ साफ शब्दों में कुछ नहीं कहा गया था. प्रस्ताव में दोनों पक्षों से एक महीने के भीतर सीधी बातचीत शुरू करने और 2012 के आखिर तक एक समझौते पर पहुंचने की अपील की गई.

इस प्रस्ताव के पेश होने से ठीक पहले फलीस्तीन ने पूर्ण राज्य के तौर पर आधिकारिक सदस्यता पाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में अपनी अर्जी पेश की थी. प्रस्ताव में बातचीत के लिए किसी तरह की पूर्व शर्त या पैमानों का जिक्र नहीं किया गया. हालांकि इसमें पहले हो चुकी शांति वार्ताओं, भाषणों और संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों का जिक्र किया गया.

क्लिंटन, नेतान्याहु और अब्बासतस्वीर: picture alliance/dpa

इस बयान का हर पक्ष अपनी तरह से विश्लेषण कर सकता है. और ऐसा हुआ भी है. इस्राएल और फलीस्तीन ने अपने अपने विश्लेषण के आधार पर कह दिया है कि प्रस्ताव में उन्हीं के पक्ष को दोहराया गया है. रविवार को आए इस्राएल के बयान में कहा गया कि प्रस्ताव में स्पष्ट है कि बातचीत के लिए किसी पूर्व शर्त की जरूरत नहीं है. लेकिन फलीस्तीनी कह रहे हैं कि प्रस्ताव उनकी शर्तों का समर्थन करता है.

चौकड़ी ने अपने प्रस्ताव में जिन बातों का जिक्र किया है उनमें 2003 का रोडमैप शामिल है. इस रोडमैप में फलीस्तीन की तरफ से हिंसा और इस्राएल की तरफ से निर्माणकार्य फौरन बंद करने की बात कही गई.

फलीस्तीन इसी रोडमैप के जिक्र के आधार पर कह रहा है कि प्रस्ताव में इस्राएल से बस्तियां बसाने का काम बंद करने को कहा गया है.

प्रस्ताव में मई महीने में दिए गए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के एक भाषण का भी जिक्र है जिसके आधार पर फलीस्तीन अपना दावा सही ठहराता है. इस भाषण में ओबामा ने 1967 से पहले की सीमाओं को बातचीत का आधार बनाने की बात कही थी.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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