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ईरान ने पहले फंसाया और फिर फांसी पर लटकाया

३ फ़रवरी २०२१

ईरानी सरकार के आलोचक रुहोल्लाह जाम अक्टूबर 2019 में परिवार के साथ फ्रांस में निर्वासन में रह रहे थे. वहां से वे एक अच्छी खासी न्यूज वेबसाइट चला रहे थे. लेकिन साल भर बाद 12 दिसंबर 2020 को उन्हें ईरान में फांसी दे दी गई.

ईरानी पत्रकार को फांसी
जाम के साथी कहते हैं कि उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षों की कीमत चुकाई हैतस्वीर: Ali Shirband/Mizan News Agency/picture alliance/dpa

जाम को फांसी चढ़ाए जाने की दुनिया भर में निंदा हुई. लेकिन सवाल यह है कि 42 साल के जाम कैसे फ्रांस में अपनी आराम वाली जिंदगी छोड़कर ईरान में मौत के मुंह में जा गिरे. जाम उन नेताओं की चालों को क्यों नहीं समझ पाए, जिनके खिलाफ वह अपनी वेबसाइट पर लिखा करते थे.

जाम के पिता एक मौलवी हैं और ईरान में रहते हैं. वह ईरानी सांस्कृतिक संस्थानों में बड़े पदों पर रह चुके हैं. इसलिए वह 1979 की इस्लामी क्रांति के भी कड़े समर्थक रहे हैं जिसके तहत ईरानी शाह को सत्ता से हटाया गया. उन्होंने मौजूदा ईरान के संस्थापक रुहोल्लाह खोमैनी के नाम पर अपने बेटे का नाम रखा.

फ्रांस में रुहोल्लाह जाम के साथियों और दोस्तों ने एएफपी को बताया कि ईरान ने अक्टूबर 2019 में एक जाल फैलाया और जाम उसमें फंस गए. पेरिस में रहने वाले लेखक और जाम के साथ काम कर चुके महताब गोरबानी ने बताया, "उन्होंने इराक जाकर एक खतरनाक खेल खेला, जिसमें उन्हें मात मिली. वह ईरानी सरकार की तरफ से खेले गए गंदे मनोवैज्ञानिक खेल में घसीट लिए गए."

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कैसे पहुंचे फ्रांस

जाम लगभग पांच साल से फ्रांस में रह रहे थे. उनके टेलीग्राम चैनल एडमन्यूज को बीस लाख लोगों ने फॉलो किया था. उन्होंने 2017-18 की सर्दियों में ईरान में होने वाले प्रदर्शनों में लोगों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में हिस्सा लेने को कहा. इसके अलावा उन्होंने अपने लेखों में ईरानी नेतृत्व पर कई सनसनीखेज आरोप भी लगाए थे.  

एक प्रभावशाली व्यक्ति की संतान होने के नाते जाम के तेहरान में कई बड़े लोगों से संपर्क थे, जो उन्होंने 2009 में ईरान छोड़ने के बाद भी बनाए रखे. जाम ने 2009 के विवादित राष्ट्रपति चुनाव के बाद हुए प्रदर्शनों के बीच ईरान छोड़ा था. पहले वह मलेशिया गए, फिर तुर्की और उसके बाद फ्रांस पहुंचे.

जाम के दोस्त और एक ईरानी शरणार्थी माजियार कहते हैं, "जब सत्ता में बैठे लोगों के बीच टकराव होता था तो वे जाम की तरफ आते थे. जाम ने उन्हें खूब जानकारियां दी. उनके लिए कोई सीमा नहीं थी. वह ना राष्ट्रपति का सम्मान करते थे और ना ही सर्वोच्च नेता का. किसी का नहीं. यहां तक वह खुद अपने पिता पर हंसा करते थे."

लेकिन एडमन्यूज की कामयाबी और जाम के बढ़ते कट्टरपन की एक सीमा थी. टेलीग्राम ने एडमन्यूज का चैनल सस्पेंड कर दिया और उस पर अपने फॉलोवर को पुलिस के खिलाफ पेट्रोल बम इस्तेमाल करने के लिए उकसाने का आरोप लगा. जाम का प्रभाव घटने लगा. यहां तक कि उनके दोस्त भी पूछने लगे कि क्या वह ईरानी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए ज्यादा ही उतावले नहीं हो रहे हैं.

जाम पर विदेशी खुफिया एजेंसियों के लिए जासूसी करने के आरोप लगेतस्वीर: Mizan

कैसे जाल में फंसे

पेरिस में जाम की मदद करने वाले एक वकील हसनन पेरेशत्यान कहते हैं, "रुहोल्लाह बहुत मशहूर हो गए. वह ईरानी सरकार को उखाड़ फेंकने की वकालत करने लगे. कहीं ना कहीं वह खुद को नेता समझने लगे. धीरे धीरे वह अपने दोस्तों को खोते चले गए."

गोरबानी कहते हैं, "जाम अकेले थे और अलग थलग भी. यहां तक कि निर्वासन में रहने वाले ईरानी विपक्ष के एक धड़े ने उन पर विश्वास करना छोड़ दिया." उन्हें धमकियां मिलने लगी, जिसके बाद पेरिस की पुलिस को उन्हें सुरक्षा मुहैया करानी पड़ी. जाम के दोस्त कहते हैं कि यह उनके लिए बहुत मुश्किल समय था. एक बहुत महत्वाकांक्षी व्यक्ति, जिसे लग रहा था कि उसने मीडिया में तेजी से जो जगह बनाई थी, वह हाथ से फिसल रही है. माजियार कहते हैं, "वह ऐसी जगह पर थे कि उनसे गलत फैसले हों और वह जाल में फंस जाएं."

वर्ष 2019 में अक्टूबर के मध्य में वह पेरिस में पेरेशत्यान के दफ्तर में पहुंचे और बताया कि वह इराक जा रहे हैं. वहां जाकर वह अयातोल्लाह अली सिस्तानी का इंटरव्यू करना चाहते थे जो शिया इस्लाम की बड़ी हस्तियों में से एक हैं. बताया गया कि इस इंटरव्यू के साथ एक नया टीवी चैनल लॉन्च होना था, जिसमें एक ईरानी कारोबारी का पैसा लगेगा.

जाम के दोस्तों ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि बगदाद ना जाएं क्योंकि इराक एक शिया बहुल देश है और उस पर ईरान का काफी प्रभाव है. पेरेशत्यान कहते हैं - मैंने चिल्लाकर उससे कहा, "अगर तुम वहां गए तो यह अंत होगा. फिर तुम कभी वापस फ्रांस नहीं आ पाओगे."

लेकिन जाम ने अगले दिन अम्मान जाने वाली फ्लाइट ली और उसके बाद वहां से अगले दिन बगदाद की तरफ उड़ चले. माजियार कहते हैं, "हर किसी ने उन्हें सलाह दी कि वहां मत जाओ, यहां तक कि उनके अंगरक्षक ने भी. लेकिन वह नहीं माने और इतना ही कहा कि वह इंतजार करके थक गए हैं. और अफसोस की बात है कि वह चले गए."

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सदमे में परिवार

जाम ने अम्मान एयरपोर्ट से अपनी पत्नी को टेलीफोन किया, लेकिन लगता है कि जैसे ही वह बगदाद के एयरपोर्ट पर पहुंचे, उन्हें दबोच लिया गया. उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई और एक कार में डालकर ईरानी सीमा की तरफ ले जाया गया. बाद में एक ईरानी टीवी में प्रसारित एक फुटेज में यह सब दिखाया गया. ईरान में हिरासत में रखे जाने के दौरान जुलाई 2020 में उनका एक इंटरव्यू सरकारी टीवी चैनल पर प्रसारित हुआ. विपक्षी कार्यकर्ता कहते हैं कि ईरान में अकसर कैदियों का इस तरह इंटरव्यू लिया जाता है जिसमें जबरदस्ती अपना जुर्म कबूल कराया जाता है.

जाम पर "भ्रष्टाचार के बीज बोने" और फ्रांस और इस्राएल जैसे देशों के लिए जासूसी करने के आरोप लगे, जिन्हें खुद जाम और उनके समर्थकों ने खारिज किया. 12 दिसंबर को उन्हें फांसी दे दी गई. उनके पिता ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर लिखा कि उन्हें फांसी से एक दिन पहले अपने बेटे से मिलने दिया गया. उनका कहना है कि रुहोल्लाह को अंधेरे में रखा गया था.

जाम की बेटी नियाज ने सोशल मीडिया पर लिखा ने उनके पिता ने फांसी से पहले व्हाट्सएप पर कॉल किया, ब्रिटेन के किसी नंबर से. उन्होंने लिखा, "मुझे पता चल गया था कि ऐसा होने वाला है. और सबसे मुश्किल बात यह है कि मैं कुछ नहीं कर सकती थी." परिवार अभी तक सदमे है. उन्होंने एएफपी से बात करने से इनकार कर दिया.

निंदा और आलोचना

अमेरिका और यूरोपीय देशों ने जाम की फांसी की निंदा की जबकि संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बेशलेट ने कहा कि उन्हें ईरानी सीमा के बाहर जाम को पकड़ने के बारे में "गंभीर आपत्तियां" हैं और "इसे अपहरण के बराबर" माना जाएगा. लेकिन ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी ने कहा कि वह मानते हैं कि इसकी वजह से ईरान और यूरोप के संबंधों को कोई नुकसान नहीं होगा. उन्होंने कहा कि मौत की सजा ईरानी न्याय व्यवस्था का हिस्सा है.

बहरहाल यह फांसी फ्रांस में रहने वाले ईरान के आलोचकों को एक चेतावनी थी कि देश से बाहर होने के बाजवूद वे अपनी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत नहीं हो सकते. गोरबानी कहते हैं, "इस फांसी के जरिए वे सरकार समर्थकों को संदेश देना चाहते हैं कि दूसरे रास्ते पर जाने की हिम्मत भी ना करें. साथ ही वे ईरान से बाहर रहने वाले लोगों को दिखाना चाहते हैं कि वे कितने ताकतवर हैं."

एके/एमजे (एएफपी)

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