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समाज

उपेक्षित है अल्जीरिया की ये अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर

१४ जनवरी २०१९

अल्जीरिया के सैकड़ों साल पुराने पिरामिड प्राचीन काल की अमोल धरोहर हैं लेकिन रिसर्च के अभाव में उन पर रहस्य का पर्दा है. अब उसे यूनेस्को का धरोहर बनाने की कोशिश हो रही है.

Algerien Forschung Pyramidengräber Jeddars
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Kramdi

चौकोर चट्टानों पर बने 13 पिरामिड वाले स्मारक राजधानी अल्जीयर्स से 250 किलोमीटर दूर तियारेट शहर में दो पहाड़ों पर स्थित हैं. चौथी और सातवीं सदी में बने इन मकबरों के बारे में कुछ अध्येताओं का मानना है कि वे बैर्बर राजवंश के लोगों का आखिरी ठिकाना हैं. किसी को पता नहीं कि उन मकबरों के नीचे कौन दफ्न है.

अब अल्जीरिया के अधिकारी और पुरातत्व विज्ञानी जेद्दार को यूनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में डालवाना चाहते हैं ताकि उनका संरक्षण हो सके. धरोहरों की सूची में आने की प्रक्रिया बहुत जटिल है और अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए आवेदन 2020 में डाला जाएगा. नेशनल सेंटर ऑफ प्रिहिस्टोरिक, एंथ्रोपोलोजिकल और हिस्टोरिकल रिसर्च के विशेषज्ञ एक साल से ज्यादा से इसकी तैयारी में जुटे हैं.

अल्जीयर्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मुस्तफा दोर्बान कहते हैं, मकसद उस घरोहर का संरक्षण है जो अमूल्य और पुरखों की विरासत है. जब ये मकबरे बनाए गए थे उस समय बैर्बर सुल्तान छोटे छोटे इलाकों में शासन करते थे और उनके बारे में बहुत ज्यादा पता नहीं है. ये बहुत ही उपद्रवों का काल था, नुमिडिया में रोमन साम्राज्य में अशांति थी, रोम का पश्चिमी साम्राज्य टूट रहा था, बायजेंटाइन की सेना के हमले हो रहे थे और अरब सैनिक उत्तरी अफ्रीका पर धावा बोल रहे थे.

तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Kramdi

हाल में पुरातत्व विज्ञान के करीब 20 छात्रों और उनके शिक्षकों ने मकबरों में काम करना शुरू किया है. उन्होंने टूटी फूटी जगहों की शिनाख्त की है और पत्थर में उकेरे संकेतों की सफाई कर उन्हें मापने का काम शुरू किया है. हरेक निशान को रजिस्टर करने में दो घंटे लग रहे हैं. पुरातत्ववेत्ता रशीद महूज ने पांच साल तक इन मकबरों पर रिसर्च की है. देश के इस आश्चर्य पर शोध में दिलचस्पी की कमी पर वे निराश हैं.  वे कहते हैं, "जेद्दार पर फ्रेंच आर्काइव उपलब्ध नहीं है और औपनिवेशिक काल में मिली चीजें फ्रांस ले जाई गई हैं."

दिलचस्प है कि 1980 के दशक तक अल्जीरिया में पुरातत्व की पढ़ाई नहीं होती थी. अभी भी कब्र वाले स्मारकों पर कोई ट्रेनिंग नहीं होती. मौजूदा रिसर्च टीम जेद्दार ए पर काम कर रही है जो लखदर पहाड़ पर है. यहां तीन मकबरे हैं. डी से एम तक 10 मकबरे छह किलोमीटर दूर अरूरी पहाड़ पर हैं. इन मकबरों में हरेक में कम से कम एक कमरा है जबकि सबसे बड़े मकबरे में 20 कमरों वाला भूलभुलैया है. कुछ कमरों में बेंच रखे हैं जिनके बारे में रिसर्चरों का मानना है कि उनका इस्तेमाल प्रार्थना के लिए होता रहा होगा. मकबरों के अंदर परंपरागत ईसाई संकेतों के अलावा शिकार के दृश्य हैं. कुछ अभिलेख भी हैं जिनके लैटिन होने का अनुमान है लेकिन समय के प्रवाह में उन्हें पढ़ना संभव नहीं रहा है.

जेद्दार मकबरों को कई सौ साल साल पहले बनाया गया था. वे इस्लाम के आगमन से पहले आखिरी मकबरे माने जाते हैं. पुरातत्ववेत्ता माहूज कहते हैं, "जेद्दार की सबसे महत्वपूर्ण बात उनके निर्माण की तारीख है." ये मकबरे इलाके में अंतिम क्रिया की प्रक्रिया के विकास को दर्शाते हैं. इनमें मिट्टी और पत्थर से बने साधारण मकबरों से लेकर चट्टानों वाले मकबरे भी शामिल हैं. जेद्दार का सबसे पहले जिक्र इतिहासकार इब्न रकीक ने 11 वीं सदी में किया था. लेकिन लोगों का ध्यान 19वीं सदी के मध्य में फ्रेंच औपनिवेशिक शासकों के खनन अभियान के बाद गया. अभी भी बहुत से मकबरों में लोग गए नहीं हैं. उपेक्षा के बीच मकबरों के ढांचे ढह रहे हैं.

एमजे/ओएसजे (एएफपी)

तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Kramdi
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