ईरान में सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खामेनेई को राष्ट्रपति से ज्यादा ताकतवर माना जाता है. लेकिन अब खामेनेई की मौत के नारे लग रहे हैं. क्या 39 साल बाद ईरान नई क्रांति के लिए तैयार हो रहा है?
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मध्य ईरान के इश्फाहन प्रांत में बीते साल 27,000 लोगों की नौकरी गई. मार्च से दिसंबर 2017 के बीच वहां सैकड़ों कंपनियां बर्बाद हो गईं. अधिकारी चेतावनी दे चुके थे कि बेरोजगारी के चलते इश्फाहन में हालात बिगड़ते जा रहे हैं. लेकिन स्थिति बदत्तर होती चली गई. धीरे धीरे देश के दूसरे हिस्सों में भी बेरोजगारी बड़ा संकट बन गई. 28 दिसंबर को इश्फाहन में धार्मिक नेताओं और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए. अब देश का ज्यादातर हिस्सा इन प्रदर्शनों में शरीक हो चुका है. अब तक 21 लोग मारे जा चुके हैं और 450 गिरफ्तार हो चुके हैं. गिरफ्तार होने वालों में ज्यादातर 30 साल से कम उम्र के युवा हैं.
ईरान के सरकारी टेलिविजन के मुताबिक इश्फाहन प्रांत में ही नौ लोग मारे जा चुके हैं. प्रांत के काहदेरिजान शहर में सोमवार शाम प्रदर्शनकारियों ने पुलिस स्टेशन पर हमला किया, जिसके बाद भारी हिंसा हुई. मृतकों में ईरानी सेना रिवोल्यूशनरी गार्ड का एक जवान और एक पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. 2009 के बाद यह सबसे बड़ा देशव्यापी प्रदर्शन है. राजधानी तेहरान में भारी संख्या में पुलिस की तैनाती के चलते प्रदर्शन दब सा गया है, लेकिन देश के दूसरे शहरों में हालात अब भी गंभीर बने हुए हैं.
राष्ट्रपति हसन रोहानी के बयान के बाद लोगों का गुस्सा और बढ़ गया है. रोहानी कह चुके हैं कि "दंगाइयों और कानून तोड़ने वालों" से देश जरूर निपटेगा. ईरान की शीर्ष नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के सचिव अली शामखानी प्रदर्शनों को "ईरान के लोगों के खिलाफ अपरोक्ष युद्ध" बता रहे हैं. स्थानीय मीडिया से बात करते हुए शामखानी ने कहा, "ईरान के हालात पर अमेरिका, ब्रिटेन और सऊदी अरब से हैशटैग और मैसेज आ रहे हैं." इंटेलिजेंस मंत्रालय ने भी प्रदर्शनकारियों के साथ सख्ती से निपटने का एलान किया है.
क्यों सड़कों पर उतर आए ईरान के लोग?
ईरान में कई साल बाद इतने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिले हैं. अलग अलग शहरों में सड़कों पर उतरे ये हजारों लोग आखिर कौन हैं और क्या चाहते हैं, चलिए जानते हैं.
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कब हुई शुरुआत?
ईरान में सरकार विरोधी प्रदर्शनों की शुरुआत 28 दिसंबर को मशाद शहर से हुई, जब बढ़ती महंगाई के खिलाफ सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए. अगले दो दिनों के भीतर ये प्रदर्शन राजधानी तेहरान समेत कई और शहरों तक पहुंचे गए.
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प्रदर्शनों का कारण?
कुछ प्रदर्शनकारी बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक असामनात के खिलाफ सड़कों पर उतरे हैं. वहीं बहुत से लोग सरकार की नीतियों से खफा हैं. प्रदर्शनों के दौरान, "रोहानी मुर्दाबाद", "फलस्तीन को भूल जाओ", और "गजा नहीं, लेबनान नहीं, मेरी जिंदगी ईरान के लिए है" जैसे नारे लग रहे हैं.
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प्रतिबंधों की मार?
कुछ लोग आम जनता पर पड़ रहे आर्थिक बोझ की वजह ईरान की विदेश नीति को बता रहे हैं जो कई क्षेत्रीय संकटों में उलझा है, तो कइयों की राय में, ईरान पर लगे प्रतिबंधों का असर अब जनता की जेब पर होने लगा है. कुल मिलाकर लोग सरकार से नाराज हैं.
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सरकार समर्थक भी सड़कों पर
ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी और सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खमेनेई का समर्थन करने वाले कट्टरपंथियों ने भी सड़क पर उतर कर अपनी आवाज बुलंद की. हालांकि सरकार समर्थक इन प्रदर्शनाकरियों की संख्या सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों से काफी कम दिखी.
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कितने शहरों में प्रदर्शन?
अब तक एक दर्जन से ज्यादा शहरों से प्रदर्शनों होने की खबर है, जिनमें जनजान, केरमानशाह, खोरामाबाद, अबार, अराक, दोरुद, इजेह, तोनेकाबोन, तेहरान, करज, मशाद, शहरेकोर्द और बांदेर अब्बास शामिल हैं.
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क्या कहती है सरकार?
राष्ट्रपति हसन रोहानी ने कहा है कि लोगों में बढ़ रही हताशा को वह समझते हैं और जनता को प्रदर्शन करने का हक है. लेकिन उन्होंने कहा कि हिंसा और तोड़फोड़ को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
ईरानी सरकार का कहना है कि इन प्रदर्शनों को फैलाने के लिए सोशल मीडिया और खासकर टेलीग्राम का इस्तेमाल किया गया. इसके बाद सरकार ने कई मैसेजिंग एप्स पर रोक लगा दी है. सरकार ने टेलीग्राम से हिंसा भड़काने वाले अकाउंट्स को बंद करने के लिए कहा है.
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कितने हताहत?
ईरान में हो रहे सरकार विरोधी प्रदर्शनों में अब तक कम से कम 21 लोगों के मारे जाने की खबर है. इसके अलावा सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है. प्रदर्शनों के कारण ईरान की सरकार को तीखी आलोचना झेलनी पड़ रही है.
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क्या बोला विश्व समुदाय?
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे लोगों को गिरफ्तार ना करने के लिए कहा है. उन्होंने कहा, "दमनकारी व्यवस्था हमेशा नहीं रह सकती. दुनिया देख रही है." जर्मनी और फ्रांस ने भी प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता दिखाई है.
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संदिग्ध परमाणु कार्यक्रम के चलते प्रतिबंध झेल रहे ईरान पर अगर नए प्रतिबंध लगे तो सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई और राष्ट्रपति हसन रोहानी के लिए संकट और बढ़ जाएगा. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के मुताबिक ईरान में अब "बदलाव का वक्त" आ चुका है, लोग आजादी के "भूखे" हैं. यूरोपीय संघ भी ईरान के हालात पर नजर बनाए हुए हैं.
तेहरान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मोहम्मद मारांदी के मुताबिक, "ईरान के लोग अव्यवस्था से नाराज हैं, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि अमेरिका और उसके सहयोगियों के चलते प्रशासन बहुत कुछ नहीं कर पा रहा है." मरांदी कहते हैं कि प्रदर्शनकारी भी अलग अलग किस्म के हैं. कुछ सरकार विरोधी हैं, कुछ खामेनेई विरोधी तो कुछ देश की विदेश नीति के खिलाफ नारे लगा रहे हैं. मैसेजिंग ऐप और सोशल मीडिया नेटवर्क ब्लॉक करने के बावजूद सरकार विरोधी प्रदर्शनों के नए वीडियो भी सामने आ रहे हैं. इस बीच कुछ शहरों में सरकार के समर्थन में भी मार्च निकाले जा रहे हैं.
40 फीसदी युवा बेरोजगार
2013 में अर्थव्यवस्था को बेहतर करने का नारा देकर पहली बार सत्ता में आए हसन रोहानी नौकरियां पैदा करने और बचाए रखने में असफल साबित हो रहे हैं. ईरान में इस वक्त 12 फीसदी बेरोजगारी है. बाजार में महंगाई है और बेरोजगारों के पास आम जरूरतें पूरी करने के लिए पैसा तक नहीं है. सबसे ज्यादा मार युवाओं पर पड़ी है. विश्लेषकों के मुताबिक 40 फीसदी युवा बेरोजगार हैं. आठ करोड़ की जनसंख्या वाले ईरान की आधी आबादी 30 साल से कम उम्र की है. देश के ग्रामीण इलाकों में हालात सबसे ज्यादा बुरे हैं. ईरान में देहाती इलाकों को हमेशा सत्ता को समर्थन देने वाले इलाकों के रूप में जाना जाता था, लेकिन इस बार प्रदर्शन वहीं से भड़के हैं.
35 साल की सरिता मोहम्मदी तेहरान में टीचर हैं. सरिता कहती हैं, "लोग बहुत झेल चुके हैं, खास तौर पर युवा. उनके पास खुश होने का कारण नहीं है. प्रांतों में हालात और बुरे हैं. खेती बर्बाद हो चुकी है. मैं कई ऐसे लोगों को जानती हूं जो उत्तरी इलाकों को छोड़कर काम की तलाश में तेहरान आए हैं." राष्ट्रपति हसन रोहानी भी मान रहे हैं कि बेरोजगारी बड़ी समस्या बन चुकी हैं. रविवार को शांति की अपील के दौरान रोहानी ने इस पर बात भी की.
1979 की इस्लामिक क्रांति से अयातुल्लाह अली खामेनेई ने ईरान में जो ताकत हासिल की थी, वह दांव पर हैं. जिस ईरान में कभी खामनेई के एक इशारे पर जन सैलाब उमड़ पड़ता था, वहां अब "रोहानी को मौत, तानाशाह को मौत" के नारे लग रहे हैं. खामेनेई को तानाशाह बताया जा रहा है.
आने वाले खतरे की निशानी हैं ईरान की ये तस्वीरें
ईरान के कोहगिलूयेह और बोयरअहमद प्रांत में सूखे की मार के कारण लोग पीने के पानी को दर बदर भटक रहे हैं. इस इलाके की तस्वीरें जल संकट की तरफ बढ़ती दुनिया की तरफ इशारा करती हैं.
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सूखे जल स्रोत
कोहगिलूयेह और बोयरअहमद प्रांत में पानी ज्यादातर स्रोत सूख गये हैं. इसीलिए पीने के पानी के लिए ग्रामीण इलाके के लोगों को लंबी दूरी तय करनी पड़ रही है. बहुत से ग्रामीण तो तंग आकर शहरों का रुख कर रहे हैं.
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बदतर हालात
ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब कोहगिलूयेह और बोयरअहमद ईरान के सबसे अमीर प्रांतों में से एक हुआ करता था. लेकिन आज यहां पैदा जल संकट से पता चलता है कि अब इलाके की स्थिति क्या है.
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जिंदगी मुश्किल
समाचार एजेंसी इरना के मुताबिक इस प्रांत के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में जल आपूर्ति का कोई बुनियादी ढांचा नहीं है. ऐसे प्राकृतिक जल स्रोतों के सूख जाने से इलाके के लोगों की जिंदगी मुश्किल हो गयी है.
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सूखे की मार
हाल के सालों में ईरान के कई इलाकों ने सूखे की मार झेली है. जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के कई हिस्सों में मौसम बदल रहा है. इसकी वजह से कहीं भारी बाढ़ तो कहीं सूखे की स्थिति पैदा हो रही है.
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जल बिन सब सून
जल ही जीवन है. इसलिए इस इलाके के लोगों के लिए पीने के पानी का इंतजाम करना आज सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गया है. दूर दूर से डिब्बों में पानी भर कर लाना अब इनकी जिंदगी का अहम हिस्सा हो गया है.
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जैसे तैसे गुजारा
तेस्नीम समाचार एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार इस प्रांत में पानी के 210 चश्मे सूख गये हैं. सिर्फ कुछ जल स्रोत ही बचे हैं जो जैसे तैसे लोगों की प्यास बुझा रहे हैं.
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बदलती आबो हवा
सूखे और जल संकट से निपटने के लिए कारगार योजना न बनाने के लिए ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी को अकसर आलोचना झेलनी पड़ती है. जलवायु परिवर्तन के कारण ईरान में धूल भरी आंधियां भी बढ़ी हैं.
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जल संकट
विशेषज्ञ ईरान के इन हालातों के लिए काफी हद तक जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार मानते हैं. हालांकि पानी की किल्लत ईरान ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में एक बड़े संकट का रूप लेती जा रही है.
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कहां से मिलेगा पानी
राष्ट्र का कहना है कि अगले 15 सालों में दुनिया भर के जल भंडारों में 40 फीसदी की कमी आयेगी. नीदरलैंड्स की यूनिवर्सिटी ऑफ ट्वेंटे के अध्ययन के अनुसार चार अरब लोगों को हर साल कम से कम एक महीने के लिए पानी की गंभीर कमी झेलनी पड़ेगी.