ईरान गैस पाइपलाइन से पाकिस्तान की ऊर्जा चिंता दूर होगी
११ अप्रैल २०२४पाकिस्तान ने मार्च के अंत में कहा था कि ईरान के साथ प्राकृतिक गैस परियोजना के लिए वह अमेरिका से कुछ रियायत की मांग करेगा. ‘पीस पाइपलाइन' नाम की यह परियोजना लंबे समय से अटकी हुई है और इस्लामाबाद इसे जल्द से जल्द सिरे चढ़ाना चाहता है. दोनों पक्षों ने 2009 में इस परियोजना पर सहमति जताई थी. हालांकि उसके बाद से ही यह देरी और वित्तीय संसाधनों की दिक्कतों से जूझ रही है. ईरान ने अब पाकिस्तान को धमकी दी है कि यदि उसने अपने इलाके में परियोजना का निर्माण कार्य नहीं किया तो वह उस पर कानूनी कार्रवाई करेगा.
विदेश नीति से जुड़े मामलों पर नजर रखने वाली पाकिस्तानी पत्रकार सबीना सिद्दीकी ने डीडब्ल्यू को बताया, "पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय अदालतों में ईरान के साथ संभावित कानूनी टकराव से बचना चाहता है. इस मामले में "तेहरान ने पाकिस्तान के लिए सितंबर 2024 की समय सीमा तय की है कि वह तब तक अपने इलाके में निर्माण कार्य को पूरा करे. पाकिस्तान को अपने इलाके में करीब 780 किलोमीटर (484 मील) के दायरे में पाइपलाइन बिछानी है.”
कैसे ग्वादर भारत की जगह बन गया पाकिस्तान का हिस्सा?
अमेरिका ने लगाया पलीता
ईरान 1990 के दशक से ही इस पाइपलाइन परियोजना के प्रयास में लगा है. मूल रूप से यह परियोजना ईरानी गैस को भारत तक पहुंचाने को लेकर बनी थी. हालांकि, नई दिल्ली ने ईरान के विवादित परमाणु कार्यक्रम को लेकर ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंधों के बाद से इस परियोजना से किनारा कर लिया. फिर, ईरान और पाकिस्तान ने वर्ष 2009 में गैस आपूर्ति के लिए 25 वर्ष का एक करार किया. इस अनुबंध के तहत ईरान ने दस साल पहले ही अपने हिस्से में पड़ने वाले परियोजना का 900 किलोमीटर का काम पूरा कर लिया है. लेकिन पाकिस्तानी इलाके में परियोजना निर्माण कार्य अधर में लटका रहा, जिसने ईरान को नाराज किया है.
अनुबंध के उल्लंघन के चलते लगने वाले संभावित हर्जाने से बचने के लिए अब इस्लामाबाद ने इस परियोजना के निर्माण कार्य को शुरू करने की इच्छा जताई है. इसके तहत उसकी मंशा सबसे पहले ईरानी सीमा से पाकिस्तानी बंदरगाह शहर ग्वादर तक 80 किलोमीटर के निर्माण कार्य की है. हालांकि इसके बाद भी पाकिस्तान की राह आसान नहीं, क्योंकि अमेरिका की ओर से इस परियोजना को कोई समर्थन नहीं है. साथ ही, वॉशिंगटन ने तेहरान के साथ किसी भी प्रकार के व्यापार को लेकर चेतावनी भी दी है.
अमेरिकी विदेश विभाग का कहना है, "हम पाकिस्तान-ईरान गैस पाइपलाइन परियोजना का समर्थन नहीं करते.” अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने 26 मार्च को संवाददाताओं से कहा, "हमने हमेशा सभी को यही सलाह दी है कि ईरान के साथ कारोबार के चलते हमारे प्रतिबंधों के दायरे में आने का खतरा है और हमारी सलाह है कि इस मामले में बहुत सावधानीपूर्वक विचार किया जाए.”
भारत-ईरान एक तरफ, चीन-पाकिस्तान दूसरी तरफ
वॉशिंगटन में ऊर्जा विशेषज्ञ उमुद शोकरी का कहना है कि पाकिस्तान को इस वक्त परियोजना में अपने हिस्सा का काम पूरा ना करने के चलते अरबों डॉलर का हर्जाना चुकाने की चिंता सता रही है. उन्होंने कहा, "इस्लामाबाद इससे भलीभांति अवगत है कि ईरान फिलहाल प्राकृतिक गैस की किल्लत को लेकर संघर्ष कर रहा है और लचर बुनियादी ढांचे के चलते वह पाकिस्तान को गैस निर्यात करने की स्थिति में भी नहीं है.”
क्या ईरान पर्याप्त गैस उत्पादन कर सकता है?
विश्व में प्राकृतिक गैस के सबसे बड़े भंडार के मामले में रूस के बाद ईरान का ही स्थान आता है. इसके बावजूद हर बार सर्दियों में ईरान गैस की किल्लत से जूझता है, जिसके चलते सरकार को गैस आपूर्ति में राशनिंग करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. ईरान में सब्सिडी पर मिलने वाली प्राकृतिक गैस का औद्योगिक एवं घरेलू दोनों स्तरों पर अत्यधिक और अक्षम रूप से इस्तेमाल होता है. यह ईरान की समस्या का मूल कारण है.
एनर्जी इंस्टीट्यूट की ‘विश्व ऊर्जा की सांख्यिकीय समीक्षा-(स्टैटिस्टिकल रीव्यू ऑफ वर्ल्ड एनर्जी)' से जुड़ी हालिया जानकारी के अनुसार, वर्ष 2022 में गैस उपभोग के मामले में अमेरिका, रूस और चीन के बाद ईरान चौथे पायदान पर रहा.
शोकरी का कहना है, "अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान के पास अहम तकनीकों का अभाव है. घरेलू कंपनियों के पास ऐसी तकनीकी क्षमताएं नहीं हैं, जो उत्पादन को इतना बढ़ा दें, जिससे ईरान पाकिस्तान को प्राकृतिक गैस का निर्यात कर सके. तब केवल यही स्थिति बचती है कि ईरान रूसी गैस ही पाकिस्तान को निर्यात करे."
सीमित कानूनी विकल्प
अमेरिकी प्रतिबंधों की प्रतिक्रिया में ईरान, रूस के साथ नजदीकी बढ़ा रहा है. जुलाई, 2022 में रूसी ऊर्जा कंपनी गजप्रोम ने नेशनल इरेनियन ऑयल कंपनी, एनआईओसी के साथ 40 अरब डॉलर का एक अनुबंध किया था. अनुबंध के अनुसार, गजप्रोम को दो गैस और छह ऑयल फील्ड के विकास में एनआईओसी की सहायता करनी थी. वहीं, पर्यवेक्षकों का कहना है कि अपने क्षेत्र से महज रूसी गैस की आपूर्ति के जरिये ईरान कुछ खास नहीं हासिल कर पाएगा. पाकिस्तानी पत्रकार सिद्दीकी का मानना है कि पाकिस्तान के विरुद्ध कानूनी लड़ाई में ईरान की सफलता की संभावनाएं बहुत कमजोर हैं.
तेहरान इस मामले को वियना स्थित यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड लॉ (अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग) के समक्ष उठा सकता है, लेकिन सिद्दीकी ने इस मुद्दे पर कहा, "अस्थिर क्षेत्रीय हालात, गाजा में युद्ध और कुछ संकटों में ईरान की भूमिका को देखते हुए लगता नहीं कि वॉशिंगटन इस मामले में ईरान को सफलतापूर्वक पैरवी करने देगा." सिद्दीकी ने आगे कहा कि इसके बजाय अमेरिका पाकिस्तान को उसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिए कुछ दूसरे विकल्प मुहैया करा सकता है.