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ईरान के साथ ऐतिहासिक समझौता

२४ नवम्बर २०१३

ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम में कटौती करने पर रजामंद हो गया है. दुनिया के छह ताकवर देशों और ईरान के बीच जिनेवा में हुई बातचीत के बाद दोनों पक्षों में हुआ करार. दुनिया ने किया स्वागत इस्राएल नाराज.

तस्वीर: Reuters

जिनेवा की घड़ियों ने जब रविवार सुबह 3 बजे का घंटा बजाया तभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों और जर्मनी के साथ ईरान के बीच चल रही बातचीत के इस अहम पड़ाव पर पहुंचने का एलान किया गया. दोनों पक्षों में हुए समझौते के बाद ईरान यूरेनियम संवर्धन के स्तर को सीमित करने पर रजामंद हो गया है. समझौते का एलान यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख कैथरीन एश्टन ने किया. ब्रिटेन, जर्मनी, ईरान, चीन, फ्रांस, अमेरिका और रूस के विदेश मंत्री उनके साथ खड़े थे.

हसन रोहानीतस्वीर: IRNA

पश्चिमी देश, इस्राएल और अमेरिका यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को हथियार बनाने की तैयारी मान कर संदेह की निगाह से देखते हैं. समझौते में मदद करने वाले अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने बताया कि यूरेनियम संवर्धन सीमित करने से अगले छह महीनों में ईरान के पास मौजूद संवर्धित यूरेनियम का भंडार सामान्य स्तर पर चला आएगा. इसके साथ ही ईरान कम संवर्धित यूरेनियम के भंडार को भी और नहीं बढ़ाएगा. इतना नही नहीं वह सेंट्रीफ्यूजेज की संख्या नहीं बढ़ाने और अराक रिएक्टर को भी शुरू नहीं करेगा. ईरान संयुक्त राष्ट्र के परमाणु निरीक्षकों को अपने रिएक्टरों के उन हिस्सों को भी दिखाने के लिए तैयार हो गया है जो अब तक उनकी नजरों से दूर रखे गए था.

इसके बदले में ईरान पर से कुछ प्रतिबंधों को हटाया जा रहा है. आर्थिक रूप से इनका मूल्य करीब 7 अरब डॉलर है. इसके अलावा ताकतवर देश इस बात पर भी सहमत हैं कि अगर ईरान अपने वादे पर टिका रहता है तो अगले छह महीने तक कोई नया व्यापार प्रतिबंध भी नहीं लगाया जाएगा. इन छह महीनों में ईरान, अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी "एक व्यापक समाधान तैयार करने की कोशिश करेंगे जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह भरोसा दिला सके कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है."

जॉन केरीतस्वीर: picture-alliance/AP Photo

नई संभावनाएं

ईरान में नए राष्ट्रपति हसन रोहानी के पद संभालने के बाद ईरान की सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों और जर्मनी के साथ बातचीत के तीसरे दौर में दोनों पक्षों में यह सहमति बन गई. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि जिनेवा मैराथन के बाद शुरुआती समझौता दुनिया से यह डर मिटाने की दिशा में "एक अहम पहला कदम" है कि ईरान के पास बम होगा. नए ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी ने ट्विटर पर लिखा है कि ऐतिहासिक समझौता इस वजह से संभव हो सका क्योंकि "ईरान की जनता ने उदारवाद के लिए वोट दिया" और यह "नई संभावनाओँ के दरवाजे खोलेगा."

पश्चिमी देश और ईरान तो नई संभावनाओँ की बात कर रहे हैं लेकिन इस्राएल नाखुश है. इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू के दफ्तर ने जिनेवा समझौते के तुरंत बाद ही इसे "बुरा समझौता" बताते हुए कहा कि इस्लामी देश के पास इस समझौते के बाद भी परमाणु हथियार बनाने की क्षमता बची हुई है.

दुनिया की प्रतिक्रिया 

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अल खमेनेई ने समझौते को "उपलब्धि" बताते हुए इसका स्वागत किया है. ईरान की समाचार एजेंसी फार्स ने खमेनेई का एक बयान छापा है, "परमाणु वार्ता टीम को इस उपलब्धि के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए और उनकी तारीफ की जानी चाहिए. ईश्वर की कृपा और ईरानी देश इस सफलता की वजह हैं." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है, "अधिकारियों की अत्यधिक मांग के प्रति विरोध इसकी कसौटी होनी चाहिए."

उधर चीन ने ईरान के साथ परमाणु कार्यक्रम पर समझौते का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे तेहरान, "मध्यपूर्व में शांति और स्थिरता को सुरक्षित रखने में मदद करेगा." विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी विदेश मंत्री वांग यी के बयान में कहा गया है, "इससे ईरान के साथ बाकी देशों का सामान्य लेनदेन करने में भी मदद मिलेगी, जिससे ईरान के लोगों का जीवन अच्छा होगा." वांग यी ने माना कि समझौता दशक भर की मेहनत के बाद हासिल हुआ है और खासतौर से आखिरी चरण में तो बहुत कठिनाई से बातचीत हुई है.

भारत ने भी इस समझौते का स्वागत किया है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है, "ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर उठते सवालों का कूटनीति और बातचीत के जरिए हल हो जाने का भारत स्वागत करता है." उधर रूस ने इस समझौते को सबके लिए जीत कहा है. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भी ईरान के साथ बातचीत में शामिल रहे हैं. रूसी समाचार ने एजेंसी उनके हवाले से लिखा है, "कोई नहीं हारा, आखिरकार हर किसी की जीत हुई है."

दशकों से चली आ रही खींचतान के बाद ईरान आखिरकार अपने परमाणु कार्यक्रम पर पश्चिमी देशों की सहमति हासिल करने में कामयाब हो गया है. दुनिया के ज्यादातर देशों ने इसका स्वागत किया है और खुशी जताई है. हालांकि अमेरिका और ईरान दोनों तरफ के कट्टरपंथी इस समझौते को किस तरह से लेते हैं और दोनों पक्ष इस समझौते पर कितनी देर टिके रहेंगे इसके बारे में अभी कोई अनुमान लगा पाना मुश्किल है.

एनआर/आईबी (एएफपी, एपी)

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