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ईरान के लिए सीरिया में क्या बचेगा?

७ सितम्बर २०१८

अब सीरिया का युद्ध निर्याणक चरण में दाखिल हो रहा है तो रूस, तुर्की और ईरान रणनीतियां बना रहे हैं कि कैसे युद्ध से तबाह इस देश में उनकी अहमियत बनी रही. विशेषज्ञ कहते हैं कि ईरान की स्थिति सीरिया में कमजोर हो सकती है.

Iran Revolutionsgarden
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Noroozi

आठ साल से सीरिया में चल रही जंग अब अपने अंतिम पड़ाव पर आ गई है. 30 लाख की आबादी वाला इदलिब सीरिया में विद्रोही गुटों का आखिरी गढ़ है, जिसे सीरिया की बशर अल-असद सरकार जल्द से जल्द अपने नियंत्रण में लेना चाहती है. अगर सीरिया की सरकार वहां हमला करने का फैसला करती है तो इससे एक बड़ा मानवीय संकट पैदा हो सकता है.

विद्रोहियों के इस आखिरी ठिकाने पर क्या नीति अपनानी है, इस बारे में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद रूस, तुर्की और ईरान के राष्ट्रपतियों के साथ मिलकर जल्द फैसला लेंगे. लेकिन ये तीनों देश सीरिया के भविष्य को अलग ढंग से देख रहे हैं. सबकी नीतियां भी सीरिया के लिए अलग हैं.

तुर्की रणनीतिक और मानवीय कारणों के चलते इदलिब पर हमले के पक्ष में नहीं है. अगर इस क्षेत्र में कोई भी हमला होता है तो इदलिब से रिफ्यूजी तुर्की की सीमा की तरफ जाएंगे जो वहां से 60 किलोमीटर दूर भी नहीं है. इससे तुर्की बचना चाहता है. साथ ही तुर्की उत्तरी सीरिया पर अपना दीर्घकालीन प्रभाव बनाए रखना चाहता है, खासकर कुर्द प्रांत आफरीन में जहां तुर्की ने अपनी सैन्य मौजूदगी कायम की है.

दूसरी तरफ, राष्ट्रपति असद का सहयोगी ईरान भी सीरिया पर अपने प्रभाव को मजबूत करना चाहता है. ईरान के रक्षा मंत्री अमीर हातामी और विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ ने हाल में सीरिया का दौरा किया. खबरें आईं कि दोनों देश एक सैन्य सहयोग समझौता कर रहे हैं. ईरान ने सीरिया में बने रहने की बात कही है और युद्ध से तबाह देश के पुनर्निर्माण में मदद का वादा भी किया है.

तस्वीर: Reuters/Sana

वैसे सीरिया पर अपना प्रभाव बनाए रखना ईरान के लिए आसान नहीं है. ईरान के पत्रकार और मध्यपूर्व के जानकार हबीब हुसनीफराद कहते हैं, "इस्राएल, अमेरिका और सऊदी अरब हर संभव कोशिश करेंगे कि ईरान सीरिया से निकल जाए या फिर वहां उसका प्रभाव कम हो." डीडब्ल्यू से बातचीत नें उन्होंने कहा, "अगर इदलिब पर कब्जा हो जाता है और ईरान की मौजूदगी का सीरिया में कोई मतलब नहीं रह जाता तो रूस और सीरिया ईरान की भूमिका पर फिर से विचार करेंगे." हुसनीफराद के मुताबिक तुर्की तो सीरिया में ईरान के घटते प्रभाव से खुश ही होगा.
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रूस का ईरान पर भरोसा

फिलहाल रूस और ईरान हर कीमत पर सीरिया में असद शासन बनाए रखना चाहते हैं. लेकिन रूस अपने संबंध इस्राएल से बेहतर करने की दिशा में भी कदम बढ़ा रहा है. इस्राएल लगातार सीरिया से ईरान के हटने की वकालत करता रहा है. ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सीरिया में ईरान की स्थाई मौजूदगी को रूस अपना समर्थन देगा.

जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्युरिटी अफेयर्स (एसडब्ल्यूपी) में रूस मामलों की विशेषज्ञ मारग्रेटा क्लाइन कहती हैं, "रूस नहीं चाहेगा कि सीरिया में ईरान की स्थिति मजबूत हो. सीरिया की भावी राजनीतिक, आर्थिक, और सैन्य व्यवस्था को आकार देने के मामले में ये दोनों देश एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी बनते जा रहे हैं." लेकिन मारग्रेट यह भी कहती हैं कि रूस शायद पूरी तरह से ईरान को सीरिया से हटाना भी नहीं चाहता है. उन्होंने बताया, "सीरिया में रूसी एयरफोर्स और स्पेशल फोर्स की जो टुकड़ी तैनात है, वह सीरिया में जमीन पर मौजूद ईरानी सैनिकों पर निर्भर है."
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रूस के पास इसके लिए संसाधन भी नहीं हैं कि वह ईरान और ईरान समर्थक सैन्य बलों को सीरिया से बाहर कर उसके प्रभाव को कम कर दे. मारग्रेट मानती हैं, "मध्य पूर्व में रूस का रुख बहुत हद तक इस बात पर भी निर्भर होगा कि वह इस क्षेत्र में सक्रिय अन्य देशों के साथ कैसे संबंध रखता है."

ईरान की कमजोर स्थिति

पत्रकार हुसनीफराद मानते हैं कि सीरिया में युद्ध खत्म होने की संभावनाओं के बीच, ईरान के पास बहुत कुछ करने के मौके नहीं हैं. दूसरी तरफ अगर सीरिया को ईरान के मुद्दे पर अमेरिका और इस्राएल से टकराना पड़ेगा तो वह पुनर्निर्माण शुरू नहीं कर पाएगा.

उन्होंने कहा, "सीरिया को अभी लाखों डॉलर की मदद चाहिए. लेकिन अमेरिका और इस्राएल सीरिया को इसी शर्त पर वित्तीय सहायता देंगे कि ईरान वहां से वापस जाए." वह मानते हैं कि पश्चिमी देशों की मदद पाने के लिए सीरिया को अपनी ईरान नीति में बदलाव लाना होगा.

मरियम अंसारी/एए

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