कश्मीर घाटी में नवंबर के महीने में सबसे ज्यादा शांदियां होती हैं. लेकिन रियाज डार की बहन की शादी नहीं पाई. इसकी वजह है सेब. जानिए कैसे?
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रियाज कश्मीर को शोपियां इलाके में रहते हैं जिसे सेब का कटोरा कहा जाता है. लेकिन इस बार समय से पहले और अत्यधिक बर्फबारी ने अच्छी फसल के उनके सपने पर पानी फेर दिया. रियाज के पास सेब के 100 पेड़ हैं लेकिन नवंबर के महीने में इनमें 60 पेड़ भारी बर्फबारी ने बर्बाद कर दिए. इससे रियाज को भारी नुकसान उठाना पड़ा है और बहन की शादी भी टालनी पड़ी.
रियाज डार की तरह दूसरे सेब किसानों का हाल भी बहुत खराब है. हिरपोरा गांव में रहने वाले रियाज कहते हैं, "अगर आने वाले सालों में मौसम ठीक भी रहता है तो मैं पहले के मुकाबले सिर्फ 40 फ़ीसदी सेब ही पैदा कर सकूंगा.”
वह कहते हैं कि बेमौसम बर्फबारी से इस साल किसानों को 60 फीसदी तक कम आमदनी होगी. जब तक रियाज नए पेड़ नहीं लगाएंगे या फिर खराब हुए पेड़ों को ठीक नहीं करेंगे, उनके हालात सुधरने वाले नहीं हैं.
पतझड़ के मौसम में हुई भारी बर्फबारी ने कश्मीर के मशहूर सेब, चेरी, अखरोट और बादाम के बागों को बर्बाद कर दिया है. लेकिन सबसे बुरा हाल सेब किसानों का हुआ है. उनकी ना सिर्फ इस सीजन की फसल, बल्कि पेड़ खराब होने से अगले सीजन की फसल भी खराब हो गई है.
जम्मू-कश्मीर राज्य के हॉर्टिकल्चर निदेशक मंजूर अहमद कादरी का कहना है कि 15 लाख सेब के पेड़ बरबाद हुए हैं, जो इस इलाके के लिए बहुत बुरी खबर है क्योंकि पांच लाख परिवारों की रोजी रोटी सेब की फसल से ही चलती है और राज्य की जीडीपी में सेब की सात फीसदी की हिस्सेदारी है.
अधिकारी मौसम में हो रहे बदलाव को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं, जिससे उनके मुताबिक इस क्षेत्र में बहुत सी समस्याएं पैदा हो रही हैं.
अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक ढवाले कहते हैं, "सेब के एक पेड़ को तैयार होने में दस साल लगते हैं और इस असामान्य और भारी बर्फबारी ने किसानों की सारी मेहनत बरबाद कर दी है."
अशोक ढवाले यह भी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से जैसे जैसे मौसम बदलेगा, इससे किसानों की आय और कम होती जाएगी क्योंकि उनकी आय पूरी तरह सेब की खेती पर निर्भर है.
याद करके ये फल जरूर खाएं
आखिरी बार आपने सेब कब खाया था? फलों को लेकर अपने आप से यह सवाल कीजिए क्योंकि जो चीजें फलों में छुपी हैं वो तड़केदार खाने में नहीं मिलेंगी.
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आंवला
आंवला बेहद गुणकारी फल है. इसमें नींबू से 17 गुना ज्यादा विटामिन सी होता है. आंवला पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है, खून को साफ करता है और त्वचा एवं बालों का भी ख्याल रखता है. आंवला शरीर को ठंडा भी करता है.
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आड़ू
आड़ू में ज्यादातर जरूरी पोषक तत्व होते हैं. आड़ू तंत्रिकाओं और मांसपेशियों को फायदा पहुंचाता है. आड़ू के छिलके में एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर भरे होते हैं.
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अनानास
अनानास, ब्रोमेलैन का खजाना है. ब्रोमेलैन एंटी इंफ्लेमैटरी एंजाइम है. यह सूजन और घाव के खिलाफ कारगर होता है. अनानास का नियमित सेवन हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा कम करता है.
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अंगूर
एंटीऑक्सीडेंट, पोटेशियम और आयरन, अंगूर इन सबसे भरा हुआ रसीला फल है. अंगूर मांसपेशियों में मरोड़ और एनीमिया के खिलाफ भी कारगर होता है.
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कीवी
विटामिन सी और ई से भरपूर कीवी कैंसर से बचाव कर सकता है. आंखों के लिए भी यह बहुत अच्छा फल है. इसमें कम कैलोरी होती है और बहुत ज्यादा फाइबर मौजूद रहता है.
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आम
फलों का रसीला राजा आम बीटा कैरोटीन से भरा होता है. बीटा कैरोटीन शरीर में दाखिल होने के बाद विटामिन ए में बदल जाता है और हड्डियों और प्रतिरोधी क्षमता को बेहतर बनाता है. आम से संतरे से ज्यादा विटामिन सी होता है.
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सेब
एक आम सेब में करीब 80 कैलोरी होती है लेकिन इस फल में भरपूर क्वेरटेसिन होता है. क्वेरटेसिन एक ताकतवर एंटीऑक्सीडेंट है जो मस्तिष्क की कोशिशकाओं को टूटने से रोकता है. नियमित एक सेब खाने वाले वयस्कों को हाई बीपी होने की संभावना कम होती है,
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अनार
अनार में पोटेशियम भरपूर होता है. 50 मिलीलीटर अनार का जूस रोज पीने से दिल फिट रह सकता है. लेकिन कुछ दवाओं के साथ यह रिएक्शन कर सकता है. दवा लेते वक्त डॉक्टर से जरूर इसकी जानकारी ले लें.
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केला
फाइबर और पोटेशियम से लबालब केला तुरंत ऊर्जा देता है. केले में कोई फैट या लवण नहीं होता. केला मांसपेशियों में जरूरी तरलता बनाये रखता है.
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ब्लूबेरी
ब्लूबेरी शरीर पर बढ़ती उम्र के असर को कम करती है. यह फल उम्र के साथ मांसपेशियों में होने वाले विघटन को धीमा करता है. दिमाग के लिए भी यह बहुत अच्छा फल है.
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यही हाल भेड़ और बकरियां पालने वालों का भी है. पुंछ जिले में 50 वर्षीय मोहम्मद रजाक अपनी भेड़-बकरियों को चरा रहे थे, कि अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो गई, जिससे उनके 100 से ज्यादा जानवर मर गए. मोहम्मद रजाक को सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन फंड से 30 हजार रुपये से ज्यादा का मुआवजा मिला. लेकिन मोहम्मद रजाक का कहना है कि यह काफी नहीं है क्योंकि नुकसान इससे लगभग दोगुना हुआ है.
शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय किसानों को सलाह मशविरा दे रहा है कि कैसे वे अपने पेड़ों को मौसम की मार से बचा सकते हैं. राज्य के हॉर्टीकल्चर विभाग ने भी अपनी वेबसाइट पर ऐसे वीडियो डाले हैं, जिनकी मदद से किसान अपने बर्बाद पेड़ ठीक कर सकते हैं.
ग्रीनहाउस में वनीला की खेती
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अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक ढवाले का कहना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से भी कश्मीर के किसानों को ज्यादा मदद नहीं मिली है. अगस्त में हुए एक सर्वे के मुताबिक ज्यादातर किसानों को इसके बारे में पता ही नहीं है. कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने सरकार से कहा है कि सेब और केसर के जरूरतमंद किसानों के बीमा को जल्दी मंजूरी मिलनी चाहिए.
इस बीच, कम पैदावार के कारण भारत में सेब के दाम 20 फीसदी बढ़ गए हैं. भारत में सेब की कुल जरूरत का 80 फीसदी जम्मू कश्मीर ही पूरा करता है.
बदलते मौसम का मतलब है कि कश्मीर में फरवरी और मार्च में ज्यादा बर्फ पड़ेगी जो चावल और मक्का जैसी फसलों के लिए अच्छी खबर है. लेकिन इतनी देर तक बर्फ पड़ना चेरी की फसल के अच्छा नहीं है.
कश्मीर में बदलते मौसम की वजह से और भी कई बदलाव हो रहे हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर के शकील अहमद रोमशू कहते हैं कि राज्य में पड़ने वाली कुल बर्फबारी घट गई हैं और बारिश ज्यादा होने लगी है. इसकी वजह से गर्मी बढ़ रही है.
वह कहते हैं कि पहले लोग इस इलाके में पंखें भी इस्तेमाल नही करते थे, लेकिन अब एसी भी चलाया जा रहा है: " जंगलों में आग लगने के मामले भी बढ़ रहे हैं.
एन राय/एके (रॉयटर्स)
लीची वाले बिहार में अब स्ट्रॉबेरी की मिठास
लीची और आम के लिए विख्यात बिहार अब स्ट्रॉबेरी भी उगा रहा है. ठंडे इलाकों में उगने वाले इस फल के बिहार जैसे वातावरण में उगने की कल्पना नहीं की थी लेकिन वैज्ञानिकों की कोशिश और किसानों के हौसले ने इसे मुमकिन कर दिखाया है.
तस्वीर: Bihar Agriculture University
बिहार में स्ट्रॉबेरी
भारत में हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और कुछ दूसरे ठंडे इलाकों में स्ट्रॉबेरी की खेती हो रही थी. बिहार के किसानों और कृषि विश्वविद्यालय सबौर के वैज्ञानिकों ने इसे अपने इलाके उगा लिया है. यहां नवंबर से फरवरी तक का मौसम ठंडा रहता है और इसी मौसम में स्ट्रॉबेरी उगाई जा रही है.
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अक्टूबर में शुरुआत
अक्टूबर में इसके लिए पौधे लगाने के साथ काम शुरू होता है. दिसंबर तक पौधे तैयार होते हैं और फिर उनमें फूल आने शुरू हो जाते हैं. इसके बाद के दो तीन महीनों में इनसे फल निकलते हैं. गर्मी आने के साथ ही पौधे सूख जाते हैं इसलिए हर साल नए पौधे लगाने पड़ते हैं.
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हर साल नए पौधे
यूरोपीय देशों और दूसरे ठंडे इलाकों या फिर ग्रीनहाउस में हो रही खेती का यही लाभ है कि यहां हर साल नए पौधे लगाने की जरूरत नहीं होती. एक बार पौधा लगाइए तो कई कई साल तक स्ट्रॉबेरी पैदा होती रहती है. जर्मनी में स्ट्रॉबेरी की कुछ किस्मों से तो छह साल तक फल निकलने का दावा किया जाता है.
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स्वीट चार्ली, कामरोजा, विंटरडॉन, नबीला
बिहार कृषि विश्वविद्यालय में स्ट्रॉबेरी की विशेषज्ञ डॉ रूबी रानी ने बताया कि कई सालों तक 10-12 किस्मों पर प्रयोग किए और फिर देखा कि कुछ किस्में हैं जो यहां उगाई जा सकती हैं. बिहार में उपजाई जा रही स्ट्रॉबेरी की प्रमुख किस्मों में स्वीट चार्ली, कामरोजा विंटरडॉन, नबीला, फेस्टिवल शामिल हैं.
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गर्मी और बारिश का संकट
तमाम कोशिशों के बावजूद पौधों को अप्रैल के बाद जीवित रखने में काफी मुश्किल हो रही है. गर्मी और भारी बारिश के कारण पौधे नष्ट हो जाते हैं, इस वजह से किसानों को हर साल ठंडे इलाकों से पौधे मंगाने पड़ते हैं और फिर उन्हीं को दोबारा खेत में लगाया जाता है.
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पोषक तत्वों से भरपूर
दिल के आकार वाली खूबसूरत स्ट्रॉबेरी दिल के साथ ही ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने और कैंसर को दूर रखने में कारगर है. इसके अलावा कई पोषक तत्वों की मौजूदगी इसे बेहद फायदेमंद बनाती है. यही वजह है कि दुनिया भर में इसकी बड़ी मांग है.
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मुश्किलों से पार पाई
मुश्किलें कई थीं लेकिन वैज्ञानिकों की जुटाई जानकारी और किसानों की मेहनत के बलबूते यह संभव हुआ. फिलहाल भागलपुर, औरंगाबाद, और आसपास के कई इलाकों में करीब 25-30 एकड़ में स्ट्रॉबेरी कारोबारी तरीके से उगाई जा रही है. इसके अलावा छोटे स्तर पर भी कई इलाके में इसे उगाया जा रहा है.
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आस पास के इलाकों में भारी मांग
बिहार में उपजी स्ट्रॉबेरी की आसपास के इलाकों में काफी मांग है. पटना, कोलकाता और बनारस के बाजारों में ही सारी पैदावर खप जाती है. यहां स्टोरेज की सुविधा भी नहीं है इसलिए ज्यादातर स्ट्रॉबेरी तुरंत ही बेच दी जाती है. वैज्ञानिक इन्हें प्रोसेसिंग के जरिए लंबे समय तक रखने की तकनीक पर भी काम कर रहे हैं.
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नगदी फसल
यहां किसानों को एक किलो स्ट्रॉबेरी के लिए 200 से 250 प्रति किलो की कीमत मिल रही है. नगदी फसल की भारी मांग को देख कर आसपास के इलाकों के किसान काफी उत्साहित हैं. स्ट्रॉबेरी की खेती में सफलता देख उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों से भी यहां लोग जानकारी के लिए आ रहे हैं.
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लीची नहीं स्ट्रॉबेरी
बिहार बासमती धान और अच्छे गेहूं के साथ ही आम और लीची जैसे फलों के लिए विख्यात है हालांकि बदलते वक्त की मार इन पर भी पड़ी है और किसानों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. स्ट्रॉबेरी ने लोगों को एक नयी फसल उगाने का रास्ता दिखा दिया है.