टाइटन द्वारा बनाया गया यह वीडियो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर वायरल हो गया. देखिए किस अनोखे अंदाज में सोच बदलने की अपील की गयी है.
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दफ्तरों में अक्सर देखा जाता है कि महिलाओं की तरक्की पर विवाद उठ जाता है. ऐसा केवल भारत में ही नहीं, दुनिया भर में होता है. महिला के बेहतर ओहदे पर पहुंचने का श्रेय उसकी मेहनत को कम और खूबसूरती को ज्यादा दे दिया जाता है. ऐसा तब है जब कामकाजी महिलाओं को घर परिवार के साथ संतुलन बना कर चलना होता है और पुरुषों की तुलना में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसके बावजूद आंकड़े दिखाते हैं कि ना केवल विकासशील देशों में, बल्कि विकसित देशों में भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन मिलता है.
ऐसे में यह वीडियो लोगों की सोच पर सवाल खड़े करता है. एक बोर्ड मीटिंग के दौरान जब इस बात पर चर्चा होने लगती है कि "किरण" की सिफारिश की जा रही है, तो कमरे में बैठे हर व्यक्ति की सोच कहां कहां तक जाती है, देखें इस वीडियो में. वीडियो का क्लाइमैक्स आपके चेहरे पर मुस्कराहट भी लाएगा और शायद आप खुद से सवाल भी करने लगें कि बाकियों की ही तरह, क्या आप भी वही नहीं सोच रहे थे.
कामकाजी मांओं की मुश्किलें
कामकाजी महिलाओं के जीवन में मातृत्व एक निर्णायक मोड़ होता है. कई बार मां की जिम्मेदारियों के चलते पेशवर जिम्मेदारियां पूरी कर पाना असंभव हो जाता है और नौकरी छोड़ने का ही विकल्प रह जाता है. ऐसे कीजिए इस चुनौती को पार.
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जानकारी
गर्भधारण के साथ ही महिलाओं के लिए करियर संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है. वजन बढ़ना, सूजन, उल्टियां और ना जाने कितनी स्वास्थ्य समस्याएं लगी रहती हैं. ऐसे में अपनी संस्था, कंपनी या नौकरी देने वाले को अपनी कठिनाईयों के बारे में जानकारी देनी चाहिए.
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जिम्मेदारी
कंपनी और अपने बॉस को जानकारी देना इसलिए भी जरूरी है ताकि वह समय रहते आपके लिए छुट्टियों की योजना बना सके और यह भी सोच सके कि उस दौरान काम कैसे चलाना है. ध्यान रखें कि जिस तरह कंपनी की आपके प्रति कुछ जिम्मेदारी है, आप की भी उसके हित के प्रति जवाबदेही है.
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रेस में बने रहें
दुनिया की 500 सबसे बड़ी कंपनियों के प्रमुखों में कुछ ही महिलाएं हैं और विश्व के 197 राष्ट्रप्रमुखों में केवल 22 महिलाएं. किसी भी क्षेत्र में टॉप स्तर पर इतनी कम महिलाओं के होने का कारण महिलाओं का इस रेस से बहुत जल्दी बाहर होना है, जो कि सबसे अधिक मां बनने के कारण होता है.
कामकाजी महिलाओं के जीवन में कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अवरोध आते हैं. गहरे बसे लैंगिक भेदभाव से लेकर यौन उत्पीड़न तक. ऐसे में घबरा कर रेस छोड़ देने के बजाए इन रोड़ों को बहादुरी से हटाते हुए आगे बढ़ने का रवैया रखें. अमेरिकी रिसर्च दिखाते हैं कि पुरुषों को उनकी क्षमता जबकि महिलाओं को उनकी पूर्व उपलब्धियों के आधार पर प्रमोशन मिलते हैं.
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सपोर्ट नेटवर्क
एक ओर बाहर के रोड़ हैं तो दूसरी ओर कई महिलाएं अपने मन की बेड़ियों में कैद होती हैं. समाज की उनसे अपेक्षाओं का बोझ इतना बढ़ जाता है कि वे अपनी उम्मीदें और महात्वाकांक्षाएं कम कर लेती हैं. आंतरिक प्रेरणा के अलावा अपने आस पास ऐसे प्रेरणादायी लोगों का एक सपोर्ट नेटवर्क बनाएं जो मातृत्व, परिवार और करियर की तिहरी जिम्मेदारी को निभाने में आपका संबल बनें.
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पार्टनर की भूमिका
कामकाजी मांओं के साथ साथ उनके पति या पार्टनर को भी घर के कामकाज में बराबर का योगदान देना चाहिए. परिवार को समझना चाहिए कि महिला के लंबे समय तक वर्कफोर्स में बने रहने से पूरा परिवार लाभान्वित होता है. अपनी पूरी क्षमता और समर्पण भाव के साथ किया गया काम हर महिला की सफलता सुनिश्चित कर सकता है. जरूरत है बस रेस पूरी करने की.