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समाजभारत

उत्तर प्रदेश के गांव के औरतों की सोलर चरखे ने बदल दी जिंदगी

२४ अगस्त २०२२

उत्तर प्रदेश में सोलर चरखे ने बहुत से औरतों की जिंदगी बदल दी है. सरकार की तरफ गांव की औरतों को मिल रहा सोलर चरखा उनकी मुसीबतें घटाने के साथ ही कमाई भी बढ़ा रहा है और वो भी धरती को नुकसान पहुंचाये बगैर.

सौर ऊर्जा के क्षेत्र में ग्रामीण महिलायें खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं
कई इलाकों में ग्रामीण महिलायें सौर ऊर्जा से जुड़े कार्यक्रमों का लाभ उठा रही हैं (फाइल)तस्वीर: CC/Barefoot Photographers of Tilonia

अनीता देवी ने हाथों में दर्द, मामूली कमाई और जरूरतें पूरी करने में लगातार संघर्ष के कारण पारंपरिक सूत कातने का पारंपरिक काम काम छोड़ दिया था. 2019 में अचानक उनकी जिंदगी तब बदल गई जब उन्हें सौर उर्जा से चलने वाले दो चरखे मिले. यह उत्तर प्रदेश सरकार की पर्यावरण सम्मत तरीकों से ग्रामीण महिलाओं का काम और आय बढ़ाने की कोशिशों के तहत हुआ. 12 तिलियों वाले चरखा अनीता देवी के पुराने चरखे से दोगुना काम करता है. इसमें मोटर और बैटरी लगी है जो 400 वाट के सोलर पैनल से जुड़ा है.

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काम और कमाई बढ़ी

34 साल की अनीता इस सोलर चरखे से हर दिन 1.5 किलो सूती धागा तैयार कर लेती हैं जो पुराने चरखे से महज 400 ग्राम ही होता था. इसके कारण हर महीने उनकी औसत आमदनी चार गुना बढ़ कर 10 हजार रुपये तक पहुंच गई है. उन्होंने बताया, "अतिरिक्त आय से हम अच्छा खाना, और स्वास्थ्य सेवा के साथ ही बच्चों के लिये ट्यूशन का भी इंतजाम कर ले रहे हैं."

भारत में सौरऊर्जा के क्षेत्र में बीते सालों में काफी तेजी आई हैतस्वीर: Ashley Cooper/Global Warming Images/picture alliance

अनीता उत्तर प्रदेश की उन चार हजार महिलाओं में एक हैं जिन्हें हाल के वर्षों में राज्य सरकार की पहल पर सोलर चरखा मिला है. भारत बिजली पैदा करने के लिये कोयले का इस्तेमाल घटाना चाहता है. इनकी जगह अक्षय ऊर्जा स्रोत से 2030 तक 500 गीगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य तय किया गया है जो फिलहाल 115 गीगावाट है. उत्तर प्रदेश में सौर उर्जा से कारोबार, घर और समुदायों को ऊर्जा मुहैया कराने की तैयारी हो रही है. सबसे पहले उन लोगों पर ध्यान दिया जा रहा है जो अभी ग्रिड से नहीं जुड़े हैं.

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2018 से हर साल सोलर चरखा और 50,000 हजार रुपये उत्तर प्रदेश की 1000 महिलाओं को राज्य खादी और ग्रामीण उद्योग बोर्ड यानी यूपीकेवीआईबी की तरफ से दिये जा रहे हैं. बहुत सी औरतें घर से काम करती हैं जबकि दूसरे लोगों ने गांव में गैर लाभकारी संस्थाओं के बनाये उत्पादन केंद्रों का रुख किया है.

भारत में करोड़ों लोग खासतौर से हाशिये पर मौजूद समुदायों की महिलायें अपने घर से कपास बुनने का काम करती हैं. हालांकि उन तक औद्योगिक विकास नहीं पहुंचा है और अकसर वो न्यूनतम आय भी अर्जित नहीं कर पाती हैं.

यूपीकेवीआईबी के अतिरिक्त मुख्य सचिव नवनीत सहगल का कहना है कि ग्रामीण और "पितृसत्तात्मक" परिवारों की महिलाओं को इस काम की ट्रेनिंग के लिये तैयार करना शुरुआत में बड़ी चुनौती थी. हालांकि उनका यह भी कहना है कि धीमी शुरुआत के बाद अब इस काम ने जोर पकड़ लिया है. उनका कहना है, "भरोसे और अधिक आत्मविश्वास के साथ उनका काम, घर चलाने के फैसलों में उनकी बढ़ती हिस्सेदारी और ऐसी महिलाओं की बढ़ती संख्या को देखना बहुत संतोष देने वाला है."

भारत में ग्रामीण महिलाओं को सौरऊर्जा का लाभ मिल रहा हैतस्वीर: DW

मिशन सोलर चरखा

उत्तर प्रदेश में यह योजना एक देश भर में चली एक और योजना के बाद शुरू हुई.  मिशन सोलर चरखा नाम की इस  परियोजना में चरखा दे कर एक लाख लोगों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया था. इसके जरिये देश भर के 50 इलाकों में बुनकरों और दर्जियों को जोड़ने का विचार था. उत्तर प्रदेश का कार्यक्रम अलग है, सोलर चरखा स्थानीय स्तर पर काम कर रहे समाजसेवी संगठनों के जरिये बांटा जाता है. इनमें से एक है अवध युवा कल्याण ग्रामोद्योग संस्थान, यह महिलाओं को सूत के लिए पैसे भी देता है. इस सूत से संस्थान के नेटवर्क की दूसरी महिलायें खादी के तरीके से कपड़ा बुनती हैं और फिर इन्हें बेचा जाता है. संस्थान के प्रमुख अनिल कुमार सिंह कहते हैं, "इन महिलाओं में अब अधिक जागरुकता है- अब यह चाहे सामूदायिक बचत के लिये हो, संकट के दौर में एक दूसरे की मदद या फिर सौर ऊर्जा की उनकी जिंदगी में महत्व के बारे में बात करना हो."

सोलर लैंप से बेहतर हुई जिंदगी

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यूपीकेवीआईबी ऐसे संस्थानों की आर्थिक मदद करने के साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि उत्पादन टिकाऊ तरीके से हो. इसके साथ ही उनके बनाये सामान को देश भर में होने वाले कार्यक्रमों में दिखाया जाता है.

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ग्रीनवेयर फैशन जैसी स्थानीय कपड़ा कंपनियां सैकड़ों महिलाओं को प्रशिक्षण और रोजगार दे कर इस काम में एक अहम भूमिका निभा रही हैं. ये कंपनी ना सिर्फ सोलर चरखा बल्कि सौर ऊर्जा से चलने वाली लूम और सिलाई मशीनों का भी इस्तेमाल करती हैं. कंपनी बड़ी मात्रा में "सोलर यार्न" भी खरीदती है. कंपनी के संस्थापक अभिषेक पाठक कहते हैं, "यह सिर्फ पैसा कमाने के बारे में नहीं बल्कि हमारे व्यापार को पर्यावरण साफ रखने के टिकाऊ कीमत के साथ आना चाहिये."

कंपनी के साथ जुड़ी राबिया खातून का कहना है, "ग्रीनवेयर ने मुझे संकट के दिनों मे काम दिया, प्रशिक्षण दिया और सोलर लूम के इस्तेमाल से मुझे और मेरे परिवार को पालने में मदद की." खातून हर महीने 10-12 हजार रुपये कमाती हैं.

असम में बना सोलर पार्कतस्वीर: Anupam Nath/AP/picture alliance

गांवों के घर भी हुये रोशन

 उत्तर प्रदेश में केवल बुनकरों और सूत कातने वाले ही सोलर ऊर्जा का लाभ नहीं ले रहे हैं. तेल और चावल की मिलें, रेस्तरां और इसी तरह के कई छोटे मोटे कारोबार कारोबार में सौर ऊर्जा से मदद मिल रही है. सरकार ऐसे व्यापार को कर्ज के रूप में धन भी मुहैया करा रही है. गोंडा जिले के एक गांव में संगीता देवी रेस्तरां चलाती हैं. इसके लिये उन्होंने 5 किलोवाट की क्षमता वाला सोलर पैनल लगाया है. इससे ना सिर्फ उनके रेस्तरां की बत्तियां और पंखे बल्कि मोटर और फ्रिज भी चलते हैं. वो बताती हैं, "मेरा बिजली का बिल आधे से भी कम हो गया है और अब डीजल का कोई खर्च नहीं है, मुझे इससे ज्यादा और क्या चाहिये." इन सबके नतीजे में उनका मुनाफा पहले की तुलना में दोगुना हो गया है.

उत्तर प्रदेश अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी का कहना है कि उसने करकीब 700 मेगावाट की क्षमता वाला सोलर ग्रिड बनाया है. इससे दर्जन भार गांवों के 60,000 घरों को बिजली, तीन लाख स्ट्रीट लाइट और सिंचाई के लिये किसानों के 20,000 पंपों को बिजली मिल रही है. 

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)

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