जर्मन संसद के निचले सदन में तीन उत्तर अफ्रीकी देशों को "सुरक्षित देश" घोषित करने पर सहमति बन गई. इसका असर इन देशों से जर्मनी पहुंचे प्रवासियों को राजनैतिक शरण दिए जाने के फैसले पर पड़ेगा.
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मोरक्को, अल्जीरिया और ट्यूनीशिया- इन तीन अफ्रीकी देशों के नागरिकों को अब जर्मनी में शरण मिलना बहुत मुश्किल होगा. जर्मन संसद बुंडेसटाग में पास हुए कानून के मसौदे के अनुसार यह सुरक्षित देश माने जाएंगे और इनके नागरिकों का शरण आवेदन रद्द होने पर उन्हें उनके देश वापस भेजना आसान होगा.
कई मानवाधिकार समूह इस कानून की आलोचना कर रहे हैं. उनके अलावा जर्मनी की विपक्षी ग्रीन पार्टी और वामपंथी डी लिंके भी इसके खिलाफ हैं. कानून बनाने के लिए संसद के ऊपरी सदन बुंडेसराट में भी इसका पास होना जरूरी होगा.
कहां से आ रहे हैं शरणार्थी
यूरोप को अप्रत्याशित संख्या में आ रहे शरणार्थियों के व्यवस्थित पंजीकरण में कामयाबी नहीं मिली है. जर्मनी द्वारा सितबंर में शरणार्थियों के लिए सीमा खोलने से पहले अगस्त तक करीब छह लाख लोगों ने ईयू में शरण का आवेदन दिया.
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1. सीरिया
यूरोपीय सांख्यिकी दफ्तर के अनुसार सबसे ज्यादा शरणार्थी सीरिया से हैं. इस साल सीरिया के करीब सवा लाख लोगों ने शरण का आवेदन दिया है जो कुल आवेदन का 20 फीसदी है.
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2. कोसोवो
दूसरे नंबर पर सर्बिया से अलग होकर देश बनने वाला कोसोवो हैं जहां से करीब 66 हजार लोगों ने शरण का आवेदन दिया है. वे आर्थिक मुश्किलों की वजह से यूरोपीय देशों में बसना चाहते हैं.
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3. अफगानिस्तान
पिछले साल पश्चिमी सेनाओं की वापसी के बाद अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति बिगड़ी है और शरणार्थियों की संख्या बढ़ी है. इस साल करीब 63 हजार लोग यूरोप में शरण का आवेदन दे चुके हैं.
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4. अलबानिया
यूरोपीय देशों में शरण चाहने वालों में चौथे नंबर पर अलबानिया के लोग हैं जहां के करीब 43 हडार लोगों ने आवेदन दिया है. अलबानिया के लोग भी आर्थिक मुश्किलों से भाग रहे हैं.
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5. इराक
जिन देशों के लोगों को शरण मिलने की सबसे ज्यादा संभावना है उनमें सीरिया और एरिट्रिया के अलावा इराक भी है. इराक के करीब 34 हजार लोगों ने शरण के लिए आवेदन दिया है.
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6. एरिट्रिया
अफ्रीकी देश एरिट्रिया के करीब 27 हजार लोग यूरोपीय संघ के देशों में शरण लेना चाहते हैं. वे बेहतर जिंदगी की चाह में भूमध्य सागर के रास्ते जान की बाजी लगाकर यूरोप पहुंचने की कोशिश करते हैं.
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7. सर्बिया
कभी सर्बिया की वजह से शरणार्थी यूरोप आ रहे थे. अब सर्बिया के लोग भी ईयू में अपना भविष्य संवारना चाहते हैं. और रास्ता नहीं होने के कारण करीब 22 हजार लोगों ने शरण पाने के लिए आवेदन दिया है.
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8. पाकिस्तान
आतंकवाद और पिछड़ेपन में उलझे पाकिस्तान के बहुत से लोगों के लिए भी देश से भागना बेहतर जिंदगी का एकमात्र रास्ता है. शरण के आवेदकों में करीब 20 हजार पाकिस्तान से हैं.
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9. सोमालिया
यूरोप आने वाले शरणार्थियों में चोटी के दस देशों में सोमालिया भी शामिल है. सोमालिया जहां सरकार का तंत्र पूरी तरह खत्म हो चुका है, वहां से 13 हजार लोगों ने शरण पाने के लिए आवेदन दिया है.
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10. यूक्रेन
यूरोप में गृहयुद्ध झेल रहा यूक्रेन भी लोगों के भागने की समस्या से जूझ रहा है. वहां से भी करीब 13 हजार लोगों ने यूरोपीय संघ में शरण पाने की इच्छा जताई है.
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बुंडेसटाग में चांसलर अंगेला मैर्केल की कंजर्वेटिव पार्टी और सरकार में उनके साझेदार सोशल डेमोक्रैट गुट के बहुमत में होने के कारण इस प्रस्ताव को बड़ी आसानी से मंजूरी मिल गई. 424 सांसदों ने इसके पक्ष में और केवल 143 ने इसके खिलाफ वोट दिया. तीन सांसदों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. असली परीक्षा ऊपरी सदन में देखने को मिलेगी.
कानून के प्रभाव में आने से प्रशासन को इन देशों के नागरिकों को डिपोर्ट करने में आसानी होगी. गृह मंत्री थोमास दे मेजियेर ने कानून के समर्थन में बोलते हुए बताया कि साल के पहले तीन महीने में स्वीकार किए गए शरणार्थियों में केवल 0.7 प्रतिशत आवेदन इन तीन अफ्रीकी देशों के नागरिकों के थे.
इस साल जनवरी से ही जर्मन सरकार शरणार्थी नियमों को और सख्त बना कर शरणार्थियों की संख्या को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले एक साल में सीरिया, इराक और अफगानिस्तान जैसे देशों से 10 लाख से भी ज्यादा लोग जर्मनी शरणा की तलाश में पहुंचे थे. शरणार्थी मुद्दे को लेकर सत्ताधारी सीडीयू-एसपीडी गठबंधन की नेता चांसलर अंगेला मैर्केल की लोकप्रियता में काफी कमी दर्ज की गई है.
आरपी/ओएसजे (एएफपी, रॉयटर्स)
जर्मनी के रिफ्यूजी कैंप
जर्मन आप्रवासन दफ्तर ने 2015 में तीन लाख शरणार्थियों के आने की उम्मीद की थी. लेकिन लोगों का भागना जारी है और इस बीच 4,50,000 शरणार्थियों के जर्मनी आने की संभावना है. पूरे जर्मनी में उनके रहने का इंतजाम किया जा रहा है
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कैंप में तीन महीने
राइनलैंड पलैटिनेट प्रांत के ट्रियर शहर में शरणार्थियों के रजिस्ट्रेशन का दफ्तर है. यहां स्थित कैंप में 850 लोगों के रहने की जगह है. जर्मनी आने वाले शरणार्थियों को सबसे पहले ऐसे रजिस्ट्रेशन कैंपों में भेजा जाता है. पहले उन्हें वहीं रहना पड़ता है. तीन महीने बाद उन्हें किसी शहर या जिले में रहने भेजा जाता है. वहां रहने की व्यवस्था जगह के हिसाब से अलग अलग तरह की है.
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रहना सिटीहॉल में
इस समय शरणार्थियों की बड़ी संख्या के कारण ज्यादातर रजिस्ट्रेशन कैंप भरे हुए हैं. इसलिए आपात कैंपों के रूप में दूसरी इमारतों का इस्तेमाल किया जा रहा है. नॉर्थराइन वेस्टफेलिया प्रांत के हाम शहर में सिटीहॉल में 500 शरणार्थियों के रहने की जगह बनाई गई है. 2700 वर्गमीटर बड़े हॉल को पार्टीशन डाल कर छोटे कमरों में बदल दिया गया है. हर ब्लॉक में 14 बिस्तर लगे हैं.
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सोना स्कूल क्लास में
शरणार्थियों को रहने के लिए शहरों में भेजा जाता है, लेकिन उनकी संख्या शहरों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है. आखेन शहर को जून में अचानक 300 शरणार्थियों को लेना पड़ा. उन्हें एक साथ ठहराने का एकमात्र विकल्प इंदा हायर सेकंडरी स्कूल था. योहानिटर राहत संगठन के वोलंटीयर्स स्कूल के कमरों में बिस्तर लगाकर शरणार्थियों के लिए तैयारी कर रहे हैं.
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तंबुओं का कामचलाऊ कैंप
हाल के दिनों में जर्मनी में शरणार्थियों को ठहराने के लिए तंबुओं का मोहल्ला बसाना पड़ रहा है. सेक्सनी अनहाल्ट प्रांत के हाल्बरश्टाट के केंद्रीय रजिस्ट्रेशन सेंटर ने तंबुओं का शहर बसाकर शरणार्थियों के रजिस्ट्रेशन की क्षमता बढ़ा ली है. लेकिन जर्मनी में कड़ाके की सर्दी के कारण सर्दियों तक उनके लिए रहने की वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी.
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"तीसरी दुनिया" की तरह
शरणार्थियों के लिए जर्मनी के सबसे बड़े कैंपों में से एक सेक्सनी के शहर ड्रेसडेन में है. यहां 15 देशों के 1000 से ज्यादा लोग रहते हैं. कैंप के निवासियों को बहुत धैर्य की जरूरत होती है. टॉयलेट के लिए लंबी कतार और खाने के लिए भी. आने वाले दिनों में यहां और शरणार्थियों को रखा जाएगा. कैंप में 1110 लोगों के रहने की जगह है.
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कंटेनर में जिंदगी
और शरणार्थियों को ठहरा पाने की क्षमता बढ़ाने के लिए जर्मनी में कई जगहों पर शरण की अर्जी देने वाले लोगों के रहने के लिए कंटेनर भी लगाए जा रहे हैं. ट्रियर के रिफ्यूजी कैंप में इस तरह के कंटेनर 2014 से ही हैं. इस समय इन कंटेनरों में कुल मिलाकर 1000 से ज्यादा शरणार्थी रह रहे हैं.
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रिफ्यूजी कैंपों पर हमले
दमकलकर्मी बाडेन वुर्टेमबर्ग प्रांत के रेमषिंगेन में शरणार्थियों के रहने के लिए तय एक मकान में लगी आग बुझा रहे हैं. निवासियों के कुछ हिस्से में शरणार्थियों का विरोध विदेशी विरोधी हिंसा में तब्दील होता जा रहा है. इस बीच तकरीबन हर रोज रिफ्यूजी कैंपों पर हमले हो रहे हैं, खासकर देश के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में.
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राजनीतिक समर्थन
केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्री और एसपीडी पार्टी के प्रमुख जिगमार गाब्रिएल मैक्लेनबुर्ग वेस्टपोमेरेनिया के एक रिफ्यूजी कैंप में बच्चों से बात कर रहे हैं. यहां 300 शरणार्थी रहते हैं. उन्होंने शहरों और ग्रामपंचायतों को शरणार्थियों के लिए वित्तीय सहायता बढ़ाने की मांग की है. उनका कहना है कि शरणार्थियों का मामला शिष्टाचार का भी है.
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रहने के लिए नई इमारतें
शरणार्थियों को उचित ढंग से रहने की सुविधा देने के लिए कई जगहों पर नई इमारतें बनाई जा रही हैं. जैसे यहां बवेरिया प्रांत के न्यूरेम्बर्ग शहर के निकट एकेनताल में. कतारों में बने ये मकान 60 लोगों के रहने के लिए होंगे. पहले शरणार्थी यहां जनवरी 2016 से रहना शुरू करेंगे.
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कामचलाऊ व्यवस्था
लेकिन नई इमारतों के बनने तक शरणार्थियों को ठहराने के लिए और बहुत सारे कामचलाऊ प्रंबध करने होंगे. जैसे कि यहां म्यूनिख शहर के यूरो इंडस्ट्री पार्क में. यहां राहत संगठनों और फायर ब्रिगेड के 170 कर्मचारियों ने रातों रात शरणार्थियों के रहने के लिए दर्जन भर तंबू लगाए हैं और उनमें 300 बिस्तर लगाए हैं.