ईरान के जिबाकलाम को डीडब्ल्यू फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड
कार्ला ब्लाइकर
१३ जून २०१८
डॉयचे वेले का 2018 का फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड ईरान के राजनीतिक विज्ञानी सादेग जिबाकलाम को दिया गया है. अपने देश में मौजूदा राजनीतिक हालात के खिलाफ बोलने के लिए उन पर जेल की सजा की तलवार लटक रही है.
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डॉयचे वेले के अंतरराष्ट्रीय मीडिया सम्मेलन ग्लोबल मीडिया फोरम में जिबाकलाम को फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड से नवाजा गया. इससे पहले यह पुरस्कार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने और मानवाधिकारों की आवाज को बुलंद करने में अमूल्य योगदान देने के लिए सऊदी ब्लॉगर रइफ बदावी, तुर्की के अखबार हुर्रियत के संपादक सेदात एरगिन और व्हाइट हाउस करेस्पोंडेंट्स एसोसिएशन को दिया जा चुका है.
जिबाकलाम का नाम ईरान से सबसे जाने माने विद्वानों और राजनीतिक विशेषज्ञों में शुमार किया जाता है. वह कट्टरपंथियों के साथ अपनी तीखी बहसों के लिए जाने जाते हैं और वे घरेलू और विदेश नीति से जुड़े मामलों पर सरकार के रुख की आलोचना करते रहे हैं.
जनवरी 2018 में जब दसियों हजार ईरानी अपनी सरकार की आर्थिक नीतियों और पूरे राजनीतिक प्रतिष्ठान के खिलाफ सड़कों पर विरोध कर रहे थे, तब जिबाकलाम ने डीडब्ल्यू को दिए इंटरव्यू में कहा था कि इन प्रदर्शनों का आयोजन विदेशी ताकतों ने नहीं, बल्कि खुद ईरानी लोगों ने किया है. उनकी यह बात सरकारी रुख के विपरीत थी और उन्हें मार्च में डेढ़ साल की सजा सुनाई गई. उन्होंने इस फैसले के खिलाफ अपील की. अभी मामला लंबित है.
जिबाकलाम ने ग्लोबल मीडिया फोरम में पुरस्कार स्वीकार करते हुए अपने भाषण में कहा, "मुझे अपने विचारों के लिए इस्लामिक ईरान में एक भी दिन जेल में नहीं गुजराना पड़ा है, लेकिन ऐसे बहुत से ईरानी लेखक, पत्रकार, वकील, महिलाएं, वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता, ट्रेड यूनियनों से जुड़े लोग, छात्र, कलाकार, विद्रोही और विपक्षी नेता, सुन्नियों, बहाइयों और ईसाइयों समेत धार्मिक विचारक, कार्यकर्ता और यहां तक कि दरवेशी और सूफी भी हैं जिन्होंने बहुत से साल जेल में बिताए हैं."
बोलने की आजादी और डिजीटल तकनीक
बोलने की आजादी और डिजीटल तकनीक
दुनिया के करीब हर कोने में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की आजादी खतरे में है. लेकिन गैर सरकारी संगठन अपनी चुनौतियों का सामना करने के लिए डिजीटल तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं.
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आन्या सिफरिन, निदेशिका, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, अमेरिका
"हमारे सर्वे 'मिट्टी के मोल प्रकाशन: नए विकास और पत्रकारिता स्टार्ट अप' से पता चला कि मीडिया स्टार्टअप आर्थिक महात्वाकांक्षाओं की वजह से नहीं बल्कि पत्रकारिता के समर्थन में पैदा हुए हैं. मीडिया स्टार्टअप बनाने वाले अत्यंत आदर्शवादी हैं. वे दुनिया को बदलना चाहते हैं, मीडिया की कमजोरियों को दूर करना चाहते हैं या समाज की जरूरतों की ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं."
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कनक संध्या यतिराजुला, उप संयोजक, सहयोग, भारत
"हमारा एनजीओ भारत के हेल्थ सेक्टर में भ्रष्टाचार की रिपोर्ट मोबाइल टेलिफोन के जरिये करने में महिलाओं की मदद करता है. हमने सीखा है कि तकनीक मददगार होती है, लेकिन साधन से ज्यादा साध्य के रूप में. अंत में महिलाओं को समझाना जरूरी है कि वे हमारी सर्विस का इस्तेमाल करें. नई तकनीक थोपी नहीं जा सकती. महिलाएं खुद तय करती हैं और उसे बेहतर करती हैं."
"अपने एनजीओ की मदद से हम नाइजीरिया में विकास सहायता के लिए दिए जाने धन पर नजर रखते हैं. लेकिन ओपन डाटा अकेला समाधान नहीं है. उसके लिए हमारे जैसी संस्था की जरूरत है जो डाटा इस तरह पेश करते हैं कि पिछड़े तबके भी उसे समझ सकें. हमारा टार्गेट ऑडिएंस इंटरनेट में नहीं है. हम रेडियो और टीवी का इस्तेमाल करते हैं और लोगों से सीधी बात करते हैं."
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श्टेफान लाइडेल, डीडब्ल्यू अकादमी, जर्मनी
"ओपन डाटा, क्राउड सोर्सिंग और मैपिंग के रूप में हम दुनिया में हर कहीं ऐसी पहलकदमियां देख रहे हैं जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना का अधिकार हासिल करने के लिए डिजीटल तकनीक का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही हैं. एक्टिविस्ट बहुत तरह के हैं. उनमें एकल लोग हैं तो स्वतंत्र मीडिया संगठन और मानवाधिकार संगठन भी."
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एरिक अलब्रेष्ट, लेखक, जर्मनी
"मीडिया के क्षेत्र में नए लोग आ रहे हैं, मसलन कंप्यूटर एक्सपर्ट. आजकल मीडियाकर्मी होने के लिए अच्छी पत्रकारिता ही जरूरी नहीं है, यह भी पता होना चाहिए कि आईटी एक्सपर्टों और प्रोग्रामरों के साथ मिलजुलकर कैसे काम किया जाता है. मीडिया डेवलपमेंट संगठनों को भी भावी सहयोगियों की मदद करने के लिए नई जानकारी हासिल करने की जरूरत है."
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दूसरी तरफ, 10 लोगों के एक समूह ने ग्लोबल मीडिया आयोजन स्थल के बाहर जिबाकलाम को पुरस्कार दिए जाने का विरोध किया. उनका कहना था कि जिबाकलाम ईरानी सरकार के बेहद करीब हैं.
अपने भाषण में जिबाकलाम ने ईरान के उथल पुथल वाले इतिहास का जिक्र किया. उन्होंने ऐसे लोगों का जिक्र किया, जिन्हें ईरान में अपने धर्म, राजनीतिक पृष्ठभूमि या फिर विचारधारा की वजह से दमन झेलना पड़ता है या फिर उन्हें मार भी दिया जाता है. इनमें सुन्नी और पर्यावरण कार्यकर्ता खास तौर से शामिल हैं.
साथ ही जिबाकलाम ने कहा कि ईरान में सकारात्मक चीजें भी हो रही हैं. उनके मुताबिक "एक उजला पक्ष भी है जो ईरान में लोकतंत्र के भविष्य को लेकर उम्मीदें पैदा करता है." जिबाकलाम कहते हैं कि आज ईरान में कम से कम आधा दर्जन अखबार ऐसे हैं जिन्हें स्वतंत्र कहा जा सकता है.
उन्होंने अपना पुरस्कार ईरानी राजनीतिक कैदी अब्बास आमिर इंतेजाम को समर्पित किया, "जिन्होंने 27 साल इविन की जेल में गुजारे हैं और वह आधुनिक ईरान में लोकतंत्र और आजादी के प्रतीक हैं."
प्रेस फ्रीडम में कौन देश कहां, देखिए
प्रेस स्वतंत्रता में कौन देश कहां
लोकतांत्रिक देशों में अहम नेताओं के मीडिया विरोधी भाषणों, नये कानूनों और मीडिया को प्रभावित करने की कोशिशों की वजह से पत्रकारों और मीडिया की स्थिति खराब हुई है. यह कहना है रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स की ताजा रिपोर्ट का.
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1. नॉर्वे
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2. स्वीडन
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3. फिनलैंड
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4. डेनमार्क
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5. नीदरलैंड्स
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6. कोस्टा रिका
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7. स्विट्जरलैंड
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43. अमेरिका
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