यूरोपीय देशों में एथेंस अकेली राजधानी है जहां कोई मस्जिद नहीं. हालांकि ज्यादा दिन यह स्थिति नहीं रहेगी क्योंकि विवादों में घिरे रहने के बावजूद वहां जल्दी ही एक मस्जिद की इमारत बनाने का काम पूरा होने वाला है.
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एथेंस में हल्की रोशनी वाली सड़कों के पास फुटपाथ पर खिड़कियों की एक कतार के बाद लोहे का एक दरवाजा नजर आता है. इस दरवाजे के पीछे सीढ़ियां हैं जो आपको कंक्रीट के एक कमरे में ले जाती हैं. यहां करीब 100 लोग नमाज अदा करने जमा हुए हैं. ग्रीस की राजधानी में फिलहाल मस्जिद के नाम पर यही है. पूरे शहर में ऐसे कई तहखाने, गराज और गोदाम मिलेंगे. कई बार दीवारों को थोड़ा सजा दिया जाता है और इन कमरों में हल्की रोशनी का इंतजाम कर दिया जाता है.
कई सालों से एथेंस में मस्जिद बनाने की योजना चल रही है लेकिन अब लगता है कि काम पूरा हो जायेगा. हालांकि इस बीच शहर में रह रहे दो लाख से ज्यादा मुसलमान इन्हीं कामचलाऊ मस्जिदों में नमाज पढ़ने आते हैं. ग्रीस की मुस्लिम एसोसिएशन के प्रमुख नईम एलगंदौर कहते हैं, "जब मैं वहां नमाज पढ़ लूंगा तब मानूंगा कि वहां मस्जिद है." 62 साल के नईम मिस्र के हैं और 40 साल से ग्रीस में हैं. अपनी ग्रीक बीवी एन्ना स्टामोउ के साथ वह ना सिर्फ मस्जिद के लिए बल्कि मुसलमानों की स्वीकार्यता के लिए कई सालों से संघर्ष कर रहे हैं. इस देश में 90 फीसदी से ज्यादा लोग ग्रीक ऑर्थोडॉक्स ईसाई हैं.
ग्रीस के संविधान में ईसाई धर्म को प्रमुखता दी गयी है लेकिन यह भी लिखा है कि सभी धर्मों के लोग अपनी मर्जी से बगैर किसी बाधा के अपने धर्म का पालन कर सकते हैं. इसके बाद भी लोगों की भावनाएं भड़क उठती हैं. ग्रीस के बहुत से लोग एथेंस के वोटानिकोस इलाके में बन रही मस्जिद पर आपत्ति जता रहे हैं.
निर्माण की जगह को लोहे की चादरों और कांटेदार तारों से घेर कर रखा गया है लेकिन दीवारों पर ईसाई प्रतीक चिन्ह और "मस्जिद को ना" और "ग्रीस संतों, शहीदों और नायकों का देश है" जैसे नारे लिखे नजर आते हैं. ग्रीस की रूढ़िवादी दक्षिणपंथी पार्टी क्राइसी आवगी (सुनहरी सुबह) ने मस्जिद को लगातार मुद्दा बना रखा है और इमारत की जगह पर कई बार विरोध प्रदर्शन भी किया है. इस इमारत के लिए चार बार टेंडर निकाले गये क्योंकि कोई ठेकेदार इसका ठेका लेने के लिए तैयार नहीं था. यहां मुसलमानों को लेकर अविश्वास की स्थिति काफी समय से चली आ रही है. शायद इसके पीछे सदियों पुराने ओटोमन साम्राज्य का असर है. एथेंस में मस्जिद के मुद्दे पर शहर के कई ऑर्थोडॉक्स ईसाई कहते हैं, "वे सिर्फ हमें नीचा दिखाना चाहते हैं," या फिर सवाल उठाते हैं, "मैं जानना चाहता हूं कि क्या अरब देश ऑर्थोडॉक्स चर्च बनाने की अनुमति देंगे."
दुनिया में किस धर्म के कितने लोग हैं?
दुनिया में दस में से आठ लोग किसी ना किसी धार्मिक समुदाय का हिस्सा हैं. एडहेरेंट्स.कॉम वेबसाइट और पियू रिसर्च के 2017 के अनुमानों से झलक मिलती हैं कि दुनिया के सात अरब से ज्यादा लोगों में कितने कौन से धर्म को मानते हैं.
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ईसाई
दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी ईसाइयों की है. विश्व आबादी में उनकी हिस्सेदारी 31.5 प्रतिशत और आबादी लगभग 2.2 अरब है.
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मुसलमान
इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, जिसे मानने वालों की आबादी 1.6 अरब मानी जाती है. विश्व आबादी में उनकी हिस्सेदारी 1.6 अरब है.
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धर्मनिरपेक्ष/नास्तिक
जो लोग किसी धर्म में विश्वास नहीं रखते, उनकी आबादी 15.35 प्रतिशत है. संख्या के हिसाब यह आंकड़ा 1.1 अरब के आसपास है.
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हिंदू
लगभग एक अरब आबादी के साथ हिंदू दुनिया में तीसरा बड़ा धार्मिक समुदाय है. पूरी दुनिया में 13.95 प्रतिशत हिंदू हैं.
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चीनी पारंपरिक धर्म
चीन के पारंपरिक धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या 39.4 करोड़ है और दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी 5.5 प्रतिशत है.
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बौद्ध धर्म
दुनिया भर में 37.6 करोड़ लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. यानी दुनिया में 5.25 प्रतिशत लोग भारत में जन्मे बौद्ध धर्म का अनुकरण कर रहे हैं.
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जातीय धार्मिक समूह/अफ्रीकी पारंपरिक धर्म
इस समूह में अलग अलग जातीय धार्मिक समुदायों को रखा गया है. विश्व आबादी में 5.59 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ इनकी संख्या 40 करोड़ के आसपास है.
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सिख
अपनी रंग बिरंगी संस्कृति के लिए दुनिया भर में मशहूर सिखों की आबादी दुनिया में 2.3 करोड़ के आसपास है
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यहूदी
यहूदियों की संख्या दुनिया भर में 1.4 करोड़ के आसपास है. दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 0.20 प्रतिशत है.
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जैन धर्म
मुख्य रूप से भारत में प्रचलित जैन धर्म के मानने वालों की संख्या 42 लाख के आसपास है.
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शिंटो
यह धर्म जापान में पाया जाता है, हालांकि इसे मानने वालों की संख्या सिर्फ 40 लाख के आसपास है.
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ग्रीक संसद ने 2006 में यहां रहने वाले 2 लाख मुसलमानों के लिए मस्जिद बनाने की मंजूरी दी. नईम एलगंदौर बस कंधे उचका कर कहते हैं, "वे हमारी हंसी उड़ाते है, वे लोग प्रार्थना करने चर्च जाते हैं और हम तहखानों में." मस्जिद करीब करीब बन चुकी है और इसमें एक साथ 350 लोग नमाज पढ़ सकते हैं. मस्जिद से जुड़े विवादों के कारण यहां नमाज पढ़ना शुरू होने की तारीख आगे टलती जा रही है. पहले इसे अप्रैल 2017 में शुरू होना था लेकिन अब इसे दिसंबर तक टाल दिया गया है.
विवाद के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि उस कमेटी में कौन रहेगा जो मस्जिद के लिए मुख्य इमाम को चुनेगी. नईम कहते हैं, "हमने साथ बैठ कर बात करने का प्रस्ताव रखा था. हमने बहुत पहले इमाम की खोज कर ली होती, ऐसा कोई शख्स जो अपनी नौकरी छोड़ कर पहले ग्रीक भाषा सीखने में अपना समय देता." उनका कहना है कि अधिकारियों ने उनका प्रस्ताव नहीं माना.
मुसलमानों के किसी बड़े मौके पर एलगंदौर, उनकी पत्नी और दूसरे लोग एक बड़ा हॉल किराये पर ले लेते हैं और वहीं आपस में जमा हो कर नमाज पढ़ते हैं. इसके अलावा उनके पास दूसरा विकल्प है कि वे इस्तांबुल चले जाएं. एन्ना स्टेमाउ कहती हैं, "मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे इन मौकों का लुत्फ सही तरीके से अनुभव करें और नहीं चाहती कि वो गराज या छोटे से कमरे में ये सब करें."
वामपंथी सिरीजा पार्टी सैद्धांतिक रूप से मानती है कि लोगों को तहखानों में नमाज नहीं पढ़ना चाहिए. हालांकि विश्लेषक कहते हैं अगर प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ऑर्थोडॉक्स चर्च के साथ किसी विवाद में घिरे तो पल भर में उनके लाखों वोट हवा हो जाएंगे.
मध्य पूर्व में कितने ईसाई रहते हैं?
ईसाई धर्म की स्थापना से ही मध्य पूर्व में ईसाई लोग आबाद हैं. संख्या के लिहाज से वहां वे हमेशा अल्पसंख्यक ही रहे हैं और कई मुश्किलों के शिकार भी. लेकिन अब वे सबसे बड़ा संकट झेल रहे हैं.
तस्वीर: AP
खतरे में अस्तित्व
1400 साल पहले जब मुस्लिम सेनाएं मध्य पूर्व के पूरे इलाके में फैल गईं, तब भी ईसाई वहां जमे रहे. लेकिन अब जिहादियों और मुस्लिम कट्टरपंथियों के चलते क्षेत्र के कई देशों में ईसाइयों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो रहा है. क्षेत्र में जब से आतंकवादी गुट इस्लामिक स्टेट मजबूत हुआ है, ईसाइयों के खिलाफ हमले बढ़ गए हैं.
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मिस्र
ईसायत की कोप्टिक ऑर्थोडॉक्स शाखा से सबसे ज्यादा मानने वाले लोग मिस्र में रहते हैं. देश की 9.2 करोड़ की आबादी में उनकी हिस्सेदारी 10 फीसदी है. कोप्ट ईसाई मध्य पूर्व में रहने वाला सबसे बड़ा ईसाई समुदाय है. लेकिन सरकार में उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है और वे अकसर भेदभाव और उत्पीड़न का शिकार होते हैं.
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इराक
चाल्डिएन ईसाई सबसे ज्यादा इराक में रहते हैं. 2003 में सद्दाम हुसैन की सत्ता खत्म होने से पहले उनकी संख्या दस लाख से ज्यादा थी. इनमें से छह लाख लोग तो राजधानी बगदाद में रहते थे. अब इराक में उनकी संख्या साढ़े तीन लाख से भी कम बची है. देश में जारी हिंसा और संघर्ष से बचने के लिए बहुत से चाल्डिएन ईसाई इराक छोड़ चुके हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AA/abaca
सीरिया
सीरिया में रहने वाले ईसाइयों में ज्यादातर कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स ईसाई हैं. गृहयुद्ध शुरू होने से पहले देश की 2.2 करोड़ की आबादी में पांच से नौ प्रतिशत ईसाई थे. गृहयुद्ध के दौरान बहुत से चर्च तोड़े गए और बड़ी संख्या में ईसाई का कत्ल हुआ. अलैप्पो के चाल्डिएन बिशप एंटोनी ऑडो का कहना है कि सीरिया के 15 लाख ईसाइयों में से आधे लोगों ने देश छोड़ दिया है.
तस्वीर: DW/Y. Sayman
लेबनान
लेबनान में मैरोनाइट कैथोलिक्स और ग्रीक ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों की अच्छी खासी संख्या है. लेबनान में सत्ता साझेदारी डील के मुताबिक इस समय राष्ट्रपति पद पर एक ईसाई, प्रधानमंत्री पद पर एक सुन्नी मुसलमान और संसद के अध्यक्ष पद पर एक शिया मुसलमान है. लेबनान की 60 लाख से ज्यादा की आबादी में ईसाइयों की संख्या 40 फीसदी के आसपास है.
तस्वीर: DW
इस्राएल
मुख्य तौर पर यहूदी देश इस्राएल में रहने वाले ईसाइयों की संख्या 1.6 लाख है. इनमें से ज्यादातर अरब हैं और देश के उत्तरी हिस्से में रहते हैं. इस्राएल की आबादी में उनकी हिस्सेदारी दो प्रतिशत के आसपास है.
तस्वीर: dapd
पश्चिमी तट
पश्चिमी तट और येरुशलम में विभिन्न समुदायों के लगभग 50 हजार ईसाई रहते हैं. मुख्य तौर पर ये लोग बेथलेहम और रामल्लाह में रहते हैं. बेतलेहम को ईसा मसीह का जन्म स्थान माना जाता है लेकिन अब वहां ईसाई अल्पसंख्यक बन गए हैं, लेकिन शहर की अर्थव्यवस्था अब भी उनकी पकड़ बनी हुई है.
तस्वीर: picture-alliance/newscom/D. Hill
गाजा पट्टी
गाजा पट्टी में ईसाइयों, मुख्य तौर पर ग्रीक ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों की संख्या तेजी से घट रही है. इस्लामी कट्टरपंथियों के बढ़ते हमलों ने उन्हें वहां से भागने को मजबूर किया है. गाजा पट्टी में कट्टरपंथी संगठन हमास का शासन है. इस्राएल के साथ उसके संघर्ष के हाल के सालों में कई बार तनावपूर्ण हालात पैदा हुए हैं.
तस्वीर: DW/H. Balousha
जॉर्डन
जॉर्डन में रहने वाले ईसाइयों में ज्यादातर ग्रीक और रोमन ऑर्थोडॉक्स ईसाई हैं. देश की 95 लाख की आबादी में उनकी संख्या लगभग छह प्रतिशत है. वहां कई ईसाई सांसद है और कई सरकार और समाज में ऊंचे पदों तक पहुंचे हैं. हाल के सालों में जहां कई अरब देश उथल पुथल का शिकार रहे, वहीं जॉर्डन में शांति है. (रिपोर्ट: एएफपी/एके)
तस्वीर: AP
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ग्रीक चर्च से जुड़े नेता हालांकि इस बीच आगे आये हैं और उन्होंने नयी मस्जिद को स्वीकार कर लिया है. इसकी वजह ये भी है कि मस्जिद राजधानी एथेंस के लोगों की नजरों से बचा कर एक दूरदराज के इलाके में बनायी गयी है. पहले तो इसे यहां एयरपोर्ट को जाने वाले मुख्य रास्ते के बगल में ही बनाने का प्रस्ताव था लेकिन इसका बहुत प्रबल विरोध हुआ. इसके अलावा भी कई मुद्दे उठे जैसे कि मस्जिद में मीनारें नहीं होंगी. मुसलमानों ने यह तो स्वीकार कर लिया लेकिन उनके लिए ज्यादा मुश्किल यह रहा कि मस्जिद वाले इलाके एटिका में कब्रगाह नहीं होगी. जो मुस्लिम रीति से अंतिम संस्कार चाहते हैं उन्हें इसके लिए उत्तर पूर्वी इलाके थ्रेस जाना होगा. एक बार मस्जिद में नमाज शुरू हो गयी तो फिर शायद बात आगे बढ़े लेकिन फिलहाल तो इबादत की जगह का ही इंतजार है.