उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के कर्मचारियों के भविष्यनिधि का करीब ढाई हजार करोड़ रुपया विभागीय अधिकारियों के उस फैसले की भेंट चढ़ गया है जो सारे नियमों को धता बताते हुए महज कुछेक लोगों के बीच तय कर लिया गया.
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इस मामले में राज्य की आर्थिक अपराध शाखा ने उस समय पावर कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक रहे एपी मिश्र समेत एंप्लॉईज ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव पीके गुप्ता और तत्कालीन वित्त निदेशक सुधांशु द्विवेदी को गिरफ्तार करके पूछताछ शुरू कर दी है लेकिन बिजली विभाग के करीब पैंतालीस हजार कर्मचारियों और अधिकारियों को इस बात की आशंका है कि जो पैसा उन्होंने अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के मकसद से सरकार के पास सुरक्षित रखा था, वह उन्हें मिल पाएगा या नहीं.
दरअसल साल 2014 में उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर एंप्लॉइज ट्रस्ट और उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन अंशदायी भविष्य निधि ट्रस्ट के पैसे को उन कंपनियों में निवेश करने का फैसला लिया गया था जहां अधिक ब्याज मिले. इससे पहले इस राशि को सिर्फ राष्ट्रीयकृत बैंक में ही जमा किया जाता था ताकि कर्मचारियों का पैसा सुरक्षित रहे और उन्हें उचित ब्याज मिलता रहे.
साल 2016 से ट्रस्ट ने पहले पीएनबी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी में निवेश की शुरुआत की लेकिन मार्च 2017 में ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने तत्कालीन सचिव पीके गुप्ता और निदेशक वित्त सुधांशु द्विवेदी की मौजूदगी में इस राशि को पीएनबी हाउसिंग कंपनी की बजाय एक निजी हाउसिंग कंपनी डीएचएफएल यानी दीवान हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड में पैसे लगाने की मंजूरी दे दी. इसके बाद मार्च 2017 से लेकर दिसंबर 2018 तक कर्मचारियों की पीएफ राशि को यहीं जमा किया जाता रहा.
जानकारी के मुताबिक यूपी पावर सेक्टर एंप्लॉईज ट्रस्ट ने करीब 4121 करोड़ रुपये का निवेश डीएचएफएल में किया था. इनमें से 1854 करोड़ रुपये की एफडी एक साल के लिए और 2268 करोड़ रुपये की एफडी तीन साल के लिए कराई गई थी. 1854 करोड़ रुपये तो 2018 में मैच्योर होने के बाद वापस आ गए लेकिन बाकी बची करीब 2200 करोड़ रुपये की राशि डीएचएफएल में इसलिए फंस गई है क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनियमितताओं की शिकायत के चलते इस कंपनी के सारे लेन देन पर पिछले दिनों रोक लगा दी थी.
सरकार ने इस पूरे घपले की जांच सीबीआई को सौंप दी है और आर्थिक अपराध शाखा उस वक्त रहे बड़े अधिकारियों को गिरफ्तार करके जांच कर रही है. लेकिन इस मामले में समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में जबानी लड़ाई भी तेज हो गई है. उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा कहते हैं कि ये सारा फैसला तब लिया गया जब उनकी सरकार अभी बनी ही थी. श्रीकांत शर्मा इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दोषी ठहराते हैं.
ट्रस्ट की बैठक में जब यह फैसला हुआ यानी 22 मार्च 2017 को, उस समय उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी और डीएचएफएल कंपनी में पीएफ के पैसे के निवेश की शुरुआत उसके बाद ही हुई. श्रीकांत शर्मा का आरोप है कि सपा सरकार में इसकी भूमिका बनी जबकि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इसके लिए ऊर्जा मंत्री और मुख्यमंत्री को दोषी ठहरा रहे हैं. वहीं कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि फैसला चाहे जब हुआ हो, निवेश की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में हुई और ढाई साल तक इस मामले में सरकार की चुप्पी तमाम आशंकाओं को जन्म देती है.
पीएनबी घोटाला: क्या, कैसे और कब हुआ?
पीएनबी घोटाला: क्या, कैसे और कब हुआ?
भारत में पीएनबी घोटाले से देश का पूरा वित्तीय सेक्टर सन्न है. मुंबई में बैंक की सिर्फ एक शाखा से 1.77 अरब डॉलर का घपला हो गया. लेकिन कैसे?
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क्या हुआ?
29 जनवरी को पीएनबी के अधिकारी ने सीबीआई के सामने तीन कंपनियों और चार लोगों के खिलाफ एक आपराधिक केस दर्ज कराया है. इनमें अरबपति ज्वेलर नीरव मोदी और मेहुल चौक्सी के नाम शामिल हैं जिन पर 2.8 अरब रुपये की धोखाधड़ी का आरोप है.
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मिलीभगत
बैंक का कहना है कि शाखा के दो जूनियर कर्मचारियों ने इन लोगों की मदद की और क्रेडिट लिमिट सेंक्शन और मेंटिनेंस मार्जिन के बिना ही उन्हें लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी कर दिया. यह लेटर भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं से शॉर्ट टर्म लोन लेने में काम आते हैं.
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मेंटिनेंस मार्जिन?
मेंटिनेंस मार्जिन वह राशि होती है जिसका इंतजाम कर्ज लेने वाले को खुद करना है. अगर 100 रुपया लोन है और बैंक 85 रुपया फाइनेंस कर रहा है, तो 15 रुपये का इतंजाम कर्ज लेने वाले को खुद करना है. क्रेडिट लिमिट राशि की वह सीमा है जितना अधिकतम लोन दिया जा सकता है. इसे बैंक बाद में घटा भी सकता है.
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जांच शुरू
पीएनबी की शिकायत के आधार पर सीबीआई ने 31 जनवरी को आरोपी कंपनियों और लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया. पीएनबी के मुताबिक उसके यहां भी विस्तृत जांच चल रही है. 14 फरवरी को पीएनबी ने कहा कि मुंबई में उसकी एक शाखा में कुल 1.77 अरब डॉलर का घपला हुआ है.
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कैसे पता चला?
पीएनबी का कहना है कि 16 जनवरी को आरोपी कंपनियों ने मुंबई की शाखा में इम्पोर्ट डॉक्यूमेंट का एक सेट भेजा और विदेशी सप्लायरों को लोन के तहत भुगतान करने का आग्रह किया. चूंकि पहले से कोई क्रेडिट लिमिट तय नहीं थी तो अधिकारियों ने पूरा ब्यौरा मांगा ताकि लोन के लिए एलओयू जारी किया जा सके.
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पहले नहीं पड़ी जरूरत
इस पर कंपनियों ने कहा कि पहले भी वह इस सुविधा का इस्तेमाल करती रही हैं और कभी मेंटिनेंस मार्जिन की जरूरत नहीं पड़ी. फिर पीएनबी ने अपने रिकॉर्ड खंगाले तो पता चला कि बैंक के दो जूनियर कर्मचारियों ने बैंक के सिस्टम में ब्यौरा दर्ज किए बिना एलओयू जारी कर दिए.
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चार साल तक घपला
पीएनबी का कहना है कि यह घपला चार साल तक चलता रहा और लेन देन होता रहा. बैंकिंग सूत्रों का कहना है कि कुछ बैंकों में अंतरराष्ट्रीय लेन देन के लिए इस्तेमाल होने वाला स्विफ्ट सिस्टम और कोर बैंकिंग सिस्टम एक दूसरे से स्वतंत्र काम करते हैं.
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इसलिए नहीं पता चला
पीएनबी के मामले में, बैंक में इस्तेमाल होने वाले फिनाकल सॉफ्टवेयर पर चलने वाले कोर बैंकिंग सिस्टम पर एलओयू उपलब्ध नहीं थे और इसीलिए उनका पता नहीं चल पाया. फिनाकल सॉफ्टवेयर को इंफोसिस ने तैयार किया है.
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कौन कौन हैं शामिल
पीएनबी ने इस घपले के लिए तीन कंपनियों पर आरोप लगाया है जिनमें सोलर एक्पोर्ट्स, स्टेलर डायमंड्स और डायमंड आर यूएस शामिल हैं. ये कंपनियां कारोबारी नीरव मोदी से संबंधित हैं जिनके न्यूयॉर्क और हांगकांग में बड़े ज्वेलरी स्टोर हैं. फोर्ब्स के मुताबिक मोदी 1.73 अरब डॉलर के मालिक हैं.
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अन्य बैंक भी शामिल
पीएनबी का कहना है कि मोदी की कंपनियों ने बैंक के कर्मचारियों की मिलीभगत से यह घपला किया. इसमें कुछ अन्य बैंकों की विदेशी शाखाओं के कर्मचारी भी शामिल बताए जा रहे हैं. मोदी के रिश्तेदार मेहुल चौक्सी की कंपनियां गीतांजलि जेम्स, गिली इंडिया और नक्षत्र भी आरोपों में घिरी हैं.
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"बेबुनियाद आरोप"
गीतांजलि का कहना है कि चौक्सी का इस घपले से कोई लेना देना नहीं है. कंपनी के मुताबिक चौक्सी अपना नाम सीबीआई केस से हटाने के लिए हर मुमकिन कानूनी कदम उठाएंगे. वहीं नीरव मोदी की तरफ से कोई बयान नहीं आया है. उनकी मुख्य कंपनी फायरस्टार डायमंड ने आरोपों को खारिज किया है.
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कार्रवाई
घपला सुर्खियों में आने के बाद नीरव मोदी के घर और दफ्तरों पर छापे मारे गए हैं. बैंक की शाखा में तलाशी की गई है. पीएनबी ने अपने दो कर्मचारियों के खिलाफ भी आपराधिक मामला दर्ज कराया है. वित्त मंत्रालय ने सभी बैंकों से चौकसी बरतने को कहा है.
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सबसे बड़ा बैंक घपला
भारत के बैंकिंग सेक्टर का यह सबसे बड़ा घपला ऐसे समय में सामने आया है जब बैंकों और खासकर सरकारी बैंकों की तरफ से लोन के तौर पर दी गई 9,500 अरब रुपये की रकम वापस नहीं आ पा रही है. इससे बैंक नए कर्जे देने से बचते हैं और रिकवरी सिस्टम चरमरा रहा है.
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राहत पैकेज
सख्त वित्तीय परिस्थितियों के बावजूद सरकार ने हाल में बैकों की खस्ता हालत को ध्यान में रखते हुए उन्हें 900 अरब रुपये की मदद दी है. यह बैकों के लिए तैयार 2,000 अरब रुपये के राहत पैकेज का हिस्सा है. अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग नियमों के तहत अगले साल तक भारतीय बैंकों को अपनी पूंजी का हिस्सा बढ़ाना होगा.
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उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ पत्रकार अमिता वर्मा कहती हैं, "यह मामला वास्तव में कभी सामने न आ पाता यदि पिछले दिनों पावर कॉर्पोरेशन के चेयरमैन आलोक कुमार के पास गुमनाम चिट्ठी न आई होती. उसी चिट्ठी में उनसे कथित तौर पर सात करोड़ रुपये की रंगदारी मांगी गई थी. ट्रस्ट की जिस बैठक में 22 मार्च 2017 को डीएचएफएल में निवेश का फैसला लिया गया था, उस बैठक में कर्मचारी संगठनों की ओर से कोई प्रतिनिधि मौजूद ही नहीं था. जो प्रतिनिधि थे, वे सब इस घालमेल में शामिल थे, इसीलिए यह बात किसी को पता ही नहीं चल पाई.”
मामला सामने आने के बाद पावर कॉरपोरेशन ने एक अक्टूबर को इसकी जांच अपनी सतर्कता विंग को सौंप दी. लेकिन मामले को बढ़ता देख और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के इस पर आए लगातार ट्वीट्स के बाद सरकार ने कार्रवाई शुरू की और मामले की जांच की सीबीआई से सिफारिश कर दी. लेकिन विभाग के कर्मचारी पावर कॉर्पोरेशन के मौजूदा एमडी और चेयरमैन के खिलाफ कार्रवाई और अपने पैसों की सुरक्षित वापसी को लेकर पिछले तीन दिनों से राजधानी समेत कई जगहों पर आंदोलन कर रहे हैं. हालांकि सरकार ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि उनका पैसा डूबने नहीं पाएगा लेकिन डीएचएफल कंपनी जिस तरह से आर्थिक अनियमितताओं से घिरी है, उसे देखते हुए कर्मचारी सशंकित हैं.
डीएचएफएल कंपनी पर बैंकों का हजारों करोड़ रुपया बकाया है और यह कंपनी डूबने की कगार पर है. कंपनी में व्याप्त अनियमितताओं की जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है और बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसके लेन-देन पर रोक लगा रखी है. इसके अलावा कंपनी में कई ऐसे निवेशक भी हैं जिनका प्रोफाइल बेहद संदिग्ध है. बताया जा रहा है कि इस कंपनी के निवेशकों में दाउद इब्राहिम के करीबी इकबाल मिर्ची भी परोक्ष रूप से शामिल हैं.
इस मामले में गत दो नवंबर को लखनऊ के हजरतगंज थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई गई जिसके बाद ही सुधांशु द्विवेदी और पीके गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके अलावा पावर कॉर्पोरेशन के तत्कालीन एमडी एपी मिश्र को भी गिरफ्तार करके जेल भेजा चुका है. आर्थिक अपराध शाखा के डीजी आरपी सिंह ने मीडिया को बताया कि इन लोगों को आमने-सामने बैठाकर भी पूछताछ की जा सकती है. एपी मिश्र पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बेहद करीबी बताए जाते हैं और पिछली सरकार ने उन्हें रिटायर होने के बावजूद तीन बार एक्सटेंशन दिया था.
भारत के दस बड़े घोटाले...
भारत के दस बड़े घोटाले...
सत्ता और कारोबार के घालमेल ने सरकारी खजाने को अब तक काफी नुकसान पहुंचाया है. अकसर किसी न किसी घोटाले की खबर आती ही रहती है. डालते हैं भारत के दस बड़े घोटालों पर एक नजर, जिसने निवेशकों और आम जनता को हिला कर रख दिया.
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कोयला घोटाला, 2012
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान साल 2012 में यह मामला सामने आया. यह घोटाला पीएसयू और निजी कंपनियों को सरकार की ओर से किये गये कोयला ब्लॉक आवंटन से जुड़ा है. इसमें कहा गया था कि सरकार ने प्रतिस्पर्धी बोली के बजाय मनमाने ढंग से कोयला ब्लॉक का आवंटन किया, जिसके चलते सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
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2जी घोटाला, 2008
देश में तमाम घोटाले सामने आये हैं लेकिन 2जी स्कैम इन सबसे अलग है. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक टेलिकॉम क्षेत्र से जुड़े इस घोटाले के चलते सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ का घाटा हुआ. कैग ने साल 2010 की अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस पहले आओ, पहले पाओ की नीति पर बांटे गये लेकिन अगर इन लाइसेंस का आवंटन नीलामी के आधार पर होता तो खजाने को कम से कम 1.76 लाख करोड़ रुपये मिलते.
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वक्फ बोर्ड भूमि घोटाला, 2012
कर्नाटक राज्य अल्पसंख्क आयोग के चेयरमैन अनवर मणिपड़ी द्वारा पेश रिपोर्ट में कहा गया कि कर्नाटक वक्फ बोर्ड के नियंत्रण वाली 27 हजार एकड़ भूमि का आवंटन गैरकानूनी रूप से किया गया. 7500 पन्नों की इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में वक्फ बोर्ड ने 22 हजार संपत्तियों पर कब्जा कर उन्हें निजी लोगों और संस्थानों को बेच दिया. इसके चलते राजकोष को करीब दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
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कॉमनवेल्थ घोटाला, 2010
घोटालों की सूची में बड़ा नाम कॉमनवेल्थ खेलों का भी है. केंद्रीय सतर्कता आयोग ने अपनी जांच में पाया कि साल 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ खेलों पर तकरीबन 70 हजार करोड़ रुपये खर्च किये गये. इसमें से आधी राशि ही खिलाड़ियों और खेलों पर खर्च की गई. आयोग ने जांच में तमाम वित्तीय अनियमिततायें पाईं, मसलन अनुबंधों को पूरा करने में अतिरिक्त विलंब किया गया.
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तेलगी घोटाला, 2002
यह घोटाला अपने आप में कुछ अलग है. घोटाले के मुख्य दोषी अब्दुल करीम तेलगी की हाल में मौत हो गई है, इसे अदालत ने 30 साल कैद की सजा सुनाई थी. माना जाता है कि तकरीबन 20 हजार करोड़ के इस घोटाले की शुरुआत 90 के दशक में हई. तेलगी के पास स्टांप पेपर बेचने का लाइसेंस था लेकिन उसने इसका गलत इस्तेमाल करते हुए नकली स्टांप पेपर छापे और बैंकों और संस्थाओं को बेचना शुरू कर दिया.
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सत्यम स्कैम, 2009
सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज से जुड़े इस घोटाले ने निवेशकों और शेयरधारकों के मन में जो संदेह पैदा किया है उसकी भरपाई नहीं की जा सकती. यह कॉरपोरेट इतिहास के बड़े घोटालों में से एक है. साल 2009 में कंपनी के तात्कालीन चेयरमैन बी रामलिंगा राजू पर कंपनी के खातों में हेरफेर, कंपनी के मुनाफे को बढ़ाचढ़ा कर दिखाने के आरोप लगे. घोटाले के बाद सरकार द्वारा प्रायोजित नीलामी में टेक महिंद्रा ने अधिग्रहण कर लिया.
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बोफोर्स घोटाला, 1980 और 90 के दशक में
देश की राजनीति में उथल-पुथल मचाने वाले इस घोटाले का खुलासा स्वीडन रेडियो ने किया था. इस घोटाले में कहा गया कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अधिकारियों को रिश्वत दी. 400 तोपें खरीदने का यह सौदा साल 1986 में राजीव गांधी सरकार ने किया गया था, इसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भी आरोप लगे.
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चारा घोटाला, 1996
साल 1996 में सामने आये इस घोटाले ने बिहार के पू्र्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का राज्य में एकछत्र राज्य समाप्त किया. 900 करोड़ रुपये का यह घोटाला जानवरों की दवाओं, पशुपालन से जड़े उपकरण से जुड़ा था जिसमें नौकरशाहों, नेताओं से लेकर बड़े कारोबारी घराने भी शामिल थे. इस मामले में यादव को जेल भी जाना पड़ा.
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हवाला स्कैंडल 1990-91
यह पहला मामला था जिसमें देश की जनता को यह समझ आया कि राजनेता कैसे सरकारी कोष खाली कर रहे हैं. इस स्कैंडल से पता चला कि कैसे हवाला दलालों को राजनेताओं से पैसे मिलते हैं. इस स्कैंडल में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी का नाम भी सामने आया जो उस समय विपक्ष के नेता थे.
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हर्षद मेहता स्कैम,1992
यह कोई आम घोटाला नहीं था. इस पूरे मामले ने देश की अर्थव्यस्था और राष्ट्रीय बैंकों को हिला कर रख दिया. हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी कर बैंकों का पैसा स्टॉक मार्केट में लगाना शुरू कर दिया जिससे बाजार को बड़ा नुकसान हुआ. एक रिपोर्ट के मुताबिक बाजार में बैंकों का पैसा लगाकर मेहता खूब लाभ कमा रहा था लेकिन यह रिपोर्ट सामने आने के बाद स्टॉक मार्केट गिर गया और निवेशकों सहित बैंकों को भी बड़ा नुकसान हुआ.