ईरानी सरकार के आलोचक रुहोल्लाह जाम अक्टूबर 2019 में परिवार के साथ फ्रांस में निर्वासन में रह रहे थे. वहां से वे एक अच्छी खासी न्यूज वेबसाइट चला रहे थे. लेकिन साल भर बाद 12 दिसंबर 2020 को उन्हें ईरान में फांसी दे दी गई.
विज्ञापन
जाम को फांसी चढ़ाए जाने की दुनिया भर में निंदा हुई. लेकिन सवाल यह है कि 42 साल के जाम कैसे फ्रांस में अपनी आराम वाली जिंदगी छोड़कर ईरान में मौत के मुंह में जा गिरे. जाम उन नेताओं की चालों को क्यों नहीं समझ पाए, जिनके खिलाफ वह अपनी वेबसाइट पर लिखा करते थे.
जाम के पिता एक मौलवी हैं और ईरान में रहते हैं. वह ईरानी सांस्कृतिक संस्थानों में बड़े पदों पर रह चुके हैं. इसलिए वह 1979 की इस्लामी क्रांति के भी कड़े समर्थक रहे हैं जिसके तहत ईरानी शाह को सत्ता से हटाया गया. उन्होंने मौजूदा ईरान के संस्थापक रुहोल्लाह खोमैनी के नाम पर अपने बेटे का नाम रखा.
फ्रांस में रुहोल्लाह जाम के साथियों और दोस्तों ने एएफपी को बताया कि ईरान ने अक्टूबर 2019 में एक जाल फैलाया और जाम उसमें फंस गए. पेरिस में रहने वाले लेखक और जाम के साथ काम कर चुके महताब गोरबानी ने बताया, "उन्होंने इराक जाकर एक खतरनाक खेल खेला, जिसमें उन्हें मात मिली. वह ईरानी सरकार की तरफ से खेले गए गंदे मनोवैज्ञानिक खेल में घसीट लिए गए."
ये भी पढ़िए: मौत की सजा के वीभत्स तरीके
कैसे पहुंचे फ्रांस
जाम लगभग पांच साल से फ्रांस में रह रहे थे. उनके टेलीग्राम चैनल एडमन्यूज को बीस लाख लोगों ने फॉलो किया था. उन्होंने 2017-18 की सर्दियों में ईरान में होने वाले प्रदर्शनों में लोगों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में हिस्सा लेने को कहा. इसके अलावा उन्होंने अपने लेखों में ईरानी नेतृत्व पर कई सनसनीखेज आरोप भी लगाए थे.
एक प्रभावशाली व्यक्ति की संतान होने के नाते जाम के तेहरान में कई बड़े लोगों से संपर्क थे, जो उन्होंने 2009 में ईरान छोड़ने के बाद भी बनाए रखे. जाम ने 2009 के विवादित राष्ट्रपति चुनाव के बाद हुए प्रदर्शनों के बीच ईरान छोड़ा था. पहले वह मलेशिया गए, फिर तुर्की और उसके बाद फ्रांस पहुंचे.
जाम के दोस्त और एक ईरानी शरणार्थी माजियार कहते हैं, "जब सत्ता में बैठे लोगों के बीच टकराव होता था तो वे जाम की तरफ आते थे. जाम ने उन्हें खूब जानकारियां दी. उनके लिए कोई सीमा नहीं थी. वह ना राष्ट्रपति का सम्मान करते थे और ना ही सर्वोच्च नेता का. किसी का नहीं. यहां तक वह खुद अपने पिता पर हंसा करते थे."
लेकिन एडमन्यूज की कामयाबी और जाम के बढ़ते कट्टरपन की एक सीमा थी. टेलीग्राम ने एडमन्यूज का चैनल सस्पेंड कर दिया और उस पर अपने फॉलोवर को पुलिस के खिलाफ पेट्रोल बम इस्तेमाल करने के लिए उकसाने का आरोप लगा. जाम का प्रभाव घटने लगा. यहां तक कि उनके दोस्त भी पूछने लगे कि क्या वह ईरानी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए ज्यादा ही उतावले नहीं हो रहे हैं.
कैसे जाल में फंसे
पेरिस में जाम की मदद करने वाले एक वकील हसनन पेरेशत्यान कहते हैं, "रुहोल्लाह बहुत मशहूर हो गए. वह ईरानी सरकार को उखाड़ फेंकने की वकालत करने लगे. कहीं ना कहीं वह खुद को नेता समझने लगे. धीरे धीरे वह अपने दोस्तों को खोते चले गए."
गोरबानी कहते हैं, "जाम अकेले थे और अलग थलग भी. यहां तक कि निर्वासन में रहने वाले ईरानी विपक्ष के एक धड़े ने उन पर विश्वास करना छोड़ दिया." उन्हें धमकियां मिलने लगी, जिसके बाद पेरिस की पुलिस को उन्हें सुरक्षा मुहैया करानी पड़ी. जाम के दोस्त कहते हैं कि यह उनके लिए बहुत मुश्किल समय था. एक बहुत महत्वाकांक्षी व्यक्ति, जिसे लग रहा था कि उसने मीडिया में तेजी से जो जगह बनाई थी, वह हाथ से फिसल रही है. माजियार कहते हैं, "वह ऐसी जगह पर थे कि उनसे गलत फैसले हों और वह जाल में फंस जाएं."
वर्ष 2019 में अक्टूबर के मध्य में वह पेरिस में पेरेशत्यान के दफ्तर में पहुंचे और बताया कि वह इराक जा रहे हैं. वहां जाकर वह अयातोल्लाह अली सिस्तानी का इंटरव्यू करना चाहते थे जो शिया इस्लाम की बड़ी हस्तियों में से एक हैं. बताया गया कि इस इंटरव्यू के साथ एक नया टीवी चैनल लॉन्च होना था, जिसमें एक ईरानी कारोबारी का पैसा लगेगा.
जाम के दोस्तों ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि बगदाद ना जाएं क्योंकि इराक एक शिया बहुल देश है और उस पर ईरान का काफी प्रभाव है. पेरेशत्यान कहते हैं - मैंने चिल्लाकर उससे कहा, "अगर तुम वहां गए तो यह अंत होगा. फिर तुम कभी वापस फ्रांस नहीं आ पाओगे."
लेकिन जाम ने अगले दिन अम्मान जाने वाली फ्लाइट ली और उसके बाद वहां से अगले दिन बगदाद की तरफ उड़ चले. माजियार कहते हैं, "हर किसी ने उन्हें सलाह दी कि वहां मत जाओ, यहां तक कि उनके अंगरक्षक ने भी. लेकिन वह नहीं माने और इतना ही कहा कि वह इंतजार करके थक गए हैं. और अफसोस की बात है कि वह चले गए."
ये भी पढ़िए: एक साल में कहां कितने लोग फांसी पर लटकाए गए
एक साल में कहां कितने लोग फांसी पर लटकाए गए
मौत की सजा के खिलाफ दुनिया भर में उठ रही आवाजों का असर हो रहा है. फिर भी कुछ देश अपने यहां इसे खत्म ना करने पर अड़े हैं.
तस्वीर: picture-alliance/W. Steinberg
कितने देशों में
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट कहती है कि 2017 तक 142 देशों ने अपने यहां मौत की सजा को खत्म कर दिया था. 106 देशों में तो किसी भी अपराध के लिए मौत की सजा नहीं होती. लेकिन 23 देशों में यह सजा अब भी है.
तस्वीर: picture-alliance/W. Steinberg
गिरावट
2017 में कुल 993 लोगों की सजा ए मौत पर अमल हुआ. 2016 के मुकाबले यह चार फीसदी कम है जबकि 2015 की तुलना में यह 39 फीसदी कम है जब साल भर में 1,634 लोगों को मौत मिली.
तस्वीर: Picture-alliance/dpa/epa/S. Lecocq
चीन
रिपोर्ट के मुताबिक 993 के आंकड़े में चीन के वे "हजारों लोग" शामिल नहीं हैं, जिन्हें वहां एक साल में मौत की सजा दी जाती है. ये काम वहां बहुत ही गोपनीयता से होता है जिसके आंकड़े कभी सामने नहीं आते.
तस्वीर: AP
अमेरिका
अमेरिका पश्चिमी दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां मौत की सजा दी जाती है. अमेरिकी जेलों में लगभग 2,700 लोग मौजूद हैं जिन्हें मृत्युदंड मिला हुआ है. 2017 में अमेरिका में 23 लोगों को मृत्युदंड दिया गया.
तस्वीर: imago/blickwinkel
टॉप 10
इस मामले में सऊदी अरब, इराक, ईरान और पाकिस्तान भी टॉप 10 में हैं. 2017 में कुल 84 प्रतिशत लोग सऊदी अरब, इराक और पाकिस्तान में ही फांसी पर चढ़ाए गए. वहीं ईरान में 30 लोगों को सरेआम फांसी दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Abdullah
यूरोप और मध्य एशिया
यूरोप और मध्य एशिया में सिर्फ बेलारूस में 2017 में एक व्यक्ति को मृत्युदंड दिया गया. वहीं रूस, कजाखस्तान और ताजिकिस्तान में इस दौरान किसी को फांसी पर नहीं चढ़ाया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Endig
खत्म की सजा
2017 में जिन देशों ने अपने यहां सभी तरह के अपराधों में मौत की सजा को खत्म किया उनमें गिनी और मंगोलिया का नाम शामिल है. गुआटेमाला ने फौजदारी अपराधों में इस पर रोक लगाई.
तस्वीर: AP
दो बनाम पांच
सब सहारा अफ्रीका में सिर्फ सोमालिया और सूडान ही ऐसे देश रहे जिन्होंने 2017 में मृत्युदंड की सजाओं पर अमल किया गया. 2016 में इस क्षेत्र में ऐसे देशों की संख्या पांच थी.
तस्वीर: picture-alliance/AP/R. Maqbool
अफ्रीका आगे बढ़ा
बुरकीना फासो, चाड, केन्या और गांबिया जैसे अन्य अफ्रीकी देशों में इस मामले में प्रगति हो रही है. वहां ऐसे कानून बनाए जा रहे हैं ताकि मौत की सजा पर प्रतिबंध लगाया जा सके.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Kurokawa
पाकिस्तान
पाकिस्तान में 2017 में 65 लोगों को फांसी पर चढ़ाया गया. इससे पहले 2014 में सात, 2015 में 326 और 2016 में 87 को मौत की दी गई. इनमें ज्यादातर लोगों को सैन्य अदालतों ने सजा सुनाई.
तस्वीर: Reuters
भारत
भारत में आखिरी बार 2015 में 1993 मुंबई बम धमाके के दोषी याकूब मेनन को फांसी पर चढाया गया था. इससे पहले 2013 में अफजल गुरु और 2012 में अजमल कसाब को फांसी दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta
नेपाल
दक्षिण एशिया में नेपाल अकेला ऐसा देश है जहां मौत की सजा पर रोक है. नेपाल में आखिरी बार 1979 में मौत की सजा पर अमल किया गया था जबकि 1997 में इसे खत्म कर दिया गया.
तस्वीर: picture-alliance
12 तस्वीरें1 | 12
सदमे में परिवार
जाम ने अम्मान एयरपोर्ट से अपनी पत्नी को टेलीफोन किया, लेकिन लगता है कि जैसे ही वह बगदाद के एयरपोर्ट पर पहुंचे, उन्हें दबोच लिया गया. उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई और एक कार में डालकर ईरानी सीमा की तरफ ले जाया गया. बाद में एक ईरानी टीवी में प्रसारित एक फुटेज में यह सब दिखाया गया. ईरान में हिरासत में रखे जाने के दौरान जुलाई 2020 में उनका एक इंटरव्यू सरकारी टीवी चैनल पर प्रसारित हुआ. विपक्षी कार्यकर्ता कहते हैं कि ईरान में अकसर कैदियों का इस तरह इंटरव्यू लिया जाता है जिसमें जबरदस्ती अपना जुर्म कबूल कराया जाता है.
जाम पर "भ्रष्टाचार के बीज बोने" और फ्रांस और इस्राएल जैसे देशों के लिए जासूसी करने के आरोप लगे, जिन्हें खुद जाम और उनके समर्थकों ने खारिज किया. 12 दिसंबर को उन्हें फांसी दे दी गई. उनके पिता ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर लिखा कि उन्हें फांसी से एक दिन पहले अपने बेटे से मिलने दिया गया. उनका कहना है कि रुहोल्लाह को अंधेरे में रखा गया था.
जाम की बेटी नियाज ने सोशल मीडिया पर लिखा ने उनके पिता ने फांसी से पहले व्हाट्सएप पर कॉल किया, ब्रिटेन के किसी नंबर से. उन्होंने लिखा, "मुझे पता चल गया था कि ऐसा होने वाला है. और सबसे मुश्किल बात यह है कि मैं कुछ नहीं कर सकती थी." परिवार अभी तक सदमे है. उन्होंने एएफपी से बात करने से इनकार कर दिया.
निंदा और आलोचना
अमेरिका और यूरोपीय देशों ने जाम की फांसी की निंदा की जबकि संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बेशलेट ने कहा कि उन्हें ईरानी सीमा के बाहर जाम को पकड़ने के बारे में "गंभीर आपत्तियां" हैं और "इसे अपहरण के बराबर" माना जाएगा. लेकिन ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी ने कहा कि वह मानते हैं कि इसकी वजह से ईरान और यूरोप के संबंधों को कोई नुकसान नहीं होगा. उन्होंने कहा कि मौत की सजा ईरानी न्याय व्यवस्था का हिस्सा है.
बहरहाल यह फांसी फ्रांस में रहने वाले ईरान के आलोचकों को एक चेतावनी थी कि देश से बाहर होने के बाजवूद वे अपनी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत नहीं हो सकते. गोरबानी कहते हैं, "इस फांसी के जरिए वे सरकार समर्थकों को संदेश देना चाहते हैं कि दूसरे रास्ते पर जाने की हिम्मत भी ना करें. साथ ही वे ईरान से बाहर रहने वाले लोगों को दिखाना चाहते हैं कि वे कितने ताकतवर हैं."
नए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में चार स्कैंडेनेवियाई देशों को पत्रकारों के लिए सबसे अच्छा माना गया है. भारत, पाकिस्तान और अमेरिका में पत्रकारों का काम मुश्किल है. जानिए रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स के इंडेक्स में कौन कहां है.
तस्वीर: Getty Images/C. McGrath
1. नॉर्वे
दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है. वैसे दुनिया में जब भी बात लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आती है तो नॉर्वे बरसों से सबसे ऊंचे पायदानों पर रहा है. हाल में नॉर्वे की सरकार ने एक आयोग बनाया है जो देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिस्थितियों की व्यापक समीक्षा करेगा.
तस्वीर: Fotolia/Alexander Reitter
2. फिनलैंड
नॉर्वे का पड़ोसी फिनलैंड पिछले साल की तरह इस बार भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में दूसरे स्थान पर है. जब 2018 में हेलसिंकी में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई तो एयरपोर्ट से लेकर शहर तक पूरे रास्ते पर अंग्रेजी और रूसी भाषा में बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, "श्रीमान राष्ट्रपति, प्रेस स्वतंत्रता वाले देश में आपका स्वागत है."
डेनमार्क प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में एक साल पहले के मुकाबले दो पायदान की छलांग के साथ पांचवें से तीसरे स्थान पर पहुंचा है. 2015 के इंडेक्स में भी उसे तीसरे स्थान पर रखा गया था. लेकिन राजधानी कोपेनहागेन के करीब 2017 में स्वीडिश पत्रकार किम वाल की हत्या के बाद उसने अपना स्थान खो दिया था.
तस्वीर: AP
4. स्वीडन
1776 में दुनिया का पहला प्रेस स्वतंत्रता कानून बनाने वाला स्वीडन इस इंडेक्स में चौथे स्थान पर है. पिछले साल वह तीसरे स्थान पर था. वहां कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि बड़ी मीडिया कंपनियां छोटे अखबारों को खरीद रही हैं. स्थानीय मीडिया के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर सिर्फ पांच मीडिया कंपनियों का कब्जा है.
तस्वीर: Reuters
5. नीदरलैंड्स
अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से नीदरलैंड्स में मीडिया स्वतंत्र है. हालांकि स्थापित मीडिया पर चरमपंथी पॉपुलिस्ट राजनेताओं के हमले बढ़े हैं. इसके अलावा जब डच पत्रकार दूसरे देशों के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग करते हैं तो वहां की सरकारें डच राजनेताओं पर दबाव डालकर मीडिया के काम में दखलंदाजी की कोशिश करती हैं.
तस्वीर: Reuters/F. Lenoir
6. जमैका
कैरेबियन इलाके का छोटा सा देश जमैका प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में छठे स्थान पर है. वहां 2009 से प्रेस की स्वतंत्रता को कोई खतरा और फिर पत्रकारों के खिलाफ हिंसा का कोई गंभीर मामला देखने को नहीं मिला है. हालांकि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कुछ कानूनों को लेकर चिंतित है जिन्हें पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
तस्वीर: imago/Ralph Peters
7. कोस्टा रिका
पूरे लैटिन अमेरिका में मानवाधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता का सम्मान करने में कोस्टा रिका का रिकॉर्ड सबसे अच्छा है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरा इलाका भ्रष्टाचार, हिंसक अपराधों और मीडिया के खिलाफ हिंसा के लिए बदनाम है. लेकिन कोस्टा रिका में पत्रकार आजादी से काम कर सकते हैं और सूचना की आजादी की सुरक्षा के लिए वहां कानून हैं.
तस्वीर: picture alliance/maxppp/F. Launette
8. स्विट्जरलैंड
मोटे तौर पर स्विटजरलैंड में राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य को पत्रकारों के लिए बहुत सुरक्षित माना जा सकता है, लेकिन 2019 में जिनेवा और लुजान में कई राजनेताओं ने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे किए. इससे मीडिया को लेकर लोगों में अविश्वास पैदा हो सकता है. पहले वहां मीडिया की आलोचना तो होती थी लेकिन शायद ही कभी मुकदमे होते थे.
तस्वीर: dapd
9. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में प्रेस स्वतंत्र है लेकिन कई बार मीडिया ग्रुप मुनाफे के चक्कर में अपनी स्वतंत्रता और बहुलतावाद का ध्यान नहीं रखते हैं जिससे पत्रकारों के लिए खुलकर काम कर पाना संभव नहीं होता. जब मुनाफा अच्छी पत्रकारिता की राह में रोड़ा बनने लगे तो प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होने लगती है. फिर भी, न्यूजीलैंड का मीडिया बहुत से देशों से बेहतर है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Melville
10. पुर्तगाल
180 देशों वाले इस इंडेक्स में पुर्तगाल दसवें पायदान पर है. हालांकि वहां पत्रकारों को बहुत कम वेतन मिलता है और नौकरी को लेकर भी अनिश्चित्तता बनी रहती है, लेकिन रिपोर्टिंग का माहौल तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा है. हालांकि कई समस्या बनी हुई हैं. यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के आदेशों के बावजूद पुर्तगाल में अपमान और मानहानि को अपराध के दायरे में रखा गया है.
तस्वीर: picture alliance/Global Travel Images
11. जर्मनी
प्रेस की आजादी को जर्मनी में संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है लेकिन दक्षिणपंथी लगातार जर्मन मीडिया को निशाना बना रहे हैं. हाल के समय में पत्रकारों पर ज्यादातर हमले धुर दक्षिणपंथियों के खाते में जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अति वामपंथियों ने भी पत्रकारों पर हिंसक हमले किए हैं. दूसरी तरफ डाटा सुरक्षा और सर्विलांस को लेकर भी लगातार बहस हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
भारत और दक्षिण एशिया
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को बहुत पीछे यानी 142वें स्थान पर रखा गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक 2019 में बीजेपी की दोबारा जीत के बाद मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादियों का दबाव बढ़ा है. अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल को 112वें, श्रीलंका को 127वें, पाकिस्तान को 145वें और बांग्लादेश को 151वें स्थान पर रखा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo
अमेरिका, चीन और रूस
इंडेक्स के मुताबिक अमेरिका 42वें स्थान पर है. वहां प्रेस की आजादी को राष्ट्रपति ट्रंप के कारण लगातार नुकसान हो रहा है. लेकिन दो अन्य ताकतवर देशों चीन और रूस में स्थिति और भी खतरनाक है. रूस की स्थिति में पिछले साल के मुकाबले कोई बदलाव नहीं हुआ और वह 149 वें स्थान पर है जबकि चीन नीचे से चौथे पायदान यानी 177वें स्थान पर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Irungu
पत्रकारों के लिए सबसे खराब देश
इंडेक्स में उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया सबसे नीचे है. किम जोंग उन के शासन वाले उत्तर कोरिया में पूरी तरह से निरंकुश शासन है. वहां सिर्फ सरकारी मीडिया है. जो सरकार कहती है, वही वह कहता है. इरीट्रिया और तुर्कमेनिस्तान में भी मीडिया वहां की सरकारों के नियंत्रण में ही है.