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उत्तर प्रदेश में तेज होती चुनावी सुगबुगाहट

१० दिसम्बर २०११

देश के सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अभी महीनों दूर हैं. लेकिन तमाम राजनीतिक दलों की चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं.

बनारस में चुनावों की तौयारीतस्वीर: DW/P.Tiwari

मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी(बसपा) प्रमुख मायावती ने राज्य को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव देकर अपने विरोधियों को चित करने की चाल चली है. दूसरी ओर राहुल गांधी के करिश्मे के सहारे अपने पांव जमाने का प्रयास कर रही कांग्रेस को युवा चेहरों पर भरोसा है. मुलायम सिंह की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी (सपा) और सत्ता की एक अन्य दावेदार भाजपा भी अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. वहीं, युवा मतदाता इस बार साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों को चुनने का मन बना रहे हैं. तमाम दलों ने महीनों पहले ज्यादातर उम्मीदवारों के नामों का एलान कर दिया है. उम्मीदवारों ने अपने समर्थन में बैनर व पोस्टर भी लगा दिए हैं.

मायावती का तुरूप

तस्वीर: DW/P.Tiwari

भाई-भतीजावाद और भष्टाचार के तमाम आरोपों से जूझ रही मुख्यमंत्री मायावती ने महीनों पहले से पार्टी में सफाई अभियान छेड़ रखा है और कई दबंग नेताओं और मंत्रियों को भी बाहर की राह दिखा दी गई है. लेकिन उन्होंने अपनी तुरूप की चाल शायद आखिरी मौके के लिए बचा कर रखी थी. उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने का दाना फेंक कर उन्होंने जहां एक बार फिर सत्ता में वापसी की राह बनाने की कोशिश की है और अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को भी चारों खाने चित कर दिया है.

यह एक ऐसा मुद्दा है जिसके खिलाफ कोई भी पार्टी खुल कर कुछ नहीं बोल सकती. खासकर पूर्वांचल कहे जाने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के लोग और राजनीतिक दल पिछड़ेपन का आरोप लगाते हुए समय-समय पर अलग राज्य की मांग उठाते रहे हैं. मायावती ने इस बंटवारे का एलान कर लोगों की भावनाएं भड़का कर अपना वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश की है.

वैसे, राजनीतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि मायावती ने यह चाल अपने विरोधियों को धूल चटाने के लिए चली है. उनका भी असली मकसद राज्य का बंटवारा नहीं है. उन्होंने बंटवारे के इस प्रस्ताव को विधानसभा में पारित कर गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है. मायावती अच्छी तरह जानती हैं कि तेलगांना मुद्दे से जूझ रही केंद्र सरकार फिलहाल उत्तर प्रदेश के मामले पर कोई फैसला लेने की हालत में नहीं है.

दशाश्वमेध घाट में चुनाव प्रचारतस्वीर: DW/P.Tiwari

विपक्ष भी यह बात समझता है कि राज्य के बंटवारे का प्रस्ताव मायावती का चुनावी स्टंट है. लेकिन वह चाह कर भी इस मामले में विरोध नहीं कर सकता. इससे संबंधित इलाके में वोट कटने का खतरा जो है.

आम लोगों में खुशी

जहां तक आम लोगों का सवाल है, वे इस फैसले से खुश हैं. लेकिन कुछ लोग इसे चुनावी चाल करार देते हुए कहते हैं कि चुनाव बीतने के बाद राजनीतिक पार्टियां पहले के चुनावी वादों की तरह इसे भूल जाएंगी. बनारस में एक व्यापारी सुमन मिश्र कहते हैं, "पूर्वांचल लंबे अरसे से पिछड़ेपन का शिकार है. सरकारें बदलतीं रहीं, लेकिन इस इलाके की किस्मत कभी नहीं बदली. अब शायद अलग राज्य बनने के बाद विकास की गति कुछ तेज हो." प्रस्तावित राज्य के गठन की स्थिति में बनारस ही उसकी राजधानी बनने का सबसे बड़ा दावेदार है.

कांग्रेस की हालत

मायावती की नई चाल ने खासकर अपना पांव मजबूत करने का प्यास कर रही कांग्रेस को झटका दिया है. वह शुरू से ही विभाजन के पक्ष में रही है. लेकिन तेलंगाना मुद्दे पर उपजे गतिरोध को ध्यान में रखते हुए फिलहाल वह उत्तर प्रदेश के विभाजन पर कोई फैसला लेने की हालत में नहीं है. मायावती का यह प्रस्ताव ठीक उस समय आया जब राहुल गांधी उत्तर प्रदेश का तूफानी दौरा कर वोटरों को कांग्रेस के खेमे में लौटाने की मुहिम चला रहे थे. बीते कुछ चुनावों में कई अध्यक्ष बदलने के बावजूद पार्टी की हालत में कोई सुधार नहीं आया है. इसलिए अब की कमान खुद राहुल ने संभाली है.

कांग्रेस युवा ब्रिगेड के सहारे अपनी किस्मत आजमाने मैदान में उतरी है. इस साल जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए हैं उनमें युवा उम्मीदवारों को मिली कामयाबी से पार्टी के हौसले बुलंद हैं और वह यहां भी उसे दोहराने का सपना देख रही है. यही वजह है कि उसने बीते विधानसभा चुनावों के मुकाबले दुगुनी तादाद में युवा उम्मीदवारों को टिकट देने का फैसला किया है.

पिछली बार राज्य की 403 में से पार्टी को महज 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. इसके अलावा उसने ओबीसी कोटे में पिछड़े तबके के मुसलमानों को आरक्षण का भरोसा देकर जातिगत कार्ड भी खेला है. लेकिन इसका विरोध शुरू हो गया है. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मोहन सिंह कहते हैं, मुसलमानों को अलग से आरक्षण देने के लिए हम संविधान संशोधन के जरिए रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं, भाजपा ने भी कांग्रेस पर मुसलमानों को गुमराह कर वोट बैंक मजबूत करने का आरोप लगाया है.

सपा और भाजपा

राज्य में सत्ता के दो प्रमुख दावेदारों सपा और भाजपा ने मायावती के भ्रष्टाचार को निशाना बनाते हुए अपनी रणनीति तैयार की है. इन दलों के नेताओं ने मायावती पर हमले तेज कर दिए हैं. सपा प्रमुख मुलायम सिंह कहते हैं, ‘मायावती जनता के पैसों से पार्क और मूर्तियां बना रही हैं जबकि राज्य में विकास का काम ठप्प है. यह सरकार सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबी है.' लगभग यही आरोप भाजपाई भी लगा रहे है. भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने हाल में अपने लखनऊ दौरे में कारों से कहा कि सरकार की गलत नीतियों और भ्रष्टाचार की वजह से राज्य लगातार पिछड़ रहा है. यहां कोई नया उद्योग नहीं लग रहा. नतीजतन दलितों की शुभचिंतक होने का दावा करने वाली मायावती सरकार के राज में दलित युवकों को भी नौकरियां नहीं मिल रही हैं.

क्या कहते हैं युवा वोटर

इस बार राज्य विधानसभा चुनाव से पहले युवा वोटरों में अन्ना हजारे के आंदोलन का असर भी नजर आ रहा है. बनारस हिंदू विशिवविद्यालय (बीएचयू) की बायोकेमिस्टट्री विभाग की छात्रा मोनिका पटेल कहती है, "उम्मीदवारों को शिक्षित होना चाहिए. वह कम से कम ग्रेजुएट तो जरूर हों. वह शिक्षित होंगे तभी राज्य की बदहाल शिक्षा व्यवस्था की कमियों की शिनाख्त कर उसे दूर करने के लिए प्रभावी कदम उठाएंगे." ध्यान रहे कि बीएचयू को कभी उच्च शिक्षा का गढ़ माना जाता है. लेकिन छात्र राजनीति और राजनीतिक दलों की उपेक्षा के चलते अब पहले जैसी बात नहीं रही.

रिपोर्टः प्रभाकर, लखनऊ

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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