ईरान ने माना कि अमेरिका से साथ तनाव घटाना ही 'एकमात्र उपाय'
१३ जनवरी २०२०
बीते 10 दिनों से जारी बेहद ऊंचे स्तर के तनाव के बीच अब ईरान ने संकेत दिए हैं कि वह अमेरिका के साथ हालात सुधारना चाहता है. इन दस दिनों में दोनों ही देशों ने मिसाइलें दागीं हैं जिनमें कई जानें चली गईं.
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ईरान ने माना है कि उसकी ओर से दागी गई मिसाइल से गलती से एक यात्री विमान निशाना बन गया. यूक्रेनी एयरलाइंस का यह विमान तेहरान से कीव जा रहा था और हमले के कारण उस पर सवार सभी लोग मारे गए. शनिवार रात राजधानी तेहरान में उन निर्दोष लोगों की मौत पर शोक जताने के लिए एक जागरण सभा का आयोजन किया गया था लेकिन वहां उपस्थित लोगों के गुस्से भरे प्रदर्शनों के कारण पुलिस को कुछ गिरफ्तारियां भी करनी पड़ीं. वहां गिरफ्तार हुए लोगों में ब्रिटेन के राजदूत भी थे. इसके बाद रविवार रात भी राजधानी में सुरक्षा व्यवस्था काफी बढ़ा दी गई थी.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान को चेतावनी दी थी कि वे वहां मौजूद प्रदर्शनकारियों को नुकसान ना पहुंचाए और नवंबर जैसी गलती ना दोहराएं जब ईंधन के दाम बढ़ने का विरोध कर रहे लोगों के साथ हिंसा की गई थी. रविवार रात ट्रंप ने ट्वीट में लिखा: "ईरान के नेताओं - प्रदर्शनकारियों की जान मत लो."
अमेरिका के रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने कहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप अब भी ईरान के साथ "नया रास्ता निकालने के लिए बिना किसी पूर्व शर्त के बैठ कर चर्चा करने को" तैयार हैं. हालांकि तेहरान अब भी अपने उस रुख पर अड़ा हुआ है कि जब तक अमेरिका उसके खिलाफ लगे प्रतिबंध नहीं हटाता, तब तक वे वॉशिंगटन के साथ किसी तरह की बातचीत नहीं करेंगे. तेहरान का कहना है कि 3 जनवरी को ईरानी जनरल की हत्या के बाद भी वे अमेरिका के साथ तनाव कम करना चाहते हैं. कुद्स सेना के प्रमुख जनरल कासिम सुलेमानी बगदाद में अमेरिका के एक ड्रोन हमले में मारे गए थे.
कौन है अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन
अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ती तल्खियां दुनिया भर को परेशान कर रही हैं. हालांकि ईरान इकलौता नहीं है जिससे अमेरिका की नहीं पटती. गैलप सर्वे और थिंक टैंकों के मुताबिक ऐसे कई देश हैं जिनकी अमेरिकी से बिल्कुल नहीं बनती.
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उत्तर कोरिया
साल 2018 के गैलप सर्वे के नतीजे बताते हैं कि पिछले कुछ सालों से ज्यादातर अमेरिकी उत्तर कोरिया को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मान रहे हैं. साल 2016 में महज 16 फीसदी लोग उत्तर कोरिया के परमाणु इरादों को खतरा मानते थे. वहीं 2018 तक करीब 51 फीसदी लोग ऐसा मानने लगे हैं.
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रूस
सैन्य और परमाणु शक्ति संपन्न रूस को अमेरिका हमेशा ही शक की निगाह से देखता रहा है. अमेरिका-रूस के रिश्तों में उतार-चढ़ाव का लंबा इतिहास रहा है. 2016 में 15 फीसदी अमेरिकी रूस को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे. साल 2018 तक आते-आते यह आंकड़ा 19 फीसदी पर पहुंच गया.
चीन और अमेरिका के बीच बढ़ती कारोबारी जंग दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर सकती है. मार्क्सवादी विचारधारा का समर्थक रहा चीन भी अमेरिका को कभी नहीं भाया. साल 2016 में 12 फीसदी लोग चीन को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे, हालांकि साल 2018 तक यह आंकड़ा 11 फीसदी पर पहुंच गया.
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ईरान
साल 2006 से 2012 तक अमेरिका के दुश्मनों की सूची में ईरान पहले नंबर पर जमा रहा, लेकिन इसके बाद के सालों में दुश्मनी का यह आंकड़ा कुछ घटा. साल 2015 में यह सबसे कम 9 फीसदी तक पहुंच गया. साल 2018 के नतीजों में महज 7 फीसदी अमेरिकी लोगों ने ईरान को अपना सबसे बड़ा दुश्मन माना.
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सीरिया
इस सूची में एक नाम युद्धग्रस्त सीरिया का भी है. कनाडा के थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन ग्लोबलाइजेशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मध्यपूर्व में अपनी रणनीतिक स्थिति के चलते सीरिया अमेरिका के लिए बहुत अहम है. लेकिन सीरिया के सत्ताधारी दल की ईरान, फलस्तीन, इराक और रूस से निकटता अमेरिका को बिल्कुल भी पसंद नहीं.
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वेनेजुएला
थिंक टैंक मानते हैं कि वेनेजुएला का तेल भंडार और इसकी सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था अमेरिका-वेनेजुएला के रिश्तों की बीच सबसे बड़ी दीवार है. हालांकि इन दिनों वेनेजुएला मुद्रास्फीति और आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है. हाल में ही वेनेजुएला ने अमेरिका के साथ सभी राजनयिक संबंध भी तोड़ लिए
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ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी और कतर के अमीर ने बातचीत के बाद इस पर सहमति बनाई है कि इस क्षेत्रीय संकट से बाहर निकलने का केवल यही एक रास्ता है कि तनाव घटाया जाए. कतर में मध्य पूर्व इलाके का सबसे बड़ा अमेरिकी सैन्य बेस है और उसके ईरान से भी मजबूत रिश्ते हैं. अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी ने कहा, "हम सहमत हैं कि इस संकट को खत्म करने का यही रास्ता है कि सब तनाव कम करें और बातचीत करें." यह कतर के अमीर की ईरान में पहली आधिकारिक यात्रा थी. इस पर रोहानी ने कहा, "हमने पूरे इलाके की सुरक्षा के मद्देनजर ज्यादा से ज्यादा वार्ताएं और सहयोग करने का निर्णय लिया है."
ईरानी राष्ट्रपति ने ईरान यात्रा पर आए पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से भी मुलाकात की. पाकिस्तान ने तेहरान और अमेरिका के सहयोगी सऊदी अरब के बीच मध्यस्थता करवाने का प्रस्ताव दिया है. सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे - इन दोनों ही नेताओं ने कहा है कि ईरान के सैन्य संघर्ष में पड़ने का असर वैश्विक शांति और स्थिरता पर पड़ेगा. वहीं इराकी सेना ने कहा है कि अल-बलाद में स्थित इराकी सैन्य बेस पर रविवार को एक बार फिर रॉकेट हमला हुआ, जहां अमेरिकी सेना की भी छावनी है. हालांकि हमले से पहले ही उन्हें वहां से हटा लिया गया था. हमले की जिम्मेदारी अब तक किसी ने नहीं ली है लेकिन इराक में हुए पहले के ऐसे हमलों के लिए अमेरिका ने ईरान समर्थित गुटों पर ही आरोप लगाए थे.
मध्य पूर्व के दो ताकतवर देशों सऊदी अरब और ईरान के बीच हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता है. दोनों धर्म से लेकर तेल और इलाके में दबदबा कायम करने तक, हर बात पर झगड़ते हैं.
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शिया-सुन्नी टकराव
दोनों ही देश खुद को इस्लाम की दो अलग अलग शाखों का संरक्षक मानते हैं. सऊदी अरब जहां एक सुन्नी देश है, वहीं ईरान शिया देश. इसीलिए ये दोनों दुनिया भर में शिया और सुन्नियों के बीच होने वाले विवादों की धुरी माने जाते हैं.
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तेल के दाम
1973 में अरब-इस्राएल युद्ध के दौरान तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने तेल के दाम बहुत बढ़ा दिये थे. अरब तेल उत्पादक देशों ने इस्राएल समर्थक समझे जाने वाले देशों पर रोक लगा दी, जिनमें अमेरिका भी शामिल था.
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तनाव बढ़ा
ईरान चाहता था कि तेल के दाम और बढ़ाये जाएं ताकि उसके यहां महत्वाकांक्षी औद्योगिक विकास परियोजनाओं के लिए धन मिल सके. लेकिन सऊदी अरब नहीं चाहता था कि तेल के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो. इसके पीछे उसका मकसद अपने सहयोगी देश अमेरिका को बचाना था.
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क्रांति का निर्यात
ईरान में 1979 में हुई इस्लामी क्रांति के दौरान पश्चिम समर्थक शाह को सत्ता से बेदखल किया गया और देश में इस्लामी गणतंत्र की स्थापना हुई. इसके बाद क्षेत्र के सुन्नी देशों ने ईरान पर आरोप लगाया कि वह उनके यहां क्रांति को "भेजने" की कोशिश कर रहा है.
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इराक-ईरान युद्ध
सितंबर 1980 में इराक ने ईरान पर हमला कर दिया और यह युद्ध आठ साल तक चला. सऊदी अरब ने वित्तीय रूप से इराकी सरकार की मदद की और अन्य सुन्नी देशों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रोत्साहित किया. इससे ईरान और सऊदी अरब की कड़वाहट और बढ़ी.
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हज में टकराव
सऊदी सुरक्षा बलों ने 1987 में मक्का में ईरानी श्रद्धालुओं के अनाधिकृतक अमेरिका विरोधी प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई की. इस दौरान 400 लोग मारे गये हैं. इससे गुस्साए ईरानियों ने तेहरान में सऊदी दूतावास में लूटपाट की.
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हज का सियासी इस्तेमाल
अप्रैल 1988 में सऊदी अरब ने ईरान से अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिये. 1991 तक ईरान से कोई श्रद्धालु हज यात्रा पर नहीं गया. ईरान अकसर सऊदी अरब पर हज यात्रा को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाता रहा है.
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बेहतर हुए संबंध
ईरान में मई 1997 के राष्ट्रपति चुनावों में सुधारवादी मोहम्मद खतामी की जीत के बाद दोनों देशों के रिश्तों में सुधार देखने को मिला. मई 1999 में राष्ट्रपति ईरानी राष्ट्रपति ने सऊदी अरब का ऐतिहासिक दौरा किया था.
तस्वीर: Isna
इराक की जंग
2003 में इराक पर अमेरिकी हमले ने सऊदी-ईरान तनाव को और बढ़ दिया. अमेरिकी हमले के चलते इराक में बाथ पार्टी का शासन खत्म हुआ और बहुसंख्यक शिया समुदाय को सत्ता में आने का मौका मिला. इससे इराक पर ईरान का प्रभाव बढ़ने लगा.
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अरब स्प्रिंग
2011 में जब अरब दुनिया में बदलाव की लहर चली तो सऊदी अरब ने पड़ोसी बहरीन में अपने सैनिक भेजे. वहां सुन्नी शासक के खिलाफ बहुसंख्यक शिया लोग बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरे. सऊदी अरब ने ईरान पर बहरीन में गड़बड़ी फैलाने का आरोप लगाया.
तस्वीर: AFP/Getty Images/M. Al Shaikh
सीरिया संकट
ईरान-सऊदी अरब के झगड़े में 2012 के सीरिया संकट ने भी आग में घी का काम किया. सीरिया की जंग में जहां ईरान सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद का साथ दे रहा है, वहीं उनके खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों को सऊदी अरब और उसके सहयोगी अमेरिका का समर्थन मिला.
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यमन का मोर्चा
यमन संकट में भी सऊदी अरब और ईरान एक दूसरे के सामने आ खड़े हुए. मार्च 2015 में सऊदी अरब ने सुन्नी अरब देशों का एक गठबंधन बनाया, जिसने यमनी राष्ट्रपति अब्द रब्बू मंसूर हादी के समर्थन में यमन में हस्तक्षेप किया. वहीं ईरान हूती बागियों के साथ खड़ा दिखा.
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हज में भगदड़
सितंबर 2015 में हज यात्रा के दौरान भगदड़ हुई जिसमें 2,300 विदेशी श्रद्धालु मारे गये. मरने वालों में ज्यादातर ईरानी लोग शामिल थे. इसके बाद ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातोल्लाह खमेनेई ने कहा कि सऊदी शाही परिवार इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों की व्यवस्था संभालने लायक नहीं है.
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फिर टूटे रिश्ते
जनवरी 2016 में सऊदी अरब में एक प्रमुख शिया मौलवी निम्र अल निम्र को मौत की सजा दी गयी. उन पर सरकार विरोधी प्रदर्शन भड़काने के आरोप लगे. ईरान ने इस पर गहरी नाराजगी जतायी. ईरान में सऊदी राजनयिक मिशन पर हमले किये गये और सऊदी अरब ने ईरान से अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिये.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/V. Salemi
हिज्बोल्लाह एंगल
मार्च 2016 में लेबनान के शिया मिलिशिया गुट और ईरान के सहयोगी हिज्बोल्लाह को अरब देशों ने आतंकवादी करार दिया. इससे पहले हिज्बोल्लाह के प्रमुख ने सऊदी अरब पर शिया और सुन्नियों के बीच "नफरत भड़काने" का आरोप लगाया था.
तस्वीर: AP
लेबनान पर 'पकड़'
नवंबर 2017 में लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि ईरान हिज्बोल्लाह के जरिए लेबनान पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. पद छोड़ने के बाद हरीरी ने सऊदी अरब जाकर शाह सलमान से मुलाकात की.
तस्वीर: picture-alliance/AA/Bandar Algaloud
कतर संकट
इससे पहले जून 2017 में सऊदी अरब और उसके कई सहयोगी देशों ने कतर के साथ अपने रिश्ते तोड़ लिये. उन्होंने कतर पर ईरान से नजदीकी संबंध कायम करने और चरमपंथियों का समर्थन करने का आरोप लगाया.
तस्वीर: Getty Images for ANOC/M. Runnacles
ट्रंप के साथ सऊदी अरब
अक्टूबर 2017 में सऊदी अरब ने कहा कि वह ईरान के मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की मजबूत रणनीति का समर्थन करता है. ट्रंप ने 2015 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हुए समझौते को मंजूर करने से इनकार कर दिया.