ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन यूरोप में सुधार चाहते हैं लेकिन यूरोपीय संघ धीरे धीरे राजनीतिक संकट की ओर फिसल रहा है. डीडब्ल्यू के बैर्न्ड रीगर्ट का कहना है कि ईयू में संशय बढ़ रहा है और सुधार की इच्छाशक्ति घट रही है.
विज्ञापन
पोलैंड, ब्रिटेन, स्पेन और फिनलैंड जैसे देशों में यूरोपीय संघ पर संशय रखने वालों को हाल के चुनावों में मिली जीत से सबको यह साफ हो जाना चाहिए कि यूरोपीय संघ के भीतर कई समस्याएं सिर उठा रही हैं जो आने वाले समय में और प्रबल हो सकती हैं. इसके संकेत कई देशों और कई कारणों से मिलने लगे हैं. ईयू के केंद्र में स्थित जर्मनी, नीदरलैंड, बेल्जियम, लक्जेमबर्ग और फ्रांस के कुछ हिस्सों में सरकारें अब भी चाहती हैं कि सब कुछ पहले जैसा ही चलता रहे. लेकिन केवल चाहना भर काफी नहीं होगा.
दाएं और बाएं से दबाव
ग्रीस की सत्तारूढ़ उग्र वामपंथी पार्टी पर दिवालिया होने और यूरोजोन से बाहर निकलने का खतरा बना हुआ है. ब्रिटेन में ईयू में बने रहने को लेकर जनमत संग्रह का नतीजा कुछ भी हो सकता है. स्पेन और पुर्तगाल में बढ़ते वामपंथी आंदोलनों के कारण ईयू की नीतियों के रूढ़िवादी समर्थकों पर दबाव बन रहा है और पोलैंड के नए राष्ट्रपति के मन में ब्रिटेन की ही तरह ईयू को लेकर अपने तमाम संशय हैं.
पहली बार फिनलैंड और हंगरी में भी ऐसी शक्तियां सत्ता में आई हैं, जिन्हें ईयू पर बहुत भरोसा नहीं. केवल इटली के सोशलिस्ट प्रधानमंत्री ही यूरोस्केप्टिक ताकतों को सत्ता से बाहर रखने में सफल रहे हैं. ऐसे में दाएं और बाएं दोनों पक्षों से यूरोपीय संघ में पुराने भरोसे की जगह अविश्वास लेता जा रहा है.
और यूरोप?
नक्शे पर देखने पर जर्मनी चारों ओर से घिरा लगता है. चांसलर अंगेला मैर्केल और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद ने अगले शिखर भेंट में मौद्रिक संघ यूरोजोन के 19 सदस्यों के बीच और ज्यादा सहयोग बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. शायद दो साल पहले यूरो संकट के समय यूरो मुद्रा वाले सभी देशों ने इसे सहजता से ही मान लिया होता, लेकिन अब कोई इसके बारे में सुनना भी नहीं चाहेगा.
यूरोपीय संघ में बड़े स्तर पर सुधार लाने की राह आसान नहीं क्योंकि आलोचकों की मांगें और उनकी दलीलें बहुत अलग अलग हैं. ब्रिटेन को कम यूरोप चाहिए और वे कम से कम रकम अदा करना चाहते हैं. वे मानते हैं कि उन्हें ईयू की जरूरत नहीं. पोलैंड और स्पेन को ईयू से फायदा पहुंच रहा है और उनकी अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आ रही है. इसके बावजूद लोगों को यूरोप से कई शिकायतें हैं. दक्षिण के राष्ट्र जर्मनी के साथ और गहरा सहयोग चाहते हैं, जिसका अर्थ ज्यादा पैसे पाना भी है. लेकिन ऐसा करने को जर्मनी अभी तैयार नहीं.
राजनीतिक गर्त?
ऐसे आधारभूत सुधार ला पाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, जिससे ब्रिटेन, स्पेन, ग्रीस, पोलैंड और जर्मनी सब संतुष्ट हो जाएं. सबसे संभावित उपाय तो यह लगता है कि मौजूदा संधियों को और सुधारने और मजबूत बनाने की कोशिश की जाए. कम से कम तब तक, जब तक 2017 में फ्रांस में अगले राष्ट्रपति चुनाव नहीं हो जाते.
उस वक्त लोकलुभावन दक्षिणपंथी और यूरोप-विरोधियों के लिए एक निर्णायक मौका होगा. अगर फ्रांस पूरी मजबूती से यूरोपीय एकता में संशय रखने वालों के कैंप में जा पड़ता है तो इसका अर्थ होगा 60 साल पुराने एक विकासशील गठबंधन का अंत. इसीलिए, जर्मनी को कुछ करना ही पड़ेगा. इस पर गोल मोल रवैया अपनाने से कुछ नहीं होगा.
बैर्न्ड रीगर्ट/आरआर
यूरोप के प्रेरणास्पद जंगल
24 मई यूरोपीय पार्क दिवस के रूप में मनाया जाता है. वन संरक्षण का एक अहम हिस्सा हैं यूरोप के संरक्षित इलाके, जहां प्रकृति के अजूबों को संभाल कर रखा जाता है.
तस्वीर: imago/blickwinkel
ट्रीग्लाव: ऑर्किड और एडेलवाइस
माउंट ट्रीग्लाव के नाम पर ही स्लोवेनिया के एकलौते राष्ट्रीय उद्यान का नाम पड़ा है. ट्रीग्लाव शब्द का अर्थ है तीन सिरों वाला. ये नाम कैसे पड़ा इसको लेकर कई कहानियां हैं. कुछ लोग मानते हैं कि किसी ओर से भी देखने पर इस पहाड़ी में तीन चोटियां दिखाई देती हैं. कई दूसरे मानते हैं कि एक स्वालिक देवी के नाम पर ही पहाड़ी का यह नाम पड़ा, जिनका सिंहासन पहाड़ की चोटी पर है.
तस्वीर: Triglav National Park
बियालोवीत्सा: यूरोप के सबसे पुराने जंगल
यह राष्ट्रीय पार्क कई शताब्दियों तक पोलिश और फिर रूसी सम्राटों के लिए आरक्षित शिकारगाह रहा. बियालोवीत्सा नेशनल पार्क अब यूरोप का अंतिम बचा आदिम तराई वाला जंगल है. यहां पाए जाने वाले बाइसन के अंधाधुंध शिकार के कारण 20वीं सदी के प्रारंभ में ही वे विलुप्त हो गए. इन इलाकों में उन्हें दुबारा लाकर बसाया गया है.
तस्वीर: Mateusz Szymura
सैक्सन स्विट्जरलैंड: जर्मन रूमानियत
जर्मनी और चेक गणराज्य की सीमा पर स्थित है सैक्सन स्विट्जरलैंड नेशनल पार्क. अगर आप भी सृजनात्मक प्रेरणा की तलाश में हों, तो निकल पड़िए उसी पग पर जिसे पहले कई मशहूर चित्रकार तय कर चुके हैं. इसे "मालरवेग" यानि चित्रकारों का रास्ता कहा जाता है, जो करीब 112 किलोमीटर लंबा बेहद खूबसूरत मार्ग है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
एटना: राक्षस वाले पहाड़
ग्रीक पौराणिक कथाओं में टाइफोन नाम के एक शैतान का जिक्र आता है जिसने देवताओं के राजा जियुस से युद्ध किया था. जियुस ने इस राक्षस को माउंट एटना में ही कैद कर दिया. यह आज भी एक सक्रिय ज्वालामुखी है, जिससे जब जब लावा फूटता है लोग टाइफोन के गुस्से को याद करते हैं. मगर असल में लावे के कारण आसपास की धरती काफी उपजाऊ हो गई है और यहां खूबसूरत लैंडस्केप हैं.
तस्वीर: Reuters
प्लिटवीत्से झील: विनेटू फिल्मों की पृष्ठभूमि
हर साल दस लाख से भी अधिक सैलानी क्रोएशिया की इस प्लिटवीत्से नेशनल पार्क को देखने पहुंचते हैं. यहां 16 झीलों का एक जाल सा बिछा है और इसमें चूना पत्थर की प्राकृतिक सीढ़ियां बन गई हैं. यहां काऊब्वॉय की कहानियों वाली कई विनेटू फिल्मों की शूटिंग की गई है. ऐसी ज्यादातर फिल्में प्रसिद्ध जर्मन लेखक कार्ल माय की किताबों पर आधारित हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Schröder
टाट्रा: जहां भालू करते हैं जंगल का पीछा
टाट्रा पर्वत श्रृंखला का विस्तार पोलैंड से लेकर स्कोवाकिया के नेशनल पार्कों तक है. यहां के घने जंगल और अल्पाइन घास के मैदान ब्राउन बीयर, लिंक्स, भेड़िये, मारमोट और भी कई तरह के जीवों का निवास स्थान है. यहां पाए जाने वाले स्पॉटेड गरुड़ पक्षी अपनी ऊंची उड़ानों में इलाके का सबसे शानदार नजारा देख पाते होंगे.
कवि वॉल्टर स्कॉट ने ट्रोसाख्स में ही अपनी मशहूर कविता "लेडी इन द लेक" लिखी थी. लॉख लोमॉन्ड और दि ट्रोसाख्स नेशनल पार्क ऐसे कई महाकाव्यों के लिए प्रेरणा बने हैं. स्कॉटलैंड के भूले बिसरे अतीत की कितनी ही झलकियां यहां आज भी देखने को मिलती हैं.
तस्वीर: Loch Lomond & The Trossachs National Park Authority
ग्रान पाराडिसो: अल्पाइन आईबैक्स का स्वर्ग
1920 में अल्पाइन आईबैक्स को बचाने के मकसद से इटली का पहला नेशनल पार्क ग्रान पाराडिसो बनाया गया. तब खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी सींग वाली बकरियों जैसे आईबैक्स आज किसी भी सैलानी को आसानी से दिख जाएंगे. 100 साल पहले यहां से गायब हो चुके दाढ़ी वाले गिद्धों को भी दुबारा यहां बसाया जा रहा है.