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उभरते एशिया से बदले जर्मनी के दांव

१८ जून २०१२

एशिया के वैश्विक अर्थव्यवस्था में उभरने के साथ ही जर्मनी को उसे देखने के नजरिए में बदलाव आया है. हाल ही में बर्लिन हुई कॉन्फ्रेंस में जर्मनी और यूरोप के लिए इन बदलते समीकरणों पर नजर डाली गई.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

बातचीत का मुख्य उद्देश्य था कि एशिया के बदलते समीकरणों का यूरोप और जर्मनी पर क्या असर होगा. एक बात बिलकुल साफ है और वह है, सतर्कता से आगे बढ़ना. जर्मनी के विदेश मंत्री गिडो वेस्टरवेले ने अपनी विदेश नीति के बारे में कहा था कि राजनीति सच्चाई को समझने से शुरू होती है. जर्मनी वैसे तो यूरोप का बड़ा देश है लेकिन दुनिया के समीकरणों में छोटा है. वह सीडीयू, सीएसयू की संसदीय समिति की कांग्रेस, एशिया नई ताकतः "मूल्य, व्यापार और वर्ल्ड ऑर्डर" में बोल रहे थे. इस दौरान जर्मनी और एशिया के व्यावसायिक प्रतिनिधि और राजनयिक भी शामिल थे.

नया रुढ़िवाद

भू राजनीतिक समीकरणों में बदलाव के कारण पूरी बातचीत के दौरान एक अजीब हिचकिचाहट भरा माहौल था. वेस्टरवेले ने कहा, "हमारे हाथ में अब चाबी नहीं है." उनके इस वाक्य के साथ नई ताकत का मतलब सामने आया. इससे उभरते देशों के लिए सम्मान दिखाई दिया जबकि पहले यह संबोधन विकासशील, गरीब देशों के रूप में सामने आता था. इसमें भारत, चीन, इंडोनेशिया के साथ मलेशिया और वियतनाम भी शामिल हैं. वेस्टरवेले ने अपने भाषण के दौरान कुछ तथ्य गिनाए जैसे कि एशियाई देशों में 1999 से अब तक प्रति व्यक्ति आय तीन गुना बढ़ी है. सिर्फ चीन के मध्यमवर्ग में हर साल डेढ़ करोड़ की बढ़ोतरी हो रही है.

एशिया की बढ़ती ताकततस्वीर: picture alliance/dpa

यूरोप में यह विचार लगातार प्रबल हो रहा है कि भारत और चीन सिर्फ आर्थिक ताकत ही नहीं बन रहे हैं बल्कि क्षेत्रीय ताकतों के साथ विश्व की राजनीति में भी बड़ी भूमिका में आ रहे हैं. जर्मन विदेश मंत्री का मानना है कि राजनीतिक सफलता के कारण इलाके में और दुनिया में उनकी ताकत बढ़ रही है.

एशिया का युवा समाज बुढ़ाते यूरोप की तुलना में बहुत ही चमत्कारिक ढंग से विकसित हो रहा है. 1900 तक दुनिया की 21 फीसदी जनसंख्या यूरोप में रहती थी और अब जानकारों का कहना है कि 2050 तक यह केवल 7.9 फीसदी रह जाएगी. इसी के साथ यूरोप के साथ व्यापार और निवेश भी कम होगा.

बहुध्रुवीय सत्ता

वेस्टरवेले का मानना है कि इस बीच दुनिया में कई ताकतें उभर कर आई हैं जिससे प्राथमिकताएं बदली हैं. उन्होंने अपील भी कि नई ताकतों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भी प्रतिबिंबित करना होगा, खासकर सुरक्षा परिषद में. वहां अभी भी 20वीं सदी के प्रतिनिधियों के साथ काम हो रहा है.

इस बैठक में एशिया के लिए जर्मनी ने एक नई नीति का खाका खींचा है. यह बाद ओपन कांग्रेस में पेश किया जाएगा. सीडीयू, सीएसयू के लिए विदेशी मामलों के प्रवक्ता फिलिप मिसफेल्डर ने कहा कि "मूल्यों के आधार पर, फायदे के लिए और लक्ष्य के साथ- यही सीडीयू, सीएसयू की विदेश नीति का आधार है."

व्यापार और मूल्य

एशिया के साथ रिश्तों में सबसे बड़ी रुचि व्यापार से जुड़ी है. कांग्रेस के दौरान बार बार खनिज खनन के मामले में साझेदारी की बातें उठीं, खासकर मध्य एशियाई देशों के साथ. मुक्त व्यापार की भूमिका पर भी जोर दिया गया. कुछ वक्ताओं ने तो कहा कि एशिया में काम कर रही जर्मन संस्थाओं, कंपनियों को यूरोपीय मूल्य और विचार वहां पहुंचाना चाहिए.

फिलिप मिसफेल्डरतस्वीर: dapd

मूल्यों के मुद्दे पर धर्म की स्वतंत्रता पर विशेष बहस हुई. कहा गया कि इन देशों में ईसाइयों पर हो रहे हमलों के बारे में आवाज उठानी चाहिए नहीं तो लगेगा कि आप सिर्फ व्यापार कर रहे हैं. संसद में सीडीयू सीएसयू के व्यापार नीति प्रवक्ता योआखिम फाइफर ने कहा कि चीन के साथ अमेरिका जितना व्यापार हैः चुनौती यह है कि सारी दुनिया हमारे मूल्यों पर नहीं चलती है. मिसफेल्डर ने भी कहा कि एशिया में व्यापार से जुड़ी सफलता लोकतांत्रिक मूल्यों से भी जुड़ी हो यह जरूरी नहीं.

साथ ही एकजुट यूरोप का भी महत्व खुलकर महसूस किया गया, वैश्विक पटल पर अगर मजबूत प्रभाव बनाना है तो यूरोप के तौर पर आगे बढ़ना होगा. इस मुद्दे पर सभी भागीदार सहमत थे. वेस्टरवेले ने कहा, यूरोप सिर्फ हमारे इतिहास के सबसे काले अध्याय का ही जवाब नहीं है बल्कि वैश्विकरण और प्रतियोगी दुनिया की चुनौती का भी जवाब है, एशिया के लिए भी.

रिपोर्टः माथियास फॉन हाइन/एएम

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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