अफ्रीकी देश केन्या के एक गांव में दर्जनों परिवार रहते हैं लेकिन आदमी एक भी नहीं. अब इसी गांव से निकल रहा है कि औरतों को जमीन की मिल्कियत मिलने का रास्ता. केन्या में दो फीसदी से भी कम जमीन की पट्टी महिलाओं के नाम है.
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तीस साल पहले उत्तरी केन्या में रहने वाली जेन नोलमोंगन का जब एक ब्रिटिश सैनिक ने बलात्कार किया तो इसका पता चलने पर उनके पति ने उन्हें घर से निकाल दिया. इसके बाद वह सुरक्षित ठिकाने की तलाश करती हुई अपने बच्चों समेत एक ऐसे गांव में पहुंची, जिसे पूरी तरह महिलाएं चलाती हैं और जहां कोई आदमी नहीं आ सकता.
बीते तीन दशकों से सांबूरू काउंटी के उमोजा गांव में रह कर अपने आठ बच्चों को पालते हुए जेन ने खेत में काम किया. अब वह खेत आधिकारिक रूप से उनके नाम पर दर्ज होने जा रहा है, जो उनके पुराने जीवन में नहीं हो पाता.
केन्या में 98 फीसदी जमीनें केवल आदमियों के नाम पर हैं. ज्यादातर कबीलों में खेत और जमीन ही नहीं महिलाएं भी पहले पिता और फिर पति की संपत्ति समझी जाती हैं. अब 52 साल की हो चुकी जेन बताती हैं, "यह गांव ही हमारा सहारा रहा है. हमने अपनी जिंदगी सुधारने के लिए यहां मिल कर काम किया है और एक दूसरे को महिलाओं के अधिकार की महत्ता समझाई है."
1990 में सांबूरू महिलाओं के आश्रय के रूप में बसे उमोजा गांव में यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं से लेकर, घर से निकाली गई, संपत्ति या बच्चों से भी बेदखल की गई, बाल विवाह या खतने से खुद को बचा कर भागने वाली महिलाएं ठिकाना पाती हैं. अब इस काउंटी के प्रशासन ने इन महिलाओं को यहां की चरने वाली जमीन उनके नाम पर रजिस्टर कराने यानि टाइटल डीड की व्यवस्था की है. पहले से चली आ रही सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं को यह हक शायद कभी नहीं मिलता. अब यहां की महिलाएं आसपास के गांवों और समुदायों में जमीन को महिलाओं के नाम पर किए जाने के लिए प्रेरित कर रही हैं.
यहां आज भी होता है महिलाओं का खतना
फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफजीएम) या आसान भाषा में कहें तो महिला खतना पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोक के बावजूद दुनिया के कई देशों में यह एक हकीकत है. इसमें क्या होता है और यह कितने देशों में फैला हुआ है, चलिए जानते हैं.
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करोड़ों का खतना
दुनिया भर में लगभग 20 करोड़ महिलाओं और लड़कियों का खतना हुआ है. माना जाता है कि अफ्रीका में हर साल तीस लाख लड़कियों पर इसका खतरा मंडरा रहा है.
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कौन कौन प्रभावित
समझा जाता है कि तीस अफ्रीकी देशों, यमन, इराकी कुर्दिस्तान और इंडोनेशिया में महिला खतना ज्यादा चलन में है. वैसे भारत समेत कुछ अन्य एशियाई देशों में भी इसके मामले मिले हैं.
पुरानी बेड़ियां
औद्योगिक देशों में बसी प्रवासी आबादी के बीच भी महिला खतना के मामले देखे गए हैं. यानि नए देश और समाज का हिस्सा बनने के बावजूद कुछ लोग अपनी पुरानी रीतियों को जारी रखे हुए हैं.
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यहां होता है सबका खतना
जिन देशों में लगभग सभी महिलाओं को खतना कराना पड़ता है, उनमें सोमालिया, जिबूती और गिनी शामिल हैं. ये तीनों ही देश अफ्रीकी महाद्वीप में हैं.
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ऐसे होता है महिला खतना
महिला खतना कई तरह का होता है. लेकिन इसमें आम तौर पर क्लिटोरिस समेत महिला के जननांग के बाहरी हिस्से को आंशिक या पूरी तरह हटाया जाता है. कई जगह योनि को सिल भी दिया जाता है.
खतने की उम्र
लड़कियों का खतना शिशु अवस्था से लेकर 15 साल तक की उम्र के बीच होता है. आम तौर पर परिवार की महिलाएं ही इस काम को अंजाम देती हैं.
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खतने के औजार
साधारण ब्लेड या किसी खास धारदार औजार के जरिए खतना किया जाता है. हालांकि मिस्र और इंडोनेशिया जैसे देशों में अब मेडिकल स्टाफ के जरिए महिलाओं का खतना कराने का चलन बढ़ा है.
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धार्मिक आधार?
महिला खतने का चलन मुस्लिम और ईसाई समुदायों के अलावा कुछ स्थानीय धार्मिक समुदायों में भी है. आम तौर पर लोग समझते हैं कि धर्म के मुताबिक यह खतना जरूरी है लेकिन कुरान या बाइबिल में ऐसा कोई जिक्र नहीं है.
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खतने का मकसद
माना जाता है कि महिला की यौन इच्छा को नियंत्रित करने के लिए उसका खतना किया जाता है. लेकिन इसके लिए धर्म, परंपरा या फिर साफ सफाई जैसे कई और कारण भी गिनाए जाते हैं.
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विरोध की सजा
बहुत से लोग मानते हैं कि खतने के जरिए महिलाएं पवित्र होती हैं, इससे समुदाय में उनका मान बढ़ता है और ज्यादा कामेच्छा नहीं जगती. जो लड़कियां खतना नहीं करातीं, उन्हें समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जाता है.
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खतने के खतरे
महिला खतने के कारण लंबे समय तक रहने वाला दर्द, मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं, पेशाब का संक्रमण और बांझपन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कई लड़कियों की ज्यादा खून बहने से मौत भी हो जाती है.
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बड़ी कीमत
खतने के कारण उस महिला को मां बनने के समय बहुत सी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है. इसके कारण कई तरह की मानसिक समस्याएं और अवसाद भी हो सकता है.
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कमजोर कानून
बहुत ही अफ्रीकी देशों में महिला खतने पर प्रतिबंध है. लेकिन अकसर इस कानून को सख्ती से लागू नहीं किया जाता है. वहीं माली, सिएरा लियोन और सूडान जैसे देशों में यह कानूनी है.
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यूएन का प्रस्ताव
महिला खतने से कई अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन होता है. 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महिला खतने को खत्म करने के लिए एक प्रस्ताव स्वीकार किया था.
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हेनरी लेनायासा उस प्रशासनिक ईकाई के प्रमुख हैं जिसमें इमोजा गांव आता है. यहां महिलाओं में जमीन की मिल्कियत हासिल करने की पहल को वह "पूरे इलाके में बढ़ती जागरुकता का उदाहरण” बताते हैं. केन्या का कानून पहले से ही देश के हर नागरिक को संपत्ति का बराबर अधिकार देता है लेकिन परंपरागत रूप से वह पिता से केवल बेटों के नाम कर दिया जाता है, और महिलाओं के नाम पर कुछ नहीं आता. लेकिन जल्दी ही उमोजा की महिलाएं उस जमीन पर कानूनी रूप से हक पा सकेंगी, जिसे उन्होंने अपनी कई सालों की अपनी बचत और लोगों से मिली दान की रकम से खरीदा है.
स्वाहिली भाषा में 'उमोजा' का अर्थ है एकता. इसे रेबेका लोलोसोली नामकी महिला ने शुरु किया था, जब उन पर महिलाओं के खतने का विरोध करने पर आदमियों ने एक समूह ने हमला कर घायल कर दिया था. अपनी चोट का इलाज कराते हुए अस्पताल में ही उन्हें ऐसा गांव बनाने का ख्याल आया जहां आदमियों का आना ही मना हो. तब 15 महिलाओं से शुरु हुए गांव में एक समय पर 50 से भी अधिक परिवार रह रहे थे. यहां घर से लेकर स्कूलों का तक का निर्माण भी महिलाओं ने खुद ही मिल कर किया है. महिलाएं शहद और हाथ से बनी चीजें बेचकर अपना और परिवार का गुजारा करती आई हैं.
जेन ने तो बच्चों को पढ़ा लिखा कर इतना काबिल बना दिया है कि उनका एक बेटा अब पुलिस में नौकरी करता है और एक बेटी पत्रकार बन कर दूसरों को भी उनके हक के बारे में जागरुक कर रही है.