ईशनिंदा कानून के डर में जीते पाकिस्तानी ईसाई
२१ सितम्बर २०१७![Pakistan Nadeem James wegen Gotteslästerung zum Tode verurteilt](https://static.dw.com/image/40596059_800.webp)
पाकिस्तान की एक अदालत ने 35 साल के ईसाई नदीम जेम्स को ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा सुनायी है. नदीम पेशे से दर्जी है. उनके एक दोस्त ने आरोप लगाया है कि नदीम ने व्हाट्सऐप पर ईशनिंदा संबंधी मैसेज शेयर किये हैं.
इस्लामी गणतंत्र पाकिस्तान में ईशनिंदा एक बेहद संवेदनशील विषय है. यहां 18 करोड़ लोगों की कुल आबादी में 97 प्रतिशत मुसलमान हैं. ईशनिंदा कानून को पाकिस्तान में 1980 के दशक में जनरल जिया-उल-हक ने लागू किया था. हालांकि, लंबे समय से इस कानून में सुधार के लिए मांग चल रही है.
कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस कानून का दुरुपयोग अक्सर लोग छोटे मोटे विवाद या किसी रंजिश को निकलने के लिए करते हैं. धार्मिक समूह ईशनिन्दा कानून में किसी भी बदलाव का विरोध करते हैं और इसे पाकिस्तान की इस्लामी पहचान के लिए जरूरी समझते हैं. वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के ईसाई और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक कानूनी और सामाजिक भेदभाव की शिकायत करते हैं. पिछले कुछ सालों में कई ईसाई और हिंदुओं की ईशनिंदा के मामलों में बेरहमी से हत्या कर दी गयी. इसमें ज्यादातर मामले ऐसे थे जिसमें आरोप सिद्ध भी नहीं हो सके थे.
पाकिस्तान में ईशनिंदा के सबसे चर्चित मामलों में आसिया बीबी का मामला था. एक ईसाई महिला जिस पर ईशनिंदा का आरोप लगा था. उन्हें 2009 में मौत की सजा सुनायी गयी थी. यह मामला लाहौर हाई कोर्ट तक भी पहुंचा था जहां उसे सही ठहरा दिया गया था. एमनेस्टी इंनरनेशनल ने भी इस फैसले को "गंभीर अन्याय" बताया था.
ऐसे ही एक और मामले में एक नाबालिग लड़की रिम्शा मसीह को 16 अगस्त 2012 में गिरफ्तार कर लिया गया था और उसे तीन हफ्ते की रिमांड पर बड़े लोगों की जेल में रखा गया. रिम्शा मसीह पर कुरान के पन्ने जलाने के आरोप लगाये गये. इस मामले पर दुनिया भर से तीखी प्रतिक्रिया आयी. सितंबर में रिम्शा को जमानत पर रिहा कर दिया गया. 2013 में रिम्शा का परिवार पाकिस्तान छोड़ कर कनाडा चला गया.
2014 में एक ईसाई जोड़े को कुरान के अपमान के आरोप में बेरहमी से मार दिया गया था. यहां तक कि उनके शरीर को ईंट के भट्टे में जला दिया गया था.
अब एक ऐसे ही मामले में पाकिस्तानी कोर्ट ने नदीम जेम्स को मौत की सजा सुनायी थी. उन्हें सोशल मीडिया पर ईशनिंदा संबंधी पोस्ट शेयर करने के आरोप में यह सजा दी गयी है. मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में पहली बार सोशल मीडिया पर ईशनिंदा के अपराध में किसी व्यक्ति को मौत की सजा सुनाई गयी थी.
डॉयचे वेले को दिये एक इंटरव्यू में नदीम के भाई फरयाद मसीह ने ईशनिंदा के आरोपों को गलत बताया है. उन्होंने कहा कि वह और उनका परिवार जुलाई 2016 में नदीम की गिरफ्तारी के बाद से लगातार डर में जी रहे हैं.
नदीम के भाई फरयाद ने कहा, "नदीम के तीन दोस्त हैं जो गुजरात के इलाके में रहते हैं. हमारे पड़ोसी की बेटी नरगिस को नदीम से प्रेम हो गया. हालांकि वह जानती थी कि नदीम शादीशुदा है और उसके दो बच्चे हैं. नदीम के दोस्तों ने कहा कि वह नरगिस से तभी शादी कर सकता है जब वह इस्लाम कबूल कर ले. हालांकि, लड़की को नदीम के धर्म से कोई परेशानी नहीं थी. नदीम ने इस्लाम कबूल करने से इनकार कर दिया जिससे दोस्तों के बीच में विवाद पैदा हो गया." उनका कहना है कि यह एक आपसी रंजिश का मामला था जिसे ईशनिंदा का मामला बना दिया गया.
फरयाद ने बताया कि जैसे ही "ईशनिंदा" की खबर आयी, करीब 200 लोगों ने उनके घर को घेर लिया. उस वक्त नदीम, फरयाद और उनका एक और भाई काम पर गये हुए थे. वह बताते हैं कि उन्हें जैसे ही इस बारे में मालूम चला, वे कहीं छुप गये. "भीड़ हमारे घर को आग लगा देना चाहती थी लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया." नदीम ने दो दिन बाद आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उनके परिवार को उस इलाके से कहीं दूर जाकर रहना पड़ा.
उन्होंने कहा, "दुख होता है कि कैसे वे लोग एक घटना के बाद आपके दुश्मन हो जाते हैं, जो 17 साल से आपके साथ रह रहे थे."
फरयाद कहते हैं, "नदीम की गिरफ्तारी के बाद माहौल काफी सामान्य हो गया, लेकिन उनकी मौत की सजा के बाद से इस इलाके के ईसाई समुदाय में डर फैल गया है. हम शायद ही कभी हमारे घर से निकलते हैं और लगातार डर में जीते हैं. हम जानते हैं कि हमारे साथ कुछ भी हो सकता है."