ईरान के शेयर बाजार में रिकॉर्ड उछाल
३ जुलाई २०१९ईरान को परेशान करने वाला ये परमाणु मसला क्या है?
क्या है ईरान परमाणु डील पर विवाद
ट्रंप अपने शब्दों के पक्के हैं. जो वादा करते हैं, उसे पूरा भी करते हैं, भले ही उसका अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर कितना भी बड़ा असर क्यों न हो. पहले वे पेरिस पर्यावरण संधि से अलग हुए और फिर ईरान समझौते से. ईरान विवाद को समझें.
विवाद की शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर ईरान में मौजूद पांच परमाणु रिएक्टरों पर थी. इनमें रूस की मदद से बनाया गया बुशेर परमाणु प्लांट सबसे ज्यादा विवाद में रहा. ईरान का कहना था कि परमाणु बिजली घर देश में लोगों को ऊर्जा मुहैया कराने के मकसद से बनाया गया है, जबकि अमेरिका और इस्राएल को शक था कि वहां परमाणु बम बनाने पर काम चल रहा है.
समझौता
परमाणु प्लांट के इस्तेमाल के सिलसिले में फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ईरान के साथ बातचीत कर रहे थे. साल 2006 में अमेरिका, चीन और रूस भी इसमें शामिल हुए. आखिरकार 2015 में जा कर ये देश एक समझौते पर पहुंच सके. समझौते के अनुसार ईरान अपने परमाणु संयंत्रों की नियमित जांच के लिए राजी हुआ ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि वहां हथियार बनाने पर काम नहीं चल रहा है.
नागरिक खुश
इस समझौते के बाद से ईरान पर से कई तरह के प्रतिबंध खत्म हुए. नागरिकों में खुशी का माहौल देखने को मिला. सालों तक चले आर्थिक प्रतिबंधों का असर आम लोगों के जीवन पर देखने को मिल रहा था. देश में खाद्य सामग्री और दवाओं की भारी कमी हो गई थी. लोगों में उम्मीद जगी कि राष्ट्रपति हसन रूहानी अब देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मौके दिलवा सकेंगे.
जांच एजेंसी
ईरान समझौते के अनुसार काम कर रहा है या नहीं, इस बात की जांच की जिम्मेदारी दी गई अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) को. दिसंबर 2016 में आईएईए के अध्यक्ष यूकिया अमानो (बाएं) रूहानी से मिलने तेहरान पहुंचे. आईएईए को हर तीन महीने में एक रिपोर्ट दर्ज करनी होती है. अब तक किसी भी रिपोर्ट में ईरान पर शक की बात नहीं की गई है.
अलग रुख
इस्राएल हमेशा से इस समझौते के खिलाफ रहा है और इसे दुनिया के लिए संकट के रूप में देखता रहा है. आठ सालों तक बराक ओबामा के साथ नाकाम रहे इस्राएली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को आखिरकार डॉनल्ड ट्रंप के रूप में एक ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति मिला, जो उनकी बात मानने को तैयार दिखा. 2016 के चुनावों के दौरान ट्रंप ने ईरान समझौते को "अब तक की सबसे बुरी डील बताया".
ट्रंप का फैसला
8 मई 2018 को अमेरिका इस समझौते से अलग हो गया. ट्रंप ने कहा, "आज हम जानते हैं कि ईरान का वादा एक झूठ था." ट्रंप ने इस्राएल द्वारा उपलब्ध कराए गए खुफिया दस्तावेजों की बात करते हुए कहा कि आज इस बात के पुख्ता सबूत मौजूद हैं कि ईरान सरकार परमाणु हथियार बनाने पर काम कर रही है. हालांकि आईएईए का कहना है कि 2009 के बाद से ऐसी किसी गतिविधि की जानकारी नहीं है.
अब आगे क्या?
अमेरिका के अलग होने के बाद भी ईरान पांच अन्य देशों के साथ समझौते में बंधा है. रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने आगे भी समझौते को जारी रखने की बात कही है. डील के अनुसार ईरान यूरेनियम की मात्रा को सीमित रखेगा, जिससे केवल देश के लिए ऊर्जा पैदा की जा सके और किसी भी प्रकार के परमाणु हथियारों का निर्माण मुमकिन ना हो.