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इस्लामी आतंकवाद के हमले रोकने में कितना सक्षम है जर्मनी?

मार्सेल फुर्स्टेनाउ
२५ जुलाई २०२२

राजनीतिक और धार्मिक चरमपंथ जर्मनी में लंबे समय तक लोकतंत्र के लिए एक खतरा रहा है. आतंकवाद रोधी केंद्र में पुलिस और खुफिया तंत्र का नेटवर्क इस्लामी चरमपंथी हमले को रोकने के लिए काम करता है, लेकिन यह कितने काम का है?

जर्मनी के क्रिसमस बाजार पर हुआ हमला अब तक का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला है
जर्मनी के क्रिसमस बाजार पर हुआ हमला अब तक का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हैतस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kappeler

19 दिसंबर, 2016 जर्मनी के ज्वाइंट काउंटर टेररिज्म सेंटर के लिए एक काला दिन साबित हुआ. यही वो दिन था जब अनीस आमरी नाम के एक आतंकवादी ने चोरी के एक ट्रक को बर्लिन के ब्राइटशाइडप्लात्ज के क्रिसमस बाजार में लोगों की भीड़ पर चढ़ा दिया.

12 लोगों की मौत हुई और 60 से ज्यादा लोग घायल हुए जिनमें कई बहुत गंभीर हालत में पहुंच गये. इस घटना के कई पीड़ित आज भी उसका दंश झेल रहे हैं. जर्मनी के लिहाज से यह सबसे बड़ा इस्लामी आतंकवादियों का हमला था.

इस कहानी का दुखद पहलू यह है कि हमलावर काफी लंबे समय से पुलिस की रडार पर था. संघीय अपराध पुलिस विभाग यानी बीकेए ने बहुत समय से उसे राजनीतिक हमलावर या खतरनाक इंसानों की सूची में डाल रखा था. जर्मन भाषा में इन्हें गेफेर्डर कहा जाता है और ये वो लोग समझे जाते हैं जो कभी भी हमला कर सकते हैं.

बर्लिन की सीनेट के नियुक्त किये विशेष जांच अधिकारी ने सुरक्षा प्रशासन की बहुत खराब रिपोर्ट दी. इसमें कहा गया, "हर वो चीज जो गलत हो सकती थी, वो गलत हुई."

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आतंकरोधी नेटवर्क

केंद्रीय गृह मंत्री नैंसी फेजर उस वक्त बर्लिन से बहुत दूर थीं, उन्होंने 2021 में मौजूदा जिम्मेदारी संभाली है. वह हेसे राज्य के विधानसभा में थी. अपनी नई भूमिका में आने के बाद उन्होंने बर्लिन के ज्वाइंट काउंटर टेररिज्म सेंटर यानी गीटीएजेड का दौरा किया. यह सेंटर खासतौर से इस्लामी आतंकवाद के मामलों से निपटता है.

यहां संघीय और राज्यों की 40 सुरक्षा एजेंसियां साथ मिल कर काम करती है. इतनी बड़ी संख्या की वजह यह है कि सभी 16 जर्मन राज्यों में अलग अपराध जांच विभाग और घरेलू खुफिया एजेंसियां है. हर दिन 40 एजेंसियों के प्रतिनिधि विशाल काफ्रेंस रूम में मुलाकात करते हैं और जर्मनी के मौजूदा खतरों पर चर्चा करते हैं.

जीएटीजेड के दौरे पर गईं गृह मंत्री नैंसी फेजरतस्वीर: Bernd von Jutrczenka/dpa/picture alliance

जर्मन गृह मंत्री ने नेटवर्किंग के इस तरीके को इस्लामी आतंकवाद से लड़ाई में "इमारत की सबसे अहम ईंट" करार दिया है. 2004 में इसके गठन के बाद अब तक इसने 21 हमलों को नाकाम करने में सफलता पाई है. गृह मंत्री का कहा है कि यह "एक बड़ी उपलब्धि है." हालांकि वो यह भी मानती हैं कि 11 दूसरे भी मामले हैं जिनमें अधिकारियों को बहुत देर हो गई. फेजर का कहना है, "इसका मतलब है कि खतरे का स्तर बहुत ज्यादा है."

गृह मंत्री भले ही जर्मन "सुरक्षा तंत्र" के आकलन से उत्साह में हों लेकिन दूसरे राजनेताओं का रुख ऐसा नहीं है. क्रिसमस बाजार पर हमले के पहले और बाद में हुई कई घटनाओं को देखते हुए लिए रुढ़िवादी सांसद स्टेफान हारबार्थ इस नतीजे पर पहुंचे हैं, "संघवाद इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक बाधा बन सकता है." हारबार्थ ने यह बात 2017 में खास जांच की अंतिम रिपोर्ट आने के बाद कही थी.

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इस्लामी चरमपंथ से लड़ाई

हारबार्थ अब कार्ल्सरुहे की संघीय संवैधानिक अदालत के प्रमुख हैं और ज्यादा केंद्रीय नियंत्रण देखना चाहते हैं. जर्मनी के पूर्व सांसद ने मांग की है, "खतरनाक लोगों से निपटने में हमें संघीय विभागों को ज्यादा शामिल करने की जरूरत है."

अपनी नयी भूमिका में उन्हें आतंकवाद से लड़ाई के मुद्दे से भी निपटना है. बार बार अदालत को सुरक्षा तंत्र और उस विधायिका से जूझना पड़ता है जो पुलिस और खुफिया सेवाओं का आधार है. इनमें पुलिस के अलावा संघीय खुफिया एजेंसी, बीएनडी और घरेलू खुफिया एजेंसियों के साथ ही संविधान की रक्षा करने वाले संघीय विभाग बीएफवी भी शामिल हैं.

जीएटीजेड एक नेटवर्सिंग की जगह है. यह सूचनाओं के लेनदेन का कोई बड़ा तंत्र नहीं जिसे इस काम का कानूनी अधिकार हो. संघीय गृह मंत्री फेजर का कहना है कि वह इस स्थिति को बदलने के बारे में सोच सकती हैं लेकिन सबसे जरूरी यह है कि सहयोग जारी रह सकता है. 

हालांकि एक स्पष्ट कानूनी आधार की कमी है और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ माथियास बेकर लंबे समय से इसकी आलोचना कर रहे है, "अब तक ऐसा कोई नहीं जिसका जीटीएजेड पर नियंत्रण हो." बेकर ने बर्लिन में हमले के पहले ही यह चेतावनी दी थी.

संघीय अपराध पुलिस ऑफिस यानी बीकेए की वेबसाइट पर जीटीएज को एक "सहयोग का मंच" कहा गया है. इसके मुताबिक "सभी उपयुक्त कर्मियों की विशेषज्ञता" जोड़ी जायेगी और "असरदार सहयोग" को संभव बनाया जाएगा. हालांकि व्यवहार में यह कभी कभी गलत हो सकता है और अनीस आमरी जैसे मामले ने दिखाया है कि इसकी नाकामी कितनी तकलीफदेह है.

उल्फ बायरमेयरतस्वीर: Uli Deck/dpa/picture alliance

जर्मन सुरक्षा बलों की आलोचना

पेशे से वकील और सोसायटी फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख उल्फ बायरमेयर जीएटीजेड को "जर्मन सुरक्षा तंत्र में पथभ्रष्ट विकास का लक्षण" मानते हैं. बायरमेयर ने बवेरियन कॉस्टीट्यूशन एक्ट के खिलाप संघीय संवैधानिक अदालत में शिकायत भी दर्ज कराई है. इस संदर्भ में उन्होंने जीएटीजेड और उसके कामकाज को भी मामला उठाया है. उनकी राय एक तरह से सच्चाई का ब्यौरा देती है कि यह एजेंसी क्यों क्रिसमस मार्केट का हमला नहीं रोक सकी. ऐसा इसलिए है क्योंकि, "क्षमताओं और जिम्मेदारियों के अत्यधिक विस्तार से खतरे को रोकने में पर्याप्त नुकसान है. पुलिस और खुफिया एजेंसियों की कई जिम्मेदारियों ने सूचना को व्यवस्थित रूप से फैला दिया." उन्होंने अपनी बात यह कह कर खत्म की "ढेर सारे रसोइये भोजन का स्वाद बिगाड़ देते हैं."

संघीय संवैधानिक अदालत में वह एक समय रिसर्च असिस्टेंट रहे हैं. अदालत को दिये बयान में बायरमेयर ने सुरक्षा विभागों के बीच काम के बंटवारे में अस्पष्टता के लिए उनकी आलोचना की. उनका कहना है कि अगर कई एजेंसियां "बहुत थोड़ी थोड़ी" जिम्मेदारी लेंगी तो वो खतरे का एक बहुत छोटा हिस्सा ही देखती हैं, "लेकिन तब कोई एजेंसी इन छोटे छोटे टुकड़ों को जोड़ कर वो किसी स्थिति की पूरी तस्वीर नहीं बनाती."

उस वक्त केंद्रीय आंतरिक मामलों के मंत्री रहे, थोमस दे मेजियेर ने सुझाव दिया था कि अनीस आमरी जैसे चरमपंथी से निबटने में हुई कई गलतियों के बाद जर्मन सुरक्षा तंत्र को ज्यादा केंद्रीकृत किया जाना चाहिए. हालांकि वह संघीय राज्यों के आगे प्रबल रूप में सामने नहीं आ सके. वास्तव में हालात जस के तस ही बने रहे.  

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