उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में प्रशासन द्वारा दशकों पुरानी एक मस्जिद के तोड़ दिए जाने के बाद तनाव है. स्थानीय प्रशासन ने मस्जिद को गैर कानूनी ढांचा बताया था, लेकिन मस्जिद से जुड़े लोगों ने इन दावों का खंडन किया है.
विज्ञापन
मस्जिद बाराबंकी के रामसनेही घाट तहसील के बनी काड़ा गांव में स्थित थी और इसे गरीब नवाज मस्जिद के नाम से जाना जाता था. उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड और अखिल भारतीय मुस्लिम निजी कानून बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने दावा किया है कि यह मस्जिद करीब 100 साल पुरानी थी और अभी भी इसमें सक्रिय रूप से नमाज अदा की जा रही थी. हालांकि स्थानीय प्रशासन के हिसाब से मस्जिद एक "गैर कानूनी ढांचा" थी.
जिला मजिस्ट्रेट आदर्श सिंह के बयान के मुताबिक इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो अप्रैल को एक याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि मस्जिद और उसका रिहायशी इलाका गैर कानूनी था. सिंह ने बताया कि मार्च में मस्जिद से जुड़े लोगों को मस्जिद के आधिकारिक कागजात और अन्य जानकारी सामने लाने के लिए एक नोटिस दिया गया था, लेकिन नोटिस पाने के बाद वो लोग मस्जिद छोड़ कर चले गए.
सिंह ने बताया कि उसके बाद तहसील प्रशासन ने मस्जिद पर कब्जा ले लिया और अदालत के आदेश के मुताबिक मस्जिद को 17 मई को तोड़ दिया गया. लेकिन दोनों समितियों ने दावों का खंडन किया है और प्रशासन की करवाई को गैर-कानूनी बताया है. एआईएमपीएलबी के कार्यकारी महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने एक बयान जारी कर कहा कि मस्जिद को लेकर कोई विवाद नहीं था और वो सुन्नी वक्फ बोर्ड के साथ सूचीबद्ध थी.
अदालत के आदेश का उल्लंघन?
रहमानी ने मस्जिद तोड़ने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के निलंबन और पूरे मामले में हाई कोर्ट के एक जज द्वारा जांच की मांग की. उन्होंने यह भी मांग की कि मस्जिद के मलबे को वहां से हटाया ना जाए, वहां कोई और निर्माण कार्य शुरू ना कराया जाए, मस्जिद को फिर से वहीं बनवाया जाए और मुस्लिम पक्ष को उसे सौंप दिया जाए. ऐसे भी दावे किए जा रहे हैं कि मस्जिद को तोड़ना दरअसल हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन था.
सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर फारूकी ने बताया कि अदालत ने 24 अप्रैल को ही एक आदेश में कहा था कि चूंकि कोविड-19 महामारी की वजह से अदालत अपनी पूरी क्षमता के हिसाब से काम नहीं कर रही है, इसलिए विचाराधीन ढांचों को खाली कराने और ध्वस्त करने से संबंधित हाल में दिए गए अदालत के सभी आदेशों को कम से कम 31 मई तक रोक दिया जाए. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने अपने आप मस्जिद को तोड़ कर इस आदेश का उल्लंघन किया है. उन्होंने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड तुरंत इसके खिलाफ हाई कोर्ट में मुकदमा दायर करेगा.
इन मंदिरों पर चले अदालती आदेश
भारत में धार्मिक स्थल और इससे जुड़ी मान्यताओं को लोगों की आस्था के साथ जो़ड़ कर देखा जाता है. लेकिन देश में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं, जो किसी न किसी कारण अदालती मामलों में उलझे तो किसी पर अदालत ने कोई आदेश दिया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/AP Photo/H. Kumar
राम जन्मभूमि
एक लंबे अरसे से चले आ रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नौ नवंबर 2019 को आदेश दिया था कि विवादित स्थल पर राम मंदिर ही बनेगा और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए कहीं ओर पांच एकड़ भूमि दी जाएगी. अदालत ने यह भी कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद का गिराया जाना गैर कानूनी था.
तस्वीर: epa/AFP/dpa/picture-alliance
केरल का सबरीमाला मंदिर
केरल के सबरीमाला मंदिर का मामला प्रवेश मान्यताओं से जुड़ा था. यहां 10-50 साल की उम्र वाली महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. मामला लंबे समय से उच्चतम न्यायालय में है, जिसे हाल में उच्चतम न्यायलय ने संवैधानिक बेंच को भेजा है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/AP Photo/H. Kumar
हाजी अली दरगाह, मुंबई
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में स्थित हाजी अली दरगाह का मसला भी बंबई उच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है. दरगाह में पहले महिलाओं का प्रवेश वर्जित था लेकिन न्यायालय ने अगस्त 2016 में इस प्रतिबंध को महिलाओं के मौलिक अधिकारों के खिलाफ मानते हुए राज्य को महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया. साथ ही हाजी अली ट्रस्ट को भी महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के आदेश दिये.
तस्वीर: picture alliance/dpa/EPA/D. Solanik
शनि सिंगनापुर मंदिर
महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित इस शनि मंदिर में पिछले साल तक महिलाओं का प्रवेश वर्जित था, जिसके चलते मामला बंबई उच्च न्यायालय पहुंचा. न्यायालय ने आदेश दिया कि पूजा स्थलों में जाना महिलाओं का मौलिक अधिकार है. अदालत के इस फैसले के बाद मंदिर ट्रस्ट ने महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी.
तस्वीर: Reuters/N. Chitrakar
त्रयंबकेश्वर मंदिर, नासिक
देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल त्रयंबकेश्वर मंदिर के अंदर महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. लेकिन बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा कि अगर महिलाओं को मंदिर के भीतरी भाग में प्रवेश की अनुमति नहीं है तो वहां पुरूषों का प्रवेश भी वर्जित होना चाहिए. जिसके बाद से अब महिलाएं और पुरुष दोनों ही मंदिर के भीतरी भाग में नहीं जाते.
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर देश का सबसे अमीर मंदिर है. इस मंदिर का रखरखाव त्रावणकोर का पूर्व शाही परिवार करता है. पूरा मसला इसकी दौलत से जुड़ा है. मंदिर ट्रस्ट धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हुए इसकी तिजौरी खोलने के पक्ष में नहीं है, लेकिन सरकार इसकी दौलत का ब्यौरा चाहती है.
तस्वीर: STRDEL/AFP/Getty Images
ज्ञानवापी मस्जिद
अप्रैल 2021 में बनारस के जिला सिविल कोर्ट ने पुरातत्व विभाग को मस्जिद का विस्तार से सर्वेक्षण करने के लिए कहा और एक पांच सदस्यीय समिति के गठन का भी आदेश दिया जिसका काम यह पता लगाना होगा कि मस्जिद जहां है वहां उसके पहले कोई हिन्दू मंदिर था या नहीं. मस्जिद को लेकर एक याचिका दायर कर दी गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि वो जिस भूमि पर स्थित है वो मूल रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा थी.