उपचार और न्याय के लिए परेशान तमिलनाडु के कपड़ा मजदूर
१० फ़रवरी २०१७
ये मजदूर आज न्याय और उपचार के लिए अलग ही लड़ाई लड़ रहे हैं. किसी दुर्घटना के बाद इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं. कंपनियां प्रबंधन चाहे जितने भी दावे करें लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है.
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तमिलनाडु की रासु महालक्ष्मी एक टैक्सटाइल फैक्ट्री में काम करती थीं. काम करते हुए इनके हाथ की चार उंगलियां जख्मी हो गई थीं. हालांकि महालक्ष्मी को इसके लिए सरकार से मदद भी मिली, लेकिन उनके चेहरे पर संतोष का कोई भाव नजर नहीं आता. महालक्ष्मी को 1.36 रुपये की ये राहत सात साल बाद नसीब हुई है.
देश के कपड़ा मजदूरों के लिए काम कर रहे लोगों का कहना है कि महालक्ष्मी की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है और देश में काम कर रहे लगभग सभी कपड़ा मजदूरों की लगभग यही कहानी है. महालक्ष्मी ने बताया कि जब वह महज 19 साल की थीं तब तमिलनाडु में उसके साथ यह दुर्घटना हुई थी. इसके बाद सरकार की ओर से सात साल बाद 1.36 लाख रुपये की मदद इलाज आदि के लिए मिली. लेकिन अब भी मिल प्रबंधन के साथ 5 लाख रुपये के हर्जाने के लिए महालक्ष्मी की लड़ाई जारी है. महालक्ष्मी के मुताबिक शुरुआती सर्जरी और अस्पताल का खर्च तो कंपनी ने उठाया था लेकिन इसके बाद प्रबंधन ने उनकी कोई सुध नहीं ली जिसके बाद डॉक्टर और दवाइयों का सारा खर्च उसे खुद उठाना पड़ा.
सबसे ज्यादा न्यूनतम मजदूरी
ओईसीडी के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा न्यूनतम मजदूरी देने वाले 15 देश ये हैं.
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स्लोवेनिया, 5.14 डॉलर प्रति घंटा
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स्पेन, 5.37 डॉलर प्रति घंटा
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जापान, 5.52 डॉलर प्रति घंटा
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कोरिया, 5.85 डॉलर प्रति घंटा
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अमेरिका, 6.26 डॉलर प्रति घंटा
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युनाइटेड किंगडम, 7.06 डॉलर प्रति घंटा
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कनाडा, 7.18 डॉलर प्रति घंटा
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जर्मनी, 7.19 डॉलर प्रति घंटा
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न्यूजीलैंड, 7.55 डॉलर प्रति घंटा
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नीदरलैंड्स, 8.20 डॉलर प्रति घंटा
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फ्रांस, 8.24 डॉलर प्रति घंटा
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आयरलैंड, 8.46 डॉलर प्रति घंटा
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बेल्जियम, 8.57 डॉलर प्रति घंटा
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लग्जमबर्ग, 9.24 डॉलर प्रति घंटा
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ऑस्ट्रेलिया, 9.54 डॉलर प्रति घंटा
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महालक्ष्मी, सुमंगली योजना के तहत कार्य कर रही थी. यह योजना भी बाल मजदूरी को एक ऐसा रूप है जिसमें किशोरियों को तीन से पांच साल तक के लिए रखा जाता है. इन्हें इस वादे के साथ नौकरी दी जाती है कि अपने दहेज का खर्च जुटाने के लिए आखिर में इन लड़कियों को एकमुश्त राशि दी जाएगी. महालक्ष्मी को भी तीन साल बाद 30 हजार रुपये मिलने वाले थे. लेकिन इस दुर्घटना ने इनकी पूरी जिंदगी बदल दी. महालक्ष्मी बताती हैं कि जब वह अपने मां-बाप के साथ मैनेजर के पास पहुंचीं तो उन्होंने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. हैरत की बात है कि महालक्ष्मी के खाते से राज्य बीमा योजना के तहत पैसे भी कटते थे लेकिन जब जरूरत पड़ी तो कोई मदद नहीं मिली. महालक्ष्मी मामले के बाद चेन्नई के ही निकट, एम मुनियाम्मल समेत 11 लोगों को ले जा रही एक कपड़ा फैक्ट्री की वैन पलट गई. लेकिन दो हफ्ते बाद ही मुनियाम्मल ने वापस काम पर आना शुरू कर दिया और जख्मी होने के बावजूद वह काम कर रही हैं. साथ काम करने वाले मजदूर कहते हैं कि इनके पास कोई विकल्प भी नहीं है.हालांकि मिल प्रबंधन इस तरह के आरोपों से इनकार करता है. प्रबंधन कहता है कि हम उपचार में होने वाले खर्चों को भुगतने के लिए तैयार हैं लेकिन इन्हें पूरे मेडिकल खर्च का ब्योरा देना होगा.
बांग्लादेशी कपड़ा मजदूरों को जर्मन मदद
बांग्लादेश में राणा प्लाजा हादसे के बाद जर्मनी ने वहां कपड़ा फैक्ट्री मजदूरों की हालत में सुधार के लिए सहयोग का हाथ बढ़ाया. इस पहल के एक साल पूरा होने पर जर्मनी के आर्थिक सहयोग एवं विकास मंत्री बांग्लादेश पहुंचे.
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मेड इन बांग्लादेश
दुनिया में गारमेंट्स का दूसरे नंबर का निर्यातक होने के नाते 2013 में राणा प्लाजा गार्मेंट फैक्ट्री का ढहना सुर्खियों में रहा. बांग्लादेश में कपड़ा फैक्ट्रियों में काम करने वालों की हालत में सुधार और उनकी सुरक्षा के लिए तभी से 'एकॉर्ड', 'एलायंस' और 'टेक्सटाइल्स पार्टनरशिप' जैसे कई कदम उठाए गए हैं.
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हिस्सेदारों का साथ
जर्मन पहल 'टेक्सटाइल्स पार्टनरशिप' का मकसद है गार्मेंट्स के उत्पादन के सभी हिस्सेदारों को साथ लाना. ढाका के पास गाजीपुर में डीबीएल ग्रुप टेक्सटाइल पार्टनरशिप से जुड़ा है. इस पहल से जुड़ने के बाद ग्रुप ने कई जरूरी कदम उठाए. जर्मनी के आर्थिक सहयोग एवं विकास मंत्री गैर्ड मुलर ने ग्रुप के प्रयासों की सराहना की.
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मोटरसाइकिल पर इंस्पेक्टर
फैक्ट्रियों की हालत पर नजर रखने के लिए 150 नए इंस्पेक्टरों को ट्रेनिंग दी गई है. उनको मोटरसाइकिल दी गई है ताकि वे इमरजेंसी की स्थिति में तुरंत पहुंच सकें और ट्रैफिक जैम से बच सकें.
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जागरूकता के लिए प्रयास
ज्यादातर महिला कर्मचारी अपने अधिकारों के बारे में जागरूक नहीं होती हैं. अपने मालिक से मोल तोल करने के लिए भी उन्हें पहले से जानकारी होना जरूरी है. जगह जगह 'विमेंस कैफे' बनाए गए हैं जहां वे ट्रेनिंग लेती हैं और कभी कभार साथ मिलकर लूडो खेलती हैं.
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हॉट सीट पर
गारमेंट्स फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाएं अक्सर हफ्ता भर हर रोज 10 से 14 घंटे काम करती हैं. टेक्सटाइल पार्टनरशिप का मकसद उनके काम की परिस्थितियों को सुधारना भी है.
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राजनीतिक समर्थन
बांग्लादेश के वित्त मंत्री तुफैल अहमद भी जर्मन मंत्री के साथ गाजीपुर की फैकट्री में मुआयना करने गए. उन्होंने इस भागीदारी के बारे में भी चर्चा की. कपड़ा मजदूरों की हालत में सुधार के लिए उठाए गए इस कदम में सरकार की अहम भागीदारी है.
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मिनी दमकल
एक किलोमीटर के दायरे में स्थित फैक्ट्रियों में आग लगने की स्थिति से बचाने के लिए मिनी दमकल का भी इंतजाम किया गया है.
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चाइल्ड केयर
कर्मचारियों के बच्चों के लिए फैकट्रियों को डे केयर सेंटर बनाने को प्रोत्साहित किया जा रहा है. जब मां काम पर होगी, तो बच्चे सेंटर पर सुरक्षित और निगरानी में रह सकते हैं.
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एकता का प्रदर्शन
परिवर्तन लाने के लिए बांग्लादेश और जर्मनी की सरकारों के अलावा फैक्ट्री मालिकों, खरीदारों और अन्य हिस्सेदारों को सहयोग निभाना होगा. हालांकि राणा प्लाजा कांड के बाद से स्थिति में काफी सुधार हुआ है.
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महत्वकांक्षी योजना
बांग्लादेश सरकार कपड़ों के 25 अरब डॉलर के निर्यात को देश के 50वें स्वतंत्रता दिवस यानि 2021 तक बढ़ाकर 50 अरब डॉलर तक पहुंचाना चाहती है. प्रधानमंत्री शेख हसीना ने गैर्ड मुलर से इस बारे में मुलाकात के दौरान बात की.
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इस दिशा में काम कर रहे लोगों के मुताबिक भारतीय कपड़ा उद्योग में करीब 4.5 करोड़ मजदूर काम कर रहे हैं और जब भी कोई दुर्घटना होती है हल्का-फुल्का सुधार नजर आता है लेकिन फिर हालात जस के तस हो जाते हैं. गारमेंट एंड फैशन वर्कर्स यूनियन से जुड़ी सुजाता मोदी के मुताबिक, "इन दुर्घटनाओं का पूरे परिवार पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि ज्यादातर मामलों में महिलाएं ही कमाने वाली सदस्य होती हैं.”
साल 2016 में गैर लाभकारी संस्था, सोशल अवेयरनेस एंड वॉलंटरी एजुकेशन के फेलिक्स जयकुमार ने टैक्सटाइल वैली नाम से मशहूर तमिलनाडु में ऐसी 13 दुर्घटनाओं और 8 मौतों का रिकॉर्ड तैयार किया था. उन्होंने कहा कि हर एक मामले में प्रबंधन घायल लोगों के उपचार पर होने वाले खर्च को लेकर लंबा विचार-विमर्श करता है. फेलिक्स के मुताबिक हर एक मामले में प्रबंधन कुछ हजार रुपये देकर मामलों को रफा-दफा करने की कोशिश में रहता है. यहां तक कि मौत जैसी घटनाओं में भी वे ये नहीं सोचते कि अधिकतर महिलाएं ही घरों में कमाने वाली एकमात्र सदस्य होती हैं.