ईरान में शुक्रवार को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होंगे. शुरू में चुनावों में 600 उम्मीदवार थे, लेकिन उम्मीदवारों का पुनरीक्षण करने वाले गार्जियन काउंसिल ने उनमें से सिर्फ सात को चुनाव लड़ने की इजाजत दी.
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हालांकि ईरान में सबसे शक्तिशाली नेता देश के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्ला अली खोमेनी हैं, लेकिन औद्योगिक नीति से लेकर विदेशी मामलों तक पर राष्ट्रपति का भी महत्वपूर्ण प्रभाव रहता है. इस बार चुनावों में छह करोड़ मतदाता उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अति-रूढ़िवादी धार्मिक नेता इब्राहिम रईसी ही जीतेंगे. चुनावों से ठीक एक दिन पहले गार्जियन काउंसिल ने कहा कि यह एक "गंभीर राजनीतिक लड़ाई है".
12-सदस्यीय परिषद के मुखिया अब्बास अली कदखुदाई ने एक प्रेस सम्मलेन में कहा, "मीडिया और जनता ने प्रमाणित किया है कि एक अच्छी प्रतिस्पर्धा हो रही है." कदखुदाई ने मीडिया को बताया कि परिषद द्वारा स्वीकृत किए गए सातों उम्मीदवारों के बीच तीन बार वाद-विवाद प्रतियोगिता हो चुकी है जो टीवी पर प्रसारित भी की गई थी और इन बहसों ने दिखा दिया है कि चुनावों में "गंभीर राजनीतिक प्रतिस्पर्धा" है.
गार्जियन काउंसिल कानूनविदों और मौलानाओं की एक संस्था है जिसके सदस्य चुने हुए नहीं होते हैं. चुनावों में ज्यादा मतदाताओं के वोट डालने की उम्मीद नहीं है.परिषद ने जब करीब 600 उम्मीदवारों में से सिर्फ सात को चुनाव लड़ने की स्वीकृति दी, तब कई मतदाता निराश हो गए. जिन लोगों को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया उनमें संसद के पूर्व स्पीकर अली लारीजानी भी थे.
गार्जियन काउंसिल से निराशा
लारीजानी ने मांग की कि परिषद, "आधिकारिक और सार्वजनिक रूप से" उन्हें अयोग्य ठहराने के "सभी कारणों को स्पष्ट करे". रूहानी ने बाद में बताया कि उन्होंने सर्वोच्च नेता को एक चिट्ठी लिख कर और ज्यादा "प्रतिस्पर्धा" की अपील की है. खोमेनी ने भी इस बात को माना कि कुछ उम्मीदवारों के साथ "अन्याय" हुआ है, क्योंकि "उन पर और उनके परिवारों पर झूठे आरोप लगाए गए थे". उन्होंने इन उम्मीदवारों के नाम नहीं लिए.
बुधवार को चुनावी अभियान का अंत होने से ठीक पहले बाकी बचे सात उम्मीदवारों में से भी तीन और उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया. अब प्रतियोगिता में रईसी के अलावा दो और अति-रूढ़िवादी उम्मीदवार ही हैं. इकलौते सुधारवादी उम्मीदवार हैं केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष अब्दुलनासिर हेम्मति. कदखुदाई ने प्रेस सम्मलेन में कहा कि उम्मीदवारों का "चुनावी कानून" के आधार पर पुनरीक्षण किया गया था और "गार्जियन काउंसिल के कोई भी राजनीतिक विचार नहीं हैं".
देश में कई लोग सालों से चल रहे आर्थिक संकट के दर्द की वजह से हतोत्साहित हैं. यह संकट अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से उत्पन्न हुआ था और कोविड-19 महामारी की वजह से और गंभीर हो गया. चुनाव भी ऐसे समय पर हो रहे हैं जब ईरान दुनिया की बड़ी ताकतों के साथ अपनी परमाणु संधि को फिर से जीवित करने के लिए बातचीत कर रहा है. तीन साल पहले डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने खुद को संधि से पीछे खींच लिया था.
सीके/एए (एएफपी)
ऐसे हुई ईरान में इस्लामिक क्रांति
शिया बहुल ईरान में कभी ऐसे शाह का शासन था जिन्हें जनता अमेरिका की कठपुतली मानने लगी. एक मौलवी ने इस आक्रोश का फायदा उठाया और 1979 में इस्लामिक क्रांति कर डाली.
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आक्रोश के बीज
ईरान की इस्लामी क्रांति के बीज कई मायनों में 1963 में पड़े. तत्कालीन शाह, मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने श्वेत क्रांति का एलान किया. ये ऐसे आर्थिक और सामाजिक सुधार थे, जो ईरान के परंपरागत समाज को पश्चिमी मूल्यों की तरफ ले जाते थे. इनका विरोध होने लगा.
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शाह के शाही ख्बाव
1973 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में भारी गिरावट आई. इससे ईरान की आमदनी चरमरा गई. लोग संकट में फंसे थे और शाह श्वेत क्रांति के सफल होने के ख्बावों में. इसी दौरान मौलवियों के एक धड़े ने श्वेत क्रांति को इस्लाम पर चोट करार दिया.
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लोग जुटते गए
सितंबर 1978 में ईरान में मोहम्मद रजा शाह पहलवी के खिलाफ प्रदर्शन भड़क उठे. धीरे धीरे मौलवियों के समूह ने प्रदर्शनों का नेतृत्व संभाल लिया. मौलवियों को फ्रांस में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी से निर्देश मिल रहे थे.
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अमेरिका की कठपुतली
लोगों में मोहम्मद रजा शाह की नीतियों के प्रति बहुत आक्रोश था. आलोचक कहते थे कि शाह अमेरिका के इशारों पर नाच रहे थे. लोग इससे खीझ गए थे. शाह ने आक्रोश को शांत करने के बजाए प्रदर्शकारियों को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया.
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खूनी संघर्ष
जनवरी 1979 आते आते पूरे ईरान में हालात बिल्कुल गृह युद्ध जैसे हो गए. प्रदर्शनकारी, निर्वासन में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी की वापसी की मांग कर रहे थे. उस समय सेना उन पर गोलियां चला रही थी.
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भाग गए शाह
हालात बेकाबू हो गए. शाह को परिवार समेत ईरान से भागना पड़ा. लेकिन भागने से पहले शाह विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त कर गए.
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खोमैनी की वापसी
शापोर बख्तियार ने अयातोल्ला खोमैनी को ईरान वापस लौटने की इजाजत दे दी. लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि प्रधानमंत्री वही रहेंगे.
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लौट आए खोमैनी
बख्तियार से ग्रीन सिग्नल मिलते ही अयातोल्लाह खोमैनी ने 14 साल बाद फ्रांस के निर्वासन से देश वापस लौटने का एलान किया. यह तस्वीर 11 फरवरी 1979 को छपे कायहान अखबार की है.
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तेहरान में स्वागत
12 फरवरी 1979 को खोमैनी एयर फ्रांस की फ्लाइट में सवार होकर पेरिस से तेहरान के लिए निकले. विमान जब तेहरान में लैंड हुआ तो क्रांतिकारी धड़े के नेताओं ने खोमैनी का जोरदार स्वागत किया.
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खोमैनी का सीधा दखल
तेहरान में लोगों को संबोधित करते हुए खोमैनी ने कहा, "मैं सरकार का गठन करुंगा." तेहरान के बेहशत ए जाहरा में उनका भाषण को सुनने के लिए एक लाख से ज्यादा लोग जमा हुए थे.
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समानान्तर सत्ता
खोमैनी ने लोगों से बख्तियार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन जारी रखने की अपील की. इसी बीच 16 फरवरी को खोमैनी ने मेहदी बाजारगान को अंतरिम सरकार का नया प्रधानमंत्री घोषित कर दिया.
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प्रदर्शन का इस्लामीकरण
ईरान में दो प्रधानमंत्री हो गए. एक बख्तियार और दूसरे बाजारगान. बाजारगान के पीछे खोमैनी के साथ साथ बड़ा जन समर्थन था. धीरे धीरे खोमैनी ने प्रदर्शन को धार्मिक रंग दे दिया.
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सेना में फूट
इसी बीच खबर आई कि ईरान की वायुसेना खोमैनी के समर्थन में उतर गई है. 19 फरवरी 1979 को कायहान अखबार की इस तस्वीर में वायु सैनिक खोमैनी को सलाम करते दिख रहे हैं.
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आपस में भिड़े सैनिक
20 फरवरी को तेहरान में एक निर्णायक घटना हुई. शाह के प्रति वफादारी दिखाने वाले इंपीरियल गार्ड के सैनिकों ने एयरफोर्स डिफेंस ट्रूप्स पर हमला कर दिया.
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ढह गया पुराना ढांचा
इसके बाद मार्च तक हिंसक झड़पें चलती रही. धीरे धीरे सेना भी हथियारबंद विद्रोहियों के साथ इमाम खोमैनी के समर्थन में झुकती चली गई.
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इस्लामिक ईरान के सर्वेसर्वा
अप्रैल 1979 में एक जनमत संग्रह के बाद इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान का एलान किया गया. सरकार चुनी गई और खोमैनी को देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता घोषित किया गया. खोमैनी के उत्तराधिकारी अयातोल्लाह खमेनेई आज भी इसी भूमिका में हर सरकार से ऊपर हैं.