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उत्तर कोरिया पर प्रतिबंधों का असर क्यों नहीं होता?

१६ दिसम्बर २०१७

उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार कार्यक्रमों के चलते 2006 से ही संयुक्त राष्ट्र उस पर प्रतिबंधों की बौछार कर रहा है. पिछले साल ही तीन बार अलग अलग तरह के प्रतिबंध लगाये गये लेकिन उत्तर कोरियाई नेता इनसे बेअसर हैं.

Nordkorea Kim Jong Un in Pjöngjang
तस्वीर: Reuters/KCNA

सितंबर में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया के खिलाफ सबसे कड़े प्रतिबंधों का प्रस्ताव पास किया तो यूएन में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने शपथ ली कि परमाणु कार्यक्रम बंद कराने के लिए वहां की "सत्ता को भूखे" रहने पर मजबूर कर देंगे. हालांकि इसके कुछ ही हफ्ते बाद किम जोंग उन ने जापान की तरफ एक मिसाइल का परीक्षण किया जिसकी ऊंचाई पिछली बार से थोड़ी और ज्यादा थी.

इस मुद्दे ने दुनिया के नेताओं को कई महीनों से परेशान कर रखा है और इसी पर विचार करने के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन बीजिंग में गुरुवार को पहले सम्मेलन में मिले.

2006 में उत्तर कोरिया के पहले परमाणु परीक्षण ने संयुक्त राष्ट्र उत्तर कोरिया पर लग्जरी सामानों और मिसाइल तकनीकों के आयात पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर किया. बीते 11 सालों में कांच के अयस्क से लेकर सीफूड, कोयला, लौह अयस्क तक और इसके अलावा 63 कारोबारी और 53 कंपनियां प्रतिबंधित हो चुकी हैं. हालांकि इन प्रतिबंधों की बाढ़ आने के बावजूद मिसाइल परीक्षणों में तेजी आई है और यह नियमित रूप से होने लगे हैं.

बीते कुछ हफ्तों में संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि इन प्रतिबंधों से उत्तर कोरिया की सरकार की बजाय वहां की जनता को भूखे रहना पड़ सकता है.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट दिखाती है कि उत्तर कोरिया के लोग लंबे समय से खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर कोरिया के 1.80 करोड़ लोग यानी तकरीबन 70 फीसदी आबादी सरकारी कोटे से मिलने वाले अनाज पर निर्भर है. 1991 में संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के पहले से ही यूएन उत्तर कोरिया को सहायता दे रहा है. 2017 में संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार ईकाई ने इस देश में सबसे अधिक जोखिम से जूझ रहे लोगों की सहायता के लिए 11.4 करोड़ डॉलर की मांग की है.

तस्वीर: Getty Images/AFP/STR

मानवाधिकार विशेषज्ञ टोमास ओजेया क्विंटाना का कहना है कि प्रतिबंधों ने भले ही किमोथेरेपी में इस्तेमाल होने वाली दवाओं और व्हीलचेयर के आयात पर रोक लगा दी है और इस वजह से वास्तव में आम लोगों को सजा भुगतनी पड़े ऐसा नहीं होना चाहिए. 

प्रतिबंधों के कारण ना सिर्फ विकास, नौकरियों और वेतन पर असर पड़ा है बल्कि यहां काम करने वाली सहायता एजेंसियों की दिक्कतें भी बढ़ी है. राहत एजेंसियों को प्रतिबंधों से छूट के लिए लंबी राजनयिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. जर्मनी के राजनीतिक दल सीडीयू से जुड़े कोनराड आडेनावर फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर कोरिया पर एक तरफ से प्रतिबंध लगाना और दूसरी तरफ से मानवीय सहायता देना "विरोधाभासी" है. रिपोर्ट के मुताबिक सहायता प्रतिबंधों को और प्रतिबंध सहायता को कमजोर करते हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रतिबंधों का मकसद देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर वहां विघटनकारी गतिविधियों को रोकना तो है ही लेकिन इसके साथ "सत्ता को मिल रहे घरेलू समर्थन को भी कमजोर करना है." मुश्किल यह है कि उत्तर कोरिया में कोई लोकतांत्रिक प्रक्रिया ही नहीं तो सरकार को जनता की नाखुशी की चिंता ही नहीं.

सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध कमेटी के मुताबिक आखिरी दौर के कुछ प्रतिबंध तो अभी पूरी तरह से लागू ही नहीं किये गये. इसका मतलब है कि इनका असर होना अभी बाकी है. इसके अलावा कुछ देशों पर गुपचुप तरीके से उत्तर कोरिया के साथ व्यापार करने के भी आरोप हैं. हाल ही में उत्तर कोरिया के परीक्षण के बाद निकी हेली ने राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से चीन से कहा कि वह उत्तर कोरिया को तेल की सप्लाई रोके.

संयुक्त राष्ट्र पहले उत्तर कोरिया को तेल की सप्लाई पूरी तरह से रोकने और संपत्तियां जब्त करने के साथ ही यात्रा प्रतिबंध लगाने पर भी विचार कर रहा था लेकिन अब इस पर सहमति बढ़ रही है प्रतिबंधों के रास्ते इससे ज्यादा कुछ हासिल नहीं होना है. अब अमेरिका और दूसरे देशों को कोरिया से अपनी उम्मीदों में बदलाव करना होगा.

जेफरी फेल्टमैनतस्वीर: picture-alliance/Kyodo/MAXPPP

संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारी जेफरी फेल्टमैन ने हाल ही में उत्तर कोरिया का दौरा किया. 2010 के बाद पहली बार कोई इस स्तर का अधिकारी प्योंगयांग गया. उन्होंने बताया कि विदेश मंत्री के साथ हुई उनकी बातचीत संयुक्त राष्ट्र से ज्यादा अमेरिका पर केंद्रित थी. अमेरिकी विदेश मंत्री ने इस हफ्ते संकेत दिया है कि अमेरिका कुछ नरम उपायों के लिए तैयार हो सकता है. रेक्स टिलरसन का कहना है कि अमेरिका किम सरकार के साथ बिना पूर्वशर्त के बातचीत करने को तैयार था.

दबाव काम आ रहा है लेकिन उतनी जल्दी से नहीं. सुरक्षा परिषद के एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी डीपीए से कहा कि अगर अगले साल कुछ प्रगति हुई तो वो उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच बातचीत से ही संभव होगी. इस अधिकारी ने कहा, "या तो वहां जंग होगी या फिर हमें परमाणु ताकत वाले उत्तर कोरिया को स्वीकार करना होगा."

एनआर/एमजे (डीपीए)

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