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उपद्रवी सांसदों से संसद शर्मसार

१३ फ़रवरी २०१४

तेलंगाना राज्य का विरोध करने वाले कुछ सांसदों ने भारतीय संसद में बेशर्मी की सीमाएं तोड़ीं. लोकसभा में काली मिर्च का स्प्रे छिड़का गया, चाकू लहराया और हंटर भी फटकाया.

तस्वीर: DW/A. Chatterjee

भारत के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे गुरुवार को जैसे ही तेलंगाना के मुद्दे पर राज्य पुर्नगठन विधेयक पेश करने के लिए उठे, लोकसभा में हंगामा शुरू हो गया. सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस से हाल ही में निलंबित किये गए सांसद शिवगोपाल राजगोपाल ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया. वह स्पीकर के माइक का तार नोचने लगे. इतने से भी उन्हें सकून नहीं मिला तो उन्होंने पेपर स्प्रे (नाक और आंखों में जलन मचाने वाला काली मिर्च का स्प्रे) छिड़कना शुरू कर दिया.

संसद के बाहर अंगरक्षकों के साथ चलने वाले माननीय सांसद अपने साथी मान्यवर की हरकत से बच नहीं पाए. खांसी और छींकों के साथ कुछ सांसद आंखें मसलने लगे. कुछ सांसदों को तो एंबुलेंस में अस्पताल भेजा गया. कइयों को संसद में ही प्राथमिक उपचार दिया गया.

हंगामे के बाद संसद को कुछ देर के लिए स्थगित कर दिया गया. इसके बाद जब फिर कार्रवाई शुरू हुई तो टीडीपी के वेणुगोपाल ने चाकू लहराते हुए हंगामा शुरू कर दिया. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक एक सांसद के हाथ में तो चाबुक भी दिखा. हंगामा करने वाले 17 सांसदों को निलंबित कर दिया गया है.

रुमाल से मुंह ढककर बाहर निकलते सांसदतस्वीर: Uni

बीते डेढ़ साल से संसद के विशेषाधिकार की दुहाई देकर जनलोकपाल जैसे विधेयकों का विरोध करने वाले सांसद अपने ही साथियों की हरकतों से शर्मसार हैं. लोकसभा चुनावों से पहले हुए इस हंगामे ने एक बार फिर साबित किया है कि दागी सांसदों से भरी भारतीय संसद का स्तर बड़े आराम से बेशर्मी के नए मानक स्थापित कर सकता है. अब आरोपी सांसदों को गिरफ्तार करने की मांग हो रही है.

सरकार का कहना है कि संसद में ऐसा कोहराम मचाने वाले सांसदों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी. संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने इसे सांसदों को मारने की कोशिश करार देते हुए कहा, "सदस्यों ने सदन में गैस का इस्तेमाल करने की कोशिश की, सदन में गैस. मैंने खुद नहीं देखा लेकिन मुझे सूचना मिली कि वहां चाकू भी था, गैस भी थी और दूसरी तरह के हथियार भी थे. ऐसी घटना पर मैं शर्मिंदा हूं."

बीते साल भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने दो साल से ज्यादा जेल काटने वाले संसद सदस्यों की सदस्या रद्द करने और उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी. लेकिन तब संसद में ही दागियों को बचाने वाला अध्यादेश लाया गया, हालांकि बाद में इसे वापस ले लिया गया. बीते सालों में कई बार नेताओं की हरकतों की वजह से सांसदों का कार्यपालिका, चुनाव आयोग और अदालतों से भी टकराव होता है.

ओएसजे/एमजी (पीटीआई, एएफपी)

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