पाकिस्तान में ईशनिंदा के एक और मामले में मौत की सजा खारिज हो गई है. सालों से जेल में बंद पति-पत्नी को अब रिहाई मिल सकती है. लेकिन लगभग 80 लोग ऐसे ही खतरे के साये में जेलों में बंद हैं.
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पाकिस्तान की एक अदालत ने एक इसाई पति-पत्नी को ईशनिंदा के आरोपों में मिली मौत की सजा खारिज कर दी है. गुरुवार को एक अदालत ने 2014 के निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया. शफाकत इमानुएल मसीह और उनकी पत्नी शगुफ्ता कौसर मसीह पर अपने एक मुस्लिम सहकर्मी को ऐसे संदेश भेजेने का आरोप था, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर मुहम्मद साहब का अपमान किया था. मसीह पति-पत्नी खुद को अनपढ़ बताते हैं.
इस जोड़े ने दावा किया कि उनके मुस्लिम सहकर्मी ने उन्हें साजिशन फंसाया था क्योंकि उनका काम को लेकर कोई विवाद चल रहा था. शगुफ्ता की सहकर्मी ने कथित तौर पर उनके दस्तावेज चुराए और उनसे एक फोन व नंबर खरीद लिया था. मसीह पति-पत्नी को जब गिरफ्तार किया गया था, तब पाकिस्तान में फोन नंबर उपलब्ध करवाने वाली कंपनियां ग्राहकों से अंगूठे का निशान नहीं लगवाती थीं.
मसीह पति-पत्नी की इस मामले में रिहाई यूरोपीय संसद के अप्रैल में लाए गए एक प्रस्ताव का समर्थन करती है, जिसमें ईशनिंदा के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई गई थी. इस मामले पर टिप्पणी करते हुए सांसदों ने कहा था कि मसीह दंपती के खिलाफ सबूत बहुत ज्यादा दोषपूर्ण हैं. यूरोपीय सांसदों ने मौत की सजा को फौरन और बिना किसी शर्त के खारिज करने की मांग की थी.
कराची में शिया मुसलमानों पर ईशनिंदा के आरोप में सुन्नी मुसलमानों का प्रदर्शनतस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali
क्यों अहम है यह मामला?
गुरुवार को फैसले के बाद मसीह दंपती के वकील सैफुल मलूक ने कहा कि अगले हफ्ते तक दोनों के जेल से छूट जाने की उम्मीद है. उन्होंने कहा, "मुझे बहुत खुशी है कि हम उन्हें रिहा कराने में कामयाब रहे. वे समाज के सबसे कमजोर तबके से आते हैं.” मुस्लिम बहुल देश पाकिस्तान में ईशनिंदा बहुत गंभीर मामला है. देश के कई इलाकों में सिर्फ अफवाहों के कारण अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर हमले हो जाते हैं.
मसीह दंपती को जब गिरफ्तार किया गया था, तब वे अपने चार बच्चों के साथ गोजरा कस्बे में रहते थे. वहां, 2009 में एक कुरान को नुकसान पहुंचाए जाने की अफवाह फैलने पर भीड़ ने ईसाई मोहल्ले पर हमला कर दिया था, जिसमें कम से कम सात लोग मारे गए थे. इस दंपती के वकील सैफुल मसीह ने ही चर्चित आसिया बीबी मामले की वकालत भी की थी. बीबी को ईशनिंदा के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी.
हालांकि मीडिया में यह मामला काफी चर्चित हो गया था और पश्चिमी देशों के दबाव में आसिया बीबी की मौत की सजा पलट दी गई थी. 2018 में जब आसिया बीबी को रिहा किया गया तो देश में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए थे. आसिया बीबी बाद में कनाडा चली गई थीं. स्थानीय अखबार डॉन की एक खबर के मुताबिक पाकिस्तान में आज भी लगभग 80 लोग ईशनिंदा के आरोपों में जेलों में बंद हैं. उनमें से कम से कम आधे मौत की सजा या उम्रकैद पा सकते हैं.
वीके/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
आसिया बीबी: एक गिलास पानी के लिए मौत की सजा
पाकिस्तान में 2010 में आसिया बीबी नाम की एक ईसाई महिला को मौत की सजा सुनाई गई थी. पानी के गिलास से शुरू हुआ झगड़ा उनके ईशनिंदा का जानलेवा अपराध बन गया था. लेकिन सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी किया.
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खेत से कोर्ट तक
2009 में पंजाब के शेखपुरा जिले में रहने वाली आसिया बीबी मुस्लिम महिलाओं के साथ खेत में काम कर रही थी. इस दौरान उसने पानी पीने की कोशिश की. मुस्लिम महिलाएं इस पर नाराज हुईं, उन्होंने कहा कि आसिया बीबी मुसलमान नहीं हैं, लिहाजा वह पानी का गिलास नहीं छू सकती. इस बात पर तकरार शुरू हुई. बाद में मुस्लिम महिलाओं ने स्थानीय उलेमा से शिकायत करते हुए कहा कि आसिया बीबी ने पैंगबर मोहम्मद का अपमान किया.
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भीड़ का हमला
स्थानीय मीडिया के मुताबिक खेत में हुई तकरार के बाद भीड़ ने आसिया बीबी के घर पर हमला कर दिया. आसिया बीबी और उनके परिवारजनों को पीटा गया. पुलिस ने आसिया बीबी को बचाया और मामले की जांच करते हुए हिरासत में ले लिया. बाद में उन पर ईशनिंदा की धारा लगाई गई. 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में ईशनिंदा बेहद संवेदनशील मामला है.
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ईशनिंदा का विवादित कानून
1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून लागू किया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ईशनिंदा की आड़ में ईसाइयों, हिन्दुओं और अहमदी मुसलमानों को अकसर फंसाया जाता है. छोटे मोटे विवादों या आपसी मनमुटाव के मामले में भी इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है.
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पाकिस्तान राज्य बनाम बीबी
2010 में निचली अदालत ने आसिया बीबी को ईशनिंदा का दोषी ठहराया. आसिया बीबी के वकील ने अदालत में दलील दी कि यह मामला आपसी मतभेदों का है, लेकिन कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी. आसिया बीबी को मौत की सजा सुनाई. तब से आसिया बीवी के पति आशिक मसीह (तस्वीर में दाएं) लगातार अपनी पत्नी और पांच बच्चों की मां को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे.
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मददगारों की हत्या
2010 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर ने आसिया बीबी की मदद करने की कोशिश की. तासीर ईशनिंदा कानून में सुधार की मांग कर रहे थे. कट्टरपंथी तासीर से नाराज हो गए. जनवरी 2011 में अंगरक्षक मुमताज कादरी ने तासीर की हत्या कर दी. मार्च 2011 में ईशनिंदा के एक और आलोचक और तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की भी इस्लामाबाद में हत्या कर दी गई.
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हत्याओं का जश्न
तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतों ने हीरो जैसा बना दिया. जेल जाते वक्त कादरी पर फूल बरसाए गए. 2016 में कादरी को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद कादरी के नाम पर एक मजार भी बनाई गई.
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न्यायपालिका में भी डर
ईशनिंदा कानून के आलोचकों की हत्या के बाद कई वकीलों ने आसिया बीबी का केस लड़ने से मना कर दिया. 2014 में लाहौर हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा. इसके खिलाफ परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सर्वोच्च अदालत में इस केस पर सुनवाई 2016 में होनी थी, लेकिन सुनवाई से ठीक पहले एक जज ने निजी कारणों का हवाला देकर बेंच का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
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ईशनिंदा कानून के पीड़ित
अक्टूबर 2018 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी की सजा से जुड़ा फैसला सुरक्षित रख लिया. इस मामले को लेकर पाकिस्तान पर काफी दबाव है. अमेरिकी सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस के मुताबिक सिर्फ 2016 में ही पाकिस्तान में कम से 40 कम लोगों को ईशनिंदा कानून के तहत मौत या उम्र कैद की सजा सुनाई गई. कई लोगों को भीड़ ने मार डाला.
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अल्पसंख्यकों पर निशाना
ईसाई, हिन्दू, सिख और अहमदी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं. इस समुदाय का आरोप है कि पाकिस्तान में उनके साथ न्यायिक और सामाजिक भेदभाव होता रहता है. बीते बरसों में सिर्फ ईशनिंदा के आरोपों के चलते कई ईसाइयों और हिन्दुओं की हत्याएं हुईं.
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कट्टरपंथियों की धमकी
पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों ने धमकी दी थी कि आसिया बीबी पर किसी किस्म की नरमी नहीं दिखाई जाए. तहरीक ए लबैक का रुख तो खासा धमकी भरा था. ईसाई समुदाय को लगता था कि अगर आसिया बीबी की सजा में बदलाव किया गया तो कट्टरपंथी हिंसा पर उतर आएंगे. और ऐसा हुआ भी.
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बीबी को अंतरराष्ट्रीय मदद
मानवाधिकार संगठन और पश्चिमी देशों की सरकारों ने आसिया बीबी के मामले में निष्पक्ष सुनवाई की मांग की थी. 2015 में बीबी की बेटी पोप फ्रांसिस से भी मिलीं. अमेरिकन सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस ने बीबी की सजा की आलोचना करते हुए इस्लामाबाद से अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने की अपील की थी.
बीबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन्होंने इस मामले से बरी कर दिया. आसिया को बरी किए जाने के खिलाफ आई अपील को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लोगों ने विरोध किया. लेकिन आसिया सुरक्षित रहीं. अब आसिया बीबी ने पाकिस्तान छोड़ दिया है. बताया जाता है वो कनाडा में रहने लगी हैं.