इन दिनों उत्तर कोरिया पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा डेस्टिनेशन है. आलोचक मान रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को टूरिज्म भी प्रतिबंध के दायरे में लाना चाहिए लेकिन समर्थक पर्यटन को प्रोत्साहित करते हैं.
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अकसर गलत कारणों से चर्चा में रहने वाला देश उत्तर कोरिया इन दिनों पर्यटकों के चलते खबरों में बना हुआ है. उत्तर कोरिया घूमने जाने वालों की संख्या में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है. लेकिन उत्तर कोरिया से भाग कर आए लोगों का कहना है कि पर्यटकों को छुट्टियां बिताने के लिए किसी और ठिकाने पर जाने के बारे में सोचना चाहिए.
उत्तर कोरिया जाने वालों में चीनी पर्यटक सबसे आगे हैं. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक 2019 की पहली छमाही में उत्तर कोरिया जाने वालों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. साल के पहले तीन महीनों में करीब दो हजार लोगों ने चीन से उत्तर कोरिया की सीमा को पार किया. उत्तर कोरिया के पास सैलानियों को संभालने के लिए होटल और रेस्तरां आदि से जुड़ा बेहद ही सीमित बुनियादी ढांचा है. इसके चलते कोरियाई प्रशासन ने मार्च 2019 में अपनी घोषणा में कहा कि विदेशी टूरिस्टों की सीमा तय की जाएगी.
कुल मिलाकर तकरीबन एक लाख पर्यटकों ने साल 2018 में उत्तर कोरिया की यात्रा की. घूमने गए लोगों को वे जगह और चीजें दिखाई जाती हैं जो कोरियाई नेता किम जांग उन की सरकार दुनिया को दिखाना चाहती है. जैसे कि किम इल सुंग स्क्वेयर. यह वही जगह है जहां अकसर परेड करते हुए सैनिक टीवी पर नजर आते हैं. इसके अलावा टावर ऑफ जुचे और किम जोंग इल की जन्मस्थली की बताई जाने वाली पहाड़ियों की हुबहू बनाई नकल भी पर्यटकों को दिखाई जाती है. किम जोंन इल उत्तर कोरिया के मौजूदा शासक किम जांग उन के पिता थे.
सबसे बड़ा आकर्षण
यहां आने वालों के लिए एक बड़ा आकर्षण मास गेम्स रहा है. मास गेम्स में हजारों की संख्या में बच्चे डांस करते हैं और परफॉर्म करते हैं. प्योंगयांग के पास एक स्टेडियम में बच्चे अपने देश और नेताओं प्रशंसा में ऐसे कार्यक्रम पेश करते हैं. स्टेडियम में करीब 1.14 लाख लोग एक साथ बैठ सकते हैं. हालांकि किम जोंग उन ने नाराजगी जताते हुए इस साल के कार्यक्रमों को रोक दिया और अब तक यह साफ नहीं है कि इसे वापस कब शुरू किया जाएगा. इसके बावजूद लोग यहां आते हैं.
उत्तर कोरिया से भागकर दक्षिण कोरिया जाकर बसे ग्युंगबे जू के मुताबिक लोगों को ऐसा नहीं करना चाहिए. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "पर्यटकों को उत्तर कोरिया में कदम भी नहीं रखना चाहिए. जो भी वहां जाता है उसे सत्ता अपने तरीके से ढालने की कोशिश करती है और वही बताती है जो वह सुनना चाहती है."
इन भव्य सैन्य परेडों का जवाब नहीं..
खतरनाक हथियार और सैन्य ताकत या युद्ध में दिखती है या फिर दुनिया भर में होने वाली परेडों में. चलिए डालते हैं एक नजर दुनिया के किन देशों में होती हैं भव्य सैन्य परेडें.
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उत्तर कोरिया
उत्तर कोरिया में हर बड़े मौके पर सैन्य परेड का आयोजन होता है. इस परेड में दिखाए जाने वाले हथियार अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए सिरदर्द बनते हैं. उत्तर कोरिया का दावा है कि उसके अस्त्रागार में अब अंतरमहाद्वीपीय मिसाइलों से लेकर परमाणु हथियार तक शामिल हैं.
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चीन
चीन में भी सैन्य परेडों की परंपरा रही है. लेकिन 2012 में शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन में ज्यादा परेड होने लगी हैं. कदमताल करते फौजी, आधुनिक टैंक, मिसाइलें और लड़ाकू विमानों से जरिए दुनिया की सबसे बड़ी सेना अपनी ताकत का प्रदर्शन करती है.
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भारत
भारत में 26 जनवरी को राजपथ पर होने वाली भव्य परेड के बिना गणतंत्र दिवस का आयोजन पूरा नहीं होता. इस परेड में न सिर्फ देश की सैन्य ताकत को पेश किया जाता है बल्कि झांकियों के जरिए देश की विविध संस्कृति के रंग भी दिखते हैं.
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रूस
हर साल भव्य परेड के जरिए रूस अपनी सैन्य ताकत को दुनिया के सामने पेश करता है. यह परेड 9 मई को विक्ट्री डे के मौके पर होती है. दूसरे विश्व युद्ध में नाजी जर्मनी पर जीत की याद में विक्ट्री डे मनाया जाता है.
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फ्रांस
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को फ्रांस में बास्ताय डे की सैन्य परेड इतनी पसंद आई कि उन्होंने घोषणा की कि अमेरिका में 4 जुलाई को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर परेड होगी. फ्रांस में हर साल 14 जुलाई को शाँ से लिजे से गुजरने वाली यह परेड भव्य होती है.
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अमेरिका
अमेरिका में भी कई मौके पर सैन्य परेड होती रही है. आखिरी बड़ी परेड अमेरिका में 1991 में खाड़ी युद्ध में अमेरिका की जीत का जश्न मनाने के उपलक्ष्य में हुई थी.
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यूक्रेन
यूक्रेन में स्वतंत्रता दिवस पर होने वाली सैन्य परेड एक सालाना आयोजन है. यह परेड राजधानी कीव में 24 अगस्त को होती है. इस परेड की शुरुआत 1994 में हुई थी. 2016 में यूक्रेन ने अपनी आजादी की 25वीं वर्षगांठ मनाई.
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रोमानिया
रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में हर साल 1 दिसंबर को परेड का आयोजन होता है. यह परेड ग्रेट यूनियन डे के मौके पर होती है. रोमानिया और ट्रांसिलवेनिया के एकीकरण के उपलक्ष्य में ग्रेट यूनियन डे मनाया जाता है.
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वेनेजुएला
लातिन अमेरिकी देश वेनेजुएला में भी आजादी का जश्न राजधानी काराकास में सैन्य परेड के साथ मनाया जाता है. तेल की दौलत से मालामाल वेनेजुएला ने 1811 में स्पेन से आजादी हासिल की थी.
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उन्होंने कहा कि ये दुखद है कि लोगों के पास असल जानकारी का कोई और स्रोत नहीं है और वे उत्तर कोरिया की कठिन परिस्थितयों में रहने वाले आम लोगों का जीवन नहीं देख पाते. ऐसे में वे शायद यही सोच कर लौटेंगे कि उत्तर कोरिया कितना सुरक्षित और खुशहाल है. जू के मुताबिक असल में उत्तर कोरिया ना तो सुरक्षित है और ना ही खुशहाल.
जू साल 2008 में उत्तर कोरिया से भागे थे. उनके पिता एक राजनीतिक कैदी थे. जब जू की उम्र महज नौ साल थी, तो उनके पिता के जेल में डाल दिया गया. जू की बड़ी बहन को भी राजनीतिक कैदी मान कर जेल भेज दिया है और अब उन्हें नहीं पता कि वह जिंदा हैं या मर गईं. हालांकि जू को इस बात का भरोसा है कि उसकी बहन जिंदा होगी और अब भी बतौर डॉक्टर काम कर रही होगी लेकिन जू ने उनसे संपर्क करने की कोई कोशिश नहीं की. जू कहते हैं कि अगर वे संपर्क करते हैं तो उसके लिए खतरा हो सकता है. सुरक्षा अधिकारियों को पता चल जाएगा कि वह देश से बाहर किसी के संपर्क में है.
जू ने बताया, "पर्यटकों को जूचे विचारधारा की जीत के बारे में बताया जाता है. साथ ही किम परिवार की महानता के किस्से भी सुनाए जाते हैं. " जू कहते हैं कि उन्हें ये सब इसलिए पता है कि क्योंकि यही सब उन्हें स्कूल में पढ़ाया जाता था, जो झूठ है.
प्रोपेगैंडा और पैसा
क्वांगी हो साल 1985 में उत्तर कोरिया से भाग कर दक्षिण कोरिया आ गए थे. हो आज दक्षिण कोरिया में कमिटी फॉर द डेमोक्रैटाइजेशन ऑफ नार्थ कोरिया के चैयरमेन हैं. हो मानते हैं कि उत्तर कोरिया के पास टूरिस्टों को बुलाने की दो बड़ी वजहें हैं. पहली यह कि प्योंगयांग उनको अपना प्रोपेगैंडा बता पाता है. दूसरा मकसद है ऐसी मुद्रा को हासिल करना जिसका जल्दी अवमूल्यन ना हो. हो के मुताबिक, "संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के बाद से ही उत्तर कोरिया जूझ रहा है. ऐसे में टूरिज्म एक ऐसा तरीका है जिससे वह पैसा बना सकता है."
हो ने बताया कि जो पैसा टूरिस्ट उत्तर कोरिया में खर्च करते हैं, वह सीधे किम जोंग उन के राजनीतिक फंड में जाता है. पैसे का इस्तेमाल राजनीतिक गुटों और सैन्य नेताओं की वफादारी खरीदारी करने के लिए किया जाता है. किम को सत्ता में बने रहने के लिए ऐसे लोगों को खुश करना भी जरूरी है. उन्होंने कहा, "टूरिज्म उत्तर कोरिया की सत्ता को जिंदा रहने का मौका दे रहा है और मेरे हिसाब से टूरिज्म को भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को तहत आना चाहिए ताकि किम के पास पैसा जाना थम सके."
दुनिया की समझ
हालांकि टूरिज्म पर प्रतिबंध से सभी सहमत नहीं हैं. उत्तर कोरिया की ट्रैवल एजेंसी कोरयो टूर्स के जनरल मैनेजर सिमोन कॉकेरेल ने कहा, "उत्तर कोरिया की सत्ता को टूरिज्म सहयोग नहीं कर रहा है और ना ही उत्तर कोरिया की यात्रा करने वाले लोग वहां की सत्ता के प्रति समर्थन दिखा रहे हैं."
कॉकरेल के मुताबिक, इस तरह तो किसी भी ट्रैवल कंपनी को कोई भी व्यक्ति चीन नहीं भेजना चाहिए और यही मानना चाहिए कि चीन जाने वाले लोग चीन की सत्ता को समर्थन देंगे. कॉकरेल ये भी नहीं मानते है कि टूरिज्म सेक्टर से मिला पैसा राष्ट्रीय सरकार को भेजा जाता है. कॉकरेल के मुताबिक उस पैसे को रेस्तरां और अन्य ट्रैवल पार्टनर के बीच बांटा जाता है जिससे स्टाफ और अन्य खर्चे पूरे होते हैं.
कॉकरेल कहते हैं, "उत्तर कोरियाई लोगों के पास विदेशियों से बातचीत करने का कभी कोई मौका नहीं था. उन लोगों के पास विदेशियों को लेकर बस उतनी ही समझ थी जो उनकी सरकार ने उन्हें बताया. ऐसे में जब वे लोग किसी विदेशी से मिलते हैं तो उन्हें एक अलग दृष्टिकोण नजर आता है."
कॉकरेल ये भी कहते हैं कि जब उन्हें यह समझ आएगा कि उनकी सत्ता ने अब तक जो कुछ भी उन्हें बताया था वह गलत था तो वे सवाल करेंगे और सच को समझ पाएंगे.
25 जून 1950 को कोरियाई युद्ध शुरू हुआ. इसमें सोवियत रूस समर्थित उत्तर कोरिया की तरफ से 75000 सैनिक पश्चिम समर्थित दक्षिण कोरिया से भिड़ने चले. जुलाई आते आते अमेरिकी सेना भी दक्षिण कोरिया की ओर से आ गई.
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अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद के खिलाफ
अमेरिकी अधिकारियों के लिए यह अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद के खिलाफ जंग थी. उनके पास इस युद्ध का विकल्प एक ही था रूस और चीन के साथ जंग या फिर कुछ लोग जिसकी चेतावनी देते है यानी तीसरा विश्वयुद्ध. अमेरिका इससे बचना चाहता था.
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50 लाख लोगों की मौत
1953 के जुलाई के अंत में जंग खत्म हुई तो सब मिला कर 50 लाख लोगों की जान जा चुकी थी. इसमें आधे से ज्यादा आम लोग थे. 40 हजार से ज्यादा अमेरिकी सैनिक कोरिया में मारे गए और 1 लाख से ज्यादा घायल हुए.
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जापानी साम्राज्य का हिस्सा
बीसवीं सदी की शुरुआत से ही कोरिया जापानी साम्राज्य का हिस्सा था. दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद अमेरिका और रूस को यह तय करना था कि दुश्मनों के साम्राज्य का क्या किया जाए. 1945 में अमेरिका के दो अधिकारियों ने इसे 38 वें समानांतर के साथ दो हिस्से में बांटने का फैसला किया.
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38 वां समानांतर
यह वो अक्षांश रेखा है जो पृथ्वी की भूमध्य रेखा से उत्तर में 38 डिग्री पर स्थित है. यह यूरोप, भूमध्यसागर, एशिया, प्रशांत महासागर, उत्तर अमेरिका, और अटलांटिक सागर से होकर गुजरती है. कोरियाई प्रायद्वीप में इसके एक तरफ उत्तर तो दूसरी तरफ दक्षिण कोरिया है.
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रूस और अमेरिका
दशक का अंत होते होते दो राष्ट्र अस्तित्व में आ गए. दक्षिण में साम्यवाद विरोधी नेता सिंगमान री को अमेरिका का थोड़े ना नुकुर के साथ समर्थन मिला तो उत्तर में साम्यवादी नेता किम इल सुंग को रूस का वरदहस्त. दोनों में से कोई अपनी सीमा में खुश नहीं था और सीमा पर छिटपुट संघर्ष लगातार हो रहे थे. जंग शुरू होने के पहले ही दोनों ओर के 10 हजार से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके थे.
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कोरिया की जंग और शीत युद्ध
इतना होने पर भी अमेरिकी अधिकारी उत्तर कोरिया के हमले से हतप्रभ थे. उन्हें इस बात की चिंता थी कि यह दो तानाशाहों के बीच सीमा युद्ध ना होकर दुनिया को अपने कब्जे में करने की साम्यावादी मुहिम का पहला कदम है. यही वजह थी कि तब फैसला करने वालों ने हस्तक्षेप नहीं करने जैसे कदमों के बारे में सोचना गवारा नहीं किया. उत्तर कोरिया सोल की तरफ बढ़ा और अमेरिकी सेना साम्यवाद के खिलाफ तैयार होने लगी.
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साम्यवादियों की शुरुआती बढ़त
पहले यह जंग सुरक्षात्मक थी और मित्र देशों पर भारी पड़ी. उत्तर कोरिया की सेना अनुशासित, प्रशिक्षित, और उन्नत हथियारों से लैस थी जबकि री की सेना भयभीत, परेशान और हल्के से उकसावे पर मैदान छोड़ने के लिए तैयार थी. यह कोरियाई प्रायद्वीप के लिए सबसे सूखे और गर्म दिन थे. अमेरिकी सैनिक भी बेहाल थे.
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नई रणनीति
गर्मी खत्म होते होते अमेरिकी सेना के जनरलों ने युद्ध को नई दिशा दी. अब उनके लिए कोरियाई युद्ध का मतलब हमलावर जंग हो गई जिसमें उन्हें उत्तर कोरिया को साम्यवादियों से आजाद कराने का लक्ष्य रखा. शुरुआत में बदली नीति सफल रही और उत्तर कोरियाई सैनिकों को सोल से खदेड़कर 38 वें समानांतर के पार पहुंचा दिया गया.
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चीन का डर और दखल
जैसे ही अमेरिकी सेना सीमा पार कर उत्तर में यालू नदी की ओर बढ़ी चीन को अपनी सुरक्षा का डर सताने लगा और उसने इसे चीन के खिलाफ जंग कह दिया. चीनी नेता माओत्से तुंग ने अपनी सेना उत्तर कोरिया में भेजी और अमेरिका को यालू की सीमा से दूर रहने को कहा.
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चीन से लड़ाई नहीं
अमेरिका राष्ट्रपति ट्रूमैन चीन से सीधा युद्ध नहीं चाहते थे क्योंकि इसका मतलब होता एक और बड़ा युद्ध. अप्रैल 1951 में अमेरिकी सेना के कमांडर को बर्खास्त किया गया और जुलाई 1951 में राष्ट्रपति और नए सैन्य कमांडर ने शांति वार्ता शुरू की. 38 समानांतर पर लड़ाई भी साथ साथ चल रही थी. दोनों पक्ष युद्ध रोकने को तैयार थे लेकिन युद्धबंदियों पर समझौता नहीं हो पा रहा था.
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युद्ध खत्म हुआ
आखिरकार दो साल की बातचीत के बाद 27 जुलाई 1953 को संधि पर दोनों पक्षों के दस्तखत हुए. इसमें युद्धबंदियों को जहां उनकी इच्छा हो रहने की आजादी मिली, नई सीमा रेखा खींची गई जो 38 पैरलल के करीब ही थी और इसमें दक्षिण कोरिया को 1500 वर्गमील का इलाका और मिल गया. इसके साथ ही 2 मील की चौड़ाई वाला एक असैन्य क्षेत्र भी बनाया गया. यह स्थिति आज भी कायम है.