उभरते भारत और चीन में मुक़ाबला
२ अक्टूबर २००९अब तक के सात सबसे प्रमुख औद्योगिक देशों के गुट जी-7 का जो महत्व हुआ करता था, वह आगे से जी-20 का हुआ करेगा, जिस में चीन के साथ-साथ भारत भी बैठेगा.
नवोदित औद्योगिक देशों की बढ़ती हुई आर्थिक शक्ति के आगे पश्चिमी देशों को जिस तरह झुकना पड़ा है, उसके बारे में फ़ाइनैंशियल टाइम्स डोएचलांड ने लिखा, "शक्ति संतुलन में यह परिवर्तन दिखाता है कि नवोदित देश अपने ज़ोरदार आर्थिक विकास को राजनैतिक प्रभाव में बदलना भी भली भांति जानते हैं. जी-20 निर्णय लेने के अधिकार वाला कोई औपचारिक निकाय भले ही न हो, पीट्सबर्ग सम्मेलन दिखाता है कि यही ग्रुप विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़े प्रश्नों के बीच तालमेल बैठाने वाला केंद्र बनने जा रहा है. इस से नुक़सान यूरोप वालों का ही होगा. जी-7 में यूरोपीय देशों का संख्यात्मक बहुमत था, जबकि जी-20 का रंग-ढंग संकेत देता है कि वहां अमेरिका और चीन की तूती बोलेगी."
पश्चिमी देशों में जब भी विश्व के राजनैतिक और आर्थिक भविष्य की बात होती है, चीन और भारत का नाम एक ही सांस में लिया जाता है. दोनो तेज़ आर्थिक विकास के पर्याय बन गए हैं, लेकिन दैनिक हांडेल्सब्लाट के अनुसार, दोनों भीम एक-दूसरे के आड़े भी आ सकते हैं. अख़बार लिखता है, "चीन और भारत अपने आप को अपने-अपने ढंग से भावी महाशक्तियां समझते हैं और एशिया में अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने में लगे हैं...कच्चे माल की अपनी बढ़ती हुई भूख दोनों को विदेशी आयात से मिटानी पड़ेगी. इसलिए उन्हें यह डर भी है कि कभी न कभी वे एक-दूसरे के आड़े भी आ सकते हैं. यह रूसी या मध्य एशियाई गैस और तेल भंडारों के प्रसंग में भी हो सकता है और मलक्का या होर्मुज़ के जहाज़ी मार्गों के संदर्भ में भी. सतह के नीचे दोनों के बीच वर्षों से तनाव बना ही हुआ है."
बर्लिन के देयर टागेसश्पीगल का मानना है कि भारत और चीन के बीच का यह तनाव इन दिनों उभरने भी लगा है. अख़बार लिखता है, "किसी युद्ध की संभावना तो नहीं है, लेकिन पिछले वर्षों में दोनो के बीच 13 विफल वार्ताए यह भी कहती हैं दोनो के बीच की सीमा पर की शांति कितनी भंगुर है. स्थिति इससे और भी जटिल हो जाती है कि दोनों मध्य एशिया और हिंद महागर में अपना प्रभाव बढ़ाने में लगे हैं. काबुल के साथ भारत का गठजोड़ इस्लामाबाद के साथ पेचिंग की नज़दीकी के आड़े आता है."
संकलनः अना लेमान / राम यादव
संपादनः ए कुमार