उत्तर प्रदेश के उन्नाव में दो दलित बहनों के शव खेतों में मिलने के बाद दलित महिलाओं के खिलाफ अपराधों को ले कर एक बार फिर तनाव पैदा हो गया है. परिवार ने दावा किया है कि लड़कियों के हाथ और पांव दुपट्टों से बांध दिए गए थे.
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दोनों बहनों में से एक 16 साल की थी और दूसरी 13 साल की. उनके शव के पास ही 17 साल की उनकी एक और बहन बेहोश हालत में पाई गई. उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया गया है लेकिन उसकी हालत नाजुक बताई जा रही है. परिवार का कहना है कि तीनों लड़कियां खेतों से घास लाने गई थीं पर जब कई घंटों तक नहीं लौटीं तो परिवार ने उन्हें खोजना शुरू किया और फिर खेतों में उन्हें पाया.
स्थानीय पुलिस ने परिवार के इस दावे की पुष्टि नहीं की है कि तीनों लड़कियों के हाथ-पैर बंधे हुए थे. पुलिस का कहना है कि पुलिस के पहुंचने के पहले ही तीनों को घटना-स्थल से हटा लिया गया था. पुलिस ने इस बात की पुष्टि जरूर की है कि डॉक्टरों ने बताया है कि तीनों के मुंह से सफेद झाग जैसा पदार्थ निकल रहा था और जहर दिए जाने के दूसरे लक्षण भी थे. इसके अलावा इस मामले से संबंधित और कोई जानकारी सामने नहीं आई है.
स्थानीय मीडिया में आई रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि पीड़िताओं के परिवार के सदस्यों को स्थानीय प्रशासन ने नजरबंद कर दिया है जिसकी वजह से मीडियाकर्मी उनसे मिल नहीं पा रहे हैं. इस पूरे मामले ने पिछले साल उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 साल की एक लड़की के बलात्कार और हत्या के मामले की यादें ताजा कर दी हैं. हाथरस मामले की मीडिया में खबर आने के बाद पुलिस ने रातों-रात पीड़िता के शव का दाह-संस्कार कर दिया था, जिसके बाद प्रशासन के खिलाफ लोगों में नाराजगी बढ़ गई थी.
पूरे मामले पर देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए थे, जिसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इन प्रदर्शनों को एक अंतरराष्ट्रीय साजिश भी बताया था. कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था जिनमें एक पत्रकार और कुछ ऐक्टिविस्ट भी शामिल थे. इस बार भी उन्नाव की घटना को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. उन्नाव पहुंचे दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की है.
दलितों के खिलाफ अपराध के 94 प्रतिशत मामले रह जाते हैं लंबित
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं. उस से भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि उन्हें न्याय भी नहीं मिलता. अधिकतर मामले अदालतों में लंबित ही रह जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky
बढ़ रहे हैं अपराध
देश में 2019 में अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ 45,935 अपराध हुए, जो 2018 में हुए अपराधों के मुकाबले 7.3 प्रतिशत ज्यादा हैं. इस संख्या का मतलब है दलितों के खिलाफ हर 12 मिनट में एक अपराध होता है. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ अपराध में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
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सबसे ज्यादा अपराध उत्तर प्रदेश में
राज्यवार देखें, तो 11,829 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश में हालात सबसे गंभीर हैं. एक चौथाई मामले अकेले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज हुए. इसके बाद हैं राजस्थान (6,794) और बिहार (6,544). 71 प्रतिशत मामले इन्हीं पांच राज्यों में थे. राज्य की कुल आबादी में अनुसूचित जाती के लोगों की आबादी के अनुपात के लिहाज से, अपराध की दर राजस्थान में सबसे ऊंची पाई गई. उसके बाद नंबर है मध्य प्रदेश और फिर बिहार का.
अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में सबसे बड़ा हिस्सा (28.89 प्रतिशत) शारीरिक पीड़ा या अंग-दुर्बलता के रूप में क्षति पहुंचाने के मामलों का है. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में भी सबसे बड़ा हिस्सा (20.3 प्रतिशत) क्षति पहुंचाने के मामलों का ही है.
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दलित महिलाओं का बलात्कार
अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में 7.59 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे. सबसे ज्यादा (554) मामले राजस्थान से थे और उसके बाद उत्तर प्रदेश से. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में 13.4 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे. सबसे ज्यादा मामले (358) मध्य प्रदेश से थे और उसके बाद छत्तीसगढ़ से. 10.7 प्रतिशत मामले एसटी महिलाओं की मर्यादा के उल्लंघन के इरादे से किए गए हमलों के थे.
पुलिस की कार्रवाई के लिहाज से कुल 28.7 प्रतिशत और सुनवाई के लिहाज से 93.8 प्रतिशत मामले लंबित रह गए. ये आम मामलों के लंबित रहने की दर से ज्यादा है.
तस्वीर: Sam Panthaky/AFP/Getty Images
सुनवाई भी नहीं
2019 में अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए 204,191 मामलों में सुनवाई होनी थी, लेकिन इनमें से सिर्फ छह प्रतिशत मामलों में सुनवाई पूरी हुई. इनमें से सिर्फ 32 प्रतिशत मामलों में दोषी का अपराध साबित हुआ और 59 प्रतिशत मामलों में आरोपी बरी हो गए.