उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में एक रहस्यमयी बीमारी ने पिछले 10 दिनों में कम से कम 32 बच्चों की जान ले ली है. प्रशासन अभी भी इस बीमारी की पहचान करने में जूझ रहा है. ऐसे में राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं.
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आगरा से करीब 35 किलोमीटर दूर बसे फिरोजाबाद में इस बीमारी से मरने वाले बच्चों और वयस्कों की अलग अलग मीडिया रिपोर्टों में अलग अलग संख्या दी गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार मरने वालों की कुल संख्या 53 हो गई है, जिनमें कम से कम 45 बच्चे हैं. प्रशासन को शक है कि यह डेंगू का असर है, लेकिन इसकी अभी तक पुष्टि नहीं हो पाई है.
प्रकोप इतना बुरा है कि शहर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में इस समय कम से कम 185 बच्चे भर्ती हैं. बताया जा रहा है कि शहर के लगभग सभी सरकारी और निजी अस्पताल मरीजों से भर गए हैं.
फिरोजाबाद में बुरा हाल
आगरा डिवीजनल कमिश्नर अमित गुप्ता ने मीडिया को बताया कि फिरोजाबाद में बीते एक हफ्ते में करीब 40 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जिसका प्राथमिक कारण डेंगू लग रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि दूसरे कारणों का भी पता लगाने की कोशिश की जा रही है.
पूरे राज्य के स्कूलों में एक सितंबर से कक्षा एक से पांचवीं तक को खोलने की योजना थी, लेकिन फिरोजाबाद में बीमारी के प्रकोप की वजह से जिला प्रशासन ने स्कूलों को बंद ही रखने का आदेश दिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 30 अगस्त को फिरोजाबाद दौरे पर गए थे और स्थिति से निपटने की तैयारी का जायजा लिया था.
स्थानीय डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में लक्षणों की शुरुआत बुखार, दस्त और उल्टियों से होती है. बच्चों की कोविड जांच भी की जा रही है लेकिन अभी तक इनमें कोविड का कोई मामला सामने नहीं आया है.
कई जगह से मौतों की खबर
बताया जा रहा है कि पास ही में स्थित मथुरा से भी कुछ लोगों की मौत की खबर आई थी लेकिन इनके लिए स्क्रब टाइफस नाम की बीमारी को जिम्मेदार पाया गया. यह भी डेंगू की ही तरह एक वेक्टर जनित बीमारी होती है लेकिन यह वायरस की जगह बैक्टीरिया की वजह से होती है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गोरखपुर इलाका जापानी इंसेफेलाइटिस बीमारी के प्रकोप की वजह से सालों से बदनाम है. वहां हर साल कई बच्चों की इस बीमारी के कारण मौत हो जाती है, लेकिन फिरोजाबाद के लिए मौजूदा संकट एक नई समस्या है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तरह की स्थिति यहां पहले कभी नहीं देखी गई.
क्या मच्छर भी अच्छे हो सकते हैं
मच्छरों को घातक कीट माना जाता है. लेकिन वे पौधों के विकास में मदद करते हैं. वे जमे पानी को शुद्ध करके, इंसान और पर्यावरण को बेहतर बनाने में मदद करते हैं.
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सभी मच्छरों को मार डालो!
सभी मच्छरों को मारना संभव नहीं है. मच्छरों की हजारों प्रजातियां होती हैं. कुछ सौ प्रजातियां हैं जिनके काटने से कमजोरी होती है और कुछ बहुत घातक होती हैं. वे मनुष्यों और जानवरों में रोग पैदा करते हैं. मादा मच्छर मलेरिया, जीका, डेंगू, पीला बुखार, चिकन पॉक्स और वेस्ट नाइल वायरस जैसी बीमारियां फैलाती हैं. इन मच्छरों का इस्तेमाल पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिए किया जाता है.
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कीट लेकिन परागणकारी
मादा मच्छर अंडे के लिए प्रोटीन प्राप्त करने के लिए मानव शरीर का खून चूसती हैं. इस कारण वे न केवल इंसानों को बल्कि घोड़ों, मवेशियों और पक्षियों को भी काटती हैं. मच्छर पौधों की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे जलीय पौधों को उगाने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे पानी में अधिक समय बिताते हैं.
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छोटे जानवरों और कीड़ों के लिए भोजन
मच्छर इंसानों को काटते हैं और हम उनसे बचने के लिए रासायनिक स्प्रे का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन प्रकृति भी इंसानों के लिए मददगार है. ये मच्छर पक्षी, चमगादड़, मछली, मेंढक, ड्रैगनफ्लाई और मकड़ियों द्वारा भी खाए जाते हैं. पर्यावरणविदों के मुताबिक पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र मच्छरों पर निर्भर करता है, जिसके बिना कई जानवर और कीड़े विलुप्त हो सकते हैं.
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दर्द रहित इंजेक्शन
जब कोई मच्छर किसी इंसान के शरीर को काटता है, तो वह सिरींज की तरह काम करते हुए अपनी लार इंजेक्ट करता है. इस डंक से व्यक्ति को बहुत कम दर्द होता है. मच्छर की लार में एनोफिलाइन नामक पदार्थ होता है, जो इंसान के रक्त को थक्का बनने से रोकने में मदद करता है.
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अच्छा, बुरा और लार्वा
मच्छर खड़े पानी में लार्वा या अंडे देते हैं. इंसान अपनी लापरवाही के कारण मुफ्त में मच्छरों को पनपने का ठिकाना देता है. लेकिन यह जरूरी है कि लार्वा जैविक कचरे यानी परजीवी आदि को खाकर भी पानी को साफ करें. जाहिर है यह पानी अब पीने योग्य नहीं है.