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"चीन बिना किसी कारण उइगुरों को कैद कर रहा है"

नाओमी कोनराड
१८ फ़रवरी २०२०

ताजा खुफिया दस्तावेजों ने पुष्टि की है कि चीन उइगुर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को उनके धर्म और संस्कृति के कारण कैद कर रहा है. डीडब्ल्यू की ऐसे लोगों के रिश्तेदार से बात हुई जो शिनजियांग के रिएजुकेशन कैंपों में कहीं खो गए हैं.

DW Investigativ Projekt: Uiguren Umerziehungslager in China ACHTUNG SPERRFRIST 17.02.2020/17.00 Uhr MEZ
तस्वीर: AFP/G. Baker

इस्तांबुल के व्यस्त सुल्तान मूरत इलाके में संकरी सीढ़ियों का एक सिलसिला तेज रोशनी वाली बेसमेंट में पहुंचता है जो एक मस्जिद है. आमतौर पर लोगों का ध्यान इस तरफ नहीं जाता. नीचे एक छोटी सी बच्ची सफेद और सुनहरे खंभों के बीच दौड़ रही है. वहीं दर्जन भर लोग जिनमें से ज्यादातर ने सर्दियों वाला कोट पहन रखा है, हल्के नीले रंग के कालीन पर नमाज पढ़ रहे हैं.

ये सारे लोग उइगुर समुदाय के हैं. मुसलमानों का यह समुदाय पश्चिमोत्तर चीन में शिनजियांग उइगुर स्वायत्तशासी इलाके में रहता है. शिनजियांग में इन दिनों दोपहर की यह नमाज खतरनाक हो गई है. 2016 से ही चीन की सरकार उइगुर लोगों को गिरफ्तार कर कैंपों में रख रही है. आधिकारिक तौर पर इन कैंपों को वोकेशनल एजुकेशन ट्रेनिंग सेंटर कहा जाता है. पश्चिमी देशों में इन्हें "रिएजुकेशन कैंप" कहा जा रहा है.

इस्तांबुल में नमाज पढ़ रहे इन लोगों से जब पूछा गया कि उनमें से कितने लोगों के रिश्तेदार चीन की जेलों और कैंपों में हैं तो सबने हाथ उठा कर हां कहा. इन लोगों ने अपने स्मार्टफोन निकाल कर अपने रिश्तेदारों की तस्वीरें, आईडी कार्ड, बीवी, बच्चों और उन मां बाप की तस्वीरें दिखाईं, जो लापता हैं. एक दुबली पतली लड़की की तस्वीर दिखा कर एक शख्स ने कहा, "मैं नहीं जानता कि मेरी बेटी जिंदा है भी या नहीं."

मस्जिद के इमाम ने डीडब्ल्यू से नाराज स्वर में कहा, "चीनी सरकार वहां पूरा नियंत्रण करना चाहती है और वहां रहने वाले लोगों को मिटाना चाहती है. वे उइगुरों को मारना और हमारी संस्कृति को खत्म करना चाहते हैं."

कितने लोगों को कैद किया गया है, यह ठीक ठीक बता पाना मुश्किल है. अनुमान है कि शिनजियांग में रहने वाले एक करोड़ उइगुरों में से कम से कम 10 लाख लेग चीनी सरकार के बनवाई जेलों और कैंपों में कैद हैं.

तस्वीर: NDR

इलाके से आ रही खबरों में बताया गया है कि कई लोगों को अनिश्चित काल के लिए वहां रखा गया है तो कुछ को लेबर कैंपों में ले जाया गया है. जिन लोगों को वापस लौटने की इजाजत मिली, उन्हें स्थानीय अधिकारियों की कड़ी निगरानी में रखा गया है और उनकी कहीं आने जाने की आजादी सीमित है.

चीनी अधिकारियों का कहना है कि "वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर" को "चरमपंथी विचारों" को फैलने से रोकने के लिए बनाया गया है और यहां "महत्वपूर्ण कुशलता" सिखाई जा रही है. कैंप में रखे जाने वाले लोगों का कहना है कि वहां विचारों को बदलने के लिए कठिन प्रशिक्षण दिया जाता है, साथ ही मंदारिन भाषा के कोर्स कराए जाते हैं.

हाल ही में बर्लिन की यात्रा पर आए चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा था कि कि कई गैरसरकारी संगठनों, पत्रकारों और राजनयिकों को शिनजियांग में जाने की अनुमति दी गई है. उनका यह भी कहना था कि इन लोगों ने वहां एक भी यातना शिविर या रिएजुकेशन कैंप नहीं देखा. वांग का कहना था, "शिनजियांग में कोई धार्मिक प्रताड़ना नहीं हो रही है."

धर्म और संस्कृति के आधार पर चीन में गिरफ्तारी

चीन अपने आधिकारिक रुख पर डटा हुआ है लेकिन डीडब्ल्यू और जर्मन मीडिया पार्टनर एनडीआर, वेडेआर और ज्यूडडॉयचे साइटुंग को मिले कई दस्तावेजों से कुछ और ही कहानी सामने आती है. ये दस्तावेज दिखाते हैं कि चीन उइगुरों को उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए कैद कर रहा है, ना कि चरमपंथी गतिविधियों के लिए.

137 पन्नों के खुफिया दस्तावेजों में 2017 और 2018 में 311 लोगों के नाम और आईडी नंबर दर्ज हैं. इन मामलों में हिरासत में लिए गए लोगों के परिवारों के सदस्यों, पड़ोसियों और दोस्तों की भी विस्तृत जानकारी है. आमतौर पर ऐसा नहीं होता कि हिरासत में लिए गए किसी शख्स के बारे में इतनी जानकारी दी जाए. हिरासत में लिए गए लोगों के साथ करीब 1800 लोगों के पूरे नाम, आईडी और सामाजिक व्यवहार के बारे में जानकारी है. इनमें यह भी जानकारी दर्ज है कि कोई घर पर नमाज या कुरान पढ़ता है कि नहीं. सैकड़ों ऐसे लोगों के नाम भी इसमें दर्ज हैं जिनमें इस तरह की जानकारी नहीं है.

इस सूची में दर्ज सारे मामले काराकाक्स काउंटी के उइगुरों के हैं. यह इलाका दक्षिण पश्चिमी शिनजियांग होतान परफेक्चर में है जो भारत और तिब्बत की सीमा के पास है. हालांकि यह शिनजियांग प्रांत के एक बहुत छोटे से इलाके बारे में है लेकिन इन दस्तावेजों से पता चल जाता है कि अधिकारी उइगुरों के बारे में कितनी जानकारी जुटा रहे हैं. शिनजियांग में उनकी हर गतिविधि को सिक्योरिटी कैमरे और फेशियल रिकग्निशन वाले सॉफ्टवेयरों और मोबाइल ऐप के जरिए दर्ज किया जा रहा है.

बहुत से लोगों को तो इसलिए भी निशाना बनाया गया है क्योंकि उनके कानूनी रूप से तय सीमा से ज्यादा बच्चे हैं तो कुछ को इसलिए क्योंकि उन्होंने पासपोर्ट के लिए आवेदन किया है. कुछ लोगों को दाढ़ी बढ़ाने के लिए भी हिरासत में लिया गया है. एक शख्स को तो महज इसलिए पकड़ा गया क्योंकि उसने छह साल पहले एक धार्मिक वीडियो डाउनलोड किया था.

कई विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि इतनी बड़ी मात्रा में जानकारी वाला दस्तावेज जो पीडीएफ फाइल में है और जिस पर कोई आधिकारिक मुहर नहीं है, उसके असली होने के आसार हैं. इसकी असलियत इसकी भाषा और इसमें दर्ज जानकारियों से पता चलती है. डीडब्ल्यू ने सूची में शामिल कुछ लोगों के रिश्तेदारों से भी बात की और उससे सच्चाई की पुष्टि हो जाती है.

व्हिसलब्लोअरः ये लोग बिना किसी कारण लोगों को  गिरफ्तार कर रहे हैं

अब्दुवेली अयूप अमेरिका में पढ़े एक उइगुर शिक्षाविद हैं जो नॉर्वे में रहते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को ये दस्तावेज मुहैया कराए. अयूप ने शिनजियांग में उइगुर लैंग्वेज स्कूल खोलने की कोशिश की जिसके बाद उन्हें कैद कर लिया गया. 15 महीने कैद में बिताने वाले अयूप के परिजन शिनजियांग में रहते हैं और उन पर खतरा मंडरा रहा है. बावजूद इसके अयूप ने अपनी पहचान जाहिर करने का फैसला किया. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि चीनी अधिकारी उन पर पहले से ही नजर रख रहे हैं. उनकी पत्नी के कई रिश्तेदारों को हाल के महीनों में गिरफ्तार किया गया है. डीडब्ल्यू से मुलाकात के ठीक पहले उनके पास एक फोन कॉल आया जिसमें उन्हें धमकी दी गई और बातचीत से पीछे हट जाने को कहा गया.  कंधे उचकाते हुए अयूप ने कहा, "हां यह खतरनाक है, लेकिन किसी को बोलना चाहिए और बताना चाहिए कि क्या हो रहा है."

अयूप ने नॉर्वे के एक होटल में डीडब्ल्यू से मुलाकात के दौरान कहा कि जब पहली बार दस्तावेज उनके सामने आया तो वे "दंग" रह गए. उन्हें जल्दी ही यह अहसास हो गया कि चीन में नजरबंदी का जो तंत्र है उसका तथाकथित चरमपंथ से कोई लेना देना नहीं है. उन्होंने कहा, "मैंने सोचा कि वे लोग लोगों को बिना किसी वजह गिरफ्तार कर रहे हैं."

अयूप ने इसके खिलाफ कुछ करने का फैसला किया और सूची में शामिल लोगों के रिश्तेदारों की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने इसमें से 29 लोगों का पता लगा लिया जो तुर्की में रहते हैं और उन्हें फोन करना शुरु किया.

उन्होंने बताया कि यह एक खौफनाक काम था. जिन लोगों को उन्होंने फोन किया उनमें ज्यादातर लोगों ने शिनजियांग में अपने परिवारों से कई सालों से बात नहीं की थी. इसकी वजह यह थी कि विदेश से फोन आने की वजह से उनके परिवारों पर अनचाहे ही सरकार का ध्यान जाएगा और फिर उनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है. अब यह अयूप पर था कि वह विदेश में रहने वाले लोगों को बताए या नहीं कि उनके रिश्तेदार फिर भी रिएजुकेशन कैंपों में भेज दिए गए हैं. अयूप ने कहा, "मुझे उन्हें बताना पड़ा कि उनके परिवार के सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए और वे रो पड़े."

अयूप जिन लोगों तक पहुंचने में कामयाब हुए, उनमें रोजिनिसा मेमेत तोहती भी हैं. तीन बच्चों की मां तोहती एक गृहणी हैं. उनकी उम्र करीब 35 साल है. इस्तांबुल के एक सजे सजाए घर में जब डीडब्ल्यू रिपोर्टर उनसे मिलने पहुंचे तो लिविंग रूम की मेज पर मेहमानों के लिए मिठाई, फल और मेवों की कई तश्तरियां रखी हुई थीं.

तस्वीर: Durrie Bouscaren

भावुक बातचीत में तोहती ने कहा कि जब उन्हें सूची में अपनी छोटी बहन का नाम होने का पता चला तो उनका दिल बैठ गया. उन्होंने कहा, "मैं कई दिनों तक ना खा सकी ना सो सकी. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी छोटी बहन जेल में होगी."

तोहती के पास उनके रिश्तेदारों की कई तस्वीरें हैं. एक तस्वीर में एक युवा जोड़ा एक नवजात बच्चे के साथ पार्क में दिन बिताते हुए नजर आता है. एक दूसरी तस्वीर में गंभीर मुद्रा में दाढ़ी और ऊन की टोपी वाले एक बुजुर्ग नजर आते हैं. तोहती इन तस्वीरों को बहुत संभाल कर रखती हैं. इंटरव्यू के दौरान भी वो उन्हें अपने हाथों में लिए बैठी रहीं. शायद ये उनके परिवार और मां बाप की आखिरी निशानी हो.

वो यह जानती हैं कि उनकी बड़ी बहन और बुजुर्ग मां बाप को 2016 में जेल में डाल दिया गया. तुर्की में व्यापार के सिलसिले में आए एक पारिवारिक मित्र ने तोहती को उनकी गिरफ्तारी के बारे में बताया था. हालांकि उन्हें नहीं पता था कि उनकी छोटी बहन को भी मार्च 2018 में गिरफ्तार कर लिया गया. शिनजियांग में रहने वाले बाकी रिश्तेदारों से उनका संपर्क नहीं है. तोहती को डर है कि अगर उन्होंने उनसे संपर्क करने की कोशिश की तो रिश्तेदारों को मुश्किल हो सकती है.

तोहती की बहन अपने पति के साथ एक केक की दुकान चलाती थी और वो ऐसी नहीं लगती थी कि जिस पर गिरफ्तारी का खतरा हो. तोहती ने रोते हुए कहा, "मैं सचमुच हैरान हूं."

शिनजियांग के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति है जबकि शहरों में सिर्फ दो बच्चे ही पैदा किए जा सकते हैं. हालांकि कई उइगुर इन नियमों को नहीं मानते. गलती से उन्होंने समझा था कि इसके लिए उन पर सिर्फ जुर्माना लगेगा. तोहती की छोटी बहन को इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उसके कई बच्चे हैं. इन दस्तावेजों में उसके मामले का ब्यौरा दर्ज है.

डीडब्ल्यू ने इन दस्तावेजों का अनुवाद किया है और इसके मुताबिक उनकी छोटी बहन से "फिलहाल कोई नुकसान नहीं" है और उन्हें "वोकेशनल सेंटर में ट्रेनिंग" दी जाएगी और "समुदाय के जरिए उन पर नजर" रखी जाएगी.

तस्वीर: DW/N. Conrad

अभी यह साफ नहीं है कि उनकी छोटी बहन की रिहाई हुई है या नहीं. अगर वो रिहा हो गई होंगी तो भी उनकी निगरानी की जा रही होगी और उनके हर कदम, हर संपर्क के बारे में जानकारी रखी जा रही होगी.

तोहती का कहना है कि वह अपने परिवार के लिए चिंतित हैं. एक पूर्व कैदी दो साल पहले भाग कर तुर्की आ गया था उसने कैंप में कैदियों के साथ व्यवहार के बारे में डरावनी कहानियां सुनाई है. तोहती ने कहा, "मैंने सुना है कि जब वो आपस में बात करते हैं तो उन्हें मारा जाता है और काल कोठरी में बंद कर दिया जाता है."

उन्होंने ऐसी अफवाहें भी सुनी है कि कैदियों को अंग निकाल कर उन्हें चीन में कहीं और बेच दिया जाता है. शिनजियांग के एक उइगुर के रिश्तेदार से डीडब्ल्यू की इस्तांबुल में बातचीत हुई थी. उसने भी अंगों के कारोबार के बारे में जानकारी दी. तोहती ने कहा कि उन्हें डर है कि उनके भतीजे भतीजियों को शायद अनाथालाय में डाल दिया गया होगा. ये अनाथालाय चीनी अधिकारियों ने शिनजियांग में पकड़े गए उइगुरों के बच्चों के लिए खोले हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि इन अनाथालयों में भी बच्चों को कठिन वैचारिक ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वो अपनी उइगुर संस्कृति और पहचान को भूल जाएं.

उग्रवादी उइगुर 'अंत तक लड़ने के लिए तैयार'

चीन अधिकारियों का कहना है कि ये कैंप उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा हैं और उइगुर चमरपंथ के बारे में चीनी अधिकारियों की चिंताएं जायज हैं.

2009 में शिनजियांग की राजधानी उरुमछी में हुए जातीय दंगों में 140 से ज्यादा लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हो गए. प्रदर्शनकारियों ने इस दौरान चीनी छात्रों और बसों को निशाना बनाया.

2014 में उरुमछी के एक बाजार में आतंकवादी हमला हुआ जिसमें 31 लोगों की जान गई. इसके जवाब में चीनी सरकार ने उइगुरों पर नियंत्रण और निगरानी बढ़ा दी.

उइगुर मुसलमान लंबे समय से चीन में राजनीतिक और सांस्कृतिक भेदभाव की शिकायत करते रहे हैं. इसकी वजह से बड़े पैमाने पर असंतोष और हिंसा फैली है. 

इस्तांबुल में डीडब्ल्यू की मुलाकात एक उइगुर से हुई. पहचान छिपाने के लिए उसने पर्दे के पीछे से बात की. इस शख्स ने बताया कि 2015 में वह 50-60 लोगों के साथ सैन्य प्रशिक्षण के लिए सीरिया गया था. यहां फ्री सीरियन आर्मी ने इन लोगों की ट्रेनिंग कराई.

भविष्य के इस लड़ाके ने बताया कि उसे कलाश्निकोव राइफल और टैंक चलाने की ट्रेनिंग दी गई.  इसके साथ ही उसने कहा कि छह महीने की इस ट्रेनिंग का मकसद शिनजियांग में लौट कर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से लड़ना था. इस गुट ने सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की योजना बनाई थी. यह गुट चीनी सरकार के लिए काम करने वाले हान समुदाय के लोगों को भी निशाना बनाना चाहता है.

तस्वीर: Getty Images/AFP/Goh Chai Hin

शांत मुद्रा में इस शख्स ने कहा कि वे लोग "अंत तक लड़ने को तैयार हैं." हालांकि उसने यह भी कहा कि फिलहाल उनकी योजना बिगड़ गई है क्योंकि उनके गुट के कई सदस्यों को तुर्की और यूरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है. उसने यह भी कहा कि वह अब भी हरकत में आने के लिए मौके के इंतजार में है.

डीडब्ल्यू स्वतंत्र रूप से उसके दावों की पुष्टि नही कर सका लेकिन फ्री सीरियन आर्मी के साथ उइगुरों की ट्रेनिंग के दूसरे मामले सामने आए हैं. सैकड़ों उइगुरों ने तथाकथित इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों में भी शामिल हुए थे.

जर्मन अधिकारी भी उइगुर अलगाववादी धड़ों और अफगान तालिबान और अल कायदा के बीच संभावित रिश्तों की बात मानते हैं. पिछले साल जर्मन विदेश मंत्रालय ने इस बारे में एक खुफिया रिपोर्ट भी तैयार की थी.

ऐसा लगता है कि आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर चीन की नीति पूरी आबादी को ही सजा देने की है. लोगों को उइगुर भाषा, धर्म और संस्कृति के नाम पर निशाना बनाया जा रहा है और उन्हें लगातार इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के दायरे में रखा जा रहा है.

तोहती की दो बहनों जैसे लोगों का जुर्म बस इतना है कि उन्होंने ज्यादा बच्चे पैदा किए या फिर पासपोर्ट के लिए आवेदन किया.

एक शख्स ने डीडब्ल्यू से कहा, "वे बिना किसी कारण तुम्हें बंद कर देंगे." इस शख्स की बीवी के भाई का नाम भी इस सूची में है. उसने पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर डीडब्ल्यू से बात की क्योंकि उसे चीनी अधिकारियों की कार्रवाई का डर है. वह इस बात पर दृढ़ हैं कि उसका साला एक शांत छात्र था और उसने कुछ भी गलत नहीं किया. उसने कहा कि अगर शिनजियांग में चीनी अधिकारी उनकी किताबों में खोए रहने वाले उसके साले को पकड़ सकते हैं तो कोई भी सुरक्षित नहीं है.

(डीडब्ल्यू की चेरी चान, जूलिया बायर और वेस्ले रान ने  इस रिपोर्ट को तैयार करने में मदद दी है.)

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