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ईमानदार मुंबई

३० सितम्बर २०१३

खोया बटुआ मिल पाना मुश्किल होता है, लेकिन, बटुआ मुंबई शहर में गिर जाय तो आप इसके मिलने की उम्मीद कर सकते हैं. इसी आधार पर सबसे ज्यादा ईमानदार शहरों की सूची बनी है. दुनिया के 16 ईमानदार शहरों में मुंबई दूसरे नंबर पर है.

तस्वीर: dapd

सर्वे करने वाली रीडर डाइजेस्ट पत्रिका ने मुंबई, न्यू यॉर्क और लंदन सहित दुनिया के 16 बड़े शहरों के प्रमुख स्थानों पर बटुआ गिरा कर देखा. इसमें परिवारिक तस्वीरें, फोन और पते की जानकारियां के अलावा लगभग तीन हजार रुपए रखे गए थे. हर जगह 12 बार भरे हुए बटुए को गिराया गया. ईमानदारी की मिसाल कायम करते हुए फिनलैंड के शहर हेलसिंकी में लोगों ने 11 बार बटुआ वापिस लौटा दिया. इस तरह से यह शहर दुनिया का सबसे ईमानदार शहर करार दिया गया है. दूसरे स्थान पर मुंबई रहा जहां 12 में से 9 लोगों को उनके खोये हुए बटुए वापस लौटाए गए. इस सर्वे में पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन की ईमानदारी सबसे कमजोर साबित हुई. यहां 12 में से सिर्फ एक बार बटुआ वापस लौटाने की घटना हुई.


मुंबई की ईमानदारी को बेमिसाल बताते हुए टैक्सी ड्राईवर अब्दुल्ला कहते हैं कि, उनके सामने भी ऐसे अवसर आये हैं जब उन्होंने लोगों के मोबाइल,पर्स या दूसरे सामान लौटाए हैं. अब्दुल्ला के अनुसार उनके साथी ड्राईवर भी ऐसा करते हैं.

तस्वीर: picture alliance / AP Photo

इस सर्वे से यह भी पता चलता है कि ईमानदारी का गरीबी और अमीरी से कोई संबंध नहीं है. डीडब्ल्यू से बात करते हुए अधिकांश लोगों ने इस तथ्य को स्वीकार किया. टैक्सी ड्राईवर फुरकान अहमद, एक बड़ा सवाल उठाते हुए कहते हैं, “गरीब वर्ग हमेशा से ईमानदार रहा है, लेकिन उसे अपनी ईमानदारी साबित करने में काफी मुश्किल आती है.”
यकीन नहीं होता
बहुत से मुंबईकरों को इस सर्वे पर यकीन नहीं होता. सुजीत घाटगे के अनुसार इस जमाने में ईमानदारी की बात बेमानी है. सर्वे के नतीजों पर संदेह जताते हुए सुजीत कहते हैं कि, यहां फोन खो जाने पर नहीं मिलता बटुआ क्या मिलेगा?

सॉफ्टवेयर इंजीनियर गिरधर पटेल के अनुसार इस शहर में लोगों के बीच आपसी भरोसे की कमी है. यहां एक आदमी दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखता है. गिरधर पटेल का कहना है, "बटुआ वापसी के पीछे ईमानदारी कम अविश्वास ज्यादा है. मुसीबत की आशंका के चलते कोई किसी का सामान नहीं रखना चाहता." कुछ इसी तरह का तर्क देते हुए प्रबंधन की पढाई कर रहे विशाल कहते हैं, "हर प्रमुख जगह पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं. 3000 रूपये के लिए कोई मुसीबत मोल नहीं लेगा."
फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले रामनारायण का मानना है कि, नैतिक पतन के इस दौर में ईमानदारी का कोई मोल नहीं है. वे कहते हैं,"मै कई बार गलती से अपने ग्राहकों को ज्यादा पैसा लौटा देता हूं, मुझे याद नहीं पड़ता आखिरी बार कब मुझे अपना पैसा वापिस मिला है.इसके उलट यदि भूलवश मै पैसा कम देता हूं तो लोग चिल्लाने लगते हैं."

तस्वीर: Hamid Khosrozadeh

ईमानदारी परखने के पैमाने पर सवाल
मुंबई के फोर्ट इलाके में अपनी दुकान चलाने वाले अब्दुल रज्जाक को ईमानदारी परखने के पैमाने पर ऐतराज है. उनका कहना है कि,सिर्फ कुछ अवसरों पर खोये बटुए की वापसी से शहर की ईमानदारी साबित नहीं होती. अगर शहर के लोग इतने ही ईमानदार हैं तो यहां ये सारी अव्यवस्था क्यों है ? गरीब मरीजों को ईलाज के लिए क्यों भटकना पड़ता है? वह आगे कहते हैं कि, "गिरती ईमारते और बदहाल सड़कें इसी शहर के बेईमान लोगों की उपज हैं."
मुंबई में पले बढे 28 वर्षीय व्यापारी हरीश शाह को मुंबई की ईमानदारी पर गर्व है. उनका कहना है कि हमारे व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा बहुत है इसके बावजूद ज्यादातर लोग ईमानदार हैं. हरीश के अनुसार महज बटुओं को लौटा देना ईमानदारी नहीं कही जा सकती.
शिक्षाशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं कि, ईमानदारी की परिभाषा तय करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि लोग यहां अपने कर्तव्य के प्रति कितने सजग या ईमानदार हैं? हो सकता कि, एक व्यक्ति सड़क पर गिरा हुआ बटुआ भले ना उठाए पर वही व्यक्ति किसी से रिश्वत ले सकता है, उसका काम करने के बदले चाय-पानी के पैसे मांग सकता है.
ईमानदारी से ही सबका भला
अब्दुल रज्जाक का मानना है युवा वर्ग, ईमानदारी की अहमियत नहीं समझता.जल्दी सफलता की चाह में मूल्यों से समझौता करता है.बेईमानी और कुटिलता को "स्मार्टनेस" का नाम देकर इस पर गर्व भी करता है. उनका मानना है कि अगर हर आदमी अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार हो जाय तो शहर की समस्याएं अपने आप खत्म हो जाय. फोर्ट ईलाके में दुकान चलाने वाले ठाकुर भंडारी का भी यही मानना है.वे कहते हैं कि, अगर हर व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी के प्रति सजग रहे तो बेईमानी का जन्म ही नहीं होगा. भ्रष्टाचार को सामाजिक तनाव का कारण बताते हुए मीना ताई कहती हैं कि, इससे मुंबई में भाईचारे की परंपरा को नुकसान पहुंच रहा है. आठ सदस्यों वाले परिवार की मुखिया मीना ताई कहती हैं “जरूरत से ज्यादा की चाह लोगों को बेईमान बना रही है.”

रिपोर्ट: विश्वरत्न,मुंबई

संपादनः एन रंजन

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