इस्लामिक स्टेट से कांपता तालिबान
२६ दिसम्बर २०१७रूसी विदेश मंत्रालय में मध्य पूर्व के दूत जामिर काबुलोव के मुताबिक इस वक्त अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट के पास 10,000 से ज्यादा हथियारबंद उग्रवादी हैं. यह संख्या लगातार बढ़ रही है. इराक और सीरिया में बुरी तरह हारने के बाद इस्लामिक स्टेट अब अफगानिस्तान को अपना गढ़ बना चुका है. एक रूसी न्यूज चैनल के साथ बातचीत में जामिर काबुलोव ने कहा, "रूस उन पहले देशों में है जो अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट के प्रसार के बारे में अलार्म बजा चुके हैं. हाल के समय में इस्लामिक स्टेट ने देश में अपनी मौजूदगी काफी बढ़ा ली है. हमारा अनुमान है कि उनके पास 10,000 से ज्यादा लोगों वाली सेना है जो लगातार बढ़ रही है. इनमें ऐसे नए लड़ाके भी शामिल हैं जिन्हें सीरिया और इराक में लड़ने का अनुभव है."
कहां जा रहे हैं इस्लामिक स्टेट के हजारों लड़ाके?
भारतीयों को आईएस का न्योता भेजने वाली महिला
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ भी ऐसा ही दावा कर रहे हैं. आसिफ के मुताबिक अफगानिस्तान के आठ से नौ प्रांतों में इस्लामिक स्टेट सक्रिय है. एक टेलिविजन बहस के दौरान आसिफ ने कहा कि अफगानिस्तान पर वहां की सरकार का नियंत्रण नहीं बचा है. अफगानिस्तान में करीब 9,000 टन अफीम का उत्पादन होता है. अफीम बेचकर पैसा कमाना और उससे हथियार जुटाना आतंकवादी संगठनों के लिए बहुत आसान है.
अप्रैल 2017 में अमेरिका ने अफगानिस्तान के पूर्वी प्रांत में "मदर ऑफ ऑल बम्स" कहा जाने वाला बम गिराया. अमेरिकी सेना के अधिकारियों ने दावा किया कि बम से इस्लामिक स्टेट की कमर टूटेगी. लेकिन जैसे जैसे समय बीता, आईएस और मजबूत होता चला गया. अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, अब अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट ने बर्बर हमले शुरू कर दिए हैं. इन हमलों के चलते हजारों परिवार पलायन के लिए मजबूर हो चुके हैं. हालात इतनी खराब हो चुकी है कि लंबे वक्त तक पहाड़ी इलाकों को अपने नियंत्रण में रखने वाले तालिबान कमांडर तक डरकर भाग रहे हैं. वे सरकार से सुरक्षा देने की अपील कर रहे हैं.
अमेरिका इस्लामिक स्टेट को सहारा देने के आरोपों से इनकार करता है. अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सेना के टॉप कमांडर और नाटो के अधिकारी जनरल जॉन डब्ल्यू निकोलसन जूनियर के मुताबिक मार्च से अब तक नाटो के हमलों में आईएस के 1,600 से ज्यादा लड़ाके मारे चुके है. हालांकि वह यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि तमाम हमलों के बावजूद अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट कमजोर नहीं पड़ रहा है. इस्लामिक स्टेट के खतरे के चलते तालिबान और अफगान सरकार भी धीरे धीरे करीब आ रहे हैं. खोग्यानी में तालिबान ने लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत दे दी है. इसके बदले सरकार अस्पताल और टीचरों का खर्च उठा रही है. कई इलाकों की तरह खोग्यानी में भी सरकार और तालिबान के सामने एक साझा दुश्मन है और वह है इस्लामिक स्टेट.
अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट की जड़े 2014 में नंगारहर प्रांत में जमी. कुछ अधिकारी कहते हैं कि अफगानिस्तान और अमेरिका ने पाकिस्तान के इशारों पर चलने वाले तालिबान से निपटने के लिए इस्लामिक स्टेट की सहायता की. वहीं एक दूसरे पक्ष का आरोप है कि इस्लामिक स्टेट को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी से मदद मिल रही है. कारण चाहे कोई भी हो, परिणाम एक ही है. अफगानिस्तान में आम नागरिक हिंसा का शिकार हो रहे हैं. तालिबान और इस्लामिक स्टेट के संघर्ष में लोग पिस रहे हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स से बात करते हुए नंगारहार प्रांत के गवर्नर मोहम्मद गुलाब मंगल ने कहा, "वे दोनों संसाधनों और इलाके के लिए लड़ रहे हैं. दोनों की विचारधारा एक ही है."
खोग्यानी के लोगों के मुताबिक इस्लामिक स्टेट के उग्रवादियों के पास ज्यादा अच्छे हथियार हैं. लड़ाई के मामले में भी वे तालिबान से ज्यादा कट्टर हैं. एक कबीले के मलिक माकी कहते हैं, "अगर आप एक अफगान लड़ाके को पेड़ से बांध दें, और फिर उससे कहें कि इस्लामिक स्टेट आ रहा है, तो वह भागने के लिए इतना जोर लगाएगा कि पेड़ जड़ से उखड़ जाएगा." लंबे वक्त तक लोगों को डराकर राज करने वाले तालिबान ने अफगानिस्तान में सैकड़ों हत्याएं की. तालिबान ने जिन लोगों के परिजनों को मारा, वे भी तालिबान से बदला लेने की फिराक में हैं. ऐसे कई कारण हैं जो अफगानिस्तान के संघर्ष को और पेंचीदा बनाते हैं.